Saturday, December 29, 2018

2.55 करोड़ रू. में बिका 42.59 कैरेट का हीरा

  •   पन्ना की उथली खदान में मजदूर मोतीलाल को मिला था यह नायाब हीरा
  •  नीलामी में हीरा बिकते ही गरीब मजदूर बना करोड़पति
  •   झांसी निवासी राहुल अग्रवाल एण्ड कम्पनी ने खरीदा यह हीरा


पन्ना के महेन्द्र भवन स्थित हीरा कार्यालय प्रांगण में आयोजित नीलामी का द्रश्य।  

अरुण सिंह,पन्ना, 29 दिसम्बर18। म.प्र. के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती में उथली खदान से विगत दो माह पूर्व मिला 42.59 कैरेट वजन वाला नायाब हीरा खुली नीलामी में आज बिक गया। यह हीरा 6 लाख रू. प्रति कैरेट की दर से 2 करोड़ 55 लाख रू. में बिका है, जिसे  झांसी उ.प्र. के निवासी राहुल अग्रवाल ने खरीदा है। पन्ना जिले के इतिहास में अब तक का यह सबसे कीमती हीरा दो माह पूर्व 9 अक्टूबर को गरीब मजदूर मोतीलाल प्रजापति को मिला था। हीरा बिकने के साथ ही यह मजदूर अब करोड़पति बन गया है। पन्ना की रत्नगर्भा धरती ने इस गरीब मजदूर को नये साल का अविस्मरणीय तोहफा दिया है, जो लम्बे समय तक याद रहेगा।
हीरे के साथ मोतीलाल प्रजापति।

उल्लेखनीय है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक महेन्द्र भवन स्थित हीरा कार्यालय प्रांगण में भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच 28 दिसम्बर से उथली खदानों से प्राप्त हीरों की खुली नीलामी शुरू हुई है। इस नीलामी में कुल 161 नग हीरे रखे गये हैं, जिनमें 42.59 कैरेट वजन वाला यह नायाब हीरा भी शामिल था। पूरे देशभर से नीलामी में भाग लेने आये हीरा व्यापारियों के बीच जेम क्वालिटी का यह हीरा आकर्षण का केन्द्र था। आज सुबह 11 बजे से जैसे ही नीलामी की प्रक्रिया शुरू हुई, सभी व्यापारियों की नजरें इस नायाब हीरे पर टिकी हुई थीं। लेकिन बसपा नेता चरण सिंह  यादव के साथी झांसी निवासी राहुल अग्रवाल ने इस हीरे की सबसे ऊँची बोली 6 लाख रू. प्रति कैरेट लगाई, फलस्वरूप पन्ना जिले के इतिहास का यह सबसे कीमती हीरा राहुल अग्रवाल के नाम कर दिया गया। नीलामी में रखे गये इस हीरे के बिकते ही मजदूर मोतीलाल प्रजापति के घर व परिवार में जश्न और खुशी का माहौल है। आज से अब कोई भी मोतीलाल प्रजापति को मजदूर कहकर नहीं पुकारेगा, क्योंकि वह अब करोड़पति बन गया है। हीरा अधिकारी संतोष सिंह  ने बताया कि मोतीलाल प्रजापति को मिला हीरा 2 करोड़ 55 लाख रू. में बिका है, जिस पर 12 फीसदी टैक्स काटकर शेष राशि हीराधारक मोतीलाल को प्रदान की जायेगी।

सहेजकर रखेंगे यह हीरा: राहुल


 हीरे का खरीददार राहुल अग्रवाल हाँथ में हीरा लिये हुये।
पन्ना की खदान से निकले 42.59 कैरेट वजन वाले नायाब हीरे को खरीदकर राहुल अग्रवाल बेहद खुश और गौरव का अनुभव कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस बेहद खूबसूरत हीरे को वे सहेजकर रखेंगे। जेम क्वालिटी वाले इस हीरे को खरीदने के लिये गुजरात, मुम्बई, दिल्ली व पंजाब से बड़ी संख्या में हीरा व्यापारी व अन्य कारोबारी आये हुये थे, लेकिन हीरे की सबसे ऊँची बोली उ.प्र. के झांसी निवासी राहुल अग्रवाल व इनकी कम्पनी ने लगाई और यह हीरा उनका हो गया।

अब तक का यह दूसरा बड़ा हीरा


पन्ना जिले के इतिहास में अब तक का यह दूसरा बड़ा हीरा है। इसके पूर्व लगभग 57 वर्ष पहले 15 अक्टूबर 1961 को महुआटोला की उथली हीरा खदान से रसूल मोहम्मद को 44.55 कैरेट वजन वाला जेम क्वालिटी का हीरा मिला था, जो अब तक का सबसे बड़ा हीरा है। मोतीलाल प्रजापति को मिला हीरा 42.59 कैरेट वजन का है, जो दूसरा बड़ा हीरा है। लेकिन कीमत के  लिहाज से आज शनिवार को बिका यह हीरा सबसे ज्यादा कीमती है, जिसने एक नया रिकार्ड बनाया है।

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Monday, December 24, 2018

पन्ना में एसबीआई की मेन ब्रान्च से 7 लाख रू. चोरी



  •   नोटों से भरा बैग लेकर गायब हो गया अज्ञात बालक
  •   एमपीईबी का कैशियर राशि जमा करने आया था बैंक
  •   सीसीटीव्ही कैमरे में कैद हुई चोरी की सनसनीखेज वारदात


पन्ना स्थित भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा।

 अरुण सिंह,पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना स्थित भारतीय स्टेट बैंक की मेन ब्रान्च में चोरी की हुई सनसनीखेज वारदात से हड़कम्प मचा हुआ है। दिनदहाड़े ग्राहकों की भीड़ के बीच से एक अज्ञात बालक नोटों से भरा बैग लेकर गायब हो गया और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। बैग में 6 लाख 95 हजार से भी अधिक नगदी रखी हुई थी। यह राशि एमपीईबी का कैशियर बैग में लेकर बैंक जमा करने के लिये आया था, उसी समय चोरी की यह वारदात घटित हुई। बैंक में लगे सीसीटीव्ही कैमरों में उस अज्ञात बालक की तस्वीर कैद हुई है, जिसकी पुलिस द्वारा छानबीन की जा रही है। चोरी की घटना को अंजाम देने वाले पीली टी-शर्ट पहने बालक का सुराग लगाने में पुलिस जुटी है।
बैंक के भीतर ग्राहकों की भीड़ का नजारा।

चोरी की इस सनसनीखेज वारदात के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार मध्य पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी लिमिटेड संभाग पन्ना के शहरी वितरण केन्द्र में पदस्थ हेड कैशियर मुबीन खान ने अपने साथ हुई घटना की जानकारी देते हुये बताया कि पिछले तीन दिन बैंक की छुट्टी होने के दौरान बिजली बिलों की जो राशि ग्राहकों के द्वारा जमा की गई थी, उसे लेकर सोमवार 24 दिसम्बर को बैंक में जमा करने आया था। बैंक पहुँचने पर काउंटर के पास नोटों से भरा बैग रखकर वहीं पर मैं बाउचर भरने लगा, इसी बीच वहां से बैग गायब हो गया। नोटों से भरा बैग इस तरह पलक झपकते गायब होने की जानकारी होने पर बैंक में हड़कम्प मच गया। पलक झपकते इस तरह से बैग गायब होने का पता लगाने जब बैंक मैनेजर ने सीसीटीव्ही कैमरों के फुटेज खंगाले तो पीले रंग की टी-शर्ट पहने एक लड़का मुबीन खान के पीछे बैंक के अन्दर प्रवेश करता हुआ नजर आता है। कुछ देर बाद वही लड़का मौका पाकर बड़ी चतुराई से वहां मौजूद लोगों को चमका देकर नोटों से भरा बैग लेकर चम्पत हो जाता है।
 कैमरे में कैद नोटों से भरा बैग चुराने वाला बालक।

यह पूरा घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ कि बैंक के अन्दर व आस-पास मौजूद लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगी। बैंक के प्रवेश द्वार पर तैनात रहने वाला गार्ड भी उस शातिर लड़के को खाली हाँथ अन्दर जाते और बैग लेकर निकलते हुये गौर नहीं कर पाया। उल्लेखनीय है कि कुछ माह पूर्व पन्ना में एमपीईबी के संभागीय कार्यालय परिसर में स्थित बिजली बिल जमा करने वाली एटीपी मशीन का लॉकर तोड़कर अज्ञात चोरों ने लाखों रू. की चोरी की घटना को अंजाम दिया था, जिसका खुलासा आज तक नहीं हो सका है। आज फिर यह सनसनीखेज चोरी की वारदात घटित हुई, जिसमें एमपीईबी का ही पैसा गायब हुआ है। इसे अजीब संयोग ही कहा जायेगा कि चोरों की नजर ग्राहकों द्वारा जमा किये जाने वाले विद्युत बिलों की राशि में लगी रहती है। अब देखना यह है कि चोरी की इस वारदात का खुलासा करने में पन्ना पुलिस कब तक कामयाब होती है।

इनका कहना है...


  •   पहले एटीपी मशीन में और अब बैंक के अन्दर से कैशियर का नोटों से भरा बैग चोरी होने की घटनायें दुर्भाग्यपूर्ण हैं। पुलिस को घटना की जानकारी दी जा चुकी है, एक लड़के ने बैग चोरी किया है जो कि सीसीटीव्ही कैमरों में नजर आ रहा है।
  • ओ.पी. सोनी, कार्यपालन अभियन्ता
  •  सीसीटीव्ही कैमरों से हासिल फुटेज के आधार पर आरोपी बालक की पहचान कर उसे पकडऩे के प्रयास किये जा रहे हैं। इस चोरी का जल्दी खुलासा होने की उम्मीद है, कोतवाली पुलिस की टीम इस काम में जुटी है।
  • विवेक सिंह , पुलिस अधीक्षक पन्ना

Sunday, December 23, 2018

हर तरफ बिखरा है इतिहास फिर भी सैलानी नहीं

  •   पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित नहीं हो सका पन्ना,
  •   छठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारवीं शताब्दी तक के मन्दिर मौजूद 


सलेहा के निकट स्थित प्राचीन सिद्धनाथ मंदिर। फोटो - अरुण सिंह 

 अरुण सिंह,पन्ना। भव्य और अनूठे मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध पन्ना जिले में हर तरफ इतिहास विखरा पड़ा है। प्राकृतिक मनोरम स्थलों की तो यहां पूरी श्रंखला है फिर भी इस इलाके में सैलानी नजर नहीं आते। पर्यटन विकास की अनगिनत खूबियों के बावजूद इस क्षेत्र को विकसित नहीं किया गया। यदि इस अंचल की धरोहरों को सहेजकर उन्हें पर्यटन के नक्शे पर लाया जाय तो यहां रोजगार के नये अवसर सृजित हो सकते हैं।
सैलानियों को आकर्षित करने के लिए यहां पर छठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक के अनूठे मन्दिर मौजूद हैं। इन मन्दिरों की स्थापत्य कला देखते ही बनती है। पन्ना जिले का सिद्धनाथ मन्दिर उनमें से एक है जिसकी शिल्पकला किसी भी मायने में खजुराहो से कम नहीं है.

अजयगढ़ स्थित अजयपाल किले का रंगमहल। 
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 60 किमी. दूर स्थित यह अनूठा स्थल अगस्त मुनि आश्रम के नाम से विख्यात है. इस पूरे परिक्षेत्र में प्राचीन मन्दिरों व दुर्लभ प्रतिमाओं के अवशेष जहां - तहां बिखरे पड़े हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए आज तक कोई पहल नहीं हुई. पन्ना जिले के सिद्धनाथ मन्दिर की शिल्प कला देखने योग्य है, ऊंची पहाडिय़ों से घिरे गुडने नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर कभी मन्दिरों की पूरी श्रंखला रही होगी. मन्दिरों के दूर - दूर तक बिखरे पड़े अवशेष तथा बेजोड़ नक्कासी से अलंकृत शिलायें, यहां हर तरफ दिखाई देती है. जिससे प्रतीत होता है कि यहां कभी विशाल मन्दिर रहे होंगे. मौजूदा समय उस काल का यहां पर सिर्फ एक मन्दिर मौजूद है जिसे सिद्धनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाता है. पुराविदों का कहना है कि सलेहा के आसपास लगभग 15 किमी. के दायरे वाला क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इसी क्षेत्र में नचने नामक स्थान भी है यहां पर गुप्त कालीन मन्दिर है. जानकारों का कहना है कि सिद्धनाथ मन्दिर नचने के चौमुखनाथ मन्दिर के समय का है. चौमुखनाथ मन्दिर छठवीें शताब्दी का है जो खजुराहो के मन्दिरों से तीन सौ वर्ष अधिक प्राचीन है. मन्दिर के पुजारी का कहना है कि इस परिसर के चारो ओर 108 कुटी मन्दिर बने हुए थे. जहां ऋषि - मुनि निवासकर साधना में रत रहते थे. समुचित देखरेख न होने के कारण अधिकांश कुटी मन्दिर ढेर हो चुके हैं. आश्चर्य की बात यह है कि पुरातात्विक व धार्मिक महत्व के इस स्थल तक पहुंचना आसान नहीं है, दुर्गम, घुमावदार और पथरीले रास्ते से होकर यहां जाना पड़ता है. इस प्राचीन स्थल मेें भगवान श्रीराम के वनवासी रूप की दुर्लभ पाषाण प्रतिमा मिली है. पुराविदों का यह दावा है कि देश में अब तक प्राप्त भगवान राम की पाषाण प्रतिमाओं में यह सबसे प्राचीन है.

सैलानियों को आकर्षित करने यहां है सब कुछ 

इस अंचल में सैलानियों को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ है. प्रकृति ने यहां की रत्नगर्भा धरा को अनुपम सौगातों से जहां नवाजा है, वहीं यहां के भव्य व अनूठे मन्दिर पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं. पन्ना जिले में नेशनल पार्क सहित ऐतिहासिक दुर्ग, घने जंगल, जल प्रपात तथा शौर्य व संघर्ष का गौरव पूर्ण इतिहास विद्यमान हैं. अजयगढ़ स्थित प्राचीन अजयपाल दुर्ग अद्भुत और अनूठा हïै। बलुई चट्टानों व पत्थरों से निर्मित दुर्ग की रंगशाला का स्थापत्य देखते हïी बनता हïै लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव तथा समुचित प्रचार-प्रसार न हïोने से देशी व विदेशी पर्यटक इन प्राचीन धरोहïरों को देखने से वंचित हïैं। यदि इस क्षेत्र के विकास में थोड़ी रूचि ली जाय तो यह इलाका सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना सकता है.

पन्ना के जंगल में हैं हजारों साल पुराने भित्त चित्र

  •   जरधोवा के पास स्थित गुफाओं में रहते थे आदिमानव
  •   चट्टानों और गुफाओं में बने हैं आखेट के दुर्लभ चित्र


पन्ना टाईगर रिजर्व से लगे जरधोवा गांव के निकट पहाड़ में स्थित वह शेल्टर जहाँ  हजारों वर्ष पुराने शैल चित्र हैं।  फोटो - अरुण सिंह 


। अरुण सिंह 

पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 18 किमी. दूर ग्राम जरधोवा के निकट पन्ना नेशनल पार्क के बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व ऊँचे पहाड़ों की चट्टानों पर प्राचीन भित्त चित्र मिले हैं। हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों द्वारा पहाड़ों व गुफाओं में ये चित्र बनाये गये हैं, जो आज भी दृष्टिगोचर हो रहे  हैं। पन्ना के जंगलों में दुर्गम पहाड़ों और गुफाओं में नजर आने वाली यह रॉक पेंटिंग कितनी प्राचीन है  इसका पता लगाने के लिए जानकारों व विषय विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए ताकि यहाँ  के प्राचीन भित्त चित्रों का संरक्षण हो  सके।

उल्लेखनीय है  कि पन्ना नेशनल पार्क के घने जंगलों में दर्जनों की संख्या में ऐसी गुफायें मौजूद हैं जहाँ  हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव निवास करते रहे  हैं। उस समय चूंकि खेती शुरू नहीं  हुई थी, इसलिए आदिमानव पूरी तरह से जंगल व वन्यजीवों पर ही  आश्रित रहते थे। वन्यजीवों का शिकार करके वे अपनी भूख मिटाते थे। यहाँ  की गुफाओं व पहाड़ों की शेल्टर वाली चट्टानों पर उस समय के आदिमानवों की जीवनचर्या का बहुत ही  सजीव चित्रण किया गया है । 

भित्त चित्रों में वन्यजीवों के साथ-साथ शिकार करने के दृश्य भी दिखाये गये हैं। वन्य जीवों का शिकार करने के लिए आदिमानवों द्वारा तीर कमान का उपयोग किया गया है । चित्रों से यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं  होता कि तीर की नोक लोहा  की है  या फिर नुकीले पत्थर अथवा हड्डी से उसे तैयार किया गया है । यदि तीर  की नोक लोहा  से निर्मित नहीं  है  तो भित्त चित्र पाषाण काल के हो  सकते हैं। 

पन्ना नेशनल पार्क के अलावा भी जिले के अन्य वन क्षेत्रों में भी इस तरह के भित्त चित्र पाये जाने की खबर है । बताया जाता है  कि बराछ की पहाड़ी, बृहस्पति कुण्ड की गुफाओं व सारंग की पहाड़ी में भी कई स्थानों पर आदिमानवों द्वारा बनाई गई रॉक पेंटिंग मौजूद हैं। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक शासन व प्रशासन का ध्यान इन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण की ओर नहीं  गया। ऐसी स्थिति में उन स्थानों पर जहाँ  लोगों की आवाजाही  अधिक है  तथा सहजता से जहाँ  लोग पहुँच जाते हैं वहाँ  की रॉक पेंटिंग नष्ट हो  रही  हैं । 

इन रॉक पेंटिंग (भित्त चित्र) की महत्ता से अनजान लोग चट्टानों की दीवालों पर बनी इन पेंटिंग्स के आस-पास कोयला या पत्थर से खुद भी चित्र बना देते हैं, जिससे अमूल्य धरोहर नष्ट हो  रही  है । जरधोवा गांव के निकट दुर्गम पहाड़ी पर एक विशालकाय चट्टान का शेल्टर है , जिसके नीचे दर्जनों लोग बैठकर विश्राम कर सकते हैं। पहाड़ी के ऊपर अत्यधिक ऊँचाई पर यह स्थान होने के कारण यहाँ  से मीलों दूर तक जंगल का नजारा दिखाई देता है । 

इस शेल्टर की बनावट व स्थिति को देख ऐसा लगता है  कि यहाँ  पर आदिमानव विश्राम करते रहे  होंगे और शिकार करने के लिए जंगल के किस हिस्से में जानवर अधिक संख्या में मौजूद हैं इस बात का भी जायजा लेते रहे होंगे । इस शेल्टर की खूबी यह है  कि बारिश होने पर न तो यहाँ  बारिश का पानी पहुंच सकता है  और न ही  धूप, यहाँ  पर गर्मी के दिनों में भी शीतलता का अहसास होता है । इस शेल्टर की भित्त पर शिकार करने के अनेकों दृश्य बने हुये हैं।

जरधोवा निवासी ग्रामीणों ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व इस जंगल में गोंड़ राजाओं के समय काछा नाम का गांव आबाद था जो गोंड़ शासन खत्म होने के बाद उजड़ गया। पहाड़ी पर स्थित शेल्टर जहाँ  भित्त चित्र मौजूद हैं उस स्थान को घुटइयां के नाम से जाना जाता है । स्थान अत्यधिक दुर्गम होने  के कारण तथा पुरानी मान्यताओं के चलते गांव के लोग यहाँ  नहीं  जाते। ग्रामीणों का मानना है  कि वहाँ  चुडैलों का वास है  इसलिए वहाँ  जाने से अनर्थ हो  सकता है ।

पेन्टिंग को खून की पुतरिया कहते हैं ग्रामीण



आदिमानवों द्वारा बनाये गये शैल चित्रों का दृश्य। फोटो - अरुण सिंह 

बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व पहाड़  की चट्टानों पर लाल रंग से अंकित शिकार के दृश्यों को गांव के आदिवासी खून की पुतरिया कहते हैं। ग्रामीणों का मानना है  कि इन स्थानों पर वास करने वाली चुडैलें नवजात शिशुओं को मारकर उनके रक्त से ये चित्र बनाती हैं। इसी मान्यता के चलते गांव के लोग भित्त चित्र वाले स्थानों पर जाना तो दूर उस तरफ रुख भी नहीं  करते। गांव के बड़े बुजुर्ग पूरे भरोसे के साथ यह बताते हैं कि आदिमानवों द्वारा नहीं  बल्कि चुडैलों द्वारा ही  गुफाओं में जगह-जगह खून की पुतरिया बनाई गई हैं, जो कोई भी वहाँ  जायेगा वह चुडैलों के कोप का शिकार हो  सकता है । अनर्थ होने की आशंका से गांव का कोई भी व्यक्ति इन खुन की पुतरियों के पास नहीं  फटकता।

इंडिगो पेड़ के रस से बने हैं भित्त चित्र


प्राचीन इतिहास व वन और पर्यावरण पर विशेष रूचि रखने वाले पन्ना राजघराने के सदस्य लोकेन्द्र सिंह का कहना है  कि जरधोवा के जंगल की रॉक पेन्टिंग कई हजार वर्ष पूर्व पुरानी है । जो दुर्लभ और पुरा महत्व की है । आपने बताया कि हजारों वर्ष पूर्व इस पूरे इलाके में आदिमानव रहते रहे  हैं, इसके चिह्न पेन्टिंग के रूप में आज भी मौजूद हैं। 

यहाँ  के जंगलों में यदा कदा आदिमानवों द्वारा शिकार के लिए उपयोग में लाये जाने वाले पत्थर के नुकीले हïथियार भी मिल जाते हैं। हजारों साल गुजर जाने के बाद भी भित्त चित्र नष्ट नहीं  हुए , इसकी वजह का खुलासा करते हुए  आपने बताया कि ये वनस्पति रंग से बने हैं। इंडिगो नामक पेड़ के रस से आदिमानवों ने ये शिकार के दृश्य अंकित किये हैं। यह अद्भुत पेड़ उस समय यहाँ  के जंगलों में प्रचुरता से पाया जाता था, लेकिन अब यह यहाँ  विलुप्त हो  चुका है।
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यातायात पुलिस ने पकड़े रेत से भरे 10 ओवरलोड ट्रक


  •  केन नदी में मशीनों से हो रहा रेत का अवैध उत्खनन
  •  खनन माफियाओं की गतिविधियों पर नहीं लगा अंकुश


पुलिस लाइन पन्ना परिसर में खड़े रेत से भरे ओवरलोड ट्रक 

अरुण सिंह,पन्ना। जिले की जीवनदायिनी केन नदी को रेत माफियाओं ने कुरूक्षेत्र में तब्दील कर दिया है। यहां स्वीकृत खदानों के अलावा कई जगह अवैध खदानें भी नियमों को तांक में रखकर संचालित हो रही हैं। खदान क्षेत्रों में रेत माफियाओं के गुर्गे हथियारों से लैस होकर हर समय तैनात रहते हैं, ऐसी स्थिति में किसी की क्या मजाल कि वह नदी में चलने वाली खदानों की तरफ रुख करे। केन नदी में जिस तरह से भारी भरकम दैत्याकार मशीनों से रेत का उत्खनन हो रहा है, उसे देखते हुये ऐसा प्रतीत होता है कि या तो खनन माफियाओं की दबंगई और गुण्डागर्दी के आगे प्रशासन बेवश और लाचार है या
फिर प्रशासन की मौन सहमति से ही खनन माफिया केन नदी का सीना छलनी करने में जुटे हुये हैं।
उल्लेखनीय है कि नदी से रेत निकालने में मशीनों का उपयोग प्रतिबन्धित है। बावजूद इसके दर्जनों की संख्या में जेसीबी व पोकलेन मशीन दिन-रात केन नदी से रेत निकालने में जुटी रहती हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि बड़े पैमाने पर चल रहे रेत के इस अवैध कारोबार पर नियंत्रण करने में प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। सैकड़ों ट्रक रेत प्रतिदिन केन नदी से निकल रही है,इन रेत से भरे ओवरलोड ट्रकों और डम्फरों की आवाजाही तथा धमाचौकड़ी से सड़कों के परखच्चे उड़ गये हैं। अजयगढ़ घाटी तो रेत से भरे ओवरलोड वाहनों के कारण इस कदर ध्वस्त हो चुकी है कि अब इस मार्ग पर यात्रा करना खतरनाक और जोखिमभरा हो चुका है। ओवरलोडिंग का यह आलम है कि ट्रक व डम्फर की अन्तिम सीमा तक और उससे भी ऊपर ठूँस-ठूँसकर बालू भरी जा रही है। भयावह हो रहे हालातों की खबरें प्रकाशित होने पर यदा-कदा इन ओवरलोड रेत से भरे ट्रकों और डम्फरों के विरूद्ध कार्यवाही करने की खानापूर्ति की जाती है,
ताकि प्रशासन की नियत व मंशा पर सवाल न उठें। लेकिन छुटपुट कार्यवाही के बाद रेत के अवैध कारोबार का यह खेल फिर यथावत चलने लगता है। यातायात पुलिस द्वारा ओवरलोड ट्रकों के विरूद्ध आज की गई कार्यवाही के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार दहलान चौकी रोड पर वाहन चेकिंग के दौरान बालू से भरे 10 ओवरलोड ट्रक जब्त किये गये हैं। इन ट्रकों के विरूद्ध चालानी कार्यवाही करते हुये 1 लाख 50 हजार रू. समन शुल्क वसूल किया गया। उक्त कार्यवाही थाना प्रभारी यातायात सूबेदार ज्योति दुबे, प्रधान आरक्षक सज्जन प्रसाद, राकेश शर्मा, आरक्षक सुनील पाण्डे, विक्रम बागले, पवन शर्मा, प्रभुदयाल सेन, भूपाल सिंह  व महेन्द्र कुमार द्वारा की गई। मजे की बात तो यह है कि प्रतिदिन सैकड़ों ओवरलोड रेत से भरे वाहन पन्ना बाईपास मार्ग आरटीओ आफिस के सामने से गुजरते हैं लेकिन परिवहन विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जाती। परिवहन विभाग की भूमिका का निर्वहन पन्ना जिले में यातायात पुलिस कर रही है।
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Friday, December 21, 2018

अनूठी होती है दीमक के बॉबी की आन्तरिक संरचना

  •  गर्मी में शीतलता व ठंड में रहता है गर्म वातावरण
  •   हरे-भरे पेड़ पौधों को दीमक नहीं पहुँचाता कोई क्षति


 दीमक की भारी भरकम बॉबी के निकट खड़े पर्यावरण विद बाबू लाल दाहिया।

। अरुण सिंह 

पन्ना। कुदरत ने अनगिनत जीव-जन्तुओं की रचना की है, जिनकी अपनी खूबियां और अहमियत होती है। बिना आँख का एक नन्हा सा जीव दीमक भी उनमें से एक है, जिसकी सृृजनात्मकता अनूठी और आश्चर्य चकित कर देने वाली होती है। दीमक का आवास जिसे बॉबी कहते हैं उसकी आन्तरिक संरचना को देख आंख वाले भी हैरत में पड़ जाते हैं। क्योंकि दीमक के बॉबी का निर्माण कुछ इस तरह होता है कि भीषण गर्मी और तपिश वाले दिनों में बॉबी के भीतर शीतलता व ठंड के मौसम में गर्म वातावरण का अहसास होता है। 

इस अनूठी और रहस्यपूर्ण तकनीक से अभी तक मनुष्य भी परिचित नहीं हो सका है। प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण सहित परम्परागत खेती को बढ़ावा देने के लिए विगत कई दशकों से सक्रिय विन्ध्य क्षेत्र के ख्यातिलब्ध पर्यावरण विद बाबू लाल दाहिया जी ने बिना आँख वाले अनूठे जीव दीमक के बारे में आम जनमानस में जो भ्रांतियां हैं उन्हें दूर करने का अभिनव प्रयास किया है जो निश्चित ही सराहनीय है।

उल्लेखनीय है कि आम जनमानस व किसानों में दीमक को लेकर जो धारणा है वह मित्रवत न होकर शत्रुता वाली है। किसान दीमक को अपना दुश्मन समझते हैं और इस नन्हे जीव को नष्ट करने के लिए तमाम तरह के जतन और उपाय करते हैं। दाहिया जी दीमक की एक विशालकाय बॉबी के पास खड़े होकर इस बिना आँख के जीव की जिन विशिष्टताओं से परिचित कराते हैं उससे दीमक को लेकर जो भ्रांति है वह जहां दूर होती है वहीं इस जीव की महत्ता व प्रकृति और पर्यावरण को समृद्ध बनाने में इसकी भूमिका भी प्रकट होती है। 

दाहिया जी बताते हैं कि दीमक बिना आँख का जीव है, लेकिन उसके द्वारा निर्मित बॉबी की आन्तरिक संरचना देख आँख वाला भी आश्चर्यचकित रह जाता है। इस बॉबी केअन्दर रानी दीमक व श्रमिक दीमक के अलग-अलग निवास होते हैं। बॉबी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके भीतर गर्मी में ठंडक व ठंड में गर्म वातावरण रहता है। इस विशिष्टता और खूबी के कारण ही अंधेरे में रहने वाले जीव सांप को दीमक की बॉबी अत्यधिक प्रिय होती है। 

ठंड व गर्म दोनों ही मौसम में सांप दीमक की बॉबी को अपना रहवास बनाकर उसके भीतर आराम फरमाता है। इस अनूठी और रहस्यमयी संरचना के निर्माण में दीमक को हांथ पैर नहीं चलाना पड़ता। दाहिया जी के मुताबिक बस दीमक आ आकर पाखाना करती जाती हैं और बॉबी बनती जाती है। बघेली में दीमक पर एक पहेली बूझी जाती है कि च्च्जीर जइसा अपना अजमाइन जइसा पेट, बारी तरे झाड़े बइठी लगय दिहिन सर सेटज्ज्।

दीमक को लेकर है बड़ी भ्रांति

प्रकृति और पर्यावरण के बीच अपना अधिक से अधिक समय गुजारकर कुदरत के अनसुलझे रहस्यों को समझने का प्रयास करने वाले बाबू लाल दाहिया बताते हैं कि दीमक को लेकर समाज में एक बहुत बड़ी भ्रांति है कि वह हरे-भरे पेड़ पौधों व खेत में खड़ी फसल को काटकर सुखा देती है। इसी भ्रांति के चलते ही लोग खेतों में कीटनाशक जहर का छिड़काव करके अपनी फसल को विषैला बना देते हैं। जबकि सच्चाई बिलकुल अलहदा है। 

दाहिया जी के मुताबिक दरअसल दीमक को कुदरत ने एक दायित्व सौंपा है कि वह सूखे पेड़ों को खाकर उसे मिट्टी में मिला दे। कुदरत द्वारा सौंपे गये इस दायित्व का निर्वहन दीमक निरन्तर करती रहती है। वह अपने सूंघने की शक्ति से जान जाती है कि अमुक स्थान में अमुक पौधा सूख रहा है और वह वहां पर पहुँच जाती है।

प्रकृति का काम करने वाला जीव है दीमक

दीमक न तो हरे-भरे पेड़-पौधों को काटकर सुखाता है और न ही वह किसानों का दुश्मन है, अपितु वह प्रकृति द्वारा सौंपे गये कार्य को ही करता है जिससे मिट्टी की उर्वरता और बढ़ती है। दाहिया जी इसे कुछ ऐसे समझाते हैं, मान लीजिये आपके खेत में एक फुट के दायरे में 10 पौधे हैं। उनमें किसी अन्य कीड़े या बीमारी के कारण यदि एक पौधा मुरझाने लगा तो दीमक वहां पहुँच जायेगी और अपना दायित्व पूरा करने लगेगी। 

इससे लोग यह मान लेते हैं कि फसल को दीमक काट रही है। क्योंकि जब आप पौधे को उखाड़ेंगे तो दीमक वहां पर मौजूद मिलेगी। लेकिन आप वहां पर उगे यदि अन्य पौधों को उखाड़े तो वहां किसी पौधे के नीचे दीमक नहीं मिलेगी। क्योंकि वह हरे पौधे को नहीं खाती, लेकिन भ्रांति के चलते प्रकृति का काम करने वाला यह जन्तु व्यर्थ ही मारा जाता है।
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करंट से फिर हुआ मादा तेंदुये का शिकार

  •   दक्षिण वन मण्डल पन्ना के शाहनगर वन परिक्षेत्र का मामला
  •   इलाके में शिकारियों की सक्रियता से वन्य प्राणियों पर संकट


पन्ना जिले के शाहनगर वन परिक्षेत्र में मिला मादा तेंदुए का क्षत विक्षत शव 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में वन्य प्राणियों के शिकार की घटनायें थमने का नाम नहीं ले रहीं। दक्षिण वन मण्डल पन्ना अंतर्गत शाहनगर वन परिक्षेत्र के टिकरिया बीट नंबर पी 975-976 में फिर एक मादा तेंदुआ मृत पाया गया है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इस मादा तेंदुये की मौत विद्युत करंट से हुई है। घटना लगभग 7-8 दिन पूर्व की बताई जा रही है लेकिन इसकी जानकारी वन अमले को बुधवार को हुई फलस्वरूप डीएफओ सहित वन अधिकारी आज गुरूवार को मौके पर पहुँचकर घटना स्थल का जायजा लिया। मालुम हो कि  इसके पूर्व दक्षिण वन मण्डल के पवई वन परिक्षेत्र में वन अमले द्वारा भारी मात्रा में विस्फोटक, शिकार में उपयोग होने वाला जीआई तार, हथियार तथा मृत अवस्था में पड़े कई वन्य प्राणी बरामद किये गये थे। इस मामले के आरोपी अभी पकड़े भी नहीं गये कि दूसरे वन परिक्षेत्र में शिकार की वारदात घटित हो गई है जिसमें एक मादा तेंदुये की असमय मौत हो गई। जिले में शिकारियों की बढ़ती सक्रियता को देखते हुये पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र सहित बफर व सामान्य वन क्षेत्रों में विचरण कर रहे बाघों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
मामले के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार विगत  7- 8 दिन पहले कुछ शिकारियों के द्वारा 11000 केवी की लाइन से नंगा तार फं सा कर जंगल में जंगली जानवरों का शिकार करने के उद्देश्य से फैलाया गया था। शिकारियों द्वारा फैलाये गये विद्युत तार की चपेट में एक व्यक्ति भी आ चुका है जिसकी मौत हो गई है। मृतक का नाम सौखी चौधरी बताया जा रहा है। ऐसी आशंका जतायी जा रही है कि जिस दिन सौखी चौधरी की विद्युत तार की चपेट में आकर मौत हुई है उसी दिन या आस-पास मादा तेंदुआ भी करंट की चपेट में आया और उसकी मौत हो गई। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जंगल में बिछाये गये विद्युत तार की चपेट में आने से मादा तेंदुये की मौत हो जाती है और इसकी भनक मैदानी वन अमले को नहीं लग पाती। इसी से जाहिर होता है कि जंगल व जंगल में विचरण करने वाले वन्य प्राणियों की सुरक्षा  के प्रति वन अमला कितना सजग और चौकस है? मादा तेंदुये के शिकार की जानकारी होने पर दक्षिण वन मण्डल पन्ना की डीएफ ओ मीना मिश्रा, एसडीओ हेमंत यादव कल्दा रेंजर, आर. बी. खरे वन परिक्षेत्र अधिकारी शाहनगर, आर.पी अरजरिया डिप्टी रेंजर के साथ वन अमला मौके पर पहुँचा। घटना स्थल पर डॉग स्कॉट की मदद से भी छानबीन की गई। मौके पर नंगे तार की स्पार्किंग के निशान  मिले हैं जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि तेंदुआ की मौत विद्युत तार की चपेट में आने से हुई है। उपसंचालक पशु चिकित्सा अधिकारी डी.के. पटेल एवं पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. जी.डी.एस. तिवारी द्वारा मौके पर पहुंचकर पीएम किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद मौत के कारणों की असल वजह का खुलासा हो सकेगा। लेकिन इस घटना के बाद से वन्य प्राणियों की सुरक्षा व वन अमले की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठ खड़े हुये हैं। यदि समय रहते इलाके में सक्रिय शिकारियों की गतिविधियों पर प्रभावी रोक नहीं लगाई गई तो उनके शिकारी पंजे बाघों तक भी पहुँच सकते हैं। ऐसी स्थिति में यदि पन्ना फिर वर्ष 2009 की ओर अग्रसर हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। मालुम हो कि वर्ष 2009 में पन्ना का जंगल बाघ विहीन हो गया था। तब प्रदेश के अन्य दूसरे टाईकर रिजर्वों से पर व मादा बाघ पन्ना लाया जाकर उन्हें यहां पर आबाद किया गया था। अथक परिश्रम और सुरक्षा व्यवस्था के बीच पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों का संसार आबाद हुआ जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन शिकारियों की मौजूदगी ने एक बार फिर बाघों की सुरक्षा को लेकर प्रश्र चिह्न खड़ा कर दिया है। जिसका निदान समय रहते बेहद जरूरी है।

शिकार की यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण ; डीएफओ 



घटना की जानकारी देते हुए डी एफ ओ मीना मिश्रा 
डीएफओ दक्षिण वन मण्डल पन्ना मीना मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि शाहनगर वन परिक्षेत्र के टिकरिया बीट में मादा तेंदुये के शिकार की यह घटना हुई है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। तेंदुए का जो  शव मिला है वह  8-10 दिन पुराना प्रतीत हो रहा है। क्राइम सीन की जाँच में प्रथम द्रष्टया विद्युत करंट से मौत होने की आशंका है , वास्तविक स्थिति  पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने पर स्पष्ट होगी।  मामले की जाँच की जा रही है। शीघ्र ही आरोपियों को गिरफ्तार किया जायेगा।

Thursday, December 20, 2018

ढाई सौ एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि में तैयार कराया जंगल

  • पुराने टाईगर कॉरीडोर को विकसित करने अनूठी पहल 
  • पर्यावरण संरक्षण के साथ हो रही लाखों रुपए की कमाई 



खेत में तैयार जंगल के बीच खड़े केशव प्रताप सिंह व श्रीमती दिव्यारानी। फोटो - अरुण सिंह 

अरुण सिंह,पन्ना। कथाओं से भरे इस देश में एक कथा बाघ भी है। आज बाघों को अखबारों में छपने के लिए जगह तो खूब मिल रही है लेकिन छिपने के लिए ओट नहीं मिलती। वनों के प्रबंध में जनता की भागीदारी न होने से इंशान और वन्य जीवों के बीच संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं। विकासवादी पर्यावरण के महत्व को दरकिनार करके सबको कार सबको मोबाइल का नारा लगाते हैं और पर्यावरणवादी वापस गुफाओं में लौट जाने की जिद करते दिखाई दे रहे हैं। दोनों ही मार्ग सर्वमान्य और सुखद नहीं हो सकते, जाहिर है कि हमें बीच का रास्ता अपनाना होगा। विकास ऐसा हो जो लोगों को प्रकृति से जोड़े रखे वही लम्बे समय तक चल पायेगा।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में पर्यावरण संरक्षण और विकास को लेकर विगत लम्बे समय से तीखी बहश व तनातनी चली आ रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि इस जिले की भौगोलिक स्थिति व विशाल वन क्षेत्र को देखते हुए यहां का औद्योगिक विकास तो हो नहीं सका लेकिन नैसर्गिक विकास की जो संभावनायें थीं वे भी फलीभूत नहीं हो सकीं। ऐसे समय पर पन्ना शहर के एक बेहद प्रतिष्ठित और सुशिक्षित परिवार ने जिलावासियों को नई राह दिखाई है। कुंवर केशव प्रताप सिंह तथा उनकी पत्नी श्रीमती दिव्यारानी सिंह ने पर्यावरण संरक्षण व विकास के बीच तालमेल बैठाते हुए अपनी उपजाऊ कृषि भूमि में प्लान्टेशन कराने का निर्णय लिया है। अब तक इन्होंने तकरीबन ढाई सौ एकड़ भूमि में क्लोन प्रजाति के यूकेलिप्टस लगवाये हैं, फलस्वरूप इस भूमि में घने जंगल जैसा दृश्य नजर आने लगा है। केशव प्रताप सिंह के मुताबिक इस पहल से जहां पर्यावरण में सुधार व पर्यावरण का संरक्षण होगा वहीं कृषि उत्पादन के ही समतुल्य यूकेलिप्टस के इस जंगल से मोटी आय भी होगी।
पर्यावरण एवं वन्य जीवों पर खासी रूचि रखने वाले केशव प्रताप सिंह ने बताया कि उन्हें अपने बड़े बुजुर्गों तथा पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक रह चुके आर श्रीनिवास मूर्ति से यह पता चला कि दशकों पूर्व पन्ना से बांधवगढ़ तक जंगल का भरा पूरा गलियारा था, जहां से होकर बाघों का आना जाना होता रहता था। लेकिन आबादी बढऩे के साथ - साथ तेजी से जंगल कटने पर बाघों का यह पुराना गलियारा (कॉरीडोर) नष्ट हो गया। जिसके चलते बाघों का नैसर्गिक जीवन प्रभावित हुआ और यहां के जंगलों से बाघ विलुप्त हो गये। आपका कहना है कि बाघों को सुरक्षा व संरक्षण के साथ - साथ उस पूरे तंत्र को भी बचाया जाना जरूरी है, जहां बाघों को जीवन के अनुकूल जगह मिल सके। यह बात हमारे जेहन में जब आई तो हमने यह निश्चय किया कि किसी भी तरह दशकों पुराने बाघ कॉरीडोर को फिर विकसित किया जाय। इस काम में दूसरे लोग आगे आयें, इससे पूर्व शुरूआत हमने की और उसके बड़े ही सार्थक व उत्साह जनक परिणाम भी आने लगे हैं। केन नदी के किनारे कृषि भूमि में घना जंगल तैयार होने से अन्य दूसरे लोग भी पौध रोपण करने के लिए प्रेरित हुए हैं जिससे कॉरीडोर विकसित किये जाने के प्रयासों को बल मिला है। केशव प्रताप सिंह बताते हैं कि श्यामेन्द्र सिंह बिन्नी राजा, शेखर व हेमराज से भी उन्हें टाइगर कॉरीडोर के बारे में जानकारी मिली फलस्वरूप तीन - चार साल पूर्व तक जहां एक भी पेड़ नहीं थे वहां अब जंगल लहलहाने लगा है।

बाघ पन्ना 212 ने भी की थी कॉरीडोर की खोज 



कॉरीडोर से होकर गुजरता बाघ पन्ना 212

पन्ना टाइगर रिजर्व के युवा बाघ पी - 212 ने भी पन्ना - बांधवगढ़ तथा संजय टाइगर रिजर्व के खोये हुए पुराने कॉरीडोर को खोज निकालने में सफलता हासिल की थी। विगत वर्ष मार्च के महीने में इस बाघ ने तमाम तरह की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते हुए केन से सोन तक का लम्बा फासला तय किया और अपने नये ठिकाने तक जा पहुंचा। अपनी इस यात्रा के दौरान पी - 212 ने यह सीख भी दी कि मानव जीवन के लिए प्रकृति के साथ संतुलन बेहद जरूरी है। राजाशाही जमाने के पुराने जानकार यह बताते हैं कि पण्डवन से लेकर कल्दा पहाड़ तक अच्छा जंगल था, यहां से होकर हमेशा बाघ व तेंदुआ गुजरते रहे हैं। बाघों का यह सदियों पुराना रास्ता है जिसे फिर से विकसित किये जाने के प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय हैं।

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Wednesday, December 19, 2018

ठिठुरन बढऩे से लोगों की बदल गई दिनचर्या

कड़ाके की ठंड के चलते सुबह धूप निकलने पर मॉर्निंग वॉक।  फोटो - अरुण सिंह 

  •  सुबह की सैर पर निकलने वालों ने भी बदला समय
  •   पन्ना में तापमान का पारा 5 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुँचा


अरुण सिंह,पन्ना । बर्फीली सर्द हवाओं से ठिठुरन इस कदर बढ़ गई है कि ठण्ड के प्रकोप से बचने के लिये लोगों को अपनी दिनचर्या में बदलाव करने के लिये विवश होना पड़ रहा है। जो लोग सुबह की सैर में प्रतिदिन 5 बजे अपने घरों से निकल पड़ते थे, वे अब इस कड़ाके की ठण्ड में 6 बजे तक रजाई में ही दुबके रहते हैं। माॄनग वाक के शौकीन ज्यादातर लोग मौसम के बदले हुये मिजाज को देखते हुये अब धूप निकलने पर सुबह 7 बजे टहलने के लिये घर से निकलते हैं। कड़ाके की ठण्ड ने हर किसी की दिनचर्या को प्रभावित किया है। मालुम हो कि मन्दिरों के शहर पन्ना में तापमान का पारा पिछले 3-4 दिनों से 5 डिग्री सेल्सियस के नीचे बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर भारत में हुई बर्फबारी का असर पन्ना जिले में भी पड़ रहा है। बर्फबारी होने से बर्फीली हवायें तापमान के पारा को लगातार नीचे की ओर खिसका रही हैं। आलम यह है कि दिन ढलने के साथ ही लोग अपने घरों में दुबकने के लिये मजबूर हो रहे हैं। इस भीषण ठण्ड में सबसे ज्यादा मुसीबत रोज कमाने वाले मजदूरों की है। ठण्ड से बचने के लिये इनके पास पर्याप्त गर्म कपड़े भी नहीं रहते, ऐसी स्थिति में ठिठुरन और बर्फीली हवाओं के प्रकोप से बचने के लिये इनके पास अलाव ही एक मात्र सहारा है। आग जलाकर ही गरीब परिवारों के लोग इस भीषण ठण्ड से अपना बचाव कर रहे हैं। सोमवार से आसमान में बादल भी नजर आने लगे हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में ठण्ड के साथ-साथ कोहरे का भी प्रकोप शुरू हो सकता है।

अलाव की नहीं हुई व्यवस्था

भीषण ठण्ड को देखते हुये शहर के प्रमुख सार्वजनिक स्थलों विशेषकर बस स्टैण्ड व जिला चिकित्सालय परिसर में नगर पालिका प्रशासन द्वारा अलाव की व्यवस्था कराई जानी चाहिये, जो अभी तक नहीं हुई। अलाव न जलने से बस स्टैण्ड में यात्रियों के साथ-साथ आटो-रिक्शा चालकों को ठण्ड में ठिठुरना पड़ता है। बस स्टैण्ड में रात गुजारने वाले गरीब कूड़ा-कचरा जलाकर किसी तरह ठण्ड के प्रकोप से अपने को बचा रहे हैं। यही हाल जिला अस्पताल में गरीब मरीजों के परिजनों के हैं, गर्म कपड़ों के अभाव में इन्हें भारी मुसीबत झेलनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में अविलम्ब अभाव की व्यवस्था कराया जाना बेहद जरूरी है।
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Monday, December 17, 2018

पन्ना टाइगर रिज़र्व के विस्थापित ग्रामों में विषधरों का डेरा

  • यहाँ के जंगल में नागों का है अदभुत संसार 
  • ढह चुके घरों को बना लिया है अपना बसेरा 


पेड़ के ऊपर शाखा में आराम फरमाता विषधर 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघों से आबाद हो  चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में  अत्यधिक जहरीले कोबरा नागों का भी अदभुत संसार है। यहाँ इन खतरनाक जहरीले नागों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। रिजर्व वन क्षेत्र से अन्यत्र विस्थापित हो चुके ग्रामों को इन विषधरों ने अपना बसेरा बना लिया है। 

टाईगर रिजर्व के हिनौता व मड़ला वन परिक्षेत्र अंतर्गत विस्थापित आधा दर्जन से भी अधिक ग्रामों के ध्वस्त हो  चुके घरों में कोबरा नागों ने डेरा जमा लियाहै । इन ग्रामों व आस-पास के जंगल यहाँ  तक कि वृक्षों की शाखाओं में ये खतरनाक विषधर विचरण करते हुए  यदा-कदा नजर आ जाते हैं।

पन्ना टाईगर रिजर्व के मैदानी कर्मचारियों व पर्यटक गाइडों ने बताया कि कोबरा प्रजाति का चश्माधारी नाग यहाँ  प्रचुरता से पाया जाता है । रिजर्व वन क्षेत्र के जिन ग्रामों को हटाया जाकर अन्यत्र बसाया गया है, उस मानवविहीन हो चुके इलाके में विषधरों ने कब्जा जमा लिया है। 

पन्ना टाईगर रिजर्व के सेवानिवृत्त सहायक संचालक एम.पी. ताम्रकार ने बताया कि कोबरा नाग अत्यधिक फुर्तीला और क्रोधी स्वभाव का होता है, उसके डसने से मनुष्य ही नहीं हाँथी तक की मौत हो जाती है। पन्ना टाईगर रिजर्व के हीरा नामक नर हाँथी की मौत कोबरा सर्प के डसने से ही  हुई थी। आपने बताया कि सर्पों में सिर्फ किंग कोबरा ही एक ऐसा सर्प है जो वगैर छेड़े ही अचानक हमला कर देता है। 

क्रोधी स्वभाव वाला यह खरनाक सर्प पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में काफी संख्या में पाया जाता है। ठंंड के मौसम में यह सर्प बहुत ही  कम बाहर निकलता है, लेकिन बारिश और गर्मी के मौसम में अक्सर दिखाई दे जाते हैं । कोबरा सर्पों की प्रचुर संख्या को दृष्टिगत रखते हुए रिजर्व वन क्षेत्र के भीतर पैदल ट्रेकिंग करने वाले वन कर्मचारियों को हर समय चौकन्ना रहना पड़ता है।

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Sunday, December 16, 2018

शातिर शिकारियों के निशाने पर हैं पन्ना के बाघ

  •  विस्फोटक व  करंट फैलाकर किया जा रहा वन्य प्राणियों का शिकार  
  •  वन अमले ने विस्फोटकों का जखीरा,हथियार,मृत वन्य प्राणी व कार किया बरामद   
  •  शातिर शिकारी मौके से भागने में हुए कामयाब 
  •  दक्षिण वनमंडल पन्ना के पवई वन परिक्षेत्र की घटना 



अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके  मध्य प्रदेश के  पन्ना टाइगर रिज़र्व में एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यहाँ के जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे तीन दर्जन से भी अधिक बाघ तथा बड़ी संख्या में मौजूद जंगल का राजकुमार कहा जाने वाला तेंदुआ और भालू सहित शाकाहारी वन्य जीव शातिर शिकारियों के निशाने पर हैं। बड़े पैमाने पर  अवैध उत्खनन के लिए बदनाम दक्षिण वनमंडल पन्ना का पवई वन परिक्षेत्र शिकार की घटनाओं के लिए सुर्खियों में है। यहाँ वन संपदा का अवैध रूप से बड़े पैमाने पर दोहन करने वाले खनन माफियाओं के अलावा शातिर शिकारियों के भी सक्रिय होने का सनसनीखेज खुलासा हुआ है। बीती 14 दिसंबर की रात्रि में जंगल में ही शिकारियों के एक ठिकाने से वन अमले ने भरी मात्रा में विस्फोटक,शिकार में उपयोग होने वाला जीआई तार.हथियार,खूंटियां,मृत कई वन्यजीव,सागौन की लकड़ी सहित एक इंडिगो कार बरामद किया है। लेकिन वहां मौजूद शिकारी अँधेरे का फायदा उठाकर भागने में सफल हो गये हैं। वन परिक्षेत्राधिकारी पवई शिशुपाल अहिरवार ने जानकारी देते हुए बताया कि फरार हुए शिकारियों.में से एक व्यक्ति की पहचान रजऊ राजा उर्फ़ योगेन्द्र सिंह पिता कृष्णपाल सिंह निवासी ग्राम महोड़ के रूप में हुई है। आरोपियों के विरुद्ध वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है।

शिकारियों के वाहन से बरामद विस्फोटक,हथियार व विद्युत तार  

घटनाक्रम के संबंध में वन परिक्षेत्राधिकारी पवई ने जानकारी देते हुए बताया कि  14 एवं 15 दिसम्बर की दरम्यानी रात रूटीन सर्चिंग के दौरान मुडेरा बेरियल की चैकिंग उपरांत वन अमला जैसे ही मझगवां की ओर जा रहा था, तभी कोठी से मझगवा की ओर जा रही सफेद रंग की इण्डिगों कार का पीछा करने पर अचानक कार खड़ी हो गई तथा तीन व्यक्ति कार से उतरकर भाग निकले । टार्च की रोशनी से देखने पर तीन आरोपी  रजऊ राजा पिता कृष्णपाल सिंह  के अरहर के खेत से भागते हुये नजर आये ।   खेत के एक किनारे से दूसरे किनारे तक चार सौ मीटर जीआईतार सत्ताईस नग बांस की खूटियां के सहारे इलेवन केबी विद्युत लाईन तक बिछाया गया था। बिछी हुई तर में कोठी विद्युत लाईन से करेन्ट प्रवाहित होते हुये पाया गया जिसकी चपेट में आकर एक गाय सहित जंगली बिल्ली एवं एक कबरबिज्जू  तार में फैले करंट से झुलसे हुये मृत पाये गये। जिन्हे वन अमले  द्वारा अभिरक्षा में लेते हुये पोस्ट मार्टम कराने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया।

कार में मिला बिस्फोटकों का जखीरा 



आरोपियों की कार जिसे छोड़कर वे मौके से फरार हुए 
अपराधियों की इण्डिगों कार क्र. एमपी-20टी-7654 की जब तलाशी हुई तो वन अमला बिस्फोटक का जखीरा देख दंग रह गया। इंडिगो कार के अंदर व खेत में मिलीं चार पेटियों से 687 नग एक्सप्लोसिव डायनामाईट जप्त हुए। दक्षिण वन मंडल पवई के एसडीओ आर.के. अवधिया ने बताया की खेत में 2 नग  कार्टून पैक पाए गये जिसमें प्रत्येक कार्टून में 200 - 200 नग डायनामाईट भरे हुए थे। इसके अलावा कार की डिग्गी के अंदर एक नग  डायनामाईट का सील पैक कार्टून जिसमे 200 नग डायनामाईट थे  , एक नग खुला डायनामाईट का कार्टून जिसमें 80 नग एक्सप्लोसिव डायनामाईट पाये गये। कार की सर्चिंग  के दौरान डिग्गी में एक नग सांभर का सींग, एक नग कुल्हाड़ी, लगभग 1 किग्रा जीआई तार, एक नग एयरगन, छ: नग सागौन का चिरान पाया गया। जिनकी मौके से वाहन सहित जब्ती की गई। गौरतलब है कि पवई वन परिक्षेत्र के जिस इलाके में विस्फोटकों का जखीरा बरामद हुआ है तथा करंट से शिकार की घटनायें सामने आई हैं उसी इलाके में पिछले कई महीनों से एक बाघ विचरण कर रहा है। गनीमत यह रही कि बिछाई गई विद्युत तार की चपेट में इलाके में विचरण कर रहा वनराज नहीं आया अन्यथा बहुत बड़ी क्षति हो जाती।

तेंदुए और भालू का यहाँ हो चुका है शिकार 


पूर्व में तेंदुए का हुए शिकार मामले में घटना स्थल का जायजा लेतीं डीएफओ  दक्षिण 

वन्य प्राणियों के शिकार को लेकर बदनाम हो चुके पवई वन परिक्षेत्र में शिकार की घटनायें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। जिम्मेदार वन अधिकारी जंगल व वन्यप्राणियों की सुरक्षा में ध्यान देने के बजाय अन्य दूसरी गतिविधियों में ज्यादा रूचि लेते हैं जिसका फायदा शिकारी उठा रहे हैं। इसी वर्ष पवई वन परिक्षेत्र में तेंदुआ और भालू सहित अन्य वन्यप्राणियों के शिकार की घटनायें हो चुकी हैं फिर भी वन अधिकारीयों द्वारा लापरवाही बरती जा रही है जो निश्चित ही चिंतनीय है। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में जहाँ तीन दर्जन से भी अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं,वहीँ कई बाघ बफर व आस पास के जंगलों में भी देखे जा रहे हैं। चाक चौबंद सुरक्षा के अभाव में इन बाघों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। समय रहते यदि बफर व सामान्य वन क्षेत्रों में विचरण कर रहे बाघों की सुरक्षा के माकूल प्रबन्ध नहीं किये गये तो शातिर शिकारी एक बार फिर पन्ना के बाघों को अपने निशाने पर ले सकते हैं  बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
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Saturday, December 15, 2018

बुन्देलखण्ड के पचमढ़ी कल्दा पठार का उजड़ रहा नैसर्गिक सौन्दर्य

  •   अवैज्ञानिक विदोहन से विलुप्त हो रही हैं दुर्लभ वन औषधियां
  •   पठार के उजड़ रहे जंगल का संरक्षण और संवर्धन जरूरी



कल्दा पठार में श्यामगिरी स्थित वन विभाग का रेस्ट हाऊस। फोटो - अरुण सिंह 

  । अरुण सिंह 

पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पचमढ़ी कहे जाने वाले कल्दा पठार का नैसर्गिक  सौन्दर्य उजड़ रहा है। यहां के जैव विविधता से परिपूर्ण घने और समृद्ध जंगलों पर खनन माफियाओं की नजरें गड़ी हैं। इनकी सक्रियता बढऩे से पठार की संस्कृति व पर्यावरण खतरे में है। यहां के जंगल में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में दुर्लभ जड़ी बूटियां भी पाई जाती हैं, लेकिन इन जड़ी बूटियों को अवैज्ञानिक तरीके से अधाधुंध दोहन होने के कारण अनेकों वनौषधियां विलुप्त हो रही हैं। 

पन्ना जिले में सारंग मन्दिर की पहाडिय़ों से लेकर कालींजर तक वनौषधियों का अकूत भण्डार है। जिले के दक्षिण में आदिवासी बहुल कल्दा पठार जो पवई और शाहनगर दो विकासखण्डों की सीमा को घेरता है, यहां के समृद्ध वन क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। जानकारों का कहना है कि कल्दा पठार के जंगल में पाई जाने वाली वनौषधियों की तासीर हिमालय पर्वत में पाई जाने वाली वनौषधियों से मिलती जुलती है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले को प्रकृति ने वनौषधियों व अन्य वनोपज से समृद्ध किया है। लेकिन वनों की हो रही अनियंत्रित कटाई व अवैज्ञानिक तरीके से वनोपज के हो रहे दोहन से जिले की यह प्राकृतिक संपदा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। दुर्लभ वनौषधियों की अनेकों प्रजातियां विलुप्त हो जाने तथा जंगल की अवैध कटाई व अनियंत्रित उत्खन से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की ओर वन महकमे को जिस तरह से ध्यान देना चाहिये, वैसा नहीं हो रहा। नतीजतन वन क्षेत्र दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है। 

जिन इलाकों में डेढ़-दो दशक पूर्व तक घना जंगल था वहां का जंगल उजड़ चुका है और आस-पास पत्थर की खदानें चल रही हैं। जिन अधिकारियों के कंधों पर पर्यावरण संरक्षण और जंगलों की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी है वे भी अपने मूल कार्यों पर रूचि लेने के बजाय तथाकथित विकास, निर्माण और उत्खनन के कार्यों में ज्यादा रूचि ले रहे हैं। यही वजह है कि कल्दा पठार का जंगल भी अब खनन माफियाओं के निशाने पर है।

ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने हो पहल


कल्दा पठार के जंगल का विहंगम दृश्य। फोटो - अरुण सिंह 

पन्ना के समृद्ध और खूबसूरत वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म के विकास की अपार संभावनायें मौजूद हैं। यदि इस दिशा में सार्थक और रचनात्मक पहल शुरू हो तो इससे रोजी और रोजगार के भी नये अवसर पैदा हो सकते हैं। कल्दा पठार का जंगल तो ईको टूरिज्म के लिये एक आदर्श वन क्षेत्र है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पचमढ़ी कहा जाने वाला यह पूरा इलाका खनिज व वन संपदा से समृद्ध है। यहां चिरौंजी, आँवला, महुआ, तेंदू, हर्र, बहेरा, शहद व तेंदूपत्ता जैसी वनोपज जहां प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, वहीं इस पठार में दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी खजाना है।

यहां के जंगल में सफेद मूसली, खस, महुआ गुठली, हर्र, बहेरा, काली मूसली, सतावर, मुश्कदारा, लेमन ग्रास, कलिहारी, अश्वगंध, सर्पगंध, माल कांगनी, चिरौटा, लहजीरा, अर्जुन छाल, मेलमा, ब्राह्मी, बिहारी कंद, मुलहटी, शंख पुष्पी, सहदेवी, पुनर्नवा, धवर्ई, हर सिंगार, भटकटइया, कालमेघ, जंगल प्याज, केव कंद, तीखुर तथा नागरमोथा जैसी वनौषधियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। 

यदि कल्दा पठार के नैसॢगक सौन्दर्य तथा यहां पर प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ वनौषधियों का संरक्षण व संवर्धन किया जाये तो इस वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसा होने पर यहां के रहवासियों को जहां रोजगार मिलेगा वहीं यहां की प्राकृतिक खूबियां भी बरकरार रहेंगी।


विनाशकारी विदोहन पर लगना चाहिये रोक



कल्दा क्षेत्र में चलने वाली खदानों का नजारा।

जंगल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ वनौषधियों के विनाशकारी अवैज्ञानिक विदोहन पर प्रभावी रोक लगनी चाहिये ताकि वनौषधियों को विलुप्त होने से बचाया जा सके। प्रकृति ने मनुष्य को औषधीय पौधों के रूप में अरोग्य का अमूल्य वरदान दिया है। प्रकृति प्रदत्त औषधीय जड़ी-बूटियों के विशिष्ट भागों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में मनुष्य आदिकाल से करता आ रहा है। लेकिन बढ़ती आबादी के साथ-साथ माँग बढऩे पर औषधीय पौधों का अधाधुंध दोहन होने लगा, जिससे औषधीय पौधे अल्प उपलब्धता से लेकर विलुप्ति के कगार तक पहुँच गये। 

उदाहरण के लिये सर्पगंधा एक ऐसा पौधा है जिससे रक्तचाप एवं अति उत्तेजना को कम करने की औषधि निर्मित की जाती है। सर्पगंधा के इन गुणों के कारण औषधि कंपनियों द्वारा माँग बढ़ती गई एवं अधिक विदोहन के कारण इसका पुनरोत्पादन धीरे-धीरे कम होने लगा। फलस्वरूप यह औषधीय गुणों वाला पौधा अब विलुप्तप्राय प्रजातियों में गिना जाने लगा है। पन्ना के जंगलों में पाई जाने वाली वनौषधियों के विनाशकारी विदोहन पर रोक लगाने तथा लोगों में जागृति लाने के लिये विशेष पहल व प्रयास बेहद जरूरी हैं ताकि जंगल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली वनौषधियों का संरक्षण और संवर्धन हो सके।

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Friday, December 14, 2018

सागौन का जंगल जहाँ वृक्षों पर कोई नहीं चलाता कुल्हाड़ी

  •  धार्मिक आस्था के चलते पांच सौ वर्ष से सुरक्षित है जंगल
  •  बादामी बाबा के चबूतरे की गौंड़ करते हैं  पूजा व अर्चना



पन्ना नेशनल पार्क के जंगल में मड़ला प्रवेश द्वार के निकट स्थित बादामी बाबा का चबूतरा।

अरुण सिंह,पन्ना। वनों व वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए तैनात भारी भरकम अमला व बड़े नियम कानून से जो संभव नहीं  हो  पाता, वह कार्य धार्मिक आस्था व विश्वास के चलते एक देव स्थल के आस-पास स्वमेव हो  रहा  है । म.प्र. के पन्ना नेशनल पार्क में केन नदी के निकट स्थित बादामी बाबा का चबूतरा सैकड़ों वर्षों से गौड़ों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है । इस चबूतरे के आस-पास सागौन का बेहतरीन जंगल है , लेकिन कोई भी व्यक्ति इस इलाके में वृक्षों पर न तो कुल्हाड़ी  चलाता है  और न ही  वन्य जीवों का शिकार करता है । गौड़ों की ऐसी मान्यता है  कि बादामी बाबा के चबूतरे में नारियल चढ़ाने से सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं।
उल्लेखनीय है  कि पन्ना नेशनल पार्क के मड़ला प्रवेश द्वार से लगभग 4 किमी दूर केन नदी के किनारे घने जंगल में बादामी बाबा का चबूतरा बना हुआ है । बताया जाता है  कि ग्राम पीपरटोला निवासी बादामी बाबा को लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व इसी स्थान पर एक बाघ ने मार दिया था। फलस्वरूप तत्कालीन गौड़ राजा ने बाबा की स्मृति में यहाँ  पर एक चबूतरे का निर्माण कराया था, तभी से गौड़ इस स्थल पर पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं । ऐसी मान्यता है  कि जो कोई भी श्रद्धा और विश्वास के साथ चबूतरे में नारियल चढ़ाता है  उसे यहाँ  के जंगल में बाघ देखने को अवश्य मिलता है । पिछले पांच सौ वर्षों से चली आ रही  इसी मान्यता के चलते नेशनल पार्क के भ्रमण में आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक भी बादामी बाबा के चबूतरे में नारियल चढ़ाकर परिकृमा करते हैं  ताकि जंगल में उनको वनराज के दर्शन हो  सकें।
बादामी बाबा के प्राचीन चबूतरे व उससे जुड़ी किवदंतियों की चर्चा करते हुए  पन्ना राजघराने के सदस्य एवं पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व यहाँ   गौड़ राजाओं का शासन था, उस समय ग्राम पीपरटोला में बादामी बाबा नाम के संत हुए थे। आप जंगल में ही  वन्यजीवों के बीच विचरण करते हुए आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। तत्कालीन गौड़ राजाओं को जब वनराज के दर्शन करने होते  थे तो वे बादामी बाबा के पास आते थे और बाबा उन्हें  सहजता से जंगल के राजा का दीदार करा देते थे। बताया जाता है  कि एक बार किसी राजा को जब बाबा ने बाघ दिखाया तो राजा ने उस बाघ को गोली मार दी। परिणामस्वरूप बादामी बाबा को जख्मी बाघ के कोप का भाजन बनना पड़ा। तभी से इस पूरे इलाके में न तो कोई शिकार करता है  और न ही  जंगल के वृक्षों को क्षति पहुँचाता है । मड़ला गांव के बुजुर्गों ने बताया कि चबूतरे के आस-पास जिस तरह का सागौन वन है  वैसा जंगल अन्यत्र कहीं  देखने को नहीं  मिलता। धार्मिक आस्था और विश्वास के कारण यहाँ  का जंगल पूरी तरह से सुरक्षित है । सागौन के घनघोर जंगल व केन नदी की अनुपम छटा के कारण यह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है । 

Thursday, December 13, 2018

परिवर्तन की बयार का पन्ना में नहीं दिखा असर



  •   पन्ना सीट से बृजेन्द्र प्रताप सिंह  भारी मतों से जीते
  •   पवई से मुकेश नायक को हराकर प्रहलाद बने नायक




रिटर्निंग आफीसर से जीत का प्रमाण पत्र लेते हुये बृजेन्द्र प्रताप सिंह। 
अरुण सिंह, पन्ना। समूचे प्रदेश में अन्दरूनी तौर पर मन्द-मन्द चलने वाली परिवर्तन की बयार का पन्ना जिले में कोई खास असर दिखाई नहीं दिया। मंगलवार को घोषित हुये चुनाव परिणामों से यह साबित हो गया है कि पन्ना विधानसभा सीट भाजपा का ऐसा अभेद्य किला है, जिस पर फतह हासिल करना यदि नामुमकिन नहीं तो कठिन अवश्य है। इस बार कांग्रेस ने पन्ना सीट से लोकप्रिय और युवा प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था, जिससे शुरूआती दौर में समूचे विधानसभा क्षेत्र में यह आम चर्चा थी कि कांग्रेस इस बार भाजपा के अभेद्य किले में सेंध लगाने में कामयाब होगी। लेकिन भाजपा ने ऐन मौके पर अपनी रणनीति बदली और पवई सीट से घोषित हो चुके प्रत्याशी बृजेन्द्र प्रताप ङ्क्षसह को पन्ना से चुनाव मैदान में उतार दिया। भाजपा की यह रणनीति कामयाब रही और पन्ना का किला न सिर्फ सुरक्षित रहा अपितु यहां से पार्टी को शानदार जीत भी हासिल हुई।
उल्लेखनीय है कि पन्ना विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बृजेन्द्र प्रताप ङ्क्षसह को 68359 मत प्राप्त हुये जो अब तक इस सीट पर किसी भी प्रत्याशी को मिले मतों से अधिक है। आज तक इतने मत कभी किसी प्रत्याशी को नहीं मिले। संपन्न हुये चुनाव में इस सीट से प्रमुख प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के शिवजीत ङ्क्षसह को 47651 मत प्राप्त हुये। यह आँकड़ा भी इस सीट पर अब तक किसी भी कांग्रेस प्रत्याशी को मिले मतों से काफी अधिक है। इसके बावजूद कांग्रेस को यहांं 20708 मतों के भारी अन्तर से हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चॢचत प्रत्याशी बसपा की अनुपमा चरण ङ्क्षसह यादव रही हैं। उ.प्र. के झांसी से पन्ना आकर चुनाव लडऩे वाली यह प्रत्याशी पूरे ताम झाम के साथ उ.प्र. की ही तर्ज पर चुनाव लड़ा, लेकिन पन्ना के मतदाताओं ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। जैसी उम्मीद थी इन्हें जातिगत समीकरणों के आधार पर वोट मिले, जबकि इनकी जीत का दावा किया जा रहा था। बसपा प्रत्याशी को यहां सिर्फ 22818 मत ही प्राप्त हो सके, जबकि जन अधिकार पार्टी के प्रत्याशी महेन्द्रपाल वर्मा को 10973 मत मिले। पन्ना सीट से सपा प्रत्याशी दशरथ यादव को महज 3251 मतों से ही सन्तोष करना पड़ा।
जिले की चॢचत पवई विधानसभा सीट में जरूर चौंकाने वाला और अप्रत्याशित परिणाम आया है। इस सीट पर क्षेत्रीय प्रत्याशी का मुद्दा काफी असरकारक रहा, जिसके चलते कांग्रेस के कद्दावर नेता व विधायक मुकेश नायक को करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश नायक को एक अपरिचित क्षेत्रीय भाजपा के प्रत्याशी ने 23 हजार से भी अधिक मतों से जीत दर्ज कर पवई का नायक बन गया। पवई सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद लोधी को रिकार्ड 79647 मत मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश नायक को 55967 मत ही हासिल हुये। इस तरह से भाजपा प्रत्याशी ने श्री नायक को 23680 मतों के अन्तर से पराजित किया। यहां से सपा के युवा प्रत्याशी भुवन विक्रम ङ्क्षसह ने भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करते हुये 22384 मत प्राप्त किये हैं। जबकि बसपा के सीताराम पटेल को 14381 तथा गोंगपा के महिपाल ङ्क्षसह को 9913 मत मिले हैं।

गुनौर विधान सभा सीट में खुला कांग्रेस का खाता

 गुनौर सीट से जीते शिवदयाल बागरी प्रमाण पत्र प्राप्त करते हुये।
जिले की तीन विधानसभा सीटों में दो पर भाजपा का कब्जा होने के साथ ही भारी कसमकस के बाद सुरक्षित विधानसभा सीट गुनौर में कांग्रेस को मामूली मतों के अन्तर से जीत का स्वाद मिला। पिछले चुनाव में हार का स्वाद चख चुके कांग्रेस के शिवदयाल बागरी को इस बार गुनौर क्षेत्र के मतदाताओं ने मामूली अन्तर से ही सही लेकिन विधानसभा पहुँचा दिया है। भाजपा प्रत्याशी राजेश वर्मा से हुये कांटे के मुकाबले में शिवदयाल बागरी ने 1984 मतों के अन्तर से जीत दर्ज की है। श्री बागरी को 57658 मत मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी राजेश वर्मा को 55674 मत ही प्राप्त हो सके। गुनौर सीट से बसपा प्रत्याशी जीवन लाल सिद्धार्थ को 32793 मत हासिल हुये हैं।

Monday, December 10, 2018

सड़क किनारे कतार में लहलहा रहे नीम के पौधे

  •   बारिश में किसी पर्यावरण प्रेमी ने यहां बिखेर दिये थे बीज
  •   इन पौधों से पन्ना के बायपास मार्ग का बढ़ रहा आकर्षण


पन्ना शहर के बाईपास मार्ग में लहलहाते नीम के पौधे।  फोटो -  अरुण सिंह 

अरुण सिंह,पन्ना। सड़क के किनारे कतार में दूर तक लहलहाते नीम के हरे-भरे सैकड़ों पौधों को देखकर किसी का भी मन प्रफुल्लित हो जायेगा। यह मनोरम दृश्य पन्ना शहर के बायपास मार्ग का है, जहां सड़क के किनारे पत्थरों की पिङ्क्षचग के बीच किसी पर्यावरण प्रेमी ने बारिश के मौसम में नीम के बीज बिखेर दिये थे। वही बीज बिना किसी सुरक्षा व देखरेख के अंकुरित होकर बड़े पौधों में तब्दील हो गये हैं। जिन पौधों को पर्याप्त मिट्टी व नमी नहीं मिली है वे 10-12 फिट तक ऊँचे हो गये हैं। बायपास मार्ग में जहां तक पत्थरों की पिङ्क्षचग है, वहां सैकड़ों की संख्या में लहलहाते नीम के हरे-भरे पौधे अब सहज ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हैं।
उल्लेखनीय है कि ढाई-तीन दशक पूर्व तक रत्नगर्भा पन्ना की धरती शस्य श्यामला थी। प्रकृति के अनमोल उपहारों से समृद्ध पन्ना की यह धरा वन-उपवनों से हरी-भरी थी, जिससे यहां की आबोहवा और पर्यावरण शुद्ध था। लेकिन तीन दशकों के दौरान आबादी बढऩे के साथ विकास की कथित अंधी दौड़ में धरती की हरीतिमा उजड़ती चली गई। आलम यह है कि पन्ना शहर के आस-पास 10 किमी के दायरे में सागौन के वृक्ष तेजी से गायब हो रहे हैं और अब तो दूसरी प्रजाति के वृक्षों पर भी कुल्हाडिय़ां चलने लगी हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि पन्ना शहर के आस-पास जंगल के नाम पर सिर्फ लेन्टाना की झाडिय़ां बची हैं। तेजी के साथ जंगल की अवैध कटाई होने से यहां का पर्यावरण बिगड़ रहा है। हर साल जहां गर्मी बढ़ रही है वहीं बारिश का क्रम भी अनियमित हो गया है। जिसका असर आम जन जीवन पर पडऩे लगा है। ऐसी स्थिति में पन्ना बायपास मार्ग पर उगे नीम के पौधे यह संदेश देते हुये प्रतीत होते हैं कि अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा, चेत जाओ और पर्यावरण से खिलवाड़ करने के बजाय उसका संरक्षण भी करो। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब साँस लेना भी दूभर हो जायेगा और तापमान बढऩे से जीवन संकट में पड़ जायेगा।
बायपास मार्ग में सुबह की सैर पर प्रतिदिन जाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता परशुराम गर्ग ने मुझे जब इस सुखद समाचार से अवगत कराया कि बिना किसी सुरक्षा और देखरेख के सैकड़ों नीम के पौधे किस तरह लहलहा रहे हैं तो सहसा भरोसा नहीं हुआ। सच्चाई जानने के लिये उनके साथ सुबह बायपास मार्ग पर गया और जब वहां का नजारा देखा तो सचमुच मन प्रसन्न हो गया। वहां रुकने पर ऐसा प्रतीत हुआ मानो पन्ना की धरती यह पुकार रही है कि इसी तरह से बीजों को बिखेरो और मैं फिर से उजड़ चुकी पहाडिय़ों को हरा-भरा कर दूँगी। नीम के हरे-भरे लहलहाते पौधे मानो गवाही दे रहे थे, कि हम विपरीत हालातों में भी अपने वजूद को बनाये रखने में सक्षम हैं।


प्राकृतिक रूप से उगे नीम  पौधों को निहारते एक बुजुर्ग 

बारिश के मौसम में बिखेरें बीज


बारिश के मौसम ने दस्तक दे दी है, जहां-तहां मानसून पूर्व बारिश भी होने लगी है। ऐसे समय हर किसी को चाहिये कि नीम, जामुन, महुआ, आँवला जैसे अनेकों फलदार व छायादार वृक्षों के बीज लेकर खाली पड़ी भूमि पर बिखेरें, ये बीज मिट्टी और नमी का सानिध्य मिलने पर अंकुरित हो जायेंगे, इनमें अनेकों पौधे कुछ ही सालों बाद वृक्ष  बनकर न सिर्फ हमें फल व छाया प्रदान करेंगे अपितु पर्यावरण को भी हमारे जीने लायक बनायेंगे। यदि हम पौधों का रोपण कर उनकी नियमित देखभाल नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि जहां भी खाली रिक्त भूमि दिखे वहां बीज डाल दें। प्रतिदिन कुल्हाड़ी लेकर जंगल जाने वाले लोगों को भी यह बतायें कि बेरहमी के साथ हरे-भरे पेड़ों को काटना अपराध है। बीते तीन दशकों में बहुत पेड़ काट लिया अब पौध रोपण कर उनकी सुरक्षा भी करो ताकि यह धरती नई पीढ़ी के रहने लायक बच सके।

जंगल के राजा बाघ व जल के राजा मगर का पर्यटक कर रहे दीदार

  • पन्ना टाइगर रिज़र्व से प्रवाहित केन नदी में मगर देख रोमांचित हो रहे पर्यटक
  •  सरीसृप जीव मगर के लिए केन नदी का भौंरा देव बना आदर्श रहवास स्थली 



 केन नदी का भौंरादेव स्थल जहाँ पर्यटक करते हैं नौकायन। 

। अरुण सिंह 

पन्ना। जंगल के राजा बाघ सहित सरीसृप जीवों के लिए भी पन्ना नेशनल पार्क आदर्श रहवास स्थल बन चुका है । यहाँ के खूबसूरत घने जंगल व गहरे सेहों में जहाँ वनराज नजर आते हैं वहीँ यहाँ से प्रवाहित होने वाली केन नदी की बलुई चट्टानों में गुनगुनी धूप का आनंद लेते विशालकाय मगरमच्छ  सहजता दिखाई देते हैं।  

लगभग 545 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले पन्ना नेशनल पार्क के भीतर 54 किमी की लम्बाई में प्रवाहित होने वाली केन नदी मगर व घडिय़ाल जैसे सरीसृप जीवों के लिए अनुकूल आश्रय स्थली बन चुकी है।  नेशनल पार्क के मड़ला वन परिक्षेत्र अंतर्गत भौंरा देव नामक स्थान पर दर्जनों की संख्या में जल के राजा मगर नजर आते हैं । 

केन नदी की चट्टानों में ठंढ के मौसम में  सुबह की गुनगुनी धूप सेंकने के लिए पानी से बाहर निकलकर चट्टानों में मगर पड़े रहते हैं।जिनका दीदार करने बड़ी संख्या में पर्यटक केन नदी में नौकायन का लुत्फ उठाने के साथ-साथ इस विशालकाय सरीसृप जीव के भी दर्शन करके रोमांचित होते हैं।


 चट्टान के ऊपर चौकन्ना होकर बैठा विशाल मगरमच्छ। फोटो साभार  - अंकित 

उल्लेखनीय है  कि पन्ना नेशनल पार्क के भौंरादेव नौकायन क्षेत्र में 4-5 किमी तक केन नदी में बारहों महीने अथाह जल भरा रहता है । इस अथाह जल राशि में भारी भरकम मछलियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी के चलते इस पूरे इलाके में मगर बहुतायत से पाये जाते हैं । मछलियों की प्रचुर उपलब्धता होने से मगरमच्छों को यहाँ  पर्याप्त भोजन मिल जाता है । 

केन नदी के इस क्षेत्र में अत्यधिक गहरा जल  होने से यहाँ  की मनोरम छटा देखते ही  बनती है । नदी में जगह-जगह उभरी चट्टानें अनूठी कलाकृतियों का आभास कराती हैं इन्ही  चट्टानों पर ठंड के इस मौसम में मगरमच्छ गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए  जहाँ -तहाँ  विश्राम करते दिखाई दे जाते हैं । पार्क भ्रमण हेतु पन्ना आने वाले पर्यटक यहाँ  के घने जंगल, गहरे सेहों व वन्यजीवों का दीदार करने के बाद केन नदी के भौंरादेव में नौकायन जरूर करते हैं । 

जंगल के राजा बाघ के दर्शन से पर्यटक यदि वंचित जाते हैं तो केन नदी में जल का राजा मगर जरूर देखने को मिल जाता है। बाघ के दर्शन न हो पाने की निराशा केन नदी में तब दूर हो  जाती है जब पर्यटक मोटरवोट में सवार होकर मगर को चट्टान में बैठे हुए हुए  निकट से निहारते हैं और उन्हें अपने कैमरे में कैद करते हैं। वन अधिकारियों का कहना है कि केन नदी में मगर व घडिय़ाल प्रजाति के सरीसृपों की संख्या में भारी वृद्धि होने से यह स्पष्ट है कि इन जीवों के रहवास हेतु  यहाँ  अनुकूल परिस्थितियां मौजूद हैं  जो प्रजनन में सहायक हैं ।

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Monday, December 3, 2018

प्रवासी पक्षी व वल्चर बने पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र

  •  पन्ना में  पक्षी दर्शन के शौकीन पर्यटकों की दिनों दिन बढ़ रही है संख्या
  •   तीन सौ से भी अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षी नजर आते हैं  यहां 


टाईगर रिजर्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी की चट्टान पर विश्राम करते प्रवासी पक्षी ब्लैक स्ट्रोक।


अरुण सिंह, पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल पक्षी दर्शन के शौकीन पर्यटकों के लिये जन्नत से कम नहीं है। लगभग 543 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र तथा यहां से प्रवाहित होने वाली केन नदी में तीन सौ से भी अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षी देखने को मिलते हैं। ठण्ड का मौसम शुरू होने के साथ ही यहां पर प्रवासी पक्षियों का आगमन भी शुरू हो गया है। प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी तथा उनके कलरव से इन दिनों टाईगर रिजर्व का जंगल गुलजार है। रिज़र्व  वन क्षेत्र के धुंधुवा सेहा सहित आस-पास के इलाकों में दुर्लभ प्रजाति के हिमालयन वल्चर जहां नजर आने लगे हैं, वहीं पीपर टोला, रमपुरा तालाब व केन नदी में साइबेरिया से उड़ान भरकर पहुंचे प्रवासी पक्षी ब्लैक स्ट्रोक बड़ी संख्या में दिख रहे हैं। सर्दी के इस मौसम में प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी से पक्षी दर्शन के शौकीन पर्यटकों का उत्साह देखते ही  बन रहा  है ।
उल्लेखनीय है कि म.प्र. में पाई जाने वाली गिद्धों की चार प्रजातियां किंग वल्चर, लांग विल्ड वल्चर, व्हाइट बैक्ड वल्चर तथा इजिप्सियन वल्चर पन्ना टाईगर रिजर्व में अच्छी संख्या में निवास करते हैं। लेकिन ठण्ड का मौसम आने पर गिद्धों की तीन प्रजातियां यहां प्रवास के लिए आते हैं । ये प्रवासी हिमालयन वल्चर पूरे ठण्ड के दिनों में यहां रूकते हैं और घोसला बनाकर बच्चे भी देते हैं। ठण्ड खत्म होने पर मार्च के महीने में हिमालयन वल्चर चले जाते हैं। वन अधिकारियों का कहना है  कि शीत ऋतु में यहां आने वाले प्रवासी वल्चरों में सिनरस वल्चर, यूरेशियन ग्रिफिन वल्चर तथा हिमालयन वल्चर प्रमुख हैं। बताया गया है  कि भारत में गिद्धों की 8 प्रजातियां पाई जाती हैं, इनमें 7 प्रजाति के गिद्ध पन्ना टाईगर रिजर्व में हैं जो निश्चित ही गर्व की बात है।

चट्टानों व पेड़ों पर बनाते हैं घोसले


 धुंधुवा सेहा में सुबह चट्टान में बैठकर गुनगुनी धूप का आनंद लेते वल्चर। 

म.प्र. में पाई जाने वाली गिद्धों की चार प्रजातियां पन्ना टाईगर रिजर्व में पूरे वर्ष नजर आती हैं। यहां की आबोहवा व पर्यावरण इन गिद्धों के अनुकूल है, यही वजह है कि यहां इनकी संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इन चार प्रजातियों में दो प्रजातियां लांग बिल्ड वल्चर तथा इजिप्सियन वल्चर पहाड़ की चट्टानों में घोंसला बनाते हैं जबकि व्हाइट वैक्ड वल्चर व किंग वल्चर ऊंचे वृक्षों पर घोंसला बनाकर रहते हैं। पन्ना टाईगर रिजर्व का धुंधुवा सेहा लांग विल्ड वल्चर व इजिप्सियन वल्चरों के लिए उत्तम रहवास है। यह खूबसूरत सेहा इन दिनों पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

राज्य पक्षी दूधराज के भी होते  हैं  दर्शन


 खूबसूरत कलगी से सुसज्जित म.प्र. का राज्य पक्षी दूधराज।

म.प्र. के राज्य पक्षी दूधराज(इंडियन फ्लाईकैचर) पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में खूब नजर आता है । शानदार कलगी वाला यह खूबसूरत पक्षी देशी व विदेशी सभी पर्यटकों को खूब लुभाता है । इस पक्षी के दर्शन होते ही   पर्यटक खुशी से झूम उठते हैं । पन्ना टाईगर रिजर्व के प्रसिद्ध पाण्डव जल प्रपात की वादियों में दूधराज पक्षी सबसे अधिक देखने को मिलता है । यह स्थल राज्य पक्षी के लिए आदर्श रहवास है । दूधराज के अलावा भी पाण्डव जल प्रपात के आस-पास दुर्लभ प्रजाति के अनेकों पक्षी देखने को मिल जाते हैं । यही  वजह है  कि बर्ड वॉचिंग के शौकीनों का यहाँ  जमावड़ा लगा रहïता है । इस स्थल की एक विशेषता यह भी है  कि यह पर्यटकों के भ्रमण हेतु बारहों  महीना  खुला रहता है।
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