Friday, April 30, 2021

तितलियां कर लेती हैं हजारों मील दूर तक की यात्रा




जीव - जंतुओं और परिंदों की तरह तितलियों का भी अदभुत संसार है। रंग बिरंगी तितलियों को उड़ते और फूलों पर मंडराते देख हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है। वन्य जीवों व पर्यावरण पर सतत कुछ न कुछ लिखने वाले कबीर संजय ने तितलियों की एक ऐसी खूबी बताई है, जिसके बारे में कम लोगों को ही पता होगा। यहाँ पर हम उनकी यह ज्ञानवर्धक पोस्ट यथावत दे रहे हैं।   

तितलियां शराबियों की तरह लडख़ड़ाते हुए उड़ती हैं। कभी आपने गौर किया है। उड़ती हैं तो लगता है एक पैर इधर पड़ रहा है तो दूसरा उधर। लडख़ड़ाते-झूमते। जैसे कभी भी किसी से टकरा जाएंगी या शराबियों की तरह भहराकर गिर पड़ेंगी। लेकिन, असली हैरानी यह है कि इसी तरह लडख़ड़ाते हुए पंखों से उड़ती हुई वे हजारों मील दूर तक की यात्रा कर लेती हैं। जी हां, तीन हजार मील दूर की भी। 

किसी छोटे से कीट के लिए जिसकी उम्र मुश्किल से महीने-दो महीने की हो, उसके लिए तीन हजार किलोमीटर की यात्रा असंभव जैसी ही मानी जाएगी। लेकिन, तितलियां ऐसा कर दिखाती हैं। अपने माइग्रेशन पैटर्न को लेकर मोनार्क तितलियां दुनिया भर में प्रसिद्ध रही हैं। वे मैक्सिको से लेकर कनाडा तक का सफर करती हैं। लेकिन, विशेषज्ञों ने एक ऐसी तितली का पता लगाया है जिसने मोनार्क का रिकार्ड भी तोड़ दिया है। 

कई अलग-अलग देशों के विशेषज्ञों ने 2014 से 2017 के दौरान जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर दावा किया है कि  पेंटेड लेडी नाम की तितली अपने जीवन काल में सबसे ज्यादा दूरी कर करती है। अफ्रीका के वर्षा वनों में इल्ली से प्यूपा और प्यूपा से तितली बनने के बाद वह तीन हजार मील की यात्रा तय करते हुए भूमध्यसागर के आसपास के देशों तक पहुंच जाती है। खास बात यह है कि इस दौरान यह तितली सहारा रेगिस्तान को भी पार करती है। यह दूरी तीन हजार मील से भी ज्यादा की है। 

तिलती के माइग्रेशन पैटर्न का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों ने खास हाईड्रोजन आईसोटोप का सहारा लिया है। तितलियों के पंख पर उन जगहों की भूमि के चिह्न मौजूद होते हैं जहां पर उसने जन्म लिया है। वहां के पानी के भी चिह्न मौजूद होते हैं। इसी आधार पर विशेषज्ञ पता करते हैं कि उस तितली का जन्म कहां पर हुआ है। 

तितलियां इतनी लंबी यात्रा करती कैसे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि वे आकाश में मौजूद विंड करेंट के साथ-साथ तैरती हुई हजारों किलोमीटर दूर पहुंच जाती हैं। अफ्रीका से निकलकर वे महासागरों को भी पार कर लेती हैं। लेडी पेंटेड तितली भारत में भी तमाम जगहों पर पाई जाती है। लेकिन, वे कहां आई हैं, इस पर अभी कोई खास शोध हुआ नहीं है।

लेडी पेटेंड आपने भी देखी जरूर होगी। 

(फोटो इंटरनेट से, पहली फोटो पेटेंड लेडी की और दूसरी वाली मोनार्क की)

#जंगलकथा

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Thursday, April 29, 2021

जंगल से लगे ग्रामों में कोरोना की लहर का क्यों नहीं है असर ?

  •  बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में दर्जनों गांव ऐसे, जहां अब तक नहीं मिले कोरोना के एक भी मरीज 
  •  जिले के शहरी इलाकों में कोरोना का कहर जारी, अब तक मिल चुके हैं कोरोना के 4326 पुष्ट मरीज 

जरुआपुर गांव की महिलाएं रास्ता रोककर पहरेदारी करती हुई। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में जंगल से लगे ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां कोरोना से संक्रमित अब तक एक भी मरीज नहीं मिला। इन ग्रामों में कोरोना की लहर का कोई असर आखिर क्यों नहीं है। जबकि जिला मुख्यालय पन्ना सहित जिले के कस्बाई इलाकों में कोरोना का कहर जारी है। लोग भय और दहशत के माहौल में जीने को मजबूर हैं।

 मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना ने गुरुवार 28 अप्रैल को जारी हेल्थ बुलेटिन में बताया कि पन्ना जिले में अब तक कोविड-19 के कुल 4326 पुष्ट मरीज पाए जा चुके हैं, जिनमें 3432 मरीज स्वस्थ हुए हैं। मौजूदा समय जिले में कोरोना के एक्टिव पुष्ट केस 875 हैं, जिनमें अकेले पन्ना शहर में 587 कोरोना संक्रमित मरीज हैं जिनका इलाज चल रहा है। पन्ना जिले में अब तक कोरोना संक्रमित 19 मरीजों की मौत हो चुकी है।  

 इसके ठीक विपरीत जिले के दूरस्थ वन क्षेत्रों के ग्रामों में कोरोना की दस्तक सुनाई नहीं दे रही। आदिवासी बहुल कल्दा पठार के ग्रामों सहित जिले के पन्ना, पवई, अजयगढ़ व शाहनगर जनपद क्षेत्र के ऐसे अनेकों गांव हैं, जहां कोरोना की लहर का कोई कहर नहीं है। इन ग्रामों के आदिवासी प्रकृति के बीच अपनी स्वाभाविक जिंदगी जी रहे हैं। उनके जेहन में कोरोना का जरा भी ख़ौफ़ नहीं है। आदिवासी कहते हैं कि यह शहर की बीमारी है, इसलिए हमें कोई डर नहीं है। हमारी जिंदगी घर से जंगल और जंगल से घर तक ही सीमित है, इसलिए यह बीमारी हम तक नहीं पहुंची।

पन्ना के इन ग्रामों में नहीं पहुंचा कोरोना 


अजयगढ़ जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत धर्मपुर का कुडरा गांव जो कोरोना से मुक्त है। 

 कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में जब ऑक्सीजन की कमी व चिकित्सा सुविधा के अभाव में प्रतिदिन हजारों लोगों की सांसें थम रही हैं, ऐसे समय पर पन्ना जिले के ये गांव इस संकट से मुक्त हैं। जंगल के आसपास बसे इन ग्रामों के लोगों ने ऑक्सीजन सिलेंडर का नाम तक नहीं सुना। वे प्रकृति प्रदत्त निशुल्क ऑक्सीजन ले रहे हैं, जिससे उनमें नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता है।

 जिला पंचायत पन्ना के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी अशोक चतुर्वेदी ने बताया कि पन्ना जिले के पवई जनपद अंतर्गत घुटेही, जुड़ा मडियान, जनपूरा, बिरवाही, सोनाई, खिलसारी, कोठी, अधराड़ी,मोहली धर्मपुर, कल्दा, महुआ डोल व गुरुजी गांव में अब तक एक भी कोरोना संक्रमित मरीज नहीं मिले। इसी तरह पन्ना जनपद के गहदरा, कूड़न,बडौर, कैमासन व मडैयन गांव कोरोना से मुक्त हैं।

 जंगल के आसपास बसे ग्राम जो अब तक कोरोना संक्रमण से पूरी तरह मुक्त हैं, उनकी जानकारी देते हुए श्री चतुर्वेदी ने बताया कि सिन्हाई, धवारी, झिन्ना, मोहारी, कुडई, सिमरा कला, भसूंडा, बिलाड़ी, आरामगंज तथा ग्राम पंचायत धर्मपुर का कुडरा गांव कोरोना संक्रमण से दूर है। इसी तरह शाहनगर जनपद क्षेत्र के ग्राम महगंवा बरजे, भोपार,  वैजाई, छतोल, मोहारी, वसोरा, मैनहा, पिपरिया, रामपुर, धौखान,  टीकुलपोड़ी, बरहा टोला, भमका, फतेहपुर, लाखन चौरी, मिलौनी, छलोनी, घुटेही, मक्के पाला, बिलपुरा, सरई खेड़ा, सोनमऊ कला तथा चुनगुना ग्राम में कोरोना अब तक दस्तक नहीं दे सका है।

जरुआपुर गांव में महिलाओं ने संभाला मोर्चा 


पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत मनौर का जरुआपुर गांव। 

पन्ना शहर के निकटवर्ती आदिवासी बहुल गांव जरुआपुर कुछ दिन पूर्व तक कोरोना से मुक्त था। लेकिन हाल ही में पंचायत के रोजगार सहायक अमित शुक्ल के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर मिलते ही गांव के लोग सजग हो गए हैं। ग्रामीणों ने गांव में प्रवेश करने वाले मार्ग को बंद कर वहां सख्त पहरा बैठा दिया है। अब कोई भी बाहरी व्यक्ति इस गांव में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि पहरेदारी गांव की महिलाएं कर रही हैं। जरुआपुर गांव की रामकली गौड़ जो हाथ में डंडा लिए हुए थी, उसने डंडा लहराते हुए कहा कि "हमाये गांव में अब कोई बिडेगा तो एक बार रोकेंगे, फिर भी नहीं माना तो झोर के धर देंगे"। भागवती गौड़ ने कहा कि "हम शहरियों की तरह लालची नहीं हैं, जंगल से हमारा गुजारा हो जाता है, हमारा शहर से कोई नाता नहीं है"। गांव के आदिवासी सुबह जंगल चले जाते हैं और पूरे दिन महुआ, अचार और तेंदू फल का संग्रह करते हैं। इस गांव के लोग भी कोरोना से मुक्त हैं, ग्राम सहायक चूंकि पन्ना में रहता है इसलिए वह संक्रमित हुआ है।

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Wednesday, April 28, 2021

पन्ना में ऑक्सीजन की कमी से अब नहीं थमेंगी सांसें

  •  जिला चिकित्सालय को खनिज मंत्री ने दिए 20 नग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 
  •  सीटी स्कैन मशीन की सुविधा पन्ना में उपलब्ध कराने की हुई सार्थक पहल 


पन्ना विधायक द्वारा उपलब्ध कराई गईं ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के साथ मेडिकल स्टाफ। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रशासन द्वारा जहां कड़े प्रतिबंधात्मक कदम उठाए गए हैं, वहीं जिला चिकित्सालय पन्ना में कोरोना संक्रमित मरीजों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में भी सार्थक और ठोस प्रयास हो रहे हैं। स्थानीय विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने संकट के समय जिलावासियों को राहत और हिम्मत देने के लिए जिस तरह से जनप्रतिनिधि होने के दायित्व का निर्वहन किया है वह काबिले तारीफ है। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी को देखते हुए उन्होंने त्वरित रूप से जिला चिकित्सालय पन्ना को 20 नग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराएं हैं। पन्ना में सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में भी ठोस और सार्थक प्रयास हुए हैं।

 उल्लेखनीय है कि पन्ना विधायक की त्वरित मदद व सक्रियता से अब पन्ना जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को ऑक्सीजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह बहुत ही राहत और संतोष प्रदान करने वाली बात है कि अब पन्ना में ऑक्सीजन की कमी से कोविड मरीजों की सांसे नहीं थमेंगी। पन्ना जिला चिकित्सालय में सीटी स्कैन मशीन की उपलब्धता के लिए जिस तरह के प्रयास सांसद बीडी शर्मा व खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह द्वारा किए जा रहे हैं, उससे यह उम्मीद जागी है कि अतिशीघ्र पन्नावासियों को यह जरूरी सुविधा भी उपलब्ध हो सकेगी। संकट के इस दौर में सांसद व स्थानीय विधायक ने जिस तरह से मानवीयता, संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाई है, उसकी जनमानस में सराहना हो रही है।

 मौजूदा संकट से निजात पाने के लिए पन्ना जिला प्रशासन भी पूरे दमखम के साथ जुटा हुआ है। कोरोना संक्रमण की चैन को तोडऩे के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। अब इस लड़ाई में प्रशासन के साथ-साथ आम जनता को भी अपनी भागीदारी पूरी जिम्मेदारी से निभानी होगी, ताकि सामान्य स्थिति बहाल हो सके। पन्ना शहर के युवा समाजसेवियों, पत्रकारों व प्रबुद्ध लोगों द्वारा जिस तरह से लोगों को जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है, उससे भी काफी फर्क पड़ा है। लोग कोविड नियमों का पालन कर रहे हैं तथा अनावश्यक घरों से बाहर नहीं निकल रहे। जो लोग प्रशासन की समझाइस के बावजूद ऐसा करते हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही भी हो रही है। कुल मिलाकर यह समय धैर्य और हिम्मत के साथ मुकाबला करने का है, यदि सबने ठान लिया तो जल्दी ही हम संकट से उबरने में कामयाब होंगे।

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Tuesday, April 27, 2021

औषधीय गुणों से भरपूर होता है पौष्टिक फल कैथा

  • कैथा एक अत्यंत पौष्टिक फल है। कैथा का पेड़ सामान्यत: सभी स्थानों पर देखने को मिलता है,परन्तु खास तौर पर यह शुष्क स्थानों पर उगने वाले फल हैं।   कैथा लगभग सभी तरह की मृदा (मिट्टी) में लगाया जा सकता है। सूखे क्षेत्रों में आसानी पूर्वक बढ़ जाता है। पौधा संभल जाने के बाद बहुत कम देखभाल की जरुरत पड़ती है।


कैथा के पेड़ में लटकते फल। 

कैथा फल पौष्टिकता के साथ-साथ औषधीय  द्रष्टि से भी बहुत अधिक लाभकारी है। मध्यभारत में इसके द्वारा तैयार खाद्य पदार्थो को अच्छा व पौष्टिक माना जाता है। इसके द्वारा तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते है जैसे जैम,जेली,अमावट,शर्बत,चोकलेट और चटनी आदि जो क़ि  ग्रामीण स्तर पर व्यवसाय का एक अच्छा साधन साबित हो सकता है।

लेकिन कठोर आवरण वाला फल कैथा अब बहुत कम देखने को मिलता है। आज से दो-तीन दशक पहले कैथा के पेड़ बहुतायत में पाए जाते थे। लेकिन विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और इसके फलों के प्रति लोगों की उपेक्षा ने कैथा को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। कैथा का वानस्पतिक नाम फ़िरोनिया लिमोनिया (Feronia limonia) है और अंग्रेजी में इसे वुड ऐपल अथवा मंकी फ्रूट के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि अंग्रेजों ने शायद बंदरों को कैथा खाते देखा होगा, इसलिए इसका नाम मंकी फ्रूट रख दिया। कैथा के पेड़ पर्णपाती होते हैं और जंगलों में भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। 

वर्ल्ड एग्रोफॉरेस्ट्री सेंटर के अनुसार, कैथा के पत्तों से निकाले गए तेल का इस्तेमाल खुजली के उपचार सहित अन्य कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए औषधि के तौर पर सदियों से किया जाता रहा है। पके हुए कैथा के गूदे का स्वाद खट्टा-मीठा होता है और इसके बीज गूदे से ही लगे होते हैं। दक्षिण भारत में कैथा के गूदे को ताल मिसरी और नारियल के दूध के साथ मिलाकर खाया जाता है। कैथा के पेड़ की लकड़ी हल्की भूरा, कठोर और टिकाऊ होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल इमारती लकड़ी के तौर पर भी किया जाता है।

औषधीय गुणों का भंडार है कैथा 


कैथा फल। 

कैथा औषधीय गुणों का भंडार है, जिसकी पुष्टि विभिन्न समय में कई अध्ययनों द्वारा की गई है। 1996 में प्रकाशित द एनसाइक्लोपीडिया ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स के अनुसार, कैथा में पाए जाने वाले अम्ल, विटामिन और खनिज लिवर टॉनिक का काम करते हैं और पाचन प्रक्रिया को उद्दीप्त करते हैं। 2006 में प्रकाशित पुस्तक फ्लोरा ऑफ पाकिस्तान के अनुसार, कैथा के कच्चे फल के गूदे का इस्तेमाल दस्त के उपचार में किया जा सकता है। रिसर्च जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल, बायोलॉजिकल एंड केमिकल साइंसेस में वर्ष 2010 में प्रकाशित शोध में भी इस बात का जिक्र है। ट्रॉपिकल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में जून 2012 के अंक में प्रकाशित शोध के अनुसार, कैथा में स्तन कैंसर की कोशिकाओं को फैलने से रोकने की क्षमता है। वर्ष 2009 में डेर फार्मासिया लेत्ते नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि कैथा में मधुमेह की रोकथाम की भी क्षमता है।

कैथा के पेड़ की कहानी, दाहिया जी की जुबानी 


बाबूलाल दाहिया जी। 

सुप्रसिद्ध बघेली कवि व प्रगतिशील कृषक बाबूलाल दाहिया जी कैथा के पेड़ की रोचक दास्तान सुनाते हुए बताते हैं कि हमने अपने खेत में बहुत तरह के पेड़ लगा रखे हैं। उनमें अगर एक वर्ष के अंतर से फल देने वाले आम के पेड़ हैं तो हर वर्ष फल देने वाला एक पेड़ कैथा भी है।

आम का हमारे लोक जीवन में बहुत महत्व है। जब हमारे यहां आम की ब्यावसायिक खेती नहीं आई थी, तब उसे पुत्र का दर्जा प्राप्त था। बकायदे आम का विवाह होता था और लगाने वाला तब तक उसके फल को नहीं खाता था, जब तक उसका विवाह न कर दे ? पर विवाह ऐसा वैसा उत्सव नहीं बल्कि, एक यज्ञ और पूरे क्षेत्र का भंडारा था, जिसे आज के परिभाषा में कहा जाय तो 2 -3 लाख रुपये का खर्च।

 आम को हमारे पिता जी और परिवार के चाचा ताऊ के बन्धु बांधव ने बड़े धूम धाम के साथ लगाया था । तब अपन 5 वर्ष के थे। किंतु कैथा  हमारे परिवार की नहीं किसी सुअर, तोता या  गिलहरी के मेहनत का फल होगा। क्योंकि प्रकृति के ओर से वह हाथी का भोजन है और उसी का दायित्व है कि उसे खाकर उसके बीज को दूर दूर फैलाए। 

किन्तु जब कैथा ऊपर से गिर कर दरक जाता है तो सुअर, गिलहरी और तोता भी उसके हार्ड आवरण को तोड़ कुछ बीज फैला देते हैं। इन्ही तोता, गिलहरी या सुअर ने उसके आवरण को तोड़ा होगा, जिससे बीज जमीन में बिखरा और  बाद में  पानी से बह कर या उनके मल द्वारा हमारे खेत तक आया एवं इस स्थान में जम गया होगा।

इसके विकास में अपनी तो मात्र इतनी ही भूमिका है कि बकरी पालकों को उसे काटने नही दिया। बाकी सुरक्षा के लिए वह खुद आत्म निभर है। क्योंकि उसने अपने शरीर मे कांटे उगा रखे है। पर आम और कैथा में यह अंतर है कि आम एक साल के अन्तराल में हमे मध्य अप्रैल से जून तक  मात्र ढाई माह ही पना, टहुआ, बगजा और सांह के रूप में अपने फल खिलाता है। किन्तु कैथा हर वर्ष सितम्बर से पकना शुरू होता है तो जून तक प्रति दिन सुबह और शाम अपने 3 -4 फल देता रहता है।

अगर उसका अचार बनाना चाहें तो आम की तरह अचार बना साल भर खाया जा सकता है। पर इसके लिए दिसम्बर में कच्चे फलों को तोड़ गूदे को छोटे-छोटे टुकड़े कर सुखा लें और तेल मसाले के साथ लेट वह भी बन सकता है। 4-5 पके कैथा प्रति दिन बहुत होते हैं। जब कि चटनी हेतु परिवार के लिए उसका एक ही फल पर्याप्त होता है। लेकिन इससे हमे यह लाभ है कि हम अपने आगन्तुक मित्रो, परिचितों और रिस्तेदारों तक को इसके फल बांटते रहते हैं।

 जब किसी को कैथा फल भेट करते हैं तो उसके चेहरे में जो खुसी झलकती है, उसे शब्दो मे  ब्यक्त नही  किया जा सकता। क्योंकि कैथा आम की तरह बाजार में थोक में बिकने वाला फल नही दुर्लभ फल है।

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Monday, April 26, 2021

आम : चटनी से पना, टहुआ और बगजा तक

 

फलों से लदा आम का पेड़।

इन दिनों आम अपनी सबाब पर है। पेड़ फलों से लदे हुए हैं, पर अभी मात्र पना और टहुआ के लिए ही। एक माह बाद बगजा का समय आएगा और उसके पश्चात सांह एवं अमावट का। 

यहां आप सभी को महिलाओं को थेंक्स कहना चाहिए जिनने आप के लिए क्रमश: आम की चटनी, पना, बगजा और उसके बाद अमावट तक का अनुसन्धान किया था।

 साथ ही चार प्रकार के अचार भी जिनमे पहला कचेलियो का अचार, दूसरा सूती से छील कर बनने वाला छुन्ना का अचार, तीसरा पनीहा अचार जो एकाध महीना के खाने के लिए बनता है। और चौथा तेलहा अचार जो वर्षों तक रखा रहता है।

 इन दिनों हमने कई दिन आम की चटनी, पना और टहुआ का आनंद लिया। आप भी खाइए।  क्योकि प्रकृति ने अलग - अलग समय में  मौसमी फल इसीलिए बनाया है कि आप उसके व्यंजनों का आनंद लें।

 पर हां एक निहित स्वार्थ आप से उस पेड़ का भी है कि उसके वंश परिवर्धन का भी पूरा - पूरा ख्याल रखें।

@ बाबूलाल दाहिया

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Sunday, April 25, 2021

मेरी ऑक्सीजन कहाँ है?

  • ऑक्सीजन का यह देशव्यापी संकट हमें सोचने पर मजबूर कर रहा
  • मानव अस्तित्व के लिए बेहद जरुरी है अच्छा पर्यावरण और जंगल 



पन्ना। समूचे देश में मौजूदा समय कोविड-19 का कहर जारी है। विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों को समय पर ऑक्सीजन न मिल पाने के चलते उनकी असमय मौत हुई है। ऑक्सीजन का यह देशव्यापी संकट हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि प्रकृति और पर्यावरण के साथ यदि हमने बेरहम बर्ताव न किया होता तो आज ऐसी भयावह स्थिति निर्मित न होती। विशेषज्ञों का यह कहना है कि यदि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए होते तो शायद ऑक्सीजन की इतनी कमी नहीं होती। उनका मानना है कि जब तक पर्यावरण में ऑक्सीजन नहीं होगी, आप किसी भी प्लांट में जरूरत के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं कर सकते। कोविड-19 के चलते संकट के इस दौर में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने प्राण वायु प्रदान करने वाले वनों की महत्ता और वैल्यू के संबंध में अपने विचारों को साझा किया है, जिसका हिंदी अनुवाद यहां प्रस्तुत है -


क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व उत्तम कुमार शर्मा। 

 ये एक प्रजाति के रूप में मानव के लिए मुश्किल समय हैं। हम एक वायरस (COVID-19) के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं जिसने हमारे जीवन जीने के तरीके को बदल दिया है। जैसे ही मानवता एक लड़ाई जीतती है, वायरस एक नया मोर्चा खोल देता है।  और इस समय हमारे देश में, यह लड़ाई एक अलग स्तर पर चली गई है।  2020 में हमने जो अंतिम लड़ाई लड़ी थी, उससे अलग। मैंने पहले कभी यह महसूस नहीं किया कि ऑक्सीजन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मैं अपने स्कूल के दिनों को याद करता हूं जब विज्ञान शिक्षक हमें बताते थे कि हमें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है और हमें ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए पर्याप्त पेड़ हैं। 

लेकिन हर किसी ने इसे मान लिया। मुझे यकीन है कि यहां हर पाठक ने उसी तरह सोचा होगा। हमारे पास वायुमंडल में 21प्रतिशत ऑक्सीजन है और यह हमारे लिए पर्याप्त है।  लेकिन आज ऐसा लगता है कि 'यह पर्याप्त नहीं है'।  लोग ऑक्सीजन के लिए हांफ रहे हैं।  हर कोई ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश में है।  लोग ऑक्सीजन सिलेंडर जमा कर रहे हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दंगे हो रहे हैं।  हवाई जहाज द्वारा ऑक्सीजन पहुँचाया जा रहा है! 

 हाल ही में मैंने एक न्यूज आइटम देखा कि नागपुर के एक अस्पताल ने अस्पताल में भर्ती COVID-19 मरीज को दिए गए ऑक्सीजन की मात्रा का उल्लेख करना शुरू कर दिया है और रिकवरी के बाद कम से कम 10 पेड़ लगाने की अपील की है!  यह वाकई प्रशंसनीय है।  अत्यधिक संकट के समय में भी, हमने अपना संतुलन नहीं खोया है और अभी भी लोगों को ऑक्सीजन की लागत और महत्व का एहसास करने और बेहतर वातावरण के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।  अंत में, हम अपने दैनिक ऑक्सीजन केवल पेड़ों से प्राप्त करते हैं।  यह एक स्वीकृत तथ्य है कि दो परिपक्व पेड़ चार के परिवार के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान कर सकते हैं।  कुछ समय मुझे आश्चर्य होता है कि शहरी क्षेत्रों और उन क्षेत्रों में COVID-19 के प्रसार और क्षति के संबंध में कोई डेटा मौजूद है, जो वन के करीब हैं, प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए।  यह एक तथ्य है कि चूंकि शहरी क्षेत्र अधिक घनी तरह से भरे हुए हैं और मानव से मानवीय संपर्क बहुत अधिक है, जो ग्रामीण और अच्छी तरह से वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में अधिक है, शहरी क्षेत्रों में संक्रमण अधिक होगा।  लेकिन, क्या अधिक वन और कम प्रदूषित क्षेत्र ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता के मामले में बेहतर करेंगे?  इसे स्थापित करने के लिए हमारे पास कोई तथ्य नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि हमें इसे और करीब से देखने की आवश्यकता है।

 प्रत्येक वृक्ष और सभी वन मानव अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।  और शायद ये समय फिर से हम सभी के लिए इस तथ्य को फिर से याद दिलाने का एक अनुस्मारक है।  वृक्ष ऑक्सीजन प्रदान करके, वायु की गुणवत्ता में सुधार, जलवायु परिवर्तन, जल का संरक्षण, मिट्टी को संरक्षित करने और वन्य जीवन का समर्थन करके अपने पर्यावरण में योगदान करते हैं।  प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान, पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और जो ऑक्सीजन हम सांस लेते हैं उसका उत्पादन करते हैं।  एक एकड़ जंगल छह टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है और चार टन ऑक्सीजन बाहर निकालता है।  यह 18 लोगों की वार्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

 अब हम ऑक्सीजन की अर्थव्यवस्था की बात करते हैं जिसका हम उपभोग करते हैं। बाकी पर एक औसत वयस्क 7-8 लीटर प्रति मिनट की हवा देता है जिसका मतलब है कि प्रति दिन लगभग 11000 लीटर हवा।  इसमें से लगभग 21प्रतिशत  ऑक्सीजन और 15प्रतिशत  का उत्सर्जन होता है।  इसलिए एक मानव प्रतिदिन लगभग 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन का उपभोग करता है।  एक बाजार सर्वेक्षण के आधार पर, हमने पाया कि एक 2.75 लीटर पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर की औसत लागत 6,500 रुपये है।  इस दर पर, एक मानव प्रतिदिन लगभग 13 लाख रुपये की ऑक्सीजन की खपत करता है!  इसके अलावा सिलेंडर निर्माता हवा से ऑक्सीजन को फ़िल्टर करते हैं।  वे ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं करते हैं जैसा कि पेड़ करता है।

 हम सभी जानते हैं कि पेड़ अमूल्य होते हैं क्योंकि वे हमें उस ऑक्सीजन के साथ प्रदान करते हैं जो हम सांस लेते हैं।  पहले वैज्ञानिकों में से एक ने एक पेड़ की सेवाओं की मात्रा निर्धारित करने पर एक पेपर प्रकाशित किया था, कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ। तारक मोहन दास थे। 1979 में उन्होंने एक पेपर प्रकाशित किया, जिसमें 50 वर्षों के औसत जीवन काल में एक पेड़ द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को निर्धारित किया गया।  तब, सेवाओं की कुल लागत 15.7 लाख रुपये थी।  बाद में, 2013 में, एक एनजीओ G दिल्ली ग्रीन्स ने अपनी वर्ष 2013 की रिपोर्ट में इसे संशोधित कर 3.55 करोड़ रुपये कर दिया।

 हालाँकि, भारत में पहली बार, पेड़ों के मूल्यांकन पर दिशानिर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त 5 सदस्यों की समिति द्वारा निर्धारित किए गए हैं, ताकि पेड़ों के मूल्यांकन पर दिशानिर्देश तैयार किए जा सकें। मुद्दा पश्चिम बंगाल में पांच रेलवे ओवर-ब्रिज के निर्माण के लिए 356 पेड़ों को काटने का था, समिति ने फरवरी 2021 में इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, एक पेड़ की मौद्रिक मूल्य की गणना की जाएगी -  इसकी उम्र 74,500 रुपये से गुणा की गई।

 विशेषज्ञों की समिति ने निष्कर्ष निकाला कि एक पेड़ नागरिक समाज और पर्यावरण की सेवा करता है और इसका मूल्यांकन ऑक्सीजन, सूक्ष्म पोषक तत्वों, खाद और जैव-उर्वरक सहित विभिन्न मामलों में किया जा सकता है। पेड़ धूल को हटाकर और कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे अन्य प्रदूषकों को अवशोषित करके हवा को फ़िल्टर करते हैं।  पेड़ों के अस्वास्थ्यकर कणों के अवरोधन के बाद, बारिश ने उन्हें जमीन पर धो दिया।  रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सभी लागतों को जोड़ा जाता है और किसी पेड़ की शेष आयु को गुणा किया जाता है, तो इसे 100 वर्ष मानते हुए, प्रति पेड़ प्रति वर्ष कुल 74,500 रुपये होगा।  समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 100 साल से अधिक के जीवनकाल वाले एक धरोहर वृक्ष की कीमत 1 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है।  [नोट- एक हेरिटेज ट्री एक बड़ा पेड़ है जिसे परिपक्व होने में दशकों या सदियों लगते हैं]।  इसमें से अकेले ऑक्सिजन की लागत 45,000 रुपये है, इसके बाद जैव उर्वरक की लागत 20,000 रुपये है।  रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सूक्ष्म पोषक तत्वों और खाद की लागत को जोडऩे पर, जीवित पेड़ उन परियोजनाओं के लाभों से अधिक होंगे, जिनके लिए उन्हें कटौती की जा रही है।

अब समय फिर से पेड़ों और जंगल के महत्व को उजागर करने के लिए सही है। विकास परियोजना को पुनर्जीवित करने के लिए समय सही है जो प्राकृतिक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बन रहे हैं।  और हर पेड़ और जंगल के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सभी रंगों और विश्वास के लोगों को एक साथ लाने का समय सही है।

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Thursday, April 22, 2021

कोरोना उपचार संबंधी संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी - मंत्री

  •  आपदा प्रबंधन समिति की हुई बैठक में मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने दिए निर्देश 
  •  कलेक्टर ने कहा कोरोना संक्रमण एवं उपचार के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे

पन्ना जिले में आपदा प्रबंधन समिति की बैठक में अधिकारियों को निर्देश देते मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में खनिज साधन एवं श्रम विभाग मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने आज आपदा प्रबंधन समिति की बैठक में कहा कि कोरोना उपचार संबंधी संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी। बैठक में कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण, जांच एवं उपचार के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि जिले में कोरोना उपचार में किसी तरह की लापरवाही नहीं होना चाहिए। यदि किसी भी संसाधन जैसे ऑक्सीजन, दवा किट आदि की कमी हो तो मांग भेजने के साथ मुझे भेजें, जिससे तुरंत आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र द्वारा बताया गया कि वर्तमान में सभी आवश्यक उपकरण एवं दवाएं उपलब्ध हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं।

मंत्री श्री सिंह ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जिले में फीवर क्लीनिकों की संख्या बढाने के साथ अधिक से अधिक नमूने प्राप्त कर जांच की जाए। प्रत्येक संक्रमित पाए जाने वाले व्यक्ति को तुरंत आइसोलेट करने के साथ आवश्यक उपचार एवं देखरेख की व्यवस्था की जाए। यदि किसी परिवार में होम आइसोलेट होने की व्यवस्था नहीं है तो उन्हें कोविड केयर सेंटर में आइसोलेट करने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। उन्होंने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जी.पी. आर्या से कहा कि यदि चिकित्सालय में दवाओं की कमी हो तो निजी बाजार से दवा खरीदने के लिए प्रस्ताव जिला कलेक्टर को प्रस्तुत करें। इसी प्रकार अन्य सामग्री जिसकी आपूर्ति राज्य स्तर से आवश्यकतानुसार नहीं हो पा रही है उसे भी निजी क्षेत्र के बेण्डर से क्रय करने की कार्यवाही की जाए। उपचार के अभाव में अनावश्यक किसी भी मरीज को जिले से बाहर न जाना पडे। जांच के लिए आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच की जाए। चिकित्सालय के कोविड वार्ड में पर्याप्त संख्या में वार्ड वाय लगाए जाएं। जिससे किसी भी मरीज को असुविधा का सामना न करना पडे। नगर में प्रायवेट पैथालॉजी खुलवाई जाए।

कलेक्टर श्री मिश्र ने बताया कि जिले में अभी तक दुकानों को एवं अन्य गतिविधियों को जो छूट दी गयी थी उसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। अब केवल दूध डेयरी प्रात: 6 बजे से प्रात: 10 बजे तक एवं शाम को 4 बजे से 7 बजे तक खोलने की अनुमति दी गयी है। गरीब व्यक्तियों को भोजन के लिए दीनदयाल रसोई में व्यवस्था की गयी है। नगरीय क्षेत्र में घर - घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य की जांच कराई जाएगी। यदि कोई भी कोरोना संबंधी संदेहस्पद मरीज मिलता है तो उसके सेम्पल लिए जाएंगे। अनावश्यक घरों से कोई भी व्यक्ति नहीं निकल सकेगा। पुलिस को पूरी छूट दी गयी है कि अनावश्यक घूमते हुए पाए जाने वाले व्यक्तियों के विरूद्ध कार्यवाही करें। बसों में कम से कम सवारियां बैठाई जाएं, इसके भी निर्देश दिए गए हैं। सम्पन्न हुई बैठक में पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीणा, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत  बालागुरू के, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जी.पी. आर्या के साथ आपदा प्रबंधन समिति के शासकीय एवं अशासकीय सदस्य उपस्थित रहे।

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Wednesday, April 21, 2021

बुंदेलखंड के पन्ना शहर में रही है जल वितरण की अनूठी व्यवस्था

  •   जल सुरंगों के जरिए कुओं में पहुंचता था झीलनुमा तालाब का पानी 
  •   अब हमने बिसरा दिया है, जल संरक्षण और संवर्धन की समृद्ध परंपरा


पहाड़ की तलहटी में बना पन्ना शहर के प्राचीन धर्मसागर तालाब का द्रश्य। फोटो - अरुण सिंह 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। सदियों से बुंदेलखंड और सूखा एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। अल्प वर्षा के चलते इस अंचल के लोगों को हर पांच साल में दो बार सूखे की विभीषिका का सामना करना पड़ता था। लेकिन अतीत में यहां के बाशिंदों ने कम पानी में भी जीवन जीने का तरीका ढूंढ लिया था। उस दौर में बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों ने जल संरक्षण और संवर्धन की अनूठी परंपराओं को अपनाकर पानी के संकट का मुकाबला किया। बारिश के पानी का संचय कर उसके वितरण की जो व्यवस्था ढाई सौ वर्ष पूर्व बुंदेला शासकों ने की थी, वह आज भी एक मिसाल है।

 उल्लेखनीय है कि जंगल और पहाडियों से घिरे मंदिरों के शहर पन्ना में चारों तरफ राजाशाही जमाने में कई तालाबों का निर्माण कराया गया था। तब से लेकर अब तक पन्ना शहर की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है, इसके बावजूद सैकड़ों साल पुराने तालाब आज भी पन्ना शहर के जीवन का आधार बने हुए हैं। शहर के प्राचीन तीन तालाब धर्म सागर, लोकपाल सागर व निरपत सागर से ही मौजूदा समय भी शहरवासियों की प्यास बुझ रही है। शहर के निकट मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में बना धर्मसागर तालाब पन्ना की शान है। इस झीलनुमा सुंदर तालाब का कंचन जल अतीत में भूमिगत जल सुरंगों के जरिए शहर के सभी कुंओं में पहुंचता रहा है। जल वितरण की इस अनोखी व्यवस्था के कारण गर्मी के दिनों में भी पन्ना शहर के पुराने कुएं पानी से लबरेज रहते हैं।

 गौरतलब है कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना शहर की भौगोलिक स्थिति काफी जटिल है। पहाड़ों से घिरे इस शहर के आसपास गहरे सेहा हैं, बारिश का पानी बहकर इन्हीं सेहों में समा जाता है। पठारी इलाका होने के कारण चट्टानों के सैकड़ों फीट नीचे भी पानी नहीं मिलता। इन परिस्थितियों में पेयजल संकट से निपटने के लिए तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा जगह-जगह जल कुंडों, कुओं, बावडियों और तालाबों का निर्माण कराया गया।

 

राजमंदिर पैलेस पन्ना के अन्दर स्थित तालाब, जो अब दयनीय स्थिति में है।  

बताया जाता है कि महाराजा छत्रसाल के पुत्र हृदयशाह के शासन काल तक पन्ना में पेयजल संकट बरकरार रहा। लेकिन हृदयशाह के बड़े पुत्र महाराजा सभा सिंह ने 1739 में जब पन्ना रियासत की बागडोर संभाली, तब उन्होंने रियासत की जनता को जल संकट से निजात दिलाने के लिए सोच - विचार शुरू किया। महाराजा सभा सिंह ने जब पन्ना रियासत की कमान संभाली, उसके कुछ साल बाद ही यहां भीषण अकाल पड़ गया। रियासत की जनता को इस आपदा से उबारने के लिए उन्होंने राहत कार्य शुरू कराया। अकाल के समय शुरू हुए राहत कार्य से ही पन्ना शहर के निकट मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में धर्मसागर तालाब का निर्माण हुआ। 

"अतीत गौरव पन्ना" पुस्तक के लेखक शंकर सिंह ने रियासत कालीन दस्तावेजों का अध्ययन करने के उपरांत यह लिखा है कि धर्मसागर तालाब का निर्माण महाराजा सभा सिंह द्वारा सन 1745 से 1752 के बीच कराया गया।मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में जहां धर्मसागर तालाब बना है, वहां पहले से ही एक प्राकृतिक जलस्रोत था, जिसे धर्मकुंड के नाम से जाना जाता था। इस कुंड के ऊपर महाराजा सभा सिंह ने शिव मंदिर का निर्माण कराया और इस मंदिर के चारों तरफ खुदाई का कार्य शुरू हुआ। इस तालाब के ठीक मध्य में निर्मित शिव मंदिर यहां आज भी अतीत की गौरव गाथा को अपने जेहन में समेटे विद्यमान है। 

पन्ना की जल सुरंगे आज भी कौतूहल का विषय 

जल वितरण की अनूठी मिसाल रही पन्ना शहर की भूमिगत जल सुरंगे आज भी कुतूहल का विषय बनी हुई हैं। शहर के प्रमुख सभी कुओं तथा राज मंदिर पैलेस में स्थित तालाब तक इन जल सुरंगों का जाल इस तकनीक से फैलाया गया था कि धर्मसागर तालाब का पानी बिना किसी बाधा के सुगमता पूर्वक पहुंच सके। सदियों पुरानी इन प्राचीन जल सुरंगों की देखरेख व प्रबंधन न होने से इनका उपयोग अब भले ही बंद हो गया है, लेकिन अभी भी शहर के कई प्राचीन कुओं में भूमिगत जल सुरंग के जरिए पानी पहुंचता है। 

पन्ना की पहाड़कोठी स्थित प्राचीन बीहर का नजारा।

शहर में गांधी चौक से कलेक्ट्रेट मार्ग के बीच सड़क किनारे एक स्थान पर निरंतर पानी निकलता रहता है। वहां पर कुछ वर्ष पूर्व पक्का गड्ढा नुमा एक संरचना बना दिया गया है, जो हमेशा लबालब भरा रहता है। यहां से चाहे जितना पानी निकाला जाए कम नहीं होता। जानकार बताते हैं कि इस जगह पर जल सुरंग क्षतिग्रस्त हुई होगी, जिससे पानी निकल रहा है। कुल मिलाकर यहां की जल सुरंग व निर्माण की तकनीक हर किसी के जेहन में कौतूहल पैदा करती है।

 अब अतिक्रमण का शिकार हो रहे प्राचीन तालाब 


शहर के निकट स्थित राजशाही ज़माने का विशालकाय लोकपाल सागर तालाब। 

प्रशासनिक उपेक्षा और अनदेखी के चलते पन्ना शहर के तीनों जीवनदायी तालाब अब अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं। पन्ना - पहाड़ीखेरा मार्ग पर शहर के निकट ही 492 एकड़ क्षेत्र में निर्मित लोकपाल सागर तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में आ चुका है। इस तालाब के निर्माण हेतु तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा लोकपाल सिंह ने इस स्थल का चयन इस तरह किया था कि अल्प वर्षा में भी यह तालाब लबालब भर जाता था। इस तालाब के पानी से शहरवासियों की जहां प्यास बुझती थी, वहीं खेतों की सिंचाई के लिए क्षेत्र के किसानों को भी आवश्यकता के अनुरूप पानी मिल जाता था।

 लेकिन तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण हो जाने से अच्छी बारिश होने पर भी तालाब नहीं भर पाता, जिससे सिंचाई के लिए किसानों को अब पूर्व की तरह पानी नहीं मिल पा रहा है। सतत उपेक्षा और अनदेखी के कारण अतिक्रमण का जाल फैलता ही जा रहा है, जिससे शहर के इन जीवनदायी तालाबों का वजूद संकट में है।

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Tuesday, April 20, 2021

कोरोना मरीजों के उपचार हेतु डॉक्टरों की रोस्टर बनाकर लगेगी ड्यूटी

  • सागर संभाग आयुक्त मुकेश कुमार शुक्ल ने बैठक में दिए निर्देश 
  • कमिश्नर ने कहा कोरोना मरीजों के उपचार में नहीं हो लापरवाही

पन्ना जिले में कोरोना संक्रमण की स्थिति पर अधिकारीयों की बैठक लेते आयुक्त मुकेश कुमार शुक्ल। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की तेजी से बढ़ रही संख्या तथा बड़ी संख्या में डॉक्टरों व मेडिकल स्टाफ के संक्रमित होने पर उपजे हालातों को नियंत्रित करने अब प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं। कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार में किसी तरह की लापरवाही न हो तथा उनकी समुचित देखरेख हो इसके लिए डॉक्टरों की रोस्टर बनाकर ड्यूटी लगाये जाने के निर्देश दिए गये हैं। 

सागर संभाग आयुक्त मुकेश कुमार शुक्ल द्वारा एक दिवसीय पन्ना प्रवास के दौरान जिला मुख्यालय पर कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आज अधिकारियों की बैठक में कोरोना वायरस संक्रमण रोकने एवं संक्रमित मरीजों के उपचार के संबंध में चर्चा कर समीक्षा की गयी। उन्होंने कहा कि कोरोना मरीजों के उपचार में किसी भी तरह की लापरवाही नही होनी चाहिए। डॉक्टरों का रोस्टर तैयार कर कोविड हेल्थ केयर सेंटर में डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाए। वर्तमान में आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षित मेडिकल स्टॉफ को आगामी तीन महीने के लिए नियुक्त किया जाए। 

उन्होंने आक्सीजन आपूर्ति के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की। उन्होंने निर्देश दिए कि आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पडोसी जिलों से भी आक्सीजन लें। इसी प्रकार उन्होंने कोरोना मरीजों के लिए उपलब्ध बेडों की जानकारी लेने के उपरांत निर्देश दिए कि बेडों की संख्या बढाई जाए। इसके लिए छात्रावासों से पलंग प्राप्त करें। वर्तमान में उपलब्ध आक्सीजन बेडों की संख्या भी बढाने की कार्यवाही करें। पन्ना जिले के पुरैना में स्थापित आक्सीजन प्लांट से सप्लाई होने वाली आक्सीजन के लिए पन्ना को प्राथमिकता दी जाए। 

उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि अन्य सामान्य बीमारियों के स्थान पर कोरोना की बीमारी को प्राथमिकता में रखते हुए उपचार किया जाए। फीवर क्लीनिकों में लिए जा रहे कोरोना संदेहास्पद मरीजों के नमूने उसी दिन जांच के लिए सागर लैब भेजे जाए। नमूने भेजने में किसी भी तरह का बिलम्ब न किया जाए। उन्होंने जिला चिकित्सालय में कोरोना उपचार से संबंधित सामग्री की उपलब्धता के बारे में जानकारी प्राप्त कर संतोष जताया।

आयुक्त श्री शुक्ल ने जिला चिकित्सालय का भ्रमण कर व्यवस्थाओं का अवलोकन करने के साथ भर्ती कोरोना मरीजों के परिजनों से चर्चा कर उनकी समस्याएं सुनी और तत्काल निदान के निर्देश संबंधितों को दिए। उन्होंने होम आइसोलेट मरीजों के संबंध में चर्चा करते हुए उनके उपचार और उनके स्वास्थ्य की जानकारी के संबंध में चर्चा की गयी। सिविल सर्जन द्वारा बताया गया कि कोविड कमाण्ड सेंटर स्थापित किया गया है। इस सेंटर के माध्यम से प्रत्येक मरीज से दो बार टेलीफोन से सम्पर्क स्थापित कर स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ली जाती है। यदि स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत बताई जाती है तो संबंधित क्षेत्र के चिकित्सक दल के माध्यम से मरीज के स्वास्थ्य परीक्षण एवं उपचार उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने कोविड कमाण्ड सेंटर का अवलोकन करने के साथ की गयी टेलीफोनिक व्यवस्था का भी निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं कलेक्टर श्री बालागुरू के, पुलिस अधीक्षक श्री धर्मराज मीणा के साथ राजस्व एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उपस्थित रहे।

पन्ना में  20 रिऑक्सीजन कंसनट्रेटर क्रय किए जाएंगे

खनिज साधन एवं श्रम विभाग मंत्री  बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने वर्तमान में सम्पूर्ण देश एवं प्रदेश में फैली वैश्विक कोरोना महामारी से पीडित मानव समाज के सेवार्थ हेतु 20 रिऑक्सीजन कंसनट्रेटर क्रय किए जाने हेतु विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र विकास योजना अन्तर्गत विधायक निधि से प्रस्तावित राशि 26 लाख 20 हजार 800 रूपये जारी किए जाने की अनुशंसा की है। रिऑक्सीजन कन्सनट्रेटर-10 लीटर मॉडल 10एलपीएम कोरोना महामारी से पीडित मरीजों के इलाज हेतु 26 लाख 20 हजार 800 रूपये जारी करने की अनुशंसा की है। 

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Monday, April 19, 2021

कोरोना संक्रमित मरीजों की निगरानी हेतु अधिकारी तैनात

  • आवंटित वार्ड में 2 शिफ्टों में नियमित रूप से करेंगे भ्रमण 
  • घर के बाहर होम आइसोलेट होने का पेम्पलेट लगाना जरुरी 

कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु ग्रामीणों को आवश्यक जानकारी देते हुए कर्मचारी। 

पन्ना। जिले में कोरोना महामारी संक्रमण के अधिक संख्या में मरीज सामने आने को दृष्टिगत रखते हुए कोरोना संक्रमण रोकने एवं होम आइसोलेटेड रोगियों के स्वास्थ्य की निगरानी रखने के लिए दल गठित करते हुए दल के प्रभारी नियुक्त किए गए हैं। नगरपालिका पन्ना एवं नगर परिषद देवेन्द्रनगर में कुल 19 दलों की तैनाती की गयी है।

नगरपालिका पन्ना में विंध्याचल एवं श्यामाप्रसाद मुखर्जी वार्ड के दल प्रभारी महेन्द्र मोहन भट्ट सहायक संचालक उद्यानिकी 9425032637, बजरंग एवं भगत सिंह वार्ड में डॉ. आर.के. जायसवाल वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र 8813824012, रामगंज एवं प्राणनाथ वार्ड में हिमांशु रैकवार सहायक यंत्री भारी मशीनरी विद्युत यांत्रिकी विभाग 9425912537, पदमावती एवं शिवाजी वार्ड  कमलेश कुमार जैन सहायक प्रबंधक एमपीआरआरडीए 9424728072, वियोगी हरि एवं सुभाष वार्ड में गौरव सराफ सहायक यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी 8770731448, राघवेन्द्र एवं गांधी वार्ड में प्रतीक जैन सहायक यंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी 8057861767, छत्रसाल एवं लाल बहादुर शास्त्री वार्ड में व्ही.के. सक्सेना सहायक मत्स्य अधिकारी मत्स्य उद्योग 9755947433, बल्देव एवं गोविंद वार्ड में  अरविंद सिंगरौल सहायक यंत्री जिला शिक्षा केन्द्र 8959465297, मदारटेकरी एवं नेहरू वार्ड में एमआई कुरैशी महाप्रबंधक एमपीआरआरडीए 9425813852, महावीर एवं किशोरगंज वार्ड में रोहित मालवीय सहायक यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा 8109555893, रानी लक्ष्मीबाई एवं यादवेन्द्र वार्ड में संजय सिंह परिहार परियोजना अधिकारी जिला पंचायत 9425435140 की ड्यूटी लगाई गयी है।

इसी प्रकार नगर परिषद देवेन्द्रनगर के अम्बेडकर एवं जवाहर वार्ड में जी.एल. अहिरवार सहायक संचालक कृषि 9993876230, मोलाना आजाद एवं गांधी वार्ड में नीरज बडा प्रबंधक एमपी एग्रो 7000609022, देवेन्द्र विजय एवं राजीव वार्ड में इन्द्रपाल सिंह राजपूत जिला विपणन अधिकारी 9893191044, शास्त्री एवं महावीर वार्ड में उत्तम सिंह बागरी सहायक संचालक कृषि 8878987506, छत्रसाल एवं रामवार्ड में धीरज चैधरी सहायक यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी 8982285213, भगत सिंह एवं विवेकानन्द वार्ड में  रविप्रकाश खरे एडीपीसी शिक्षा विभाग 9425454220, सुभाष एवं राजेन्द्र वार्ड में डॉ. मनोज कुमार सिंह प्राध्यापक शामहावि देवेन्द्रनगर 9009682765 तथा पटेल वार्ड में डॉ. अमिताभ पाण्डेय प्राध्यापक शामहावि देवेन्द्रनगर 9225886644 को नियुक्त किया गया है।


उपरोक्त नियुक्त किए गए दल प्रभारी आवंटित वार्डो में होम आइसोलेट मरीजों की जानकारी नोडल अधिकारी कोविड कमाण्ड एवं कन्ट्रोल सेंटर से प्राप्त कर अपने अपने क्षेत्र का भ्रमण कर मरीजों के स्वास्थ्य की जानकारी लेंगे। किसी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर तत्काल मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत/ कलेक्टर को अवगत कराएंगे। दल प्रभारी इस बात की भी निगरानी रखेंगे कि उनके वार्ड में आइसोलेट मरीज घर में उपचार ले रहे है और घर से बाहर आना जाना नही कर रहे हैं। गंभीर परिस्थिति के लिए दल प्रभारी स्वयं जिम्मेदार होंगे। संबंधित मरीज को मेडिकल किट मिला है या नही इसकी जानकारी लेंगे। घर के बाहर होम आइसोलेट होने का पेम्पलेट लगा है या नही इसे देखें। होम आइसोलेट मरीजों की जानकारी प्रतिदिन मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं नोडल अधिकारी कोविड कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सेंटर को देंगे। सभी दल प्रभारी आवंटित वार्ड में 2 शिफ्टों में प्रात: 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक एवं शाम 4 बजे से रात्रि 8 बजे तक ससत भ्रमण करेंगे। भ्रमण के दौरान लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने, बगैर मास्क के घरों से निकलने की समझाईश देंगे। भ्रमण के दौरान कोई व्यक्ति बीमार पाया जाता है तो उसे तुरंत फीवर क्लीनिक, होम आइसोलेशन, कोविड केयर सेंटर मरीज की स्थिति अनुसार स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी गाइड लाइन का पालन करते हुए संबंधित केन्द्र में भिजवाएंगे। इसकी सूचना मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत/कलेक्टर को देंगे। एक अप्रैल से कोविड वैक्सीन का तृतीय चरण प्रारंभ हो गया है 45 वर्ष की उम्र तक के सभी व्यक्तियों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित करें।

सभी दल प्रभारी अपने अपने क्षेत्र में भ्रमण कर दुकानदारों, ग्राहकों, घरों, सडकों पर बाहर निकलने वाले एवं सार्वजनिक स्थलों पर उपस्थित नागरिकों को कोरोना से बचाव हेतु अनिवार्य रूप से मास्क लगाने व अन्य निवारक उपायों के लिए प्रेरित करेंगे। कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए दल प्रभारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है अपने अधीनस्थों की ड्यूटी स्वयं लगाकर कोविड सेल को सूचित करें। प्रत्येक दल प्रभारी द्वारा की गयी कार्यवाही की प्रगति, एक्टीविटी के फोटोज प्रभारी कोविड सेल जिला पन्ना को अनिवार्य रूप से भेजें। किसी विशेष क्षेत्र में स्थिति की गंभीरता के मददेनजर कोई अन्य कार्यवाही आवश्यक हो तो तत्काल अवगत कराएंगे। दल प्रभारी वार्ड में कन्टेनमेंट एरिया तैयार करने एवं उसकी व्यवस्था दल के सदस्यों के साथ करते हुए संबंधित विभागों को आवश्यक सहयोग प्रदान करने हेतु उत्तरदायी होंगे।

समस्त अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, समस्त तहसीलदार, समस्त मुख्य नगरपालिका अधिकारी को आदेशित किया गया है कि दल प्रभारी के साथ एक पटवारी एवं एक नगरीय निकाय के कर्मचारी की ड्यूटी लगाकर अवगत कराए। पुलिस अधिकारी द्वारा पुलिस के एक जवान एवं होमगार्ड जवान की ड्यूटी भी दल के साथ लगाई जाए।

होम आइसोलेटेड मरीजों को मेडिसिन किट एवं निर्देश पत्र पहुंचाने दायित्व सौंपे

मुख्य नगरपालिका अधिकारी पन्ना यशवंत वर्मा द्वारा कोविड संक्रमण में होम आइसोलेशन के मरीजों को मेडिसिन किट एवं स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों की प्रति होम डिलेवरी करने के लिए गठित दल के नोडल अधिकारी लोकेन्द्र सिंह उपयंत्री 8319647437 को नियुक्त किया गया है। उनके कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिए दल गठित किया गया है। इस दल में सुरेश कुमार नामदेव प्रभारी स्वच्छता निरीक्षक 9752354897 को मेडिकल किट एवं स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों को होम आइसालेशन के मरीजों के घर-घर पहुंचाने हेतु वाहन एवं कर्मचारियों की व्यवस्था, मनीष महदेले चैकीदार 9425609532 को मेडिसिन प्राप्त होने पर मेडिकल किट बनवाना एवं वितरण कराना साथ में स्वास्थ्य निर्देश पत्र वितरण कराना, संतोष चैबे समयपाल 9893451234, सुनील यादव, सलमान खान को प्रभारियों के निर्देशानुसार मेडिसिन किट तैयार करना एवं वितरण कराना तथा मकसूद खान, सरफराज खान, हरप्रसाद सेन को प्रभारियों के निर्देशानुसार मेडिसिन किट एवं स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों का वितरण होम आइसोलेटेड मरीजों को कराने का दायित्व सौंपा गया है।

नोडल अधिकारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी/सिविल सर्जन पन्ना से सम्पर्क स्थापित कर मेडिसिन किट एवं निर्देश पत्र प्राप्त कर होम आइसोलेशन के मरीजों की सूची सुबह 7 बजे प्रभारी से प्राप्त कर स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों के साथ वितरण कराना सुनिश्चित करेंगे। प्रतिदिन की गयी कार्यवाही की जानकारी वरिष्ठ कार्यालय एवं शासन को भेजने का दायित्व श्री ओम प्रकाश खरे उद्यान पर्यवेक्षण 9893956513 को प्रभारी नियुक्त किया गया है।

कोरोना संक्रमण से रहे सावधान-कलेक्टर

कलेक्टर एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री बालागुरू के ने जिले के आम नागरिकों से अपील करते हुए कहा है कि कोरोना बीमारी लापरवाही के चलते तेजी से फैल रही है। इसे रोकने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए अनावश्यक घरों से बाहर न निकलें। जब भी बाहर निकलें मुंह पर मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग एवं हांथों को सेनेटाइज करते रहें। बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं विभिन्न बीमारियों जैसे सुगर, ब्लड प्रेसर, केंसर आदि के रोगी पूरी सावधानी बरतें। हमारा परिवार हमारी जिम्मेदारी है इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए हर नागरिक को प्रयास करने होंगे। ऐसा करने से कोरोना हरेगा पन्ना जितेगा।

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टमाटर और आलू नहीं है हमारे देश की सब्जी

  • यह चेरी टमाटर अग्रेजों के आने के पहले का तो नहीं ?
  • बाबूलाल दाहिया जी ने बताया जंगली टमाटर की खूबी 

जंगली टमाटर 'चेरी' जिसे कहीं मारू कहीं भेजरा तो कहीं टमटरी भी कहा जाता है। 

पन्ना। मौजूदा दौर में आलू और टमाटर की जो अहमियत है, वह अन्य दूसरी सब्जियों की नहीं है। लेकिन यह बात शायद कम लोगों को ही पता होगी कि आलू और टमाटर हमारे देश की सब्जी नहीं है। बाजार में जो बड़े आकार के टमाटर बिकते हैं जिनका उपयोग ज्यादातर लोग करते हैं, वह देशी प्रजाति नहीं है।  हां जंगली या चेरी टमाटर के बारे में जरूर यह कहा जाता है कि टमाटर की यह प्रजाति यहाँ के जंगलों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती रही है। जाहिर है कि अंग्रेजों के आने से पूर्व इस टमाटर का अपने देश में वजूद रहा है। इसी देशी टमाटर के बारे में कृषक बाबूलाल दाहिया ने अपनी समझ को साझा किया है,  जिन्होंने देशी अनाजों के संरक्षण तथा जैविक खेती को बढ़ावा देने में अतुलनीय कार्य किया है। इस योगदान के लिए आपको पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।  

श्री दाहिया कहते हैं कि यह सुनिश्चित है कि टमाटर और आलू हमारे देश की सब्जी नहीं है। यह दोनों अग्रेजों के आने के बाद ही भारत में आये और यहां की प्रमुख सब्जी का स्थान ले लिया। शायद यही कारण है कि आयुर्वेद ग्रन्थों में इनका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। सब से बड़ा ऐतिहासिक उदाहरण तो आईने अकबरी है। कहते हैं 1555 में जब बादशाह हुमायु दोबारा बादशाह बने और अपने सरदारों एवं रिआया को भोज दिया, उसमे सभी तरह की तरकारियां लौकी, भिंडी, करेला, परवल, गिलकी, कद्दू ,घुइयां, बरवटी आदि  राधी गई। किन्तु यह टोमैटो, पोटैटो उनमें शामिल नहीं है।

इससे सिद्ध है कि तम्बाकू की तरह इन्हें भी अंग्रेज अपने साथ लाए जो बाद मे समूचे देश की लोकप्रिय सब्जी बन गए। किन्तु यह समूचे उत्तर और मध्य भारत मे नैसर्गिक ढंग से उगने वाला जंगली टमाटर 'चेरी' जिसे कहीं मारू कहीं भेजरा तो कहीं टमटरी भी कहा जाता है ? क्या यह भी अग्रेजों द्वारा लाया गया होगा ? या यह पहले से इसी तरह जंगलो में उगता रहा होगा ? यह विद्वानों के लिए विचारणीय बात है। क्योंकि इसका चरित्र उन बड़े टमाटरों से अलग सा लग रहा है।

हमारे देश में ब्यावसायिक रूप से लगाये जाने वाले कई तरह के टमाटर हैं। कुछ देश मे हरित क्रांति आने के पहले के टमाटर हैं जो खाने में खट्टापन लिए जायके दार हैं। जिन्हें देसी टमाटर कहा जाता है तो कुछ हाईब्रीड भी। यह हाईब्रीड देखने मे तो आकर्षक है किन्तु स्वाद में दो कौड़ी के नहीं, लेकिन बाजार इन्ही से पटा रहता है। पर इन दोनों से अलग एक वह चेरी या जंगली टमाटर भी हैं, जिसमे खाद, बीज, निराई, सिचाई ,कीट नाशक आदि किसी में कुछ भी पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं। बस तोड़िए और चटनी या सब्जी में उपयोग कीजिए।

न तो उसमे पत्ती सिकुड़न रोग लगता है, न कोई कीट ब्याधि ? वह अपने आप गाँव, घरों  के आस पास बिखरे कूड़े करकट, खेतो की मेड़ो या बगीचे, सार्वजनिक स्थानों में जमेगा और क्वार से पकना शुरू होगा तो फागुन तक मुफ्त में सब्जियां खिलाएगा, जिसमें किसी का स्वामित्व भी नहीं। चाहे जो तोड़ता खाता रहे ? और पत्ते में ऐसा कषैलापन कि मजाल क्या कि कोई पशु मुँह मार सके ? किन्तु यदि इसके दो चार फल भी उस स्वाद रहित हाईब्रीड टमाटर के सब्जी में डाल दिया जाय तो उसे भी इसका खट्टापन स्वादिष्ट बना दे।

लेकिन इसका हम मनुष्यो का मात्र स्वार्थ का ही नाता है। इसके वंश परिवर्धन के लिए बीज फैलाने का काम तो चिड़ियां करती हैं। शायद इसीलिए उनके अनुरूप उसने अपने फल का आकार छोटा रखा है।

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Saturday, April 17, 2021

जवानों में भी कई बूढ़े हैं,और बूढ़ों में भी कई जवान

 नई पीढ़ी को प्रकृति का मर्म समझाने वाले, पन्ना नेचर कैंप के मुख्य शिल्पी तथा पन्ना जिले की कई पीढियों को शिक्षित और संस्कारित करने वाले शिक्षाविद परम सम्माननीय अंबिका प्रसाद खरे जी के निधन से विचलित हूं। आज हमने एक ऐसे शिक्षक को खो दिया है जो 89 वर्ष की उम्र में भी ताजगी और ऊर्जा से लबरेज रहते थे। दो वर्ष पूर्व 1 फरवरी 2019 को आपके आकर्षक व चुंबकीय व्यक्तित्व के बारे में मैंने अपने ब्लॉग में चंद लाइने लिखी थीं। जिनसे अंबिका जी के आकर्षक व्यक्तित्व की झलक मिलती है।

 इस महान शिक्षक, प्रकृति प्रेमी और कर्मयोगी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !


दो वर्ष पूर्व अकोला बफर क्षेत्र में मेरे द्वारा ली गई अम्बिका जी की तस्वीर। 

।। अरुण सिंह पन्ना ।।

वक्त से पहले ही बूढ़े हो चुके निराश हताश और तनाव से भरे युवक मौजूदा समय हर जगह मिल जाएंगे, लेकिन 87 वर्ष का उर्जा से लबरेज हर समय कुछ नया सीखने की ललक वाला प्रशन्न चित्त युवक निश्चित ही दुर्लभ घटना है। 87 वर्ष के इस युवा से मिलना और उनके अनुभवों को साझा करना किसी के लिए भी प्रेरणादाई साबित हो सकता है। आकर्षक व्यक्तित्व का धनी यह युवा मंदिरों के शहर पन्ना में किसी परिचय का मोहताज नहीं है, क्योंकि अपने लंबे जीवन काल में इन्होंने कई पीढय़िों को शिक्षित और संस्कारित किया है ।इनके पढ़ाए हुए न जाने कितने विद्यार्थी कब बुढ़ापे की दहलीज को लांघते हुए इस दुनिया से ही कूच कर गए लेकिन यह बुजुर्ग युवा आज भी ताजगी से भरा है और शिक्षा की रोशनी फैलाने के कार्य में जुटा हुआ है। नई पीढ़ी को प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने के लिए भी इनके द्वारा अभिनव पहल की गई जो अनवरत जारी है। इस उम्र में भी उनकी आंखों की चमक कायम है बिना चश्मे के उन्हें लिखते और पढ़ते हुए देख आज के युवक  आश्चर्य से भर जाते हैं। अब तो आप समझ गए होंगे यह शख्स कौन है ? ठीक समझा यह अंबिका प्रसाद खरे हैं जिन्हें लोग अंबिका सर कहते हैं। पिछले दिनों पन्ना बफर क्षेत्र के अकोला जंगल में इस बुजुर्ग युवा का सानिध्य मिला फलस्वरुप यह सब लिखने से अपने को नहीं रोक पाया। अंबिका जी को देख कर यह एहसास हुआ कि -

"जवानों में भी कई बूढ़े हैं,और बूढ़ों में भी कई जवान हैं"।

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Friday, April 16, 2021

पन्ना जिले में नहीं थम रही कोरोना की रफ़्तार

  •  सांसद बी.डी. शर्मा ने ली क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक
  •  सुविधाओं के विस्तार हेतु अधिकारीयों को दिए निर्देश 


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। गंभीर स्थिति को देखते हुए प्रशासन द्वारा 22 अप्रैल तक के लिए जिले में कोरोना कर्फ्यू लगाया गया है। गुरुवार 15 अप्रैल को रात में जारी हुई हेल्थ बुलेटिन में कोरोना संक्रमित 164 नए मरीजों की पुष्टि की गई है। 14 अप्रैल को जिले में 143 कोरोना संक्रमित मरीज मिले थे। गुरुवार तक जिले में कुल कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 2032 हो गई है, जिनमें 1416 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं। मौजूदा समय जिले में एक्टिव प्रकरणों की संख्या 686 है तथा अब तक जिले में 8 मरीजों की मौत हो चुकी है।    

पन्ना में क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक लेते हुए सांसद बी.डी. शर्मा।  

 भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं क्षेत्रीय सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने गुरुवार को  देर शाम पन्ना पहुंचकर क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक ली और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि किसी भी कीमत में पन्ना में दवाओं का अभाव नहीं होना चाहिए ताकि किसी भी मरीज को दिक्कत का सामना न करना पड़े। बैठक में जिले के हालातों की पूरी जानकारी हासिल करने के बाद सांसद बीडी शर्मा ने सरकार के उच्च अधिकारियों से बात कर उन्हें पन्ना में सुविधाओं के विस्तार के निर्देश दिए हैं। सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि पन्ना जिला अस्पताल में शीघ्र ही सीटी स्कैन शुरू कराया जाएगा, जिससे मरीजों को सुविधा मिल सके। कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीजों के लिए मेडिकल कॉलेज सागर में जो 10 आईसीयू बेड सुरक्षित हैं उनको दुगना करने के आदेश दिए हैं। मालुम हो कि नोबेल कोरोना वायरस कोविड-19 के संक्रमण की तीसरी लहर खतरनाक साबित हो रही है। पन्ना जिले के साथ-साथ संपूर्ण मध्य प्रदेश एवं देश भर में यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है। प्रवासी श्रमिकों की वापसी भी पुन: प्रारंभ हो गई है। मिली जानकारी के अनुसार 14 अप्रैल 2021 को जिले के विभिन्न इलाकों से लगभग 247 प्रवासी श्रमिकों की एंट्री की गई है। वापस आने वाले इन प्रवासी मजदूरों का पंजीयन कर उन्हें होम आइसोलेट रहने की सलाह दी गई है। 

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Tuesday, April 13, 2021

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता का क्या है राज ?

  • कैसे तय किया पन्ना टाइगर रिज़र्व ने शून्य से 70 का सफर 
  • इस चमत्कारिक सफलता से मिली पन्ना को वैश्विक पहचान


पर्यटकों के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार। (फोटो - अरुण सिंह)

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के चलते अपनी वैश्विक पहचान बनाई है। यह एक ऐसा वन क्षेत्र है जो वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गया था, लेकिन अब यहां बाघों का उजड़ा हुआ संसार फिर से आबाद हो गया है। बीते 11 वर्षों में पन्ना ने शून्य से 70 का सफर तय किया है, जो किसी करिश्मा से कम नहीं है। विश्व स्तर पर पन्ना टाइगर रिजर्व सफलता का मानक बन चुका है। यही वजह है कि देश और दुनिया भर से वन अधिकारी व वन्यजीव प्रेमी पन्ना की कामयाबी का राज जानने तथा उसे देखने और समझने के लिए यहां आते हैं।

 उल्लेखनीय है कि सदियों से बाघों के प्रिय रहवास स्थल रहे पन्ना के जंगल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गये थे। बाघों के प्राकृतिक रहवास जहां उनकी दहाड़ गूंजा करती थी, वहां सन्नाटा पसर गया था। कहते हैं कि जंगल में जब बाघ की दहाड़ गूंजती है तो प्रकृति भी अंगड़ाई लेकर जीवंत हो उठती है। लेकिन वनराज की विदाई होने के साथ ही पन्ना के जंगल में पक्षियों के गीत भी शोक गीत में तब्दील हो गये थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी ने पन्ना के खोए हुए गौरव को वापस लौटा दिया है। अब यहां का जंगल वनराज की दहाड़ और नन्हे शावकों की अठखेलियों से गुलजार है।

बाघिन टी-2 के शावक अपनी मां के साथ जलविहार करते हुए। (फोटो - पीटीआर ऑफिस) 

 पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि मौजूदा समय पन्ना के जंगलों में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। यहां 13 प्रजनन क्षमता वाली बाघिनें हैं, जो शावकों को जन्म देकर बाघों की वंश वृद्धि में अहम भूमिका निभा रही हैं। बीते 11 वर्षों में यहां लगभग 110 शावकों का जन्म हुआ है। श्री शर्मा ने बताया कि अभी हाल ही में बाघिन टी-6 ने चार व बाघिन पी-151 ने दो शावकों को जन्म दिया है। बीते चार माह के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में 15 शावकों का जन्म हुआ है।

पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ से आई थी पहली बाघिन

 बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर बाघों से आबाद करने के लिए वर्ष 2009 में ही बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर दी गई थी। योजना के तहत 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से पहली बाघिन टी-1 को पन्ना लाया गया। इसके 5 दिन बाद ही 9 मार्च को वायुसेना के हेलीकॉप्टर से दूसरी बाघिन टी-2 को कान्हा टाइगर रिजर्व से पन्ना लाया गया। इन दो युवा बाघिनों के पन्ना पहुंचने के कुछ दिनों बाद पता चला कि यहां एक भी नर बाघ नहीं है। फलस्वरुप बाघों के आबाद करने की योजना पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया। पन्ना के जंगल में दोनों युवा बाघिनें जीवनसाथी न मिल पाने के कारण कई महीने तन्हाई में ही जीवन गुजारने को मजबूर हो गईं।

बाघ टी-3 को बेहोश कर उसके घाव का उपचार करते चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता व रेस्क्यू टीम।  (फोटो - पीटीआर ऑफिस)  
                                            
पन्ना के जंगलों का चप्पा-चप्पा छानने के बाद जब पार्क प्रबंधन को यहां नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिन्ह नहीं मिले, तब अन्यत्र कहीं से एक नर बाघ को पन्ना लाने की योजना बनी। योजना के तहत पेंच टाइगर रिजर्व से युवा बाघ टी-3 को सड़क मार्ग से 6 नवंबर 2009 को पन्ना लाया गया। नये और अजनबीमाहौल में यह बाघ कुछ दिनों तक यहां रहा, लेकिन जब उसे यहां की आबोहवा रास नहीं आई तो वह अपने पुराने घर की ओर निकल पड़ा। पन्ना टाइगर  रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम निरंतर इस बाघ का पीछा करती रही और 25 दिसंबर 2009 को इसे दमोह जिले के तेजगढ़ के जंगल में बेहोश कर फिर पन्ना लाया गया। यह नर बाघ पन्ना के जंगल में रुके और बाघिनों के साथ जोड़ा बनाकर वंश वृद्धि में योगदान दे, इसके लिए अनूठा तरीका खोजा गया, जो कामयाब रहा। बाघिन टी-1 से इस बाघ की मुलाकात हुई और बाघ पुनर्स्थापना के सफलता की कहानी यहीं से शुरू हुई।

 बाघिन टी-1 ने पहली बार जन्में चार शावक


बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों को फीडिंग कराते हुए। (फोटो - पीटीआर ऑफिस) 

पन्ना की पटरानी के नाम से प्रसिद्ध बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को पन्ना टाइगर रिजर्व के धुंधुआ सेहा में जब चार नन्हे शावकों को जन्म दिया, तो वन अमला व अधिकारियों सहित पन्ना के नागरिक खुशी से झूम उठे। इन नन्हे मेहमानों के आने से सूना पड़ा पन्ना का जंगल गुलजार हो गया। कान्हा से पन्ना आई बाघिन टी-2 जिसे सफलतम रानी कहा जाता है, इस बाघिन ने पहली बार अक्टूबर 2010 में 4 शावकों को जन्म दिया था। बाघों की वंश वृद्धि में इस बाघिन का अतुलनीय योगदान रहा है। पन्ना में इस बाघिन ने अब तक अपने 7 लिटर में 21 शावकों को जन्म दिया है।

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना को कैसे मिली यह सफलता ?

0 पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ विहीन होने पर बिना देरी किये बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर दी गई, जिससे टाइगर हैबिटेट (बाघों का रहवास) नष्ट नहीं हो पाया। इससे बाघों को यहां फिर से आबाद करने में मदद मिली।

0 पन्ना के जंगल से बाघ क्यों खत्म हुए, इस अहम मसले पर गहन विचार मंथन व खोजबीन हुई। इससे जो निष्कर्ष निकला, उससे सबक लेकर उन कारणों को दूर किया गया। पोचिंग की घटनाओं पर भी प्रभावी अंकुश लगाया गया।

0 बीमारी से बाघों की मौत न हो इसलिए बाघों में पाई जाने वाली केनाइन डिस्टेंपर नामक जानलेवा बीमारी की रोकथाम हेतु टाइगर जोन वाले ग्रामों के लगभग 6 हजार कुत्तों का टीकाकरण किया गया।

0 आपसी संघर्ष में बाघों की असमय मौत को रोकने के समुचित प्रबंध किये गये। इन फाइटिंग में घायल बाघ- बाघिनों का समय पर तुरंत उपचार किया गया।

0 मानव-वन्य प्राणी द्वंद को रोकने रेस्क्यू टीम को सुदृढ़ किया गया।

0 बाघों का रेडियो कॉलर करके उनकी 24 घंटे निगरानी की गई।

0 जनसमर्थन से बाघ संरक्षण का स्लोगन देकर लोकल कम्युनिटी को संरक्षण से जोड़ा गया।

0 क्षेत्र संचालक से लेकर वन महकमे के चौकीदार तक ने टीम भावना से एकजुट होकर काम किया। स्थानीय लोगों का भी समर्थन व सहयोग लिया गया, जिससे यह चमत्कारिक सफलता मिल सकी।

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Monday, April 12, 2021

नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लिए होगी बड़ी त्रासदी

  •   पन्ना की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व किया था सचेत 
  •   यदि केन बेसिन के लोगों की जरूरतें पूरी हों तो नदी में नहीं बचेगा पानी 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। इंसान के जीवन की सबसे अहम जरूरत शुद्ध हवा और पानी है। जमीन की तरह पानी भी प्रकृति की दी हुई ऐसी सौगात है जिसे हम कृत्रिम रूप से नहीं बना सकते। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) हमें वृक्ष प्रदान करते हैं। यदि हमसे पानी और हवा को जबरन छीन लिया जाए, तो हमारी क्या हालत होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। केन बेसिन में रहने वाले लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। नदी जोड़ो परियोजना के जरिए हमारे जीवन का आधार पानी और हवा दोनों हमसे छीना जा रहा है।

दीपाली रस्तोगी पूर्व कलेक्टर 

 पन्ना जिले की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व ही केन-बेतवा लिंक परियोजना के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए चेताया था। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को लिखकर यह बताया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी ही नहीं बचेगा। उन्होंने यहां तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।

 गौरतलब है कि जन कल्याण के लिए साहसिक निर्णय लेने वाली महिला आईएएस दीपाली रस्तोगी वर्ष 2005 से 2008 के बीच पन्ना कलेक्टर के रूप में पदस्थ रही हैं। उनके कार्यकाल में पन्ना जिले को विकास का जो स्पर्श व दिशा मिली वह अविस्मरणीय है। आपके समय पन्ना जिले ने बाढ़ की भयावह विभीषिका को भी झेला, लेकिन इनके दुस्साहसिक निर्णयों व अथक प्रयासों से कोई जनहानि नहीं हुई। पन्ना शहर में विकास की जो भी झलक दिखाई देती है, चाहे वह नवीन कलेक्ट्रेट व न्यायालय भवन हो या केंद्रीय विद्यालय व बायपास रोड उन्हीं की देन है। दीपाली रस्तोगी के समय ही चार महत्वाकांक्षी सिंचाई योजनाओं की रूपरेखा भी बनी थी और तत्कालीन तथा मौजूदा समय भी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन सिंचाई योजनाओं का भूमि पूजन किया था।

 पन्ना की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने केन बेतवा परियोजना को रोकने के लिए उस समय कड़ा संघर्ष किया था। जिससे पता चलता है कि पन्ना जिला तथा यहां के लोगों के कल्याण के बारे में उनकी समझ कितनी गहरी और स्पष्ट थी। उन्होंने तथ्यों और प्रमाणों के साथ ही दिखाया था कि यदि मध्यप्रदेश 1983 के अपने जल संसाधन मास्टर प्लान को केन बेसिन में लागू करता तो बेतवा बेसिन में भेजने के लिए पानी ही नहीं बचता।

प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में एक है पन्ना

 पन्ना जिले का प्रादुर्भाव वर्ष 1956 में हुआ। इस जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 7029 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें लगभग 43 प्रतिशत वन भूमि है। बुंदेलखंड अंचल का यह जिला विकास के मामले में प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुमार है। विकास की विपुल संभावनाओं के बावजूद जिला बनने के बाद भी पन्ना का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। इस जिले में एक भी बड़ा उद्योग नहीं है जो रोजी - रोजगार का जरिया बने। केवल पत्थर और हीरा की खदानें ही एकमात्र रोजगार का विकल्प हैं। लेकिन वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद ज्यादातर खदानें बंद हैं। इन परिस्थितियों में यहां जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन कृषि और कृषि से संबंधित रोजगार है, जो बिना सिंचाई के संभव नहीं है।

 चार सिंचाई योजनाओं की रखी गई थी आधारशिला 



पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी के कार्यकाल में ही सिंचाई की चार महत्वाकांक्षी योजनाओं की आधारशिला रखी गई थी। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संदेश में कहा था कि पन्ना जैसे पिछड़े जिले में जहां सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है, चार बड़ी परियोजनाओं के निर्माण का निर्णय लिया गया है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मध्य प्रदेश सरकार इन योजनाओं को समय सीमा में मूर्त रूप देने में सफल होगी तथा पन्ना जिले के किसानों के चिर प्रतीक्षित सपनों को साकार करेगी। 

यह इस जिले का दुर्भाग्य है कि किसानों के सपनों को साकार करने वाली इन चार सिंचाई योजनाओं में से सिर्फ एक योजना पूरी हो सकी है। जबकि प्रदेश में लगातार शिवराज जी की ही सरकार है। जल संसाधन विभाग पन्ना के कार्यपालन यंत्री श्री दादोरिया ने बताया कि पवई बहुउद्देशीय परियोजना पूरी हो चुकी है। जबकि मिढ़ासन डायवर्सन वृहद परियोजना व पतने बहुउद्देशीय परियोजना को बंद कर दिया गया है। भितरी मुटमुरु मध्यम परियोजना निर्माण के पहले वर्ष ही टूट कर ध्वस्त हो चुकी है, जो वर्षों से यथावत पड़ी है। उसे पूरा करना अभी तक जरूरी नहीं समझा गया, जबकि इस परियोजना में करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं।


 पन्ना को त्रासदी में झोंक,पानी लेना कैसा न्याय ?

 देश और प्रदेश में खुशहाली आए यह हर देशवासी चाहेगा। लेकिन किसी इलाके को बर्बाद करके दूसरी जगह खुशहाली लाना कैसे न्याय पूर्ण हो सकता है ? केन नदी के पानी पर पहला हक पन्ना जिले का है, पन्ना को इसका फायदा दिए बिना यहां का पानी दूसरी जगह ले जाना अतार्किक ही नहीं अमानवीय भी है। इससे न सिर्फ पन्ना टाइगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा अपितु राष्ट्रीय पशु बाघ सहित न जाने कितने वन्य जीव बेघर हो जाएंगे। यदि केन-बेतवा लिंक परियोजना मूर्त रूप लेती है तो पन्ना जिले के लोग पानी के उपयोग के अपने अधिकार से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे।

केन नदी के किनारे वनराज और गजराज साथ - साथ। 

 पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जहां इस परियोजना को घातक बताते हुए शुरू से ही इसका विरोध करते आ रहे हैं। वहीं अब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के विरोध से यह विवादित परियोजना फिर सुर्खियों में है। पन्ना जिले के जागरूक लोगों सहित आम व खास सभी इस नदी जोड़ परियोजना का पुरजोर विरोध करते हुए इसे रोकने की मांग कर रहे हैं। विरोध करने वालों में राजमाता दिलहर कुमारी, पूर्व मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता सुश्री कुसुम सिंह महदेले सहित अनेकों प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं।

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Saturday, April 10, 2021

केन-बेतवा लिंक परियोजना का सोनिया गांधी ने भी किया विरोध

  •  केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर इसे बताया विनाशकारी 
  •  लिंक परियोजना के विरोध की हवा पन्ना से निकलकर अब राष्ट्रीय स्तर पर पहुंची 

पन्ना परिवर्तन मंच द्वारा तीन वर्ष पूर्व किये गए विरोध प्रदर्शन का द्रश्य। (फोटो - अरुण सिंह) 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डुबाने वाली विवादित केन-बेतवा लिंक परियोजना के विरोध में पन्ना वासियों द्वारा चलाई जा रही मुहिम का असर अब दिखने लगा है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने पर्यावरण से खिलवाड़ करने वाली तथा बाघों सहित विलुप्तप्राय गिद्धों व वन्यजीवों के रहवास को उजाडऩे वाली इस परियोजना का विरोध किया है।

 उल्लेखनीय है कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मध्य से प्रवाहित होने वाली बुंदेलखंड क्षेत्र की जीवन रेखा केन नदी को बेतवा से जोडऩे की परियोजना पर गत 22 मार्च को जलशक्ति मंत्रालय, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इस कथित समझौते के बाद पन्ना से लेकर बांदा तक आम लोगों ने जहां इस विवादित और विनाशकारी परियोजना का विरोध करना शुरू किया, वहीं पर्यावरण विदों, वन्यजीव प्रेमियों तथा समाजसेवियों ने भी पर्यावरण के लिए घातक इस लिंक परियोजना के खिलाफ विरोध दर्ज किया है। सोशल मीडिया में जहां इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर अभियान चल रहा है, वहीं क्षेत्रीय और राष्ट्रीय समाचार पत्रों व न्यूज़ पोर्टलों पर भी इस परियोजना के घातक परिणामों के बारे में लिखा जा रहा है।

जीवनदायनी केन नदी को बड़े ध्यान से निहारता वनराज। 

 पन्ना राजघराने की बुजुर्ग सदस्य राजमाता दिलहर कुमारी ने परियोजना के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान का खुला समर्थन किया है और इस लिंक परियोजना को विनाशकारी बताया है। पन्ना जिले का युवा वर्ग बाघों के घर को बचाने के लिए जहां संकल्पित है, वहीं समाज के हर तबके के लोग भी अब इस अभियान से जुड़ रहे हैं। प्रबुद्ध कहा जाने वाला तबका  जिले के अधिवक्ताओं ने भी हाथों में स्लोगन लिखे पोस्टर लेकर अपना विरोध जताया है। विरोध की यह हवा अब आंधी बन चुकी है तथा पन्ना से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर चलने लगी है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष का विरोध इस बात का जीता - जागता प्रमाण है। 

केन - बेतवा लिंक परियोजना से होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी का पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखा गया पत्र। 

मालुम हो कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना को उसके मौजूदा स्वरूप में क्रियान्वित नहीं किया जाए क्योंकि इसका मध्य प्रदेश के पन्ना बाघ अभयारण्य पर 'भयावह' प्रभाव पड़ेगा। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि इस परियोजना से बाघ अभयारण्य को इतना नुकसान पहुंचेगा कि उसकी क्षतिपूर्ति कभी नहीं हो सकेगी।

उन्होंने पत्र में कहा, ''मैं आपसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह करती हूं कि इस परियोजना को इसके मौजूदा स्वरूप में क्रियान्वित नहीं किया जाए। इसको लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण और उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिकाएं भी लंबित हैं"। सोनिया गाँधी के अनुसार, मध्य प्रदेश और देश भर के कई पर्यावरणविदों ने इस परियोजना को रोकने की पैरवी की है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि पिछले एक दशक में पन्ना अभयारण्य बहुत मुश्किलों और समर्पित प्रयासों से पुनजीर्वित हुआ है। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि इस अभयारण्य में करीब 18 लाख पेड़ हैं, जिन्हें इस परियोजना के तहत हटाया जाएगा।

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Friday, April 9, 2021

पन्ना टाइगर रिज़र्व में फिर जन्मे दो नन्हे मेहमान

  •  अपने दो नन्हे शावकों के साथ दिखी बाघिन पी-151 
  •  पीटीआर के मंडला रेंज में पर्यटकों ने बनाया वीडियो
  • जन्म के बाद पहली मर्तबे नजर आए ये नन्हे शावक

अपने नन्हे शावकों के साथ विचरण करती बाघिन पी-151  

  ।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में फिर एक बाघिन ने नन्हे शावकों को जन्म दिया है। बाघिन पी-151 अपने दो शावकों के साथ शुक्रवार 9 अप्रैल को सुबह पहली बार नजर आई है। पार्क भ्रमण हेतु आए पर्यटकों ने बिल्कुल निकट से इस बाघिन को शावकों के साथ चहल-कदमी करते हुए न सिर्फ देखा बल्कि उसका वीडियो भी बनाया है।

 अपने परिवार के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व घूमने के लिए आए राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज बांदा के डॉक्टर अनुराग चौहान ने बताया कि शावकों के साथ बाघिन को इतने नजदीक से देखकर वे अत्यधिक रोमांचित हैं। उनका परिवार बेहद खुश है, क्योंकि उन्होंने इस तरह के दृश्य से रूबरू होने की कल्पना भी नहीं की थी। श्री चौहान ने बताया कि शावक बहुत ही प्यारे व फुर्तीले दिख रहे थे। एक शावक मां के साथ था व दूसरा कुछ दूरी पर था। बाघिन जंगल में अंदर की तरफ जा रही थी, अचानक रुकी और पीछे छूट गए शावक के पास पहुंच गई तथा उसे अपने साथ लेकर घने जंगल में चली गई। यह पूरा नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था।

 पर्यटक गाइड मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि बाघिन पी-151 पहली बार अपने शावकों के साथ जंगल में दिखी है। नन्हे शावकों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी उम्र दो-ढाई माह के लगभग होगी। श्री द्विवेदी ने बताया कि शुक्रवार की सुबह जब पर्यटकों को लेकर जिप्सी वाहन मंडला रेंज के कमानी गेट से पक्का गढ़ा की तरफ जा रहे थे, उसी समय रास्ते में यह बाघिन दो नन्हे शावकों के साथ नजर आई। पांच जिप्सियों में सवार पर्यटकों ने इस रोमांचकारी नजारे को बड़े इत्मीनान के साथ देखा।

 बाघिन पी-151 पन्ना टाइगर रिजर्व की संस्थापक बाघिन टी-1 की बेटी है। इस बाघिन ने दूसरी बार शावकों को जन्म दिया है। आगे वाली जिप्सी में सवार रहे पर्यटक बृजेश सिंह ठाकुर ने शावकों के साथ चहल- कदमी करते बाघिन का वीडियो बनाया है। मालूम हो कि इसके पूर्व विगत 26 मार्च 21 को बाघिन टी-6 अपने चार नन्हे शावकों के साथ दिखी थी। बीते 4 माह के भीतर पन्ना टाइगर रिजर्व में 15 शावकों का जन्म हो चुका है। इतनी बड़ी संख्या में शावकों की मौजूदगी के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

पर्यटक ब्रजेश सिंह ठाकुर द्वारा बनाया गया शावकों के साथ बाघिन का वीडियो -



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