Friday, July 30, 2021

पन्ना टाइगर रिजर्व को मिला सम्मान

  • पन्ना में बाघों के प्रबंधन को प्राप्त हुई अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
  • पार्क प्रबंधन ने इस उपलब्धि हेतु पन्नावासियों को दी बधाई  


                 


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघ संरक्षण और प्रबंधन के लिये स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर सही मान्य करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कंजर्वेशन एश्योर्ड टाइगर स्टेण्डर्ड्स (सीएटीएस) प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया है। विश्व बाघ दिवस के मौके पर पन्ना टाइगर रिजर्व को यह बड़ी उपलब्धि मिली है। इससे पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के प्रबंधन को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है। पार्क प्रबंधन ने इस बड़ी उपलब्धि के लिए पन्नावासियों को बधाई दी है। 

वन मंत्री डॉ. कुँवर विजय शाह ने मिली इस उपलब्धि पर पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक सहित वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को बधाई दी है। वन मंत्री ने कहा है कि मध्यप्रदेश न सिर्फ देश का बल्कि विश्व का टाइगर कैपिटल माना जाता है। कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने और उनके संरक्षण और प्रबंधन में पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है।

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हमारी लोकसंस्कृति के नायक हैं बाघ : जयराम शुक्ल

किसानों के लिए टाइगर कितना महत्वपूर्ण है, इस चित्र में इसे खूबसूरती से दर्शाया गया है। 
चित्र - रोहित कुमार शुक्ला  

     "मानव ने हमेशा से ही बाघ को वीरता और देवत्व भाव से देखा है, हमारी मान्यताओं में वह आदिशक्ति का वाहक है। वहीं बाघों ने भी मनुष्यों को सदैव अपनी प्राकृतिक भोजन श्रृंखला से परे एक जीवन के तौर पर देखा है। वनवासियों में बाघ को देवता के रूप में निरुपित किया गया है और इसकी पूजा भी होती है।"

चीन भले ही अपने काल्पनिक/भुतहे ड्रैगन(अजदहा) को लेकर इतराता रहे लेकिन हम वास्तव में 'टाइगर नेशन' हैं। विश्व बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार ने भारत में बाघों को लेकर जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2963 पहुँच गई जो विश्व की 70 प्रतिशत है। यह आँकड़े 2018 की बाघ गणना के निष्कर्ष हैं।

वर्ष 2000 से 2014 का अंतराल बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संकट पूर्ण रहा। 2006 बाघों की संख्या घटकर 1411 हो गई थी। यह वही दौर था जब राजस्थान के सरिस्का और मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था। पन्ना टाइगर रिजर्व में तो 2009 में बाघों का पुनर्वास किया गया।

पन्ना की यह घटना वन्यजीव जगत की अनोखी है, जहां कैपटिव टाइगर को वाइल्ड बनाया गया। आज पन्ना टाइगर  इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है, अलग से सुनने सुनाने लायक। बहरहाल 2014 से बाघ संरक्षण कार्यक्रम ने गति पकड़ा तब 2226 बाघ थे जो चार वर्ष में बढ़कर 2967 हो गए। अब स्थिति यह कि बाघों के लिए जंगल का दायरा ही छोटा पड़ने लगा। बाघों की संख्या 6 प्रतिशत के मान से बढ़ रही है इसके मद्देनजर सरकार को कुछ और टाइगर रिजर्व बनाने की योजना पर विचार करना पड़ रहा है।

बाँधवगढ़ नेशनल पार्क व टाइगर रिजर्व को विश्व की सबसे घनी बाघ आबादी का गौरव बरकरार है। नेशनल जियाग्रफी और डिस्कवरी में दिखने वाला हर दूसरा बाघ यही का है। बाँधवगढ नेशनल पार्क की कोर एरिया और बफर में बाघों की संख्या बढ़कर 124 हो गई है। इधर 2010 तक बाघ विहीन रहे संजय नेशनल पार्क में भी अब 12 से 14 बाघ बताए जाते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा अब छत्तीसगढ़ में गुरुघासीदास नेशनल पार्क के नाम पर है और वहां भी बाघों की अच्छी खासी आबादी बढ़ चुकी है। कान्हा-बाँधवगढ़-पन्ना और संजय नेशनल पार्क में बाघों का कारीडोर प्रस्तावित है लेकिन जरूरत इन्हें तत्काल जोड़ने की है नहीं तो बाघों की बढ़ती आबादी से जल्दी ही एक नया संघर्ष शुरू होने वाला है। जंगल में टेरीटरी बनाने के लिए और गाँवों को उस दायरे में शामिल करने के लिए।

भारत में बाघकथा बड़ी दर्दनाक रही है। सबसे पहले मुगलों ने बाघों के शिकार की परंपरा को नबावी बनाया। फिर अँग्रेजों ने इसे खेल में बदलते हुए गेम सेंचुरी का नाम दे दिया। यह गेम सेंचुरी देसी राजे रजवाड़ों के प्रबंधन में शुरू हुई। आजादी के पहले तक भारत में गेम सेंचुरी का कारोबार 445 करोड़ रु. सालाने का था। विदेशों की टूर एवं ट्रेवेल एजेंसियां इसे संचालित करती थी। राजाओं, इलाकेदारों के लिए यह व्यवसाय की भाँति था। ये शिकार अभियानों के साथ ही बाघ के शिरों की ट्राफी और उसकी खाल, नाखून व हड्डियों का व्यापार करते थे। यह सिलसिला 1972 तक चलता रहा जबतक कि वन्यसंरक्षण कानून अस्तित्व में नहीं आया। शिकार के इसी सिलसिले ने भारत के जंगलों से चीता का वंशनाश कर दिया।

एक बाघ के कटे हुए सिर ने इंदिरा गाँधी को इतना विचलित कर दिया कि जब वे प्रधानमंत्री बनीं तो वन्यजीवों के शिकार के खिलाफ कड़ा कानून बनाया। यह घटना बेहद मर्मस्पर्शी है और इसका एक सिरा रीवा से जुड़ा है इसलिए जानना जरूरी है। पंडित नेहरू को रीवा के महाराज ने एक जवान बाघ के सिर की रक्त रंजित ट्राफी और खाल भेंट की..तो उसे देखकर इंदिरा जी का दिल दहल गया..आँखों में आँसू आ गए.. काश यह आज जंगल में दहाड़ रहा होता..। राजीव गाँधी को लिखे अपने एक पत्र में इंदिरा जी ने यह मार्मिक ब्योरा दिया है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा जी ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट समेत वन से जुड़े सभी कड़े कानून संसद से पास करवाए। राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व, व अभयारण्य एक के बाद एक अधिसूचित करवाए। आज वन व वन्यजीव जो कुछ भी बचे हैं वह इंदिरा जी के महान संकल्प का परिणाम है।

इंदिरा जी का वो मार्मिक पत्र

''हमें तोहफे में एक बड़े बाघ की खाल मिली है. रीवा के महाराजा ने केवल दो महीने पहले इस बाघ का शिकार किया था. खाल, बॉलरूम में पड़ी है. जितनी बार मैं वहां से गुजरती हूं, मुझे गहरी उदासी महसूस होती है. मुझे लगता है कि यहां पड़े होने की जगह यह जंगल में घूम और दहाड़ रहा होता. हमारे बाघ बहुत सुंदर प्राणी हैं....

   -इंदिरा गांधी

(राजीव गांधी को 7 सितंबर 1956 को लिखे पत्र के अंश)"



इंदिरा जी ने वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 बनाया। इसके बाद जब जंगलों का ही नाश होने लगा तो वन संरक्षण कानून 1980 आया। 2002 में वन्य संरक्षण कानून इतना कड़ा कर दिया गया कि आदमी की हत्या से कोई मुजरिम बच भी सकता है लेकिन शिड्यूल्ड प्राणियों की हत्या के आरोपी की जिंदगी जेल में ही कटेगी। नेशनल पार्कों व टाइगर रिजर्व की परियोजनाओं का विस्तार के पीछे भी इंदिरा जी की ही सोच थी। आज देश में 50 से ज्यादा टाइगर रिजर्व हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरों की तर्जपर वन्यप्राणियों के प्रति अपराध रोकने के ब्यूरो और कानून बने। आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि वन्यप्राणियों के संरक्षण के प्रति इंदिरा जी ने ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति न दिखाई होती तो आज हमारे जंगल चीतों की भाँति बाघों से भी विहीन होते।


चित्र सौजन्य: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल


बाघ हमारी संस्कृति के अटूट हिस्से हैं। वे दैवीय हैं और ईश्वर के अवतारी। इन्हें भौतिकवादी प्रगतिशीलों ने कभी इस नजरिए से नहीं देखा। बाघ सनातन से हमारी आस्थाओं में हैं। इसलिए बाघों के प्रति मेरा नजरिया वन्यप्रेमी, प्राणिशास्त्री से अलग हटकर है। अपन को जब भी मौका मिलता है जंगल निकल लेता हूँ। जंगल प्रकृति की पाठशाला है, हर बार कुछ न कुछ सीख मिलती है। जानवर, पेंड़-पौधे, नदी, झरने सभी शिक्षक हैं, बशर्तें उन्हें ध्यान से देखिए, सुनिए समझिए। ये सब उस विराट संस्कृति के हिस्से हैं जो सनातन से चलती चली आ रही है। ये सह अस्तित्व के प्रादर्श थे कभी।

जब से सत्ता व्यवस्था शुरू हुई तभी से जंगल में संघर्ष की स्थिति बनी। समूचा वैदिक वांगमय जंगल में ही रचा गया। इसलिए पशु-पक्षियों की बात कौन करे पेड़-पौधे, नदी,पहाड़, झरने सभी जीवंत पात्र हैं। पुराण कथाओं में वे संवाद भी करते हैं। रामायण, रघुवंश, अभिग्यान शाकुंतलम और भी कई ग्रंथों ने अरण्यसंस्कृति को स्थापित किया। इसके समानांतर एक लोकसंस्कृति की भी धारा फूटी जिसके अवशेष अभी भी वनवासियों के बीच देखने को मिलती है। इस बार के जंगल प्रवास में यही सबकुछ देखा और अंतस से महसूस भी किया।

सात साल पहले कहानी सफेद बाघ की पुस्तक की सामग्री जुटाने के तारतम्य में जंगल से जो रिश्ता बना वो साल दर साल गाढा होता गया। एकांत क्षणों में मैं महसूस करता हूँ कि जंगल मुझे बुला रहा है। जब वहां जाता हूँ तो हर जगह देखकर ऐसा लगता है कि ...हो न हो यह मेरा देखा हुआ..। मेरा ही क्यों हर किसी का यहाँ से जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। जरूरत है श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता की।

सुनने और देखने का तरीका ही हमारी संवेदनाओं का सूचकांक है। जंगलों में पशु पक्षियों के शिकार वाल्मीकि और सिद्धार्थ से पहले भी होते रहे हैं। संवेदना ने वाल्मीकि को आदि कवि बना दिया और सिद्धार्थ को भगवान् गौतमबुद्ध। ईश्वर ने आँख और कान सबको इन्हीं जैसे दिए हैं फिर भी कोटि वर्षों में कोई वाल्मीकि, कौई गौतमबुद्ध पैदा होता है। इसीलिए जंगल प्रकृति की ऐसी पाठशाला हैं जहाँ पढकर मनुष्य भी ईश्वर समतुल्य बनकर निकलता है।

वाणभट्ट ने कादंबरी में जिस विन्ध्याटवी का वर्णन किया है। वही विन्ध्याटवी सफेद बाघों का प्राकृतिक पर्यावास है। इतिहासवेत्ता और वनस्पतिशास्त्री इस क्षेत्र को बाँधवगढ, संजय नेशनल पार्क के साथ  वर्णन जोड़ते हैं। मेरे अध्ययन व भ्रमण का क्षेत्र भी यही रहा। सफेद बाघ मोहन जिसकी संतानें आज दुनियाभर के अजायबघरों में मौजूद हैं, संजय नेशनल पार्क के बस्तुआ बीट के बरगड़ी के जंगल से पकड़ा गया था।

इस जंगल में अभी भी पचास से ज्यादा वन्यग्राम हैं। वहां अब सभ्यता पहुंच गई,बिजली, मोबाइल, जैसी चीजें, फिर भी वनों की लोकसंस्कृति के अवशेष देखने को मिल जाते हैं। पिछले प्रवास में एक घर के भित्तिचित्र ने ध्यान खींचा था,जिसमें हाथी बाघ से हाथ मिलाते हुए चित्रित था। उस घर के मालिक वनवासी भाई से पूछा तो उसके लिए बस यूं ही ऐसी कलाकारी थी,जो उसके पुरखे के जमाने से चलती चली आ रही है। इस बीच संदर्भ के लिए ..प्रो.बेकर की पुस्तक.. बघेलखंड द टाईगर लेयर..पढने को मिली। तो पता चला कि विन्ध्य के जंगल कभी हाथियों की घनी आबादी के लिए जाने जाते थे।

यहां के राजा का हाथियों के बेचने का कारोबार था। सीधी जिले के जिस मडवास रेंज के वन्यग्राम में वो भित्तिचित्र देखा उसी मड़वास के हाथियों के बारे में ..रीवा राज्य का इतिहास..के लेखक गुरू रामप्यारे अग्नीहोत्री ने लिखा कि -"एक बार राजा ने यहां से 30 हाथी पकड़वाए इसके बाद वे यह भूल गए कि इनका करना क्या है परिणाम यह हुआ की तीसों हाथी भूख से तड़प के मर गए थे।" यानी इस जंगल में हाथी और बाघ सहअस्तित्व के साथ रहा करते थे।

भित्तिचित्र का संदेश भी दोनों की दोस्ती की कथा बताता था। इसी क्षेत्र में सात सफेद बाघों के मारे जाने का रिकॉर्ड बाँम्बे जूलाजिकल सोसाइटी की जंगल बुक में दर्ज है। रीमाराज्य की तीन पीढी के राजाओं ने अपने हिस्से के जंगल में तीस साल के भीतर 2 हजार बाघ मारे थे। सरगुजा के राजा के नाम से तो 17 सौ बाघों को मारने का विश्व रेकार्ड कायम है। इन्होंने भी इसी समयकाल में शिकार किए।

सात साल पहले मैं जब इस जंगल में गया था तब एक भी बाघ नहीं थे। हाथी तो इतिहास की बात हैं। इस बार जंगल प्रवास में एक वन्यग्राम के घर में बने भित्तिचित्र ने फिर ध्यान खींचा। गोबर से लीपी हुई भीत पर कोयले के रंग से एक बाघ उसके सामने एक गाय और बीच में बछड़े का चित्र था। यह चकरा देने वाला मामला था। हाथी की दोस्ती तो चलो बराबरी की,पर इस गाय की भला बाघ के सामने क्या बिसात..? पूर्व की भाँति इस बार भी मकान मालिक का जवाब वही-पुरखों के समय से ऐसे ही कुछ न कुछ उरेहते आए हैं।

मेरे स्मृति पटल में कालिदास के रघुवंश की वह कथा आ गई जिसमें राजा दिलीप बाघ से यह निवेदन करते हैं कि गाय की जगह वह उन्हें अपना शिकार बना ले। पर इस भित्तिचित्र के साथ इस कथा का कोई तारतम्य जमा नहीं। उधेड़बुन में माताजी का बहुला चौथ उपवास और वो ब्रतकथा याद आ गई। एक बार वह ब्रतकथा मुझे सुनानी पड़ी थी, क्योंकि पंडित नहीं आए थे।

संक्षेप में कथा कुछ इस तरह थी- जंगल चरने गई गाय से बाघ का सामना हो गया। बाघ शिकार करने ही वाला था कि गाय ने उससे विनती शुरू कर दी,बोली- आज मुझे मत खाओ, घर में मेरा बछड़ा भूखा इंतजार कर रहा होगा, मैं जाकर उसे अपना दूध पिला आऊं फिर मुझे खा लेना। बाघ बोला-तू मुझे बुद्धू बना रही है, क्या गारंटी कि तू लौटके आएगी ही। कातर स्वर से गाय बोली- भैय्या मैं अपने बछड़े की कसम खाती हूँ उसे दूध पिलाने के बाद पल भर भी नहीं रुकूंगी, मेरा विश्वास मानो भैय्या। गाय के मुँह से भैय्या का शब्द बाघ के अंतस को छू गया, फिर भी बाघ तो बाघ। गाय ने फिर अश्रुपूरित स्वरों में कहा-आप जंगल के राजा जब आप ही मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगे तो फिर क्या कहें, अब आपकी मर्जी।

इस बार बाघ कुछ पसीजा बोला- जा बछड़े को दूध पिला आ, पर लौटके आना जरूर। गाय जंगल से भागती, रँभाती गांव पहुंची। बछड़े से कहा चल जल्दी दूध पी ले। बछड़े को संदेह हुआ कि कुछ न कुछ बात जरूर है। वह बोला- माँ ..मेरी कसम,पहले सच सच बताओ क्या बात है तभी थन में मुँह लगाऊंगा। गाय ने बाघ वाली पूरी बात बता दी। बछड़े ने कहा- चिंता की कोई बात नहीं माँ कल सुबह मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। कैसे भी रात बीती। पूरे गांव को गाय और बाघ की बात पता चल गई। वचन से बँधी गाय बाघ की मांद की ओर लंबे डग भरते हुए चल दी। बछड़ा आगे आगे।

बाघ ने दूर से देखा कि गाय तय वक्त से पहले ही आ रही है। जाकर गाय बाघ के सामने स्वयं को शिकार के रूप में प्रस्तुत किया। बछड़ा चौकड़ी भरता बीच में आ गया। बोला- बाघ मामा मुझे खा लो माँ को छोड़ दो, माँ बची रही तो आपके लिए मेरे जैसे शिकार पैदा करती रहेगी। बाघ यह सुनकर सन्न रह गया। उसकी आँखों आँसू आ गए, गाय से बोला-जा बहना जा, भाँन्जे का ख्याल रखना। बाघ ने अभयदान दे दिया। इधर समूचा गांव ताके बैठा था कि क्या होगा..।

गोधूली बेला में जंगल से बछड़े के साथ सही सलामत आती गाय को देखकर सभी की जान में जान आई। घरों में चना जैसे कच्चे अन्न से गाँव वालों का उपवास टूटा। तभी से बहुला चौथ की ब्रत अपनी परंपरा में आया, जिसमें माँ,बहने अपने भाई के कुशलमंगल के लिए यह ब्रत रखती हैंं। गाय बाघ के कुशलमंगल और दीर्घायु के लिए ब्रत रखे..विश्व के किसी विचार दर्शन और कथानक में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

यह है हमारी अरण्यसंस्कृति, हमारी ल़ोकधारा जो जंगल से वन्यजीवों के बीच से फूटती है। वन्यजीव सरकारी सप्ताह के आयोजनों से नहीं बचेंगे। हमारी संस्कृति और परंपरा ही बचा सकती है इन्हें। जंगल को सुनऩे व देखने की श्रवणग्राहिता और दृष्टिक्षमता लानी होगी और वह जंगल के सरकारी कानूनों से नहीं आने वाली।

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Thursday, July 29, 2021

सरकार पर्यावरण को ध्यान में रखकर काम करे : श्रीधर

 

आयोजित प्रेसवार्ता में जानकारी देते हुए इन्विरोनिक्स ट्रस्ट के संचालक राममूर्ति श्रीधर। 

पन्ना। देश में कई हाइवे एवं चार लाईन सड़कें बनाई जा रही लेकिन उन गाँव के लिए पहुँच मार्ग ही नहीं है बर्षात के दिनों में आसपास के गाँव के लोग एक दुसरे से मिल नहीं सकते 7 गाँव में मोबाईल नेटवर्क नहीं रहता किसी भी आपातकालीन स्थिति में लोगों को किसी भी प्रकार की स्वस्थ्य सुविधा का लाभ नहीं मिलता 7 यह बात आज पृथ्वी ट्रस्ट और इन्विरोनिक्स ट्रस्ट के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित पत्रकारवार्ता में राममूर्ति श्रीधर ने कही। इस आयोजन में सबसे पहले स्व युसूफ बेग जी के कामों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। 

प्रेसवार्ता में इन्विरोनिक्स ट्रस्ट के संचालक राममूर्ति श्रीधर द्वारा बताया गया कि विगत पांच दिन पहले केन- वेतवा लिंक परियोजना से प्रभावित होने वाले गाँव पल्कोहाँ, खरीयानी एवं अन्य गाँव जो पन्ना टाइगर रिजर्व के अन्दर हैं, उनका भ्रमण कर लोगों से चर्चा कर स्थिति का आंकलन किया गया। इन ग्रामों की स्थिति बहुत दयनीय है। श्रीधर द्वारा बताया गया कि गाँव के लोगों को उनके स्वयं के खेतों में कृषि कार्य करने को नहीं मिला। लोगों का कहना था कि  टाइगर रिजर्ब वाले कहते हैं कि यह जमीन टाइगर रिजर्ब की है। लोगों द्वारा बताया गया कि शाम छ: बजे के बाद गाँव के अन्दर आने की अनुमति नहीं रहती।  यदि किसी के गाँव पहुँचने से पहले शाम हो जाती है तो उसे 15 किलो मीटर दूर नाका में रात भर रहना पड़ता है। श्रीधर कहते हैं कि सरकार संबिधान को ध्यान में रखकर लोगों को जीवन जीने के मूलभूत हक और अधिकार देने का प्रयास करे। सरकार वनोपज को बढ़ावा दे ताकि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे और लोगों को आजीविका भी मिल सके।  

छतीसगढ़ से आये सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी चौहान द्वारा कहा गया कि सरकारों द्वारा किसी भी प्रकार की परियोजना को लाया जाता है तो सबसे पहले प्रभावित होने वाले गाँव के लोगों से चर्चा कर योजना बनाने की जरुरत है। सरकार समुदाय से चर्चा नहीं करती और कहती है कि  हम गाँव के लोगों के लिए विकास करेंगे। उन्होंने बक्सवाहा का उदहारण देते हुए कहा क़ि सरकार हीरा खनन परियोजना बक्सवाहा में ला रही है। जब हमने क्षेत्र का भ्रमण कर गाँव वालों से चर्चा की तो गाँव वालों का कहना था कि हमे तो कोई भी जानकारी नहीं देता क़ि  हमारे क्षेत्र में क्या हो रहा है और इससे गाँव वालों को क्या फायदा होगा। बक्सवाहा में एक हजार हेक्टर जंगल की जमीन में हीरा खनन परियोजना चालू  होगी जिसमें  लाखों पेड़ों को काटा जाएगा, लेकिन सरकार द्वारा लोगों से कहा जा रहा है कि हम आपके क्षेत्र का विकास करेंगे। सरकार जितना लोगों का विकास करेगी, उतना विकास गाँव के लोगों का अपने जंगल से प्राप्त महुआ, तेंदू पत्ता, अचार, सुखी लकड़ी या अन्य चीजों से पांच साल में हो जाएगा और जंगल भी सुरक्षित रहेगा। पत्रकारवार्ता में पृथ्वी ट्रस्ट एवं इन्विरोनिक्स ट्रस्ट से रजनीश कुमार राजा, समीना युसूफ, रविकांत पाठक बीरेंद्र सीगोत, छत्रसाल पटेल, बिनोद भारती, बबली, कमलाकांत, वैशाली, समीर खान आदि उपस्थित रहे। 

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हृदय विदारक हादसा, जिसने समूचे शहर को रुलाया !

  •  पन्ना जिला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती शारदा पाठक के बड़े बेटे का सड़क हादसे में दुखद निधन
  •  होनहार बेटे के इस तरह जाने से परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल, समूचे जिले में शोक व्याप्त   

अनुराग दीप पाठक जो अब हमारे बीच नहीं है। 

पन्ना। किसी होनहार जवान बेटे की असमय पीड़ादायी मौत कितनी हृदय विदारक होती है, इसका जीवंत अनुभव आज हुआ। हर किसी की आँखें नम थीं और जबान से शब्द नहीं निकल रहे थे। अनवरत बारिश के बावजूद जैसे ही लोगों को सुबह यह खबर मिली कि पन्ना नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष व जिला कांग्रेस पार्टी की मुखिया श्रीमती शारदा पाठक के बड़े पुत्र 35 वर्षीय अनुराग दीप पाठक का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया है। लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा, किसी को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि इस तरह से हादसा हो सकता है। बेहद विनम्र स्वभाव वाले युवक अनुराग दीप से जो कोई भी मिला है, वह उसे जल्दी भुला नहीं पायेगा। 

असमय सबको रोता बिलखता छोड़कर एक खूबसूरत और प्रतिभाशाली नौजवान इस तरह चला जायेगा, इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन हकीकत तो यही है कि पाठक परिवार का यह होनहार बेटा अब हमारे बीच नहीं है। अनुराग दीप के पिता नरेश पाठक ने विलखते हुए बताया कि 15-20 मिनट में ही सब कुछ ख़तम हो गया। आपने बताया कि कल रात वह सकुशल घर में था, गेट में ताला भी लग चुका था। लेकिन न जाने क्यों उसकी पान खाने की इच्छा हुई और वह अपनी मां से बोला कि आपके लिए भी मीठा पान लेता आऊंगा। मैंने उसे रोका भी लेकिन वह चला गया, हमेशा के लिए। अब फिर कभी वापस घर न लौटने के लिए। अपने बेटे को हर पिता प्यार करता है, लेकिन नरेश पाठक बेइंतहा प्यार करते रहे हैं। जब भी मिलते तो बड़े बेटे की जरूर चर्चा करते। आज वह बेटा छोड़कर इस तरह चला गया, अब वे मित्रों से किसकी चर्चा करेंगे। यह इतनी बड़ी विपदा है कि मां - पिता ही नहीं पूरा पाठक परिवार टूट गया है। समूचे शहर व जिले में इस हृदय विदारक हादसे के चलते शोक व्याप्त है। जिले के प्रशासनिक मुखिया कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक भी हादसे की जानकारी होने पर शोक संवेदना प्रकट करने घर पहुंचे।        

घटना पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कई बड़े बीजेपी नेताओं ने शोक जताया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर लिखा है कि पन्ना कांग्रेस पार्टी की जिला अध्यक्ष श्रीमती शारदा पाठक के जेष्ठ पुत्र अनुराग पाठक के निधन की दुखद सूचना मिली है। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वे दिवंगत आत्मा को शांति दें और उनके परिजनों को इस कठिन समय में संबल प्रदान करें। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा है कि पन्ना जिला कांग्रेस पार्टी के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष श्रीमती शारदा पाठक जी के जेष्ठ पुत्र 35 वर्षीय अनुराग जी पाठक का सड़क दुर्घटना में निधन के समाचार सुनकर मुझे बेहद दुख हुआ है। परिवार जनों को हमारी संवेदनाएं ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने ट्वीट कर लिखा है कि पन्ना जिला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती शारदा पाठक के जेष्ठ पुत्र श्री अनुराग जी पाठक के एक सड़क दुर्घटना में निधन का हृदय विदारक समाचार मिला। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें एवं शोकाकुल परिजनों को इस वज्रपात को सहन करने की शक्ति दे। ॐ शांति !

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जंगल में बिना मां के ढाई माह से जीवित हैं बाघ शावक, खुद ही सीख रहे शिकार करने का हुनर

  • बाघ शावकों को जंगल में उनकी मां ही शिकार करना सिखाती है। लेकिन मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में चार अनाथ शावकों की जिंदगी हैरान करने वाली है। हर दिन यहां कुछ न कुछ नया घटित होता है, जो वन अधिकारियों को भी अचंभित कर देता है। 

चारो शावक एकजुट होकर शिकार करके खाते हैं और अपने को बचाये हुए हैं।

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना ( मध्यप्रदेश )। अंतररष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से बेहद दिलचस्प और हैरत में डालने वाली खबर मिली है। यहां 10 माह के चार बाघ शावक जो ढाई माह पूर्व अनाथ हो गए थे, वे खुले जंगल में चुनौतियों और खतरों के बीच न सिर्फ जीवित हैं, बल्कि शिकार करने के अपने प्राकृतिक गुण में खुद ही पारंगत हो रहे हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने इन अनाथ शावकों का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें चारों शावक खुले जंगल में निर्भयता के साथ उछल कूद करते हुए शिकार का भक्षण कर रहे हैं।

गौरतलब है कि इन अनाथ शावकों की मां (बाघिन पी 213-32) ढाई माह पूर्व अज्ञात बीमारी के चलते लगभग 6 वर्ष की उम्र में गुजर चुकी है। तभी से ये चारों शावक जंगल में चुनौतियों और खतरों का सामना करते हुए एक साथ रह रहे हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि कम उम्र (7-8 माह) के इन शावकों की मां 15 मई 21 को जब असमय काल कवलित हुई, उस समय इनको सहारे की जरूरत थी। तब इनके पिता (बाघ पी-243) ने अप्रत्याशित रूप से मां की भूमिका निभाते हुए शावकों को सहारा दिया, उनकी परवरिश की। इस तरह से चारों शावक 75 दिनों से खुले जंगल में न सिर्फ सुरक्षित हैं अपितु अब वे खुद कुशल शिकारी बनने का पाठ सीख रहे हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि शावक 10 माह के हो चुके हैं। शावकों का आकार भी बढ़ा है, इनका वजन 60-70 किलोग्राम के आसपास होगा। आत्मविश्वास से लबरेज ये चारों शावक अब आसान शिकार पर हमला भी करने लगे हैं। क्षेत्र संचालक ने बताया कि खुले जंगल में खतरनाक मांसाहारी वन्य प्राणियों से शावक न सिर्फ अपनी सुरक्षा कर रहे हैं अपितु शिकार करने के हुनर में भी दक्षता हासिल कर रहे हैं। यहां तक का सफर तय करने में शावकों का पिता उनकी मदद करता रहा। लेकिन अब आगे की जिंदगी का सफर शावकों को खुद ही तय करना होगा। इसकी वजह का खुलासा करते हुए आपने बताया कि नर बाघ पी-243 को जीवन संगिनी मिल गई है। अब नर बाघ शावकों के रहवास से काफी दूर  बाघिन पी-652 के साथ नजर आता है।

शावक 14 माह की उम्र तक करने लगते हैं शिकार 

वन अधिकारियों के मुताबिक आमतौर पर बाघ शावक 8 से 10 महीने की उम्र में अपनी मां और भाई बहनों के साथ शिकार करने का कौशल सीखने लगते हैं। इस उम्र में मां मुख्य रूप से अपने शावकों को शिकार करना व खुद की रक्षा करना सिखाती है। लेकिन इन शावकों की मां नहीं है, ऐसी स्थिति में 10 माह के हो चुके इन शावकों को अपने दम पर ही जंगल में जीवित रहने के लिए जरूरी हुनर सीखना होगा।

पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघों से आबाद कराने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने गांव कनेक्शन को बताया कि आनेवाले ढाई- तीन माह काफी महत्वपूर्ण हैं। अनाथ बाघ शावकों को जंगल में ही रख कर उन्हें प्राकृतिक ढंग से रखने के निर्णय की सराहना करते हुए आपने कहा कि अनाथ शावकों को खुले जंगल में रखकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसे सफलतापूर्वक किया जा रहा है। श्री मूर्ति ने बताया कि 14 माह की उम्र तक शावकों के दांत व जबड़ा मजबूत हो जाते हैं, जिससे वे शिकार करने में पूर्णरूपेण सक्षम हो जाते हैं। तब तक शावकों की सघन निगरानी जरूरी है। आपने बताया कि इन शावकों को अपने पिता से कोई खतरा नहीं है, लेकिन अन्य दूसरे बाघों से खतरा बना रहेगा।

 शावकों के पास आता रहता है उनका पिता

शावकों को जंगल में शिकार करने का कौशल सिखाने में उनके पिता नर बाघ पी-243 क्या कोई भूमिका निभाता है ? इस सवाल का जवाब देते हुए क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन सेटेलाइट कॉलर से नर बाघ के मूवमेंट डेटा से पता चलता है कि वह शावकों के पास आता है। नर बाघ को पूरी रात शावकों के साथ रहते भी देखा गया है। पिछले डेढ़ माह के सेटेलाइट डाटा से पता चलता है कि बाघ पी-243 की आवाजाही उसकी अपनी टेरिटरी से बाहर के क्षेत्रों में भी होती है। बाघों के संबंध में यह एक स्थापित तथ्य है कि नर बाघ अपनी टेरिटरी स्थापित करने के बाद जीवनसंगिनी (बाघिन) की खोज करेगा। इसके लिए उसे अपने इलाके से बाहर भी निकलना पड़ेगा। फल स्वरुप नए क्षेत्रों में दूसरे नर बाघों से संघर्ष की स्थिति भी बनती है। नर बाघ पी-243 के मूवमेंट के आंकड़े बताते हैं यह बीते एक माह से बाघिन की तलाश कर रहा है। इस नर बाघ की मुलाकात बाघिन पी213-63 से भी हुई लेकिन करीब आने के बावजूद भी रिश्ता आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद नर बाघ पी-243 को बाघिन पी-652 व पी-653 के क्षेत्रों में भी घूमते हुए देखा गया। दोनों ही बघिनें ढाई साल से अधिक उम्र की हैं तथा अभी तक उन्होंने किसी भी नर बाघ के साथ जोड़ा नहीं बनाया।

शावकों का पिता अब नई बाघिन से बना रहा रिश्ता 


 नर बाघ पी-243 अपनी नई जीवन संगिनी पी-652 के साथ। 

अनाथ शावकों का पिता नर बाघ पी-243 अपने लिए जीवन संगिनी की खोज में जुटा है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि 22 जुलाई को ट्रैकिंग दल ने नर बाघ पी-243 को एक बाघिन के साथ देखा है। बाघ के दोनों कंधों में मामूली चोट के निशान भी नजर आए हैं। जिससे प्रतीत होता है कि बाघिन पर आधिपत्य जमाने को लेकर किसी दूसरे बाघ से इसकी जंग हुई है। दूसरे दिन नर बाघ पी-243 की खोज में जब हाथी दल निकला तो बाघ को बाघिन पी-652 के साथ देखा। जाहिर है कि लड़ाई में बाघ पी-243 ने जीत दर्ज की है नतीजतन बाघिन उसके साथ है। दूसरे नर बाघ जिसके साथ लड़ाई हुई, अभी उसकी पहचान नहीं हो सकी है। इस बाघिन से निकटता बढऩे पर अब बाघ पी-243 शावकों के क्षेत्र में दिखाई नहीं देता। सेटेलाइट डाटा से पता चला है कि 16 जुलाई के बाद से नर बाघ पी-243 शावकों के इलाके में नहीं गया। मौजूदा समय दोनों बाघिन पी-652 और पी-653 अपने इलाके में हैं। लेकिन यहां नर बाघ पी-243 की एंट्री होने के बाद इस बात की संभावना है कि भविष्य में दोनों बाघिनों में से कोई एक शावकों के इलाके में जा सकती है।

चुनौतियों से परिपूर्ण रहेगा आने वाला समय 

चारों अनाथ शावक बिना मां के जंगल में पूरे 75 दिनों तक सुरक्षित रहे, यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा आगे बताते हैं कि शावकों का संघर्ष व उनकी जिंदगी के लिए खतरे अभी कम नहीं हुए। जब तक शावक स्वतंत्र रूप से शिकार करने में सक्षम नहीं हो जाते, तब तक सघन निगरानी जरूरी है। श्री शर्मा कहते हैं कि शावकों की जिंदगी में अब नई तरह की चुनौतियां सामने आएंगी, जिनका उन्हें मुकाबला करना होगा। वे बताते हैं कि  शिकार करने का कौशल व शातिर शिकारियों से अपने को बचाना सीखना होगा। यदि नर बाघ पी-243 जोड़ा बनाकर बाघिन के साथ शावकों के इलाके में आता है तो क्या स्थिति बनेगी ? क्या शावकों के प्रति नर बाघ के व्यवहार में बदलाव आएगा ? क्या नई बाघिन शावकों के लिए खतरा साबित होगी ? इस तरह के अनेकों सवाल हैं, जिनका फिलहाल कोई सटीक जवाब नहीं है। शावकों के साथ-साथ ये नई चुनौतियां पार्क प्रबंधन के लिए भी परीक्षा की घड़ी साबित होंगी। श्री शर्मा बताते हैं कि प्रबंधन इससे वाकिफ है। हर नया दिन अधिक चुनौतियां लेकर आता है, जो हमें सिखाने के साथ-साथ बाघों के व्यवहार को लेकर नई अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है।

वीडियो : चारो शावक एक साथ शिकार का आनंद लेते हुए





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Wednesday, July 28, 2021

आकाशीय बिजली अब एक बड़ी प्राकृतिक आपदा

  • बिजली गिरने की घटनाओं में लगातार हो रहा इजाफा 
  • पिछले साल के मुकाबले में 34 फीसदी की हुई बढ़ोतरी

आकाशीय बिजली की फोटो इंटरनेट से साभार। 

आकाशीय बिजली मध्यप्रदेश ही नहीं अपितु देश व दुनिया में अब एक बड़ी प्राकृतिक आपदा साबित हो रही है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बारिश का दौर शुरू होने के साथ ही पिछले दिनों आकाशीय बिजली ने जिस तरह से कहर ढाया है, वह चिंताजनक है। जिले में महज कुछ घण्टों के दौरान अलग - अलग क्षेत्रों में आकाशीय बिजली गिरने से जहाँ 6 लोगों की मौत हुई, वहीँ 19 लोग घायल हुए हैं। इस तरह बिजली गिरने की ऐसी घटनाओं से बारिस का मौसम खौफनाक हो गया है। जलवायु संकट ने बिजली गिरने को और भी ज्यादा खौफनाक बना दिया है। 

प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीवों पर सतत लिखने वाले "कबीर संजय" ने जंगल कथा में इस प्राकृतिक आपदा की भयावहता पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बिजली गिरने की घटनाओं का जिक्र करते हुए लिखा है कि अभी मुश्किल से पंद्रह दिन बीते होंगे जब आकाशीय बिजली गिरने से उत्तर प्रदेश में पचास से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी। जबकि, राजस्थान में आकाशीय बिजली गिरने से जान गंवाने वालों की संख्या बीस के लगभग रही। इसमें से शायद 12 लोग ऐसे रहे थे, जो आमेर के किले के किसी वॉच टॉवर पर मौजूद थे। कहा जाता है कि वे सेल्फी ले रहे थे या फिर आकाशीय बिजली की फोटो खींच रहे थे। लेकिन, क्षण भर में ही आकाशीय बिजली ने उन्हें झुलसाकर रख दिया। वे अपनी जान से हाथ गंवा बैठे। बिजली गिरने से झुलसकर कई लोग घायल भी हो गए। 

जलवायु संकट ने दुनिया भर में ही आकाशीय बिजली को अब एक बड़ी प्राकृतिक आपदा की तरह स्थापित कर दिया है। खतरनाक बात यह है कि बिजली गिरने की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। दुनिया भर में इसे महसूस किया जा रहा है। पर्यावरण संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के दौरान आकाशीय बिजली की एक करोड़ 38 लाख घटनाएं हुई थीं। जबकि, वर्ष 2020 के मार्च से लेकर 2021 के अप्रैल महीने के बीच आकाशीय बिजली की एक करोड़ 85 लाख घटनाएं हुई हैं। यानी इसमें 34 फीसदी का इजाफा हुआ है। संस्था के मुताबिक साल भर के अंदर 1697 लोगों की मौत आकाशीय बिजली की चपेट में आने के चलते हुई है। पिछले साल की तुलना में आकाशीय बिजली से होने वाली मौत के मामलों में भी 168 फीसदी का इजाफा हुआ है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटा के मुताबिक वर्ष 2012 से वर्ष 2019 के बीच भारत भर में कुल 21 हजार 572 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने के चलते हुई है।

इस वज्रपात का सीधा संबंध दुनिया के तापमान में बढ़ोतरी से है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, आकाशीय बिजली गिरने के मामलों में इजाफा होता है। वर्ष 2015 में प्रकाशित अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक वैश्विक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की औसत बढ़ोतरी के चलते आकाशीय बिजली की घटनाओं में 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। यह एक प्रकार का दुश्चक्र है। जैसे जंगलों की आग से ऐसे बादल बनते हैं जिनसे बिजली गिरती है। फिर बिजली गिरने से आग लग जाती है। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों के एक बड़े हिस्से को ऐसी ही घटनाओं ने झुलसाया है। 

अभी जब कनाडा बेहद असामान्य गर्मियों का सामना कर रहा था। जब उसके वायुमंडल पर गर्मी का एक गुंबद जैसा (हीट डोम) बन गया था, जब वहां के एक गांव लिटन में अधिकतम तापमान 49.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, उस समय केवल एक दिन में आकाशीय बिजली (लाइटनिंग) की सात लाख से ज्यादा घटनाएं हुईं। बिजली गिरना सचमुच बहुत खौफनाक है। 

हमारे जीवन में बिजली गिराने या बिजली गिर जाने का मुहावरा बहुत लोकप्रिय है। कहीं किसी के किसी अदा पर बिजली गिर जाती है तो कहीं पर की बिजली गिराने के मकसद से ही निकल पड़ता है। जाहिर है कि यह बिजली किसी के दिल पर गिरती है। माशूक को देखकर आशिक के दिलों पर बिजली गिरे तो ठीक है, आशिक के बांकपन पर माशूक के दिलों पर बिजली गिरे तो फिर ठीक है, लेकिन किसी के सिर पर सचमुच की बिजली गिरना सचमुच खौफनाक है। लेकिन, क्या किया जाए, ग्लोबल वार्मिंग ने बिजली के खौफनाक जिन्न को पूरी दुनिया में ही बेहद भयावह बना दिया है। 

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Sunday, July 25, 2021

म.प्र. पीएससी की परीक्षा में पूंछे गए पन्ना से सम्बंधित दो प्रश्न

  •  जिले के 12 परीक्षा केन्द्रो में आज आयोजित हुई परीक्षा 
  •  परीक्षा के दौरान पूरे समय सुरक्षा के रहे माकूल इंतजाम 

मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की आयोजित परीक्षा में व्यवस्थाओं का जायजा लेते पुलिस कप्तान। 

।। अरुण सिंह ।।   

पन्ना। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा का आयोजन आज रविवार को जिले के 12 परीक्षा केन्द्रो में चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच संपन्न हुई। इस परीक्षा की विशेष बात यह रही कि प्रश्नपत्र में पन्ना जिले से सम्बंधित दो प्रश्न पूंछे गए थे। इन दोनों ही प्रश्नों का सही जवाब अधिकांश परीक्षार्थियों ने दिया है। पूंछे गए प्रश्नों के सम्बन्ध में कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा ने ट्वीट करते हुए "मेरा पन्ना" टैग किया है। 

कलेक्टर पन्ना द्वारा किया गया ट्वीट। 

पन्ना कलेक्टर ने लिखा है कि आज संपन्न मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा प्रारंभिक परीक्षा में पन्ना से सम्बंधित प्रश्न। फिर उन्होंने पूंछे गए प्रश्न लिखे हैं। प्रश्नपत्र में 63 नंबर का प्रश्न था, निम्न लिखित में से कौन सा खनिज सिर्फ मध्यप्रदेश में पाया जाता है ? विकल्प के रूप में लोहा, अभ्रक, हीरा व तांबा दिया गया था। इसी तरह 66 नंबर का सवाल था कि मध्यप्रदेश का पन्ना जिला किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है ? विकल्प में मैंगनीज, संगमरमर,अभ्रक व हीरा दिया गया था। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में पन्ना जिले से ताल्लुक रखने वाले दो सवाल पूंछे जाने से यहाँ का युवा तपका बेहद उत्साहित और गर्व का अनुभव कर रहा है। परीक्षा के बाद इन दोनों ही सवालों की पन्ना शहर में खासी चर्चा रही।      

उल्लेखनीय है कि परीक्षा को देखते हुए पुलिस अधीक्षक पन्ना  धर्मराज मीना के द्वारा समस्त 12 परीक्षा केन्द्रो में पुलिस बल मुस्तैद कर प्रत्येक परीक्षा केन्द्रों मे जाकर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया गया। इसके साथ ही परीक्षार्थियों को आने -जाने एवं अन्य किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो इस हेतु समस्त परीक्षा केन्द्रो में तैनात पुलिस बल की ब्रीफिंग की गई।   अनुविभागीय अधिकारी पुलिस पन्ना बी.एस. बरीबा ,उप पुलिस अधीक्षक अजाक अभिषेक गौतम, डीएसपी  अजय बाघमारे द्वारा लगातार परीक्षा केन्द्रों का भ्रमण किया गया। यातायात प्रभारी रामदास कनारे के द्वारा पन्ना शहर एवं परीक्षा केन्द्रों के आसपास यातायात व्यवस्था दुरस्त रखी गई। पुलिस अधीक्षक पन्ना के द्वारा एक दिन पूर्व से ही मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करवाने हेतु  समस्त अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) , रक्षित निरीक्षक पन्ना एवं समस्त थाना प्रभारियों की जूम एप के द्वारा मीटिंग ली गई थी , जिसमें पन्ना जिले में  मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के समस्त परीक्षा केन्द्रों मे सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने एवं पुलिस बल को मुस्तैद रखने हेतु निर्देशित किया गया था । परीक्षा केन्द्रो के आसपास भम्रण हेतु 08 पुलिस मोबाईल पार्टिया लगाने एवं पुलिस लाईन मे रिजर्व पार्टी रखने हेतु आदेशित किया गया था । इस प्रकार कङी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा निर्विघ्न संपन्न हुई।

कलेक्टर के ट्वीट पर आ रहीं रोचक प्रतिक्रियाएं 

मध्य प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में पन्ना जिले से संबंधित प्रश्न पूछे जाने पर कलेक्टर पन्ना ने ट्वीट किया था। इस ट्वीट पर ढेर सारी प्रक्रियाएं भी आ रही हैं। जिनमें कुछ प्रतिक्रियायें जहां रोचक व विचारणीय हैं, वहीं ज्यादातर लोगों ने पन्ना के संदर्भ में प्रश्न आने पर खुशी जाहिर की है।

 रमाशंकर ओमरे का कहना है "प्रश्नों तक सीमित रह गया है पन्ना, श्रीमान। रोजगार के क्षेत्र में पीछे, शिक्षा के क्षेत्र में पीछे तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में पीछे। जबकि प्रंजल रंजन अवस्थी कहते हैं "सर हीरा तो पन्ना में वर्षों से मिल रहा है, लेकिन प्रदेश के मानव विकास सूचकांक में यह जिला अत्यंत पिछड़े जिलों में आता है। आज तक इसके विकास की ओर ध्यान नहीं दिया गया।"

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Saturday, July 24, 2021

महिला क्लर्क के घर से 5 लाख 70 हजार की चोरी करने वाले आरोपी गिरफ्तार

  •  दिनदहाड़े हुई चोरी की इस सनसनीखेज वारदात में एक महिला भी शामिल
  •  पन्ना पुलिस ने महिला सहित चार आरोपियों को किया गिरफ्तार, एक फरार  

आयोजित प्रेसवार्ता में वारदात की जानकारी देते हुए पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में दिनदहाड़े चोरी की हुई सनसनीखेज वारदात में शामिल चार आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोपियों में एक महिला भी शामिल है जो इस वारदात की मुख्य सूत्रधार है। एक आरोपी अभी फरार है जिसकी सरगर्मी से तलाश की जा रही है। आरोपियों ने कन्या शाला अमानगंज में क्लर्क के पद पर पदस्थ महिला के घर से बच्चों की फीस के रखे पैसे 5 लाख 70 हजार रुपये उड़ा दिए थे। फीस की यह राशि बैंक में जमा न हो पाने के कारण महिला क्लर्क ने पैसा घर में ही रख दिया था। पुलिस ने आरोपियों से घटना में प्रयुक्त 2 मोटरसाइकिल कीमती करीब 01 लाख 05 हजार रूपये, चोरी गया मशरूका 02लाख 72 हजार एक सौ रूपये नगद एवं चोरी गये मशरूका से खरीदा गया 28 हजार रूपये का मोबाइल एवं आरोपियों द्वारा उपयोग किये जा रहे 03 मोबाइल कीमती करीब 45000 हजार रूपये सहित कुल मशरूका कीमती करीब 04 लाख 50 हजार एक सौ रूपये जप्त किये हैं। 

मामले की जानकारी देते हुए आयोजित प्रेस वार्ता में पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना ने बताया कि घटना दिनांक 16 जुलाई को फरियादिया शीला कोल निवासी कटनी हाल अमानगंज के द्वारा रिपोर्ट की गई कि मैं कन्या शाला अमानगंज में क्लर्क के पद पर पदस्थ हूँ, किराये का मकान लेकर अकेली रहती हूँ। उसके मुताबिक माह जुलाई में बच्चों की फीस 05 लाख 70 हजार रूपये बैंक में जमा करने के लिए मुझे स्कूल से दी गई थी। स्कूल का पैन कार्ड न बन पाने के कारण पैसा बैंक में जमा नहीं हो पाया था। जिसे मैंने अपने किराये के मकान में एक एल्युमिनियम के डिब्बे में रख दिया था। 

महिला क्लर्क जब खाना खाकर कमरे में ताला डालकर स्कूल चली गई, तो दोपहर के समय मोहल्ले में रहने वाले लोगों ने उसे मोबाइल पर जानकारी देते हुये बताया कि तुम्हारे कमरे का दरवाजा टूटा है । यह सुनकर मैं घर आई तो आकर देखा कमरे का दरवाजा टूटा था, अंदर कमरे में रखा एल्युमीनियम का डिब्बा खाली पड़ा था एवं घर का सामान फैला पड़ा था। डिब्बे में रखे 05 लाख 70 हजार रूपये कोई अज्ञात चोर बंद दरवाजे को तोड़कर घर के अंदर घुस कर चुरा ले गया है। फरियादिया की रिपोर्ट पर थाना अमानगंज में अज्ञात आरोपियों के विरूद्ध अप.क्र. 419/21 धारा 454,380 भादवि का कायम किया जाकर विवेचना में लिया गया ।


आरोपियों से बरामद हुई नगदी व जप्त किये गए मोबाईल। 

पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना द्वारा उक्त प्रकरण को गंभीरता से लेते हुये प्रकरण का खुलासा करने एवं आरोपियों की गिरफ्तारी हेतु एक पुलिस टीम गठित की गई। पुलिस टीम द्वारा पुलिस अधीक्षक पन्ना द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन करते हुये अज्ञात आरोपियों की तलाश कस्बा में की गई एवं मुखबिर तंत्र को सक्रिय किया गया। पुलिस सायबर सेल एवं मुखबिर द्वारा जानकारी प्राप्त हुई कि कुछ दिन पूर्व शासकीय कन्या स्कूल में भृत्य के पद कार्यरत महिला के यहाँ उसकी भतीजी आई थी, जिसे उक्त पैसों के बारे में पूरी जानकारी थी।  उसके वापस जाने के बाद ही घटना कारित हुई है जो उक्त वारदात में शामिल हो सकती है। 

 उक्त जानकारी के आधार पर पुलिस टीम द्वारा शाहनगर पहुँचकर संदिग्ध महिला को पुलिस अभिरक्षा में लिया जाकर पूँछताछ की गई। आरोपिया ने बताया कि मैं अपनी मौसी के यहाँ अमानगंज गई थी, मेरी मौसी जिस स्कूल में चपरासी हैं उसी स्कूल में क्लर्क के पद पर कार्यरत शीला कोल भी मेरे मौसी के घर के पास किराये से रहती है। जिनके घर मेरी मौसी का आना-जाना था, मैं भी अपनी मौसी के साथ उनके घर जाती थी। एक दिन मैनें शीला कोल को स्कूल की फीस के रूपये गिनकर डिब्बा में रखते देखा था, जिसके बाद मैं वापस शाहनगर आ गई थी। 

यहाँ पर चार अन्य साथियों को रूपयों के बारे में बताया, इसके बाद मेरे साथियों द्वारा घटना दिनांक को शीला कोल के घर से उक्त रूपये चोरी कर लिये एवं हम लोगों द्वारा पूरा पैसा 05 लाख 70 हजार रूपये आपस में बाँट लिया। आरोपिया के बताये अनुसार मामले के 03 अन्य आरोपियों को पुलिस द्वारा कटनी से गिरफ्तार किया गया है एवं 01 आरोपी फरार है। गिरफ्तार आरोपियों द्वारा घटना कारित करना स्वीकार किया गया है। गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय पेश किया जाकर पुलिस रिमाण्ड में लिया जाकर आरोपियों से पूँछताछ पर अन्य वारदातों के खुलासा होने की संभावना है ।

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आदिवासी बस्ती चांदमारी में नहीं थमा बच्चों की मौत का सिलसिला

  •  हाल ही में यहां हुई थी एक हफ्ते के भीतर तीन मासूमों की मौत 
  •  कथित प्रयासों के बावजूद फिर यहाँ हुआ एक बच्चा काल कवलित 


बुनियादी सुबिधाओं से वंचित जिला मुख्यालय पन्ना से लगी आदिवासी बहुल चांदमारी बस्ती। 

पन्ना। तीन मासूमों की एक हफ्ते के भीतर हुई मौत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आये जिला मुख्यालय पन्ना से लगी ग्राम पंचायत पुरूषोत्तमपुर की चांदमारी बस्ती में मासूमों की असमय मौत का सिलसिला अभी थमा नहीं है। इस बस्ती में रहने वाले सवा दो साल के एक और बच्चे की मौत होने का मामला प्रकाश में आया है। जिससे प्रशासनिक पहल और प्रयासों पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। यहाँ तीन बच्चों की मौत के बाद जिस तरह से प्रशासनिक व राजनैतिक सक्रियता बढ़ी थी उसे देखते हुए ऐसा लगने लगा था कि चांदमारी बस्ती के गरीब आदिवासियों को राहत मिलेगी। कुपोषण के शिकार मासूमों की चिंताजनक स्थिति में भी सुधार आयेगा। लेकिन बस्ती के हालात अभी भी बेहतर नहीं हैं। 

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय से सटी इस आदिवासी बस्ती में तीन मासूम बच्चों की मौत के बाद सरकारी अफसरों सहित प्रदेश शासन के मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह भी यहाँ पहुंचे थे। कई दिनों तक लगातार बस्ती में अधिकारियों का जमावड़ा लगता रहा, बस्ती के लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने स्कूल के सामने लगे हैण्डपम्प में मोटर डाली गई। बस्ती के आदिवासियों की समस्याओं के निराकरण हेतु जिस तरह से प्रयास शुरू हुए और दावे किये गए, उससे तो यही लग रहा था कि अब इस बस्ती के दुर्दिन ख़तम हो जायेंगे। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ, बस्ती में कुपोषित बच्चों की असमय मौत का सिलसिला नहीं थमा। चांदमारी बस्ती में रहने वाले सवा दो साल के एक और मासूम बच्चे की मौत हो जाने से बस्ती में एक बार फिर से मातम का माहौल है, गरीब आदिवासी महिलाएं जिनके छोटे बच्चे हैं वे सहमी हुई हैं। मिली जानकारी के मुताबिक सवा दो साल के मासूम सत्यम आदिवासी पिता अब्बू आदिवासी की मौत कुपोषण के चलते हुई है। 

कुपोषण की वजह से बीमार रहता था बच्चा 

चांदमारी आदिवासी बस्ती में रहने वाले चौथे जिस मासूम बच्चे की मौत हुई है उसकी उम्र दो साल एक माह बताई जा रही है। चांदमारी बस्ती में रहने वाला यह बच्चा कुपोषण की वजह से बीमार रहता था परंतु आंगनवाड़ी केन्द्र के रिकार्ड में कुपोषित होने के बावजूद इस बच्चे की जानकारी कुपोषित बच्चे के रूप में दर्ज नहीं थी। बच्चा कुपोषित है यह तब पता चला जब चांदमारी बस्ती में रहने वाले तीन मासूम बच्चों की एक सप्ताह में मौत का मामला सामनें आया। बच्चो की मौत के बाद प्रशासन एवं सरकार की व्यवस्थाओं पर जब सवाल खड़े हुये तो स्वास्थ्य विभाग तथा महिला बाल विकास विभाग द्वारा यहां पर 4  जुलाई को बच्चों के स्वास्थ्य की जांच के लिये शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में बच्चे सत्यम को दिखाने के लिये जब उसकी मां रेखा लेकर पहुंची तो चिकित्सक द्वारा की गई जांच में बच्चा बीमार पाया गया साथ ही गंभीर रूप से कुपोषित निकला। बालक सत्यम आदिवासी को 4 जुलाई को ही चिकित्सकों द्वारा पोषण पुर्नवास केन्द्र पन्ना में भर्ती करवाया गया। पोषण पुर्नवास केन्द्र में बालक 9 जुलाई तक भर्ती रहा। जब माता पिता को बच्चे की सेहत में सुधार दिखा तो सत्यम के पिता अब्बू आदिवासी के अनुसार वह अपने बच्चे को वहां से झाड़ फूक कराने के लिये ले आये। इसके बाद 17 जुलाई को बच्चा मां के साथ बडगड़ी के समीप हजारा गांव जो कि उसका ननिहाल है, वहां चला गया। जहां शुक्रवार की सुबह उसकी मौत हो गयी। 

 मृत बच्चे का परिवार खाद्य सुरक्षा से वंचित


अपनी झोपड़ी के सामने बैठे मृत बच्चे के माता-पिता। 

भीषण गरीबी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव और कुपोषण यहाँ की मुख्य समस्या है। यदि शासन की योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन हो तो इन समस्याओं का सहजता से निराकरण संभव है। लेकिन योजनायें जब कागजों पर चलें तो मैदानी हकीकत यही होगी जैसी चांदमारी में देखने को मिल रही है।    

मालुम हो कि कुपोषण की रोकथाम के लिये महिला बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से सरकार करोड़ो रूपये खर्च कर रही है, फिर भी हालात क्यों नहीं सुधर रहे यह एक बड़ा सवाल है। बस्ती के कुपोषित बच्चे की पहचान तब हुई जब उसकी उम्र 2 वर्ष 1 माह की हो चुकी थी। आंगनवाड़ी केन्द्र स्तर पर हुई जांच में सत्यम को कुपोषित बच्चो की सूची में शामिल क्यों नही किया गया ? चांदमारी में जिस आदिवासी बच्चे सत्यम की मौत हुई है उसके पिता अब्बू आदिवासी ने अपनी मिट्टी से बनी झोपड़ी को दिखाते हुये बताया कि वह अपने तीन बच्चों तथा पत्नि के साथ इसी झोपड़ी में रहता है। दरवाजे टूट जाने के बाद बड़े भाई जिसका भी एक कमरा है उस घर में परिवार के साथ रह रहा है। इसके बावजूद उसक राशनकार्ड नहीं बना है और कोटे से उसे गल्ला नही मिलता। खाद्य सुरक्षा से वंचित होने के चलते इस गरीब आदिवासी परिवार के बच्चे अक्सर भूखे रहते हैं जिसका परिणाम सामने है। 

इनका कहना है -

पुरूषोत्तमपुर स्थित चांदमारी बस्ती में रहने वाले सत्यम आदिवासी नामक बच्चे की मौत हुई है, उसे 4 जुलाई को पोषण पुर्नवास केन्द्र पन्ना में कुपोषित और बीमार होने की वजह से भर्ती कराया गया था। रात में उसकी मां बच्चे को घर ले आई थी जिसके बाद 5 जुलाई को फिर सुपरवाईजर तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा समझा बुझाकर एनआरसी में भेजा गया। इसके बाद 9 जुलाई को सत्यम की मां उसे फिर वहां से ले आई तथा 17 जुलाई को अपने मायके लेकर उसे चली गई थी, जहां पर बालक सत्यम की मौत हुई। बच्चा कुपोषित और बीमार था।

ऊदल सिंह जिला कार्यक्रम अधिकारी

महिला बाल विकास विभाग पन्ना

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Friday, July 23, 2021

गहरे व सूखे कुएं में गिरा तेंदुआ कैसे निकला बाहर ?

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित सुप्रसिद्ध एनएमडीसी हीरा खदान क्षेत्र के पुराने सूखे कुआं मे बीती रात एक तेंदुआ गिर गया था। यह तेंदुआ 50 फिट गहरे कुंआ से कैसे बाहर निकला, उसे बाहर निकालने का अनूठा तरीका क्या था, यह जानने के लिए पढ़ें यह खबर।

 

हीरा खनन परियोजना स्थित कुंआ की तलहटी में बैठा तेंदुआ।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बिना मुंडेर वाले तकरीबन 50 फीट गहरे सूखे कुआं में यदि कोई वन्य प्राणी गिर जाए, तो उसके घायल होने तथा जिंदगी खतरे में पड़ने की संभावना अधिक रहती है। इन हालातों में यदि वन्य प्राणी बिना किसी जख्म व क्षति के सुरक्षित निकल आए तो निश्चित ही इसे चमत्कार ही कहा जायेगा। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे सुप्रसिद्ध मझगंवा हीरा खनन परियोजना क्षेत्र में स्थित बिना मुंडेर वाले सूखे गहरे कुएं में बीती रात्रि एक तेंदुआ गिर गया था। जिसे 24 घंटे से भी अधिक समय गुजरने के बाद सुरक्षित निकालने में वन अधिकारियों को सफलता मिली है। तेंदुआ के सुरक्षित निकलने पर पार्क प्रबंधन ने राहत की सांस ली है। 

उल्लेखनीय है कि बुधवार व गुरुवार की दरमियानी रात्रि पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल से निकलकर तेंदुआ हीरा खनन परियोजना क्षेत्र में पहुंच गया था। रात के अंधेरे में यह तेंदुआ हीरा खदान के निकट स्थित एक पुराने सूखे कुएं में जा गिरा। कुआं में तेंदुआ के गिरने की खबर 22 जुलाई को सुबह जैसे ही पार्क प्रबंधन को मिली आनन-फानन रेस्क्यू टीम को मौके पर रवाना किया गया। पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता के नेतृत्व में रेस्क्यू टीम ने गहरे कुआं से तेंदुआ को सुरक्षित बाहर निकालने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन दिनभर चले अथक प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिली।

 इस चुनौतीपूर्ण रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा व उप संचालक जरांडे ईश्वर राम हरि भी मौके पर मौजूद रहे। मोटी रस्सियों के सहारे कुआं में चारपाई भी डाली गई, लेकिन यह युक्ति भी काम नहीं आई। तेंदुआ कुआं की तलहटी में काफी देर चहल-कदमी करता और फिर बैठ जाता था। जिससे यह तो साफ नजर आ रहा था कि वह जख्मी नहीं हुआ। आसपास लोगों की मौजूदगी से वह असहज होकर नाराजगी जरूर प्रकट कर रहा था। जब पूरे दिन चले प्रयासों से तेंदुए को बाहर निकालने में सफलता नहीं मिली तो पार्क प्रबंधन ने निहायत देशी व प्राकृतिक तरीका अपनाया और यह युक्ति काम आ गई।

तेंदुआ को निकालने में प्राकृतिक युक्ति आई काम 

 

कुँआ के भीतर डला यूकेलिप्टिस का पेड़ जिसके सहारे तेंदुआ बाहर निकला। 


क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि देर शाम तक जब सारे प्रयास विफल हो गए तो हमने बिल्कुल देसी और प्राकृतिक तरीका अपनाया। कुआं की गहराई के नाप का एक यूकेलिप्टस का पेड़ शाम के समय कुआं के भीतर डालकर मौके से सभी को हटा दिया गया। पूरी रात तेंदुआ कुआं के भीतर ही रहा और जब उसे यह अहसास हुआ कि आस-पास कोई नहीं है तो वह आज सुबह लगभग 5:30 बजे बड़े आराम से पेड़ के सहारे चढ़कर कुएं के बाहर आ गया। श्री शर्मा ने बताया कि तेंदुआ सहजता के साथ वहां से जंगल की तरफ निकल गया है। आपने कहा कि वन क्षेत्र के आसपास बिना मुंडेर वाला कुआं नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसे असुरक्षित कुंओं में वन्य प्राणियों के गिरने की संभावना बनी रहती है।

आबादी क्षेत्र के आस पास रहती है मौजूदगी 

वन अधिकारी बताते हैं कि तेंदुआ एक शातिर शिकारी होने के साथ-साथ पेड़ पर चढ़ने में भी कुशल होता है। उसकी इसी कुशलता को ध्यान में रखकर पीटीआर के अधिकारियों ने कुआं में पेड़ डाला और तेंदुआ बाहर निकल गया। वन अधिकारियों के मुताबिक आमतौर पर तेंदुआ आबादी क्षेत्र के आसपास रहना पसंद करता है। क्योंकि छोटे बछड़े उसके आसान शिकार होते हैं। पन्ना जिले में जंगल से लगे ग्रामों में तेंदुआ अक्सर ही छोटे बछड़ों को अपना शिकार बना लेते हैं। बीते मई के महीने में मझगंवा के निकट स्थित ग्राम जरुआपुर व मनौर में तेंदुए ने बछड़ों का शिकार किया था। आसपास के ग्रामों बडौर, दरेरा, मड़ैयन, हिनौता आदि में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। पीड़ित मवेशी पालकों को होने वाली क्षति का वन विभाग द्वारा मुआवजा दिया जाता है।

वीडियो - तेंदुए को निकालने के वे प्रयास जो विफल हुए 



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Thursday, July 22, 2021

पत्थर खदान : हाड़ तोड़ मेहनत, सिलिकोसिस फिर घुट-घुट कर मौत !

  • गरीब आदिवासी मजदूरों की जिंदगी पत्थर खदानों में छेनी, हथौड़ा और घन चलाते खत्म हो जाती है। सांसों के जरिए लाइलाज बीमारी फेफड़ों में उतरकर उन्हें लाचार बना देती है। कम उम्र में असमय मौत होने से खदान क्षेत्र के ग्रामों में विधवा हो चुकी महिलाओं की भरमार है।

बड़ौर गांव की आदिवासी महिलाएं जिनके पति पत्थर खदानों में काम करते थे, उनकी असमय मौत होने पर अब वे बेसहारा हो गईं हैं। ( सभी फोटो - अरुण सिंह )

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना।  दो जवान बेटों की असमय मौत से बुरी तरह टूट चुके 65 वर्षीय सरदइयां गोंड़ के ऊपर परिवार के भरण-पोषण की जवाबदारी है। जिंदगी से हताश व हर समय गुमसुम रहने वाले सरदइयां ने बताया कि उसके दो जवान बेटों (धनकू 30 वर्ष तथा राजेश 27 वर्ष) को सांस की बीमारी सिलिकोसिस ने लील लिया है। बेटों की मौत के बाद बहुएं घर छोड़कर जा चुकी हैं। अब दो नाती तथा एक नातिन व पत्नी के पालन-पोषण की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। यह दु:खद कहानी मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल बड़ौर गांव की है। पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों के कम उम्र में ही असमय काल कवलित होने से इस गांव में विधवा हो चुकी महिलाओं की भरमार है।

गांव में नए-नए उम्र के न जाने कितने लड़के खत्म हो गये। सरदइयां गोंड बताते हैं कि पत्थर खदान में बमुश्किल 10-15 साल काम करते हैं, फिर बीमार पड़ जाते हैं। एक बार बीमार पड़े तो फिर काम करने लायक नहीं बचते। थोड़ी दूर चलने से ही सांस फूलने लगती है। यह ऐसी बीमारी है कि घुट-घुट कर मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। इसी माह जुलाई में बीते रोज जब हम बडौर गांव पहुंचे तो सुबह लगभग 11 बजे यहां सन्नाटा पसरा था। गांव के गुडयाना मोहल्ला में पुराने इमली के पेड़ की छांव में सरदइयां गुमसुम बैठा हुआ था। गांव की गलियों में इक्के-दुक्के मवेशी व छोटे बच्चे नजर आ रहे थे।

सरदइयां गोंड़ जिनके दो कम उम्र के जवान बेटों को सिलिकोसिस ने छीन लिया।

पेड़ के नीचे छांव में हमने अपनी बाइक खड़ी कर सरदइयां से बातचीत शुरू की। इस बीच खांसते हुए बडौर के ही निवासी प्यारेलाल साहू 60 वर्ष आ गए। सरदइयां गोंड़ ने बताया कि गांव में 50 से भी ज्यादा विधवा महिलाएं हैं, इनमें कई महिलाएं कम उम्र की भी हैं। प्यारेलाल साहू जो खुद सिलकोसिस से पीड़ित हैं, उन्होंने बताया कि पन्ना में ना तो जांच की कोई व्यवस्था है और ना ही इलाज की। यहां डॉक्टर बीमार पडऩे पर टीबी (क्षय रोग ) बता देते हैं और टीबी का ही इलाज चलता है। पिछले माह 20 जून को सिलिकोसिस पीड़ित बडौर गांव के ही सुखनंदी गोंड़ 58 वर्ष की मौत हुई है।

प्यारे लाल ने बताया कि एक साल के भीतर एक ही परिवार के तीन सगे भाई मुन्ना गोंड़ 35 वर्ष, बलमू गोंड़ 25 वर्ष तथा मुलायम गोंड़ 30 वर्ष खत्म हुए हैं। तीनों पत्थर की खदानों में काम करते थे। बीमारी के चलते अत्यधिक कमजोर हो चुके प्यारेलाल ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि अब वह मेहनत का कोई काम नहीं कर सकता। उसके दो बेटे हैं जो अलग रहते हैं। मेरे साथ पत्नी व एक अंधी बहन है, जिनका भरण-पोषण गुटका व बीड़ी बेचकर किसी तरह करता हूं।

पत्थर खदान मजदूरों व कुपोषण पर काम करने वाली समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट के रविकांत पाठक बताते हैं कि संस्था के पूर्व संचालक यूसुफ बेग जिनका कोरोना संक्रमण के चलते बीते माह निधन हो गया है। उनकी पहल व प्रयासों से 2010 में इन्विरोनिक्स ट्रस्ट दिल्ली ने पन्ना के पत्थर खदानों में काम करने वाले 43 मजदूरों की जांच केम्प लगा कर करवाई थी, जिनमें 39 मजदूर सिलिकोसिस पीड़ित पाए गए थे। फिर पत्थर खदान मजदूर संघ की पहल से वर्ष 2012 में 104 मजदूरों की जाँच कराई गई, उसके बाद से किसी भी मजदूर की सिलिकोसिस जाँच नहीं हुई। दो जाँच कैम्पों में जिले के 122 मजदूरों में सिलिकोसिस की पुष्टि हुई थी। आपने बताया कि पन्ना जिले के ग्राम बडौर, पन्ना, मडैयन, दरेरा, मनौर, माझा, गॉधीग्राम, सुनारा, जनकपुर, तिलगवॉ, खजरी कुडार, कल्याणपुर, पुरूषोत्तमपुर, मानशनगर, जरधोबा, मनकी, जरूआपुर, पटी, जमुनहाई में सिलीकोसिस पीड़ित मरीज पाए गए हैं।

बडौर गांव में थीं पत्थर की कई खदानें

दो दशक पूर्व तक बडौर गांव में पत्थर की कई बड़ी खदानें थीं, जिनमें 5 से 7 हजार मजदूर काम किया करते थे। वन संरक्षण अधिनियम के चलते अब यहां की पत्थर खदानें बंद हैं। लेकिन जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस का साया इस गांव में आज भी मंडरा रहा है। प्यारे लाल साहू ने बताया कि वे लोग बडौर की खदानों में वर्षों काम किया है, जिससे उन्हें सिलिकोसिस हुआ। गांव के लोग अब पत्थर खदानों में काम करते हैं या नहीं, यह पूछे जाने पर सरदइयां गोंड़ ने बताया कि यहां के लोग अच्छे कारीगर हैं। पत्थर को काटकर उनकी चीपें बनाने में यहां के लोगों को महारत हासिल है। चूंकि दूसरा कोई काम नहीं जानते इसलिए आज भी अनेकों लोग पत्थर खदानों में ही काम करते हैं। खनिज अधिकारी पन्ना रवि पटेल ने बताया कि जिले में 106 पत्थर की खदानें स्वीकृत हैं। 

पन्ना जिले के कुटरहिया पहाड़ स्थित पत्थर की एक खदान में काम करता मजदूर।  ( फाइल फोटो )

प्यारेलाल बताते हैं कि गांव में काम नहीं मिलता, इसलिए जवान लड़के या तो महानगरों की ओर पलायन कर जाते हैं या फिर पवई क्षेत्र के कुटरहिया पहाड़ की पत्थर खदानों में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव के 30-35 मजदूर पत्थर खदानों में आज भी काम कर रहे हैं। ये लोग वहीं खदान में ही रहते हैं और महीना दो महीना में घर आते हैं। गांव में ज्यादातर बुजुर्ग, बच्चे व महिलाएं ही रहती हैं।

गांव में 50 से अधिक विधवायें, 22 को मिल रही पेंशन


बडौर गांव में ऐसी कई विधवा महिलाएं हैं जिन्हे अभी विधवा पेंशन भी नहीं मिल रही। 

सरदइयां गोंड़ की मदद से गांव की कुछ विधवा महिलाओं को बुलाया गया, तो वे भी पेड़ की छांव के नीचे आकर बैठ गईं। चर्चा करने पर कस्तूरा बाई 60 वर्ष ने बताया कि उसके आदमी श्यामलिया गोंड़ 62 वर्ष की पिछले साल मौत हुई है। वे पहले बडौर की खदान में काम करते थे, फिर बीमार हो गए। पूरे 20 साल तक टीबी का इलाज चलता रहा, पर ठीक नहीं हुए। कस्तूरा बाई ने बताया कि उसके दो लड़के और दो लड़कियां हैं। लड़कियों की शादी हो चुकी है तथा एक लड़का पत्थर खदान में काम करता है। दूसरे लड़के को जहां काम मिल गया वहां जाकर मजदूरी करता है। कस्तूरा बाई ने बताया कि उसे शासन से 3 लाख रुपये की सहायता भी मिली है, जिससे बीमारी में जो कर्ज लिया था उसे चुकाया है।

मेरे अलावा गांव की दो अन्य विधवा महिलाओं धन्नी बाई व मुलिया बाई को भी राशि मिली है। कस्तूरा बाई बताती है कि गांव की अन्य विधवा महिलाओं को सहायता राशि नहीं मिली। वजह पूछे जाने पर बताया गया कि चूंकि मृतकों की जांच नहीं हुई, इसलिए सिलकोसिस पीड़ितों की सूची में उनका नाम शामिल नहीं हुआ। यही वजह है कि मृतकों की विधवाओं को सहायता राशि नहीं मिली। ग्राम पंचायत बडौर के सरपंच रूप सिंह यादव ने बताया कि बडौर पंचायत के अंतर्गत उमरावन, मड़ैयन व कैमासन गांव भी आते हैं। आपने बताया कि अकेले बडौर में 22 विधवा महिलाओं को 600 रुपये प्रतिमाह विधवा पेंशन दी जा रही है।

पड़ोसी गांव मनौर के भी हैं बडौर जैसे हालात


सात बच्चों की मां 38 वर्षीय रामकुमारी, जिसकी गोद में कुपोषित बच्ची 3 वर्षीय प्रियंका है।

पन्ना जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर स्थित मनौर गांव के गुडय़िाना टोला के हालात भी बडौर जैसे ही हैं। इस गांव में भी कई लोगों की मौत सिलिकोसिस से हुई है। तकरीबन ढाई सौ घरों वाली इस आदिवासी बस्ती में भी 30 से अधिक विधवा महिलाएं हैं। भीषण गरीबी, कुपोषण व बेरोजगारी इस गांव की सबसे बड़ी समस्या है। मनौर गांव के गुडय़िाना टोला में जैसे ही हम पहुंचे, एक महिला अपने घर के सामने बेहद कमजोर बच्ची को गोद में लिए खड़ी थी। हम महिला के पास पहुंचे जिसका नाम राजकुमारी गोंड़ (38 वर्ष) है। इस महिला ने बताया कि उसके सात बच्चे हैं, सबसे बड़ा लड़का 18 वर्ष का चंद्रभान व सबसे छोटी यह बच्ची प्रियंका 3 वर्ष है। रामकुमारी ने बताया कि प्रियंका शुरू से ही कमजोर थी, जिसे पिछले साल अस्पताल में भर्ती भी किया था। गांव में प्रियंका अकेली कुपोषित नहीं है। इस तरह के अन्य कई बच्चे भी हैं जो कुपोषण का शिकार हैं।

मनौर गांव के गुडय़ाना टोला के पास ईट के भट्टे जहां बीते माह तक आदिवासी मजदूरी करते रहे हैं। लेकिन अब बारिश में यहां काम बंद है।

वहीं पास ही चबूतरे में बैठे गुन्नू आदिवासी ने बताया कि एक माह पहले तक ईट भट्ठा में काम मिल जाता था, लेकिन अब बारिश में काम बंद है इसलिए घर बैठे हैं। मनरेगा के भी काम नहीं चल रहे, ज्यादातर मशीनों से काम करा लिया जाता है। काम न मिलने के कारण गांव के ज्यादातर लोग दिल्ली, राजस्थान व जम्मू चले जाते हैं। पूरे 4 माह बाहर रहकर कमाएंगे इसके बाद वापस घर लौटेंगे। गांव की महिलाएं जंगल से लकड़ी का गट्ठा लाकर शहर में बेचने जाती हैं, जिससे उन्हें सौ डेढ़ सौ रुपए मिल जाता है। इसी से ही परिवार का गुजारा चलता है।

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Wednesday, July 21, 2021

चरवाहे को मौत के घाट उतारने वाले भालू की भी हुई मौत

  •  मंगलवार की शाम जंगल में भालू ने किया था हमला
  •  बुधवार को दोपहर उसी इलाके में मृत पड़ा मिला भालू 


भालू की सांकेतिक फाइल फोटो


।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। जंगल में एक चरवाहे के ऊपर हमला कर मंगलवार की शाम उसे मौत के घाट उतारने वाले भालू की भी संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई है। भालू की अचानक इस तरह से मौत कैसे व क्यों हुई, यह अभी रहस्य है। मामला मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत गंगऊ अभ्यारण्य के बगौंहा बीट का है। मामले की खबर मिलते ही पार्क के अधिकारी व रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंच गई है।

 उल्लेखनीय है कि गत 20 जुलाई मंगलवार को सायं बगौंहा बीट के जंगल में भालू ने 55 वर्षीय चरवाहे हरदास अहिरवार के ऊपर उस समय हमला कर दिया था, जब वह अपनी भैंस को ढूंढते हुए अकेले ही जंगल में चला गया था। इस हमले में चरवाहे की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। आज सुबह ही मृतक का पोस्टमार्टम हुआ और उसके कुछ घंटे बाद ही यह चौंकाने वाली खबर मिली कि हमलावर भालू की भी मौत हो गई है।

 इस संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा से संपर्क किए जाने पर उन्होंने बताया कि दोपहर लगभग 12:30 बजे जंगल के उसी इलाके में भालू का शव मिला है, जिससे यह प्रतीत होता है कि यह वही भालू है जिसने चरवाहे के ऊपर हमला किया था। भालू की अचानक इस तरह से मौत क्यों हुई ? इस सवाल के जवाब में क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने कहा कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। पोस्टमार्टम होने के बाद ही पता चलेगा की मौत की असल वजह क्या है।

फील्ड में मौजूद वन कर्मियों के मुताबिक हमला करने वाले भालू की जंगल में सर्चिंग की जा रही थी। सर्चिंग के दौरान भालू ने वन कर्मियों के वाहन की तरफ  आक्रामक ढंग से दौड़ा था। इसके कुछ देर बाद ही भालू गिर गया और उसकी मौत हो गई। इस मामले में कुछ जानकारों से चर्चा करने पर उन्होंने लक्षणों के आधार पर यह आशंका जताई है कि भालू की मौत रैबीज के संक्रमण से संभावित है। मालूम हो कि रैबीज से संक्रमित जानवर आक्रामक हो जाता है तथा सामने जो भी आता है उसके ऊपर हमला कर देता है। मृत भालू का व्यवहार कल से कुछ ऐसा ही देखा गया है।

रेबीज संक्रमित जानवरों के बारे में यह बताया जाता है कि संक्रमित जानवर की अधिकतम 10 दिनों में मौत हो जाती है। रैबीज सहित बाघों में फैलने वाली घातक बीमारी केनाइन डिस्टेंपर की रोकथाम के लिए रिजर्व क्षेत्र के आसपास स्थित ग्रामों के आवारा कुत्तों का वैक्सीनेशन किया जाता है। इस वैक्सीनेशन से कैनाइन डिस्टेंपर सहित सात अन्य बीमारियां जिसमें रैबीज भी शामिल है, उनसे वन्य प्राणियों का बचाव होता है। यदि भालू की मौत रैबीज से हुई है तो निश्चित ही यह पार्क प्रबंधन के लिए चिन्ता की बात है। सच्चाई क्या है यह पोस्टमार्टम के बाद ही पता चलेगा।

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जंगल में भैंस ढूंढने गए चरवाहे पर भालू ने किया हमला, हुई मौत

  •  पन्ना टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत गंगऊ अभ्यारण्य के बगौंहा बीट की घटना 
  •  हमलावर भालू को वनकर्मियों व ग्रामीणों ने घटना स्थल के निकट देखा 

घटना स्थल पर मृतक का शव, यहीं पर भालू ने किया था हमला।  

।। अरुण सिंह।।    

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व अंतर्गत गंगऊ अभ्यारण्य के बगौंहा बीट में मंगलवार को सायं भालू ने एक चरवाहे के ऊपर जानलेवा हमला किया है, जिससे उसकी मौत हो गई। हमले की यह घटना गंगऊ अभ्यारण के अंतर्गत बीट बगौंहा के कक्ष क्रमांक पी 248 में उस समय हुई जब बगौंहा निवासी 55 वर्षीय हरदास अहिरवार अपनी गाभिन भैंस को ढूंढने जंगल में अकेला गया हुआ था। 

देर शाम तक जब हरदास वापस घर नहीं लौटा तो परिजन चिंतित हुए और उसकी तलाश शुरू हुई। तलाशी के दौरान बीट बगौंहा के कक्ष क्रमांक पी 248 में शिवराज नाला के निकट जंगल में चरवाहे का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ। इस हालत में चरवाहे का शव मिलने पर यह अफवाह उड़ गई कि बाघ ने हरदास अहिरवार को खा लिया है। घटना की खबर मिलते ही वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मौके पर पहुँच गए तथा घटना स्थल का जायजा लेने तथा मृतक के शव का परीक्षण करने के उपरांत बाघ के हमले को शिरे से नकारते हुए बताया कि यह हमला भालू ने किया है।   

 क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने रात्रि में ही घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि चरवाहे का शव जंगल में मिला है। हमले की प्रकृति को देखते हुए प्रथम दृष्टया यही लगता है कि हमला भालू ने किया है। बताया गया है कि ग्राम बगौंहा निवासी 55 वर्षीय हर दास अहिरवार अपनी भैंसों को ढूंढने के लिए जंगल में अकेले गया था। फलस्वरूप उसका आमना-सामना भालू से हो गया। उसके वापस घर न लौटने पर परिजनों ने जब सायं उसकी तलाश शुरू की तो जंगल में मृतक का क्षत-विक्षत शव मिला। 

मामले की जानकारी देते हुए वन परिक्षेत्राधिकारी आर.ए. श्रीवास्तव ने बताया कि कोर क्षेत्र के घने जंगल में मवेशी चराना प्रतिबंधित है, फिर भी ग्रामीण मवेशी चराने पहुँच जाते हैं। यह लापरवाही जानलेवा साबित होती है। हरदास के साथ भी ऐसा ही हुआ, वह जंगल में अकेले ही घुस गया जहाँ उसका सामना भालू से हो गया और यह दु:खद घटना हुई। रेंजर श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक के शव को मंगलवार की शाम जब ट्रैक्टर से गांव लाया जा रहा था तो घटना स्थल के पास ही जंगल में हमलावर भालू नजर आया है। आपने बताया कि मृतक के शव को रात्रि में ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। बुद्धवार को पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया जायेगा। मामले पर पार्क प्रबंधन द्वारा नियमानुसार कार्यवाही की जा रही है। 

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Tuesday, July 20, 2021

हीरा कारीगरों को रोजगार उपलब्ध कराने पन्ना में खुलेगा डायमण्ड पार्क


पन्ना में डायमण्ड पार्क स्थापित करने संबंधी बैठक में चर्चा करते कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा। 

पन्ना । मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में यहाँ के हीरा कारीगरों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने डायमण्ड पार्क की स्थापना होगी। कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में आज जिले के हीरा कारीगरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिये डायमण्ड पार्क स्थापित करने संबंधी प्रारम्भिक बैठक आयोजित की गई। बैठक में हीरा व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों द्वारा डायमण्ड पार्क स्थापित करने संबंधी सुझाव दिये गये।

बैठक में बताया गया कि वर्तमान में हीरा व्यवसाय में बहुत बड़ा बदलाव आया है। अब इस व्यवसाय को संचालित करने के लिये आधुनिक मशीने, सर्टिफिकेशन यूनिट आदि की आवश्यकता होती है। अब इसके लिये डायमण्ड पार्क को आधुनिक मशीनों के साथ स्थापित करने पर ही सफलता मिल सकेगी। इसके लिये अधोसंरचना विकास के साथ ट्रेडिंग सेन्टर, बैलेंस मशीन यूनिट, हीरा कटिंग-पॉलसिंग, अभूषण बनाने आदि के लिये बडे-बडे हॉल की आवश्यकता होगी। इसके अलावा एक सो-रूम स्थापित करना होगा। डायमण्ड पार्क में विद्युत, पेयजल, सुरक्षा, पार्किंग स्थल व्यवस्थित पहुंच मार्क की आवश्यकता पेट्रोल पम्प के अलावा बाहर से आने वाले व्यवसायियों के ठेहरने आदि की व्यवस्था करनी होगी।

कलेक्टर श्री मिश्रा ने बैठक में उपस्थित हीरा व्यवसायियों को बताया कि पन्ना वर्तमान में आवागमन के विभिन्न साधनों से जुड़ गया है। पड़ोसी जिले छतरपुर के खजुराहो में रेल लाईन, हवाई अड्डा होने के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग से जुुड़ गया है। वहीं थोडे ही दिनों में पन्ना का सकरिया हवाई अड्डा बनकर तैयार हो जायेगा। अगामी समय में पन्ना तक रेलवे लाईन पहुंचने वाली है। इसलिए पन्ना में डायमण्ड पार्क स्थापित कर यहॉ के उत्पादित हीरे के अभूषण तैयार कर विक्रय करने का कार्य सफलता पूर्वक किया जा सकता है। यहॉ के हीरा कारोवारियों को काम की तलाश में महानगरों की ओर नही जाना पड़ेगा। उन्होंने हीरा व्यवसायिओं से कहा कि डायमण्ड पार्क के साथ सर्वसुविधा युक्त कॉलोनी का निर्माण कराने के साथ पांच सितारा होटल के अलावा हीरा व्यवसायियों के लिये सभी तरह की सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये अधोसंरचना विकास किया जाना होगा। इसके लिये स्थानीय व्यवसायी उपयुक्त भूमि की जानकारी दें। जिससे अगामी आने वाले समय में डायमण्ड पार्क का कार्य प्रारम्भ किया जा सकें।

मंगलवार को सम्पन्न हुई इस बैठक में महाप्रबंधक उद्योग, क्षेत्रीय प्रबंधक एम.पी.आई.डी.सी., अध्यक्ष हीरा व्यवसायी संघ  श्रीनिवास रिछारिया,  सतेन्द्र जड़िया सचिव, लोकेश गुप्ता सदस्थ,  शरद कुमार जैन कोषाध्यक्ष,  पी.एन. अहिरवार महाप्रबंधक तथा कुलदीप चौरहा सहायक संचालक उद्योग विभाग उपस्थित रहे।

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दुर्लभ कछुओं और पेंगोलिन के 13 तस्करों को सात साल की सजा

दुर्लभ प्रजाति वाला रेड क्राऊंड टर्टल (लाल तिलकधारी) कछुआ। 

मध्यप्रदेश के सागर जिले की अदालत ने रेड क्राऊंड टर्टल (लाल तिलकधारी कछुओं) और पेंगोलिन की तस्करी करने वाले अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह के 13 सदस्यों को सात वर्ष कैद की सजा सुनाई है। मुख्य आरोपी चेन्नई के वनी मन्नन पर सजा के साथ पांच लाख रु का जुर्माना भी लगाया है। 

 लाल तिलकधारी कछुए की प्रजाति चंबल नदी में पाई जाती है और वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस प्रजाति के लगभग नौ सौ कछुए ही जीवित बचे हैं। मप्र के फारेस्ट विभाग ने इन कछुओं की संख्या बढ़ाने के लिए दो प्रजनन केंद्र खोले हैं। कोलकाता व चेन्नई के तस्कर मुरैना के पास देवरी ईको सेंटर स्थित ब्रीडिंग सेंटर के कर्मचारियों की साठगांठ से नेटवर्क बना कर यहां से दुर्लभ कछुओं की तस्करी करा रहे थे। तस्कर गिरोह इन सरकारी केद्रों से 50 हजार प्रति नग की दर से कछुए हासिल करता था और साढ़े तीन लाख रु प्रति कछुए की दर से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचता था। इनको कोलकाता और मद्रास के एयरपोर्ट से विदेशी बाजारों में भेजा जाता था। पेंगोलिन के शल्कों को भी ये तस्कर एमपी और यूपी के इलाकों से खरीद कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहे थे।

प्रथम श्रेणी न्यायाधीश विवेक पाठक की अदालत में साढ़े तीन साल चले इस मुकदमे के बाद आरोपी मन्नीवन्नन मुरूगेशन निवासी चेन्नई को धारा 51(1)क वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 7 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5 लाख के अर्थदण्ड से,  आरोपी थमीम अंसारी निवासी चेन्नई, तपस बसाक, सुशीलदास उर्फ खोखा, मो. इरफान, मो. इकरार निवासी कोलकाता, रामसिंह उर्फ भोला, अजय सिंह निवासी आगरा, को धारा 51(1)क वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में दोषी पाते हुए सभी अरोपियों को सात वर्ष के सश्रम कारावास एवं पचास हजार रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया गया। आरोपीगण आजाद, संपतिया बाथम, कमल बाथम, विजय गौड़, कैलाशी उर्फ चच्चा निवासी मैनपुरी उ.प्र. को सात वर्ष सश्रम कारावास तथा बीस रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया गया।

मुकदमे की खासियत यह रही कि इसमें गिरफ्तार हुए किसी भी आरोपी को जमानत तक नहीं मिल सकी। आरोपियों की अपीलें सात बार हाईकोर्ट और एक बार सुप्रीम कोर्ट से निरस्त हुई। इससे भारतीय न्यायपालिका और भारत के वन एवं पर्यावरण विभागों की दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कड़ी प्रतिबद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है। एमपी के  राज्यस्तरीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स भोपाल द्वारा क्षेत्रीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स सागर के साथ मिलकर एक जांच दल कर गठन किया गया था। 05.05.2017 को ग्राम मौगियापुरा वन परिक्षेत्र सबलगढ़ में इस टीम ने प्रकरण के मृत आरोपी नन्दलाल के घर पर दविश देकर पैंगोलिन के शल्क बरामद किए थे।

एमपी की टीम द्वारा यूपी एसटीएफ से मदद मांगे जाने पर इस मामले की विवेचना लखनऊ, आगरा और फैजाबाद तक चली और अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह के जाल की कलई खुलती चली गई। एएसपी डा अरविंद चतुर्वेदी ने तस्करों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए कोलकाता और चेन्नई पुलिस की भी मदद ली।

पेंगोलिन

यूपी एसटीएफ ने मध्य प्रदेश वन विभाग के अफसरों की मदद से दुर्लभ प्रजाति के तिलकधारी कछुओं के अंतर्राष्ट्रीय तस्कर इरफान को लखनऊ से गिरफ्तार किया था। इरफान सागर में दर्ज मुकदमे में वांछित था और फैजाबाद में एक शादी में शामिल होने के बाद वह लखनऊ आया था जहां एसटीएफ ने उसे गिरफ्तार कर लिया। मार्च 2017 में अजयसिंह नामक तस्कर की गिरफ्तारी हुई थी। एमपी एसटीएफ को अजयसिंह ने पूछताछ में इरफान के बारे में बताया। तब से एमपी एसटीएफ (फॉरेस्ट) उसे तलाश रही थी। इस बीच उसके लखनऊ के विभूतिखंड में होने की सूचना मिली। एमपी एसटीएफ और यूपी एसटीएफ ने छापेमारी कर इमरान को रंजीश होटल के पास से गिरफ्तार कर लिया। इरफान मूलरूप से कोलकाता के इकबालपुर का रहने वाला है। चेन्नई निवासी विनोद ने इरफान को फुफेरे भाई शम्भू, मनीवारन और मनीवन्नन से मिलवाया था। 

आरोपियों को सजा दिलाने में सागर के फारेस्ट डिपार्टमेंट की अभियोजन अधिकारी डा सुधा भदौरिया के परिश्रम और ईमानदारी की तारीफ की जाना चाहिए। यह पूरा मामला हाईप्रोफाइल था। धन और रसूख के असर में आए बगैर आरोपियों को विवेचकों और अभियोजन पक्ष ने उनके अंजाम तक पहुंचाया। फारेस्ट विभाग ने इस संवेदनशील मामले में लिप्त अपने किन अधिकारियों व कर्मचारियों को आरोपी बनाया या बर्खास्त किया इसका खुलासा भी विभाग को करना चाहिए।

(रजनीश जैन की फेसबुक वॉल से साभार)

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Monday, July 19, 2021

बच्चों के स्कूल आने के लिए पालकों की सहमति आवश्यक : मुख्यमंत्री

  • स्कूल आरंभ करने का निर्णय क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटियाँ लेंगी
  • मुख्यमंत्री ने की कोरोना की स्थिति व आगामी तैयारियों की समीक्षा

कोरोना नियंत्रण के संबंध में आयोजित बैठक में दिशा निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह। 

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि 26 जुलाई से कक्षा 11वीं और 12वीं के लिए स्कूल आरंभ करने के संबंध में अंतिम निर्णय क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटियाँ लेंगी। जिन जिलों में कोरोना वायरस का एक भी प्रकरण नहीं है, वहाँ शाला संचालन आरंभ किया जा सकता है। परंतु इस संबंध में क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी, जिले के प्रभारी मंत्री, जिला कलेक्टर आपसी विचार-विमर्श कर लोगों को विश्वास में लेकर शालाओं का संचालन आरंभ करें। बिना पालक की अनुमति के बच्चों को स्कूल नहीं बुलाए। बच्चों के स्कूल आने के लिए पालकों की सहमति आवश्यक होगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान मंत्रालय में कोरोना नियंत्रण के संबंध में बैठक को संबोधित कर रहे थे। चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री विश्वास सारंग, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी, मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस, अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य श्री मोहम्मद सुलेमान, पुलिस महानिदेशक श्री विवेक जौहरी बैठक में उपस्थित थे। सभी जिलों के प्रभारी मंत्री तथा प्रभारी अधिकारियों ने बैठक में वर्चुअली सहभागिता की।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि 50 प्रतिशत क्षमता के साथ कक्षा 11वीं और 12वीं का संचालन 26 जुलाई से आरंभ किया जाए। आरंभ में प्रयोगात्मक रूप से एक-एक दिन शाला लगाई जाए। अगस्त माह के पहले सप्ताह से 50 प्रतिशत क्षमता के साथ दो-दो दिन कक्षाएँ लगाई जाएँ। कक्षा के 50 प्रतिशत विद्यार्थी पहले दो दिन और शेष 50 प्रतिशत अगले दो दिन आएँ। इस प्रकार एक सप्ताह में चार दिन ही स्कूल लगेंगे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि कक्षा में एक कुर्सी छोड़कर बैठना, मास्क लगाना, सेनेटाइजर का उपयोग और कोरोना अनुकूल व्यवहार का शत-प्रतिशत पालन आवश्यक होगा।

रेस्टोरेंट अब रात 11 बजे तक खोले जा सकेंगे

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि रेस्टोरेंट अब रात 11 बजे तक खोले जा सकेंगे। रात 11 से प्रात: 6 बजे का कर्फ्यू जारी रहेगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सभी प्रभारी मंत्रियों को निर्देश दिए कि भीड़ भरे आयोजन नहीं किये जाये। छोटे आयोजनों की अनुमति है पर इनमें कोविड अनुकूल व्यवहार का शत-प्रतिशत पालन सुनिश्चित किया जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कोविड अनुकूल व्यवहार के पालन में बुरहानपुर में आयोजित कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि आयोजनों में इस प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत करने से जनता को कोरोना अनुकूल व्यवहार के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने निर्देश दिए कि प्रदेश की सभी औद्योगिक इकाइयाँ अपने यहाँ कार्यरत कर्मचारियों और मजदूरों का शत-प्रतिशत टीकाकरण निजी अस्पतालों में सुनिश्चित कराएँ।

कोरोना की तीसरी लहर की संभावनाओं को देखते हुए प्रदेश में जारी तैयारियों पर केन्द्रित इस बैठक में कोरोना संक्रमण की वर्तमान स्थिति और देश-दुनिया में संक्रमण की स्थिति को देखते हुए प्रदेश में संक्रमण की संभावना, टीकाकरण अभियान, अस्पतालों में संसाधनों को लेकर जारी तैयारी, ऑक्सीजन आपूर्ति, मानव संसाधन की उपलब्धता और प्रशिक्षण आदि पर प्रस्तुतिकरण दिया गया।

30 सितम्बर तक आरंभ हो सभी ऑक्सीजन प्लांट

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अधिक संक्रमण वाले देशों के साथ केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों पर नजर रखी जाए। प्रदेश में संभाग स्तर सहित सुदूरवर्ती जिलों में कोरोना जाँच के लिए लेब विकसित की जाये, जिससे रिपोर्ट प्राप्त करने में विलंब न हो और तत्काल आवश्यक उपचार आरंभ किया जा सके। पिछले अनुभव को ध्यान में रखते हुए ऑक्सीजन की उपलब्धता का पूर्वानुमान लगाते हुए सभी जिलों में आवश्यक क्षमता विकसित की जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने समय रहते अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने, उपकरणों और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि 30 सितम्बर तक सभी ऑक्सीजन प्लांट आरंभ किये जाये। सी.टी. स्केन बड़ी चुनौती है, प्रदेश में इस सुविधा के विस्तार के लिए हरसंभव प्रयास किये जाये।

तीसरी लहर को देखते हुए अस्पताल स्तर पर सूक्ष्म नियोजन करें

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सभी प्रभारी मंत्रियों को अपने-अपने प्रभार के जिलों में अस्पतालों में जारी तैयारियों की सतत निगरानी के निर्देश दिए। अस्पतालों की क्षमता संवर्धन के कार्यों में आवश्यक समन्वय सुनिश्चित करने, समस्याओं के तत्काल निराकरण, उपलब्ध संसाधनों के रख-रखाव पर ध्यान देने के निर्देश दिए गए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि तीसरी लहर आने की स्थिति में मरीज किन अस्पतालों में जाएंगे, ऑक्सीजन की आपूर्ति का स्वरूप क्या होगा, आवश्यक दवाओं और सामग्री की उपलब्धता आदि का सूक्ष्म नियोजन अभी से सुनिश्चित किया जाए।

प्रदेश का रिकवरी रेट 98.6 प्रतिशत

बैठक में बताया गया कि प्रदेश में कोरोना के कन्फर्म केस मात्र 12 और 202 एक्टिव केस हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश 32वें नंबर पर है। प्रदेश का रिकवरी रेट 98.6 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय दर 97.3 प्रतिशत है। बैठक में अमेरिका, इंग्लैंड सहित महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक और असम में संक्रमण की स्थिति और ट्रेंड का प्रस्तुतिकरण दिया गया। जानकारी दी गई कि सितम्बर-अक्टूबर में तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है।

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Friday, July 16, 2021

सुबह खेलने के बाद मंत्री जी पहुंचे समोसे की दुकान

  •  खिलाडी साथियों के साथ खाया समोसा, दिया इनाम 
  •  मोहल्ला वासियों से रूबरू चर्चा कर सुनी समस्याएं
  •  त्वरित निराकरण हेतु नपा सीएमओ को दिए निर्देश 

पन्ना शहर के पुराना पावर हाउस के पास स्थित समोसा की दुकान में खिलाडी साथियों के साथ मंत्री श्री सिंह। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। प्रदेश के खनिज मंत्री एवं पन्ना विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह आज 16 जुलाई को सुबह बैडमिंटन खेलने के बाद खिलाड़ी साथियों के साथ अचानक समोसा की दुकान में जा पहुंचे। पुराना पावर हाउस के पास स्थित गोकुल की दुकान में जब मंत्री जी पहुंचे तो दुकानदार सहित वहां मौजूद लोग हतप्रभ रह गये, उनकी खुशी देखते ही बन रही थी।

अचानक मंत्री जी के दुकान में पहुंचने पर आनन-फानन स्वादिष्ट समोसे तैयार किए गए। खिलाड़ी साथियों के साथ खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने भी समोसे खाए और समोसों के लजीज स्वाद को उन्होंने न सिर्फ सराहा अपितु खुश होकर गोकुल को बतौर इनाम 5 हजार रुपये भी प्रदान किये। मालूम हो कि दुकानदार गोकुल पन्ना विधायक व प्रदेश शासन के मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के जबरदस्त फैन भी हैं। श्री सिंह जब पन्ना विधानसभा क्षेत्र का चुनाव जीता था तो इस समोसे वाले ने अपनी खुशी का इजहार अनूठे अंदाज में किया था, जो उस समय चर्चा का विषय रहा। गोकुल ने विधायक जी की जीत पर ग्राहकों को फ्री में समोसा उस दिन खिलाए थे। लंबा समय गुजर जाने के बाद आज अचानक जब मंत्री जी उसकी दुकान में पहुंचे तो ऐसा लगा मानो गोकुल के मन की मुराद पूरी हो गई हो। उसने मंत्री सहित उनके साथ आए सभी लोगों को बड़े प्यार से समोसे खिलाए।

पुराना पावर हाउस के पास स्थित इस समोसे की दुकान में मंत्री जी की मौजूदगी की खबर लगते ही सुबह-सबेरे वहां पर मोहल्ले के लोग भी जुडऩे लगे। मोहल्ले वासियों के पहुंचने पर मंत्री जी ने सबसे कुशल क्षेम पूछी तथा समस्याओं का भी जायजा लिया। मोहल्ले के लोगों ने मंत्री जी को बताया कि वार्ड क्रमांक 11 में नाली की समस्या है। उन्होंने तत्काल नगरपालिका परिषद पन्ना के सीएमओ को समस्या के त्वरित निराकरण के निर्देश दिए। वहीं पास ही  रैकवार मोहल्ला के लोगों ने बताया कि मोहल्ले में पानी की समस्या है। इस पर भी मंत्री जी ने नपा सीएमओ को निर्देश देते हुए कहा कि समस्या का निराकरण यथाशीघ्र किया जाए। जनसमस्याओं के प्रति मंत्री जी की संवेदनशीलता तथा समस्याओं के त्वरित निराकरण हेतु सीएमओ को निर्देश दिए जाने  पर मोहल्ला वासियों ने खुशी जाहिर की है।

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