Tuesday, December 29, 2020

क्या सचमुच हमने पृथ्वी में रहने की पात्रता खो दी है ?

  •  आखिर इंसान प्रकृति के संकेतों और चेतावनियों को क्यों कर रहा अनदेखा ?
  •  जंगल उजाड़ कर दौलत जमा करने वाले विकास मॉडल पर पुनर्विचार जरूरी

 

जिन कारणों के चलते मौजूदा संकट उपजा, उसको बयां करती यह तस्वीर।  


।। अरुण सिंह ।।

क्या सचमुच हमने पृथ्वी में रहने की पात्रता खो दी है ? क्या इस खूबसूरत और जीवंत ग्रह पृथ्वी से जीवन के विदा होने का समय आ गया है ? जीवन को पूरी तरह से नष्ट करने की दिशा में क्या सचमुच में हम तेजी के साथ अग्रसर नहीं हैं ? इस तरह के न जाने कितने सवाल जेहन में उभरते हैं और दूर-दूर तक कहीं भी इन सवालों के जवाब ढूंढे नहीं मिल रहे। चारों तरफ जिस तरह का परिदृश्य नजर आ रहा है तथा प्रकृति से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि मनुष्य जाने-अनजाने न सिर्फ आत्मघात करने पर आमादा है अपितु समूची पृथ्वी से जीवन के तिरोहित हो जाने का कारण भी बन रहा है। गुजर चुके साल 2020 में जो कुछ देखने को मिला है और जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय का नहीं है।


इंसान के कथित विकास मॉडल पर अपना सिकंजा कसती प्रकृति, यह तस्वीर भी एक चेतावनी।  

यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि 5 वर्ष पूर्व वर्ष 2015 में 195 देशों सहित यूरोपीय संघ के देशों ने पेरिस में इस धरती के इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। यह पेरिस समझौता इस धरती के जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इसका लक्ष्य पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस नीचे रखना था। मालूम हो कि जागतिक ऊष्मा में होने वाली यह वृद्धि संपूर्ण जीवन को समूल नष्ट करने की क्षमता रखती है। जलवायु परिवर्तन की उत्पन्न इस गंभीर चुनौती को लेकर हुए इस समझौते में अमेरिका की एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। अमेरिका ने यह वचन दिया था कि वर्ष 2025 तक वहां पैदा होने वाले प्रदूषण में 26 से 28 प्रतिशत  की कटौती कर देगा। लेकिन वर्ष 2019 में ही राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया। ट्रंप के अनुसार बढ़ती जागतिक ऊष्मा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण संयुक्त राज्य अमेरिका का विकास है। अमेरिका के इस फैसले मात्र ने पृथ्वी पर एक सुरक्षित जीवन के प्रयास को गहरा आघात पहुंचाया है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन न सिर्फ तापमान में वृद्धि और मौसमी पैटर्न में बदलाव कर रहा है बल्कि यह हमारी हवा, पानी और भोजन को भी प्रभावित करता है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हम एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं।

 पेरिस समझौते से मुकरने का अमेरिका ने जैसे ही ऐलान किया कि उसके साथ ही प्रकृति ने फिर कोरोना वायरस के रूप में तथाकथित विकासवादी इंसान को चेताने के लिए एक मारक संदेश भेजा, ताकि इंसान अपनी गलतियों से सबक लेकर प्रकृति को जीतने का मुगालता छोड़कर उसका सम्मान करना सीख ले। लेकिन हमने प्रकृति की इस चेतावनी को भी गंभीरता से नहीं लिया और कोरोना को हराने वैक्सीन की खोज में जुटे रहे। लेकिन इस बीच दुनिया में इस वायरस की चपेट में 8.16 करोड़ लोग आ चुके हैं और 17.81 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका, भारत और ब्राजील में कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले आये हैं। वैक्सीन का उपयोग कर हम इस महामारी से निपट पाते, इसके पूर्व ही कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है। यह नया स्ट्रेन कोरोना का नया रूप है, जिसे वैज्ञानिकों ने ज्यादा खतरनाक बताया है। चिंता की बात यह है कि कोरोना वायरस के इस नये स्ट्रेन ने भारत में भी दस्तक दे दी है। फिलहाल इस महामारी का अंत कब होगा, इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता।

 निश्चित ही यह मनुष्य जाति के लिए एक चेतावनी है कि प्रकृति के जलवायु मंडल और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में हम जीका, एड्स, सॉर्स और इबोला जैसे कई वायरस देख चुके हैं। लेकिन हमने उनसे कोई सबक नहीं लिया। अभी तक आये सभी वायरस वन्य प्राणियों से आये हैं, जिनके प्राकृतिक निवास स्थलों का विनाश हमने किया है। इस तरह की गतिविधियों से प्राकृतिक विपत्तियों का खतरा बढ़ जाता है। यह वायरस जंगली जानवरों से पालतू जानवरों और फिर मनुष्यों में फैलते हैं। वन्य प्राणी जब जंगल में अपने अनुकूल पर्यावास में स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं तो प्राकृतिक संतुलन के कारण उनकी संख्या जहां नियंत्रित रहती है, वहीं वे रोगमुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। लेकिन वनों का विनाश होने से उनका पर्यावास भी नष्ट होता है जिससे वह मानव आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अनुकूल पर्यावास न मिलने से उनमें बीमारियां पनपती हैं जिसकी चपेट में इंसान भी आ जाते हैं। इसलिए मौजूदा हालातों से सबक लेते हुए हमें संसाधनों को नष्ट कर दौलत जमा करने वाले विकास के मॉडल पर दोबारा सोचने की जरूरत है।

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Monday, December 28, 2020

बुनकर पक्षी बनाता है सबसे अनोखा आशियाना

  •  पेड़ में लालटेन की तरह लटकते दिखते हैं दर्जनों घोंसले 
  •  नैसर्गिक होती है बया पक्षी में सृजन की अनूठी क्षमता 

अनोखा घोंसला बनाने की नैसर्गिक क्षमता वाला बुनकर पक्षी बया। 

अरुण सिंह,पन्ना। प्रकृति एक ऐसी पाठशाला है जहां जीवन की जटिल से जटिल गुत्थियों को सुलझाने के सूत्र मिल जाते हैं। यहां बिना किसी जटिलताओं के सहजता के साथ जीवन जीने का पाठ सीखने को मिलता है। प्रकृति के बीच जाकर बिना किसी पूर्वाग्रह के यदि देखें तो साफ दिखाई देता है कि यहां पर सब कितने मस्त और तनाव रहित हैं। पेड़ - पौधों पर चहचहाते और गीत गाते पक्षियों के झुण्ड देख मन प्रफुल्लित हो जाता है। सैकड़ों प्रजाति के पक्षी हैं और सब अपने में मस्त व खुश हैं। हर पक्षी की कोई न कोई खूबी भी होती है, लेकिन उनके बीच ईर्ष्या, जलन व ऊँच-नीच का भाव इंसान की तरह नहीं होता। ऐसा ही एक खूबसूरत बया पक्षी है, जिसमें अनोखा घोसला बनाने की नैसर्गिक क्षमता होती है। बुनकर पक्षी समुदाय के सदस्य बया पक्षी का खूबसूरत आशियाना सहज ही सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। सृजन की उसकी क्षमता उसके द्वारा बनाये गये घोसले में प्रकट होती है।

बृक्ष में लटकते बया पक्षी के घोंसले। 

  उल्लेखनीय है कि बया पक्षी छोटे-छोटे घास के तिनकों और   पत्तियों का उपयोग करके लालटेन की तरह लटकते ऐसे अनोखे   घोंसलों का सृजन करते हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि कोई   पक्षी इतनी बारीक कारीगरी के साथ घोंसला बना सकता है।   आमतौर पर बया पक्षी नदी, नालों, झील व तालाबों के किनारे   स्थित पेड़ों को घोंसला बनाने के लिए चुनते हैं। इस पक्षी में   सामाजिक भावना इस कदर होती है कि एक ही पेड़ में दर्जनों   घोंसले होते हैं, जहां बया पक्षी एक साथ रहते और गीत गाते हैं।   ईर्ष्या, जलन और महत्वाकांक्षा से पीड़ित रहने वाले इंसानों को   इन पक्षियों से सीखना चाहिए कि किस तरह आपसी सहयोग की   भावना और प्रेम के साथ छोटे से घरौंदे में आनंद पूर्वक रहा जा   सकता है।

 पन्ना के जंगलों से गुजरने वाले प्राकृतिक नालों और सेहों में बया पक्षी के घोसलों से सुसज्जित अनेकों पेड़ देखने को मिल जाते हैं। यह नन्हा पक्षी बुनकर पक्षी समुदाय का सदस्य है, जिसे जुलाहा पक्षी भी कहा जाता है। यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। बया पक्षी के झुंड घास के मैदानों, खेतों और जंगलों में उड़ते हुए सहजता से दिख जाते हैं। बया पक्षी का प्रजनन काल मानसून के दौरान होता है, इस समय नर बया पक्षी ही शानदार घोसले का निर्माण करता है। इस घोसले में अंडों को रखने के लिए एक बड़ा गोलाकार स्थान होता है तथा नीचे की ओर एक ट्यूब की तरह निकलने का रास्ता होता है। नर बया पक्षी घोसला बनाने के लिए तकरीबन 5 सौ बार उड़कर लंबी घास व पत्तियां लाता है। इसके बाद यह अपनी चोंच से तिनकों और लंबी घास को आपस में बुन देता है। घोंसला बनाने के बाद ही नर पक्षी मादाओं को आकर्षित करने के लिए पंखों को हिलाकर मधुर आवाज निकालता है। मादा बया पक्षी दो से चार सफेद अंडे देती है। इन अंडों को 14 से 17 दिनों तक सेया जाता है। नर और मादा दोनों मिलकर बच्चों को खिलाते हैं और 17 दिन में ही बच्चे खुले आकाश में उडऩे के लिए तैयार हो जाते हैं।

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Saturday, December 26, 2020

संगठनात्मक चुनाव से मृतप्राय कांग्रेस में हुआ ऊर्जा का संचार

  •  युवक कांग्रेस की रैली में डेढ़ - दो दशक पूर्व जैसा दिखा नजारा 
  • रैली में निर्वाचित पदाधिकारियों का जगह-जगह हुआ स्वागत

युवक कांग्रेस की रैली में शामिल उत्साही युवकों की भीड़ का नजारा। 

।। अरुण सिंह ।।

 पन्ना। युवक कांग्रेस के अभी हाल ही में संपन्न हुए संगठनात्मक चुनाव से जिले की मृतप्राय सी पड़ी कांग्रेस में ऊर्जा का ऐसा संचार हुआ है कि डेढ़ - दो दशक पुरानी यादें तरोताजा हो गईं हैं। शुक्रवार को पन्ना शहर में निकली युवक कांग्रेस की रैली में नवनिर्वाचित पदाधिकारियों का स्वागत करने जिस तरह से युवक उमड़े और रैली में उत्साह का प्रदर्शन किया वह निश्चित ही कांग्रेस के लिए संजीवनी प्रदान करने वाला है। अभी तक संगठन में पदाधिकारियों का मनोनयन हो जाता था, जिससे जमीनी और जनाधार वाले युवा नेता उपेक्षित रह जाते थे और बड़े नेताओं से संपर्क व निकटता रखने वाले नेता संगठन पर काबिज हो जाते थे। जिससे संगठन निरंतर निष्क्रिय और कमजोर हो रहा था। अब युवकों की बढ़ती सक्रियता और उत्साह को देखकर ही मनोनयन व चुनाव का फर्क समझा जा सकता है। इस तरह का नजारा शहर में तब देखने को मिलता था जब युवक कांग्रेस की कमान शिवजीत सिंह व महेन्द्र दीक्षित जैसे नेताओं के हाँथ में थी। कल की रैली देख लोग चर्चा करते दिखे कि कांग्रेस के पुराने दिन अब लौटते प्रतीत हो रहे हैं।    

उल्लेखनीय है कि युवक कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव संपन्न होने के बाद संगठन के नव निर्वाचित जिलाध्यक्ष स्वतंत्र प्रभाकर सहित विधानसभा युकां अध्यक्ष सौरभ पटेरिया तथा अन्य निर्वाचित पदाधिकारियों जिला महासचिव सुधीर दीक्षित, शुभांस दीपक तिवारी, पवई विधानसभा युकां अध्यक्ष राजपाल सिंह सौरभ, उपाध्यक्ष नरेन्द्र तिवारी, पन्ना विधानसभा युकां उपाध्यक्ष लोकेश पटेल, मिथलेश यादव, के स्वागत में पन्ना शहर में भव्य रैली निकाली गई। जिला युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष दीपक तिवारी के संयोजन में आयोजित युकां की रैली पुरानी कलेक्ट्रेट महेन्द्र भवन परिसर से शुरू हुई, जहां खुली अलग अलग जीपों में सवार युकां के निर्वाचित पदाधिकारियों के साथ दो पहिया मोटरसाईकिलों तथा चार पहिया वाहनों के साथ युकां की स्वागत रैली बैण्डबाजे, आतिशबाजी के साथ शुरू हुई। जयस्तंभ चौराहा में जिला कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष कदीर खान के नेतृत्व में स्वागत किया गया तत्पश्चात पंचमसिंह चौराहा में युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता अकरम खान के नेतृत्व में युवाओं द्वारा स्वागत हुआ। शहर के गांधी चौक में गुनौर विधानसभा क्षेत्र के विधायक शिवदयाल बागरी के साथ युकां के निर्वाचित पदाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपिता की प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया गया। गांधी चौक में एडवोकेट गोपाल मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह परमार, अंकित शर्मा, दीपेन्द्र सिंह बुंदेला द्वारा स्वागत किया गया। 


नवनिर्वाचित पदाधिकारियों का स्वागत करते हुए कांग्रेसजन। 

कुुमकुम टाकीज के पास  पहुंची युवक कांग्रेस की रैली का आसू पटेरिया, वैभव थापक के नेतृत्व में स्वागत हुआ, वहीं कालिका मंदिर के समीप मुख्य मार्ग में कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष सूर्यप्रकाश वर्मां, कोतवाली चौराहा में ब्लाक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष अनीष खान, कटरा बाजार में वैभव देवलिया, गणेश मार्केट में वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामकिशोर मिश्रा, जिला कांग्रेस क मेटी के उपाध्यक्ष मनीष मिश्रा, सुनील अवस्थी, मनोज सेन, हीरालाल विश्वकर्मा, बल्देव मंदिर के समीप योगेश रजक, गोविंद जी मंदिर चौराहा में अनुसूचित जाति विभाग कांग्रेस अध्यक्ष जीतेन्द्र सिंह जाटव, जैन मंदिर के समीप प्रशांत द्विवेदी, बडे बाजार चौराहा में किसान कांग्रेस अध्यक्ष शशिकांत दीक्षित, रंगमहल के समीप अक्षय जैन के नेतृत्व में युवक कांग्रेस की रैली का स्वागत किया गया। अजयगढ़ चौराहे में पन्ना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे शिवजीत सिंह भैयाराजा द्वारा बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं के साथ स्वागत किया गया, यहां पर जमकर आतिशबाजी की गई। युवक कांग्रेस की रैली का समापन जयस्तंभ चौक में हुआ जहां पर पूर्व पार्षद श्रीमती विमलेश रिछारिया द्वारा युकां पदाधिकारियों का स्वागत किया गया। स्वागत रैली के अंत में एक संक्षिप्त सभा का आयोजन किया गया जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा युकां कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों से युवक कांग्रेस के संगठन एवं पार्टी को मजबूत करने के लिये एकजुटता का आव्हान किया गया। युवक कांग्रेस द्वारा आयोजित इस स्वागत रैली को सफल बनाने में पूर्व जनभागीदारी अध्यक्ष कन्या महाविद्यालय पन्ना श्रीमती आस्था दीपक तिवारी,  पूर्व युकां अध्यक्ष मार्तन्ड देव बुंदेला, मनोज केशरवानी, प्रबल नारायण चुर्तवेदी, आकाश जाटव, भूपेन्द्र सिंह महामंत्री जिला किसान कांग्रेस, युकां नेता रेवती रमण दीक्षित, राजाबाबू पटेल, सत्यजीत सिंह, बाबा सिद्धू, अंका रिछारिया, आदित्य दीक्षित, आदित्य देव  प्रिंस, सौरभ रैकवार, अनुराग मिश्रा, आलोक शर्मा, शेख बख्शी, रोहित शर्मा, आदित्य शर्मा, सौरभ तिवारी, मोहित तिवारी, अमित शर्मा, राजेश कुशवाहा, जाफर खान, आबिद खान, रियासत खान, हुसैन अली, नरेन्द्र विश्वकर्मा, सत्यम उपाध्याय, भूपत पटेल, पवन मिश्रा, रत्नेश जडिय़ा, राज, महार्षि, सोमेश त्रिपाठी, सहित आदि कार्यकर्ताओं का महात्वपूर्ण योगदान रहा। 

रैली से लगे जैम में फंसे रहे कलेक्टर 


वाहनों की लम्बी कतार के बीच नजर आ रही कलेक्टर पन्ना की गाड़ी। 

युवक कांग्रेस की निकली रैली में बड़ी संख्या में जहाँ चार पहिया वाहन शामिल थे वहीँ सैकड़ों युवक गाजे बाजे के साथ नाचते और थिरकते हुए पैदल चल रहे थे। आलम यह था कि महेन्द्र भवन से लेकर गाँधी चौक तक जैम लगा रहा। वाहनों की लम्बी कतार में कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा की गाड़ी भी काफी देर तक फंसी रही। कलेक्टर को जैम में फ़ंसे देख पुलिस सक्रिय हुई और भारी जद्दोजहद के बाद उन्हें जैम से किसी तरह बाहर निकाला जा सका। 

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Friday, December 25, 2020

नेवलों के अस्तित्व पर मंडरा रहा है खतरा

  •  इसके मुलायम बालों से ब्रश बनाने के लिए बड़ी संख्या में हो रही हत्या  
  • सोचिये, चंचल आंखों वाले इस प्यारे से जीव का क्या ऐसा अंजाम उचित है ?


कैनवस पर रंगों से खेलने के कुछ लोगों के शौक के चलते मेरे इस दोस्त की जान खतरे में है। कलर ब्रश बनाने के लिए हर साल पचास हजार से ज्यादा नेवलों की हत्या की जा रही है। यह इस कदर भयानक है कि इस छोटे से रोडेंट के सामने भी अस्तित्व का खतरा पैदा होता जा रहा है। 

वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने बीते दस सितंबर को बिजनौर जिले के शेरकोट गांव में छापा मारा। टीम को यहां से भारी मात्रा में नेवले के बाद बरामद हुए। नेवले के यह बाल कुल 155 किलोग्राम थे। जबकि, 55 हजार तैयार ब्रश भी यहां से बरामद किए गए। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए कम से कम तीस हजार नेवलों की हत्या की गई होगी। 

भारत में नेवलों की कुल मिलाकर छह स्पीशीज पाई जाती हैं। इंडियन ग्रे मंगूज, स्माल इंडियन मंगूज, रडी मंगूज, क्रैब ईटिंग मंगूज, स्ट्रिप नेक्ड मंगूज और ब्राउन मंगूज। इसमें इंडियन ग्रे मंगूज सबसे ज्यादा कॉमन हैं। नेवलों को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के शिड्यूल दो के भाग दो मेें सूचीबद्ध किया गया है। इस आधार पर इनके शिकार, पकडऩे आदि पर सात साल तक की जेल हो सकती है। 

लेकिन, सभी अन्य कानूनों की तरह ही भारत में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन कानूनों की भी हालत है। कलर ब्रश बनाने के लिए बुरी तरह से इनका शिकार किया जा रहा है। अनुमान है कि हर साल पचास हजार से ज्यादा नेवले मारे जा रहे हैं। हर नेवले से 40 ग्राम के लगभग बाल निकाला जाता है। जिसमें से 20 ग्राम बाल ब्रश बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसी बाल के लिए इसकी हत्या की जा रही है। जानकारों का कहना है कि नेवले के बालों से कलर ब्रश बनाने का व्यापार ज्यादा पुराना नहीं है। हाल के कुछ वर्षों में यह बेहद तेजी से बढ़ा है। 

कलाकार अपने रंगों में ज्यादा बारीकी और कारीगरी हासिल करने के लिए इन ब्रशों का इस्तेमाल करते हैं। बिना यह जाने कि उनकी इस कला की कीमत यह छोटा सा, प्यारा सा जीव अपनी जान देकर चुका रहा है। 

इसकी उत्सुक और चंचल आंखों को देखिए। क्या ये इस अंजाम का हकदार है।

@संजय कबीर की फेसबुक वॉल से साभार 

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Wednesday, December 23, 2020

पानी उपजय हाट बिकाय

तालाब में लगी फसल से तोड़े गये सिंघाड़ों के साथ कृषक। ( फोटो इंटरनेट से साभार )

।। बाबूलाल दाहिया ।।

  यह जटिल पहेली किसी अनाम रचना काऱ द्वारा सिघाड़ा पर रची गई थी  कि,

                  पानी उपजय हाट बिकाय

                   सुआ आबा सोय गा,

                   गिल्ली आई रोय गय

                    मनई आबा टोर गा।

रचना कार भले ही अनाम रहा हो, पर उसकी रचनाशीलता इस सिघाड़ा पर कितनी सटीक थी कि जिस काम को उड़ने वाला पखेरू तोता और पेड़ की पतली से पतली डाल में चढ़ कर फल खा जाने वाली गिलहरी नहीं कर सकी, उसे इस मनुष्य ने कर दिखाया।

सिघाड़ा की कार्तिक से पूष के मनीने तक बहार सी रहती है। जब आप को शहर के हर गली हर चौराहे में सिघाड़ा बेचती महिलाएं मिल जायेंगी। इसके उगाने से लेकर फल आने तक की पूरी तकनीक है, जिसे किसी तलाब, पोखर में उगा कर ही पूरा किया जा सकता है। तब फसल तैयार होती है, साथ ही इसमें पूरे परिवार का सहयोग भी अपेक्षित है।

सचमुच तालाब में नैसर्गिक रूप में जम कर फली सिघाड़ा जिसे खा पाने में तोता और गिलहरी नाकाम थे उसे किस तकनीक से पानी में पहुच, न सिर्फ  मनुष्य ने तोड़ा बल्कि उसकी खेती भी करने लगा ?  वह कार्य कोई आश्चर्य से कम नही है। शुरू - शुरू में उसे उगाने, फिर डोडा बनाने और उसे पानी में तैरने तक कितनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा होगा।  उस आदिम पुरखे और उसकी पीढ़ियों को ? तब कहीं इस सिघाड़ा को तोड़ पाया होगा जो हमे आज सहज उपलब्ध है।

कार्तिक से पूष तक प्राय: हर तलाब में छोटी नाव जिसे डोडा कहा जाता है, उसमें सवार और बांस के सहारे उसे चलाते हुए इस कष्ट साध्य काम को अंजाम देते आप को सिघाड़ा उगाने वाले कृषक मिल जायेंगे, जिन्हें यहां सिंगरहा या रैकवार नाम से जाना जाता है। देखने की बात तो यह भी है कि किस तरह विकास की धुरी ग्रामीण उद्दमियों के हाथ में थी ? और  किस तरह हमारे देश में यह सब जातीय रोजगार विकसित थे, जिनमें गाँव के संसाधन से ही पीढ़ी दर पीढ़ी अजीविका चलती रहती थी, यह एक मिसाल है।

सिघाड़ा की खेती के लिए सिंगरहा बीज हेतु पका हुआ पुष्ट फल चुनते हैं। जिसे जेठ के महींने में किसी पानी भरे तलाब में अंकुरण हेतु डाल देते हैं। फिर अंकुरित हो बेल बढ़ने और बीस जून के आस पास बारिस होने के बाद पोखरों में पानी भरने पर उसे उस तालाब से निकाल पोखरों के पानी में लगा देते हैं।

 इस प्रक्रिया में उसकी बेल को पानी के ऊपर फैला कर जड़ को पैर से दबाते जाते हैं। फिर यह इतनी तेजी से बढ़ती है कि तालाब में जितना भी पानी भरे पर सिघाड़ा उसके ऊपर ही हो जाता है और उसकी बेल सारे तालाब में फैल जाती है। बीच - बीच में सिंगरहा डोडा में चढ़ कर रोग और कीड़े दिखने पर दबाई भी डालते हैं। 

कार्तिक में सिघाड़ा आना शुरू हो जाता है तो इनके काम में तत्परता आ जाती है। तब पति तो दिन भर डोडे में चढा सिघाड़ा तोड़ता है और पत्नी उसे बड़े भोर  में उठ कर हंडी में पका फिर बेचने के लिए बाजार ले जाती है। इस तरह इतनी मेहनत से कमाई गई सिघाड़ा बिक्री की अधिकांश राशि सिंगरहा उन तालाब मालिक को दे देते हैं, जिनसे वे ठेके पर तलाब लेते हैं। और रात दिन मेहनत के बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति यथावत ही रही आती है।

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Tuesday, December 22, 2020

होम स्टे में पर्यटक बुंदेली व्यंजनों का उठाएंगे लुत्फ

  • पन्ना में पर्यटकों को बुंदेली संस्कृति से परिचित कराने अभिनव पहल
  • पर्यटन गांव मंडला में स्थापित होम स्टे का कलेक्टर ने किया निरीक्षण 


पर्यटन गांव मड़ला स्थित होम स्टे में बुन्देली गीतों का आनंद लेती महिलायें। 
।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुंदेलखंड की समृद्ध संस्कृति तथा रीति-रिवाजों से पर्यटकों को परिचित कराने तथा ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन विकास विभाग द्वारा होम स्टे स्थापित कराने की अभिनव पहल शुरू की गई है। जिसके तहत पन्ना टाइगर रिजर्व के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 39 के किनारे स्थित पर्यटन गांव मंडला को चिन्हित किया गया है। इस गांव की निवासी आदिवासी महिला रमाबाई की बखरी को ठेठ बुंदेली अंदाज में सजा संवार कर विकसित किया गया है। यहां देसी व विदेशी पर्यटक होम स्टे करके न सिर्फ पन्ना टाइगर रिजर्व का भ्रमण कर वन्यजीवों का दीदार कर सकेंगे अपितु सुप्रसिद्ध बुंदेली व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए अन्य गतिविधियों का भी भरपूर आनंद ले सकेंगे।

 उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के पर्यटन गांव मंडला में विकसित किए गए होम स्टे का कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा ने निरीक्षण कर यहां की व्यवस्थाओं का जायजा लिया है। उन्होंने बताया कि यह होम स्टे ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रामीणों को उनके ही गांव में रोजगार भी उपलब्ध कराएगा। होम स्टे में पर्यटकों के लिए उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं की जानकारी लेने के साथ कलेक्टर ने इस अभिनव पहल की सराहना करते हुए हर संभव सहयोग प्रदान करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि यहां आने वाले पर्यटकों को किसी भी तरह की असुविधा न हो इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा। मालुम हो कि मध्य प्रदेश पर्यटन विकास विभाग द्वारा बुंदेली सांस्कृतिक समिति छतरपुर के माध्यम से होम स्टे को विकसित किया गया है। बुंदेली कल्चर समिति छतरपुर के सचिव कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश पर्यटन विकास विभाग ने पर्यटन गतिविधियों से जुड़े एनजीओ चुने हैं, जो ग्राउंड लेवल पर जाकर इस योजना को मूर्त रूप देने के कार्य में लगे हैं। होम स्टे योजना के तहत पूरे प्रदेश में 100 ग्रामों की श्रंखला तैयार की जा रही है। पर्यटन विकास विभाग द्वारा होम स्टे स्थापित करने वाले ग्रामीणों को न सिर्फ प्रशिक्षित किया जाएगा अपितु उन्हें पर्यटक भी मुहैया करायेगा।

 होम स्टे में पर्यटकों को मिलेगा बुंदेली परिवेश 


चूल्हे में बुन्देली पकवान बनाती गांव की महिलायें। 

ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने विकसित होम स्टे के निर्माण में बुंदेली स्थापत्य का भी ध्यान रखा जा रहा है।मोटी दीवाल से निर्मित कमरे तथा ऊपर खपरैल का लुक दिया गया है। ग्रामीण परिवेश के अनुरूप होम स्टे में एसी व कूलर का उपयोग नहीं होगा बल्कि भवन निर्माण इस तरह किया गया है कि गर्मी में भी पर्यटक प्राकृतिक रूप से शीतलता का अनुभव करेंगे। होम स्टे करने वाले पर्यटकों को देसी बुंदेली व्यंजन विशेषकर महेरी, डुभरी, मुर्का, फडूला, गुलगुले, कढ़ी, दल भजिया, ज्वार, कठिया गेहूं तथा बाजरे की रोटी का स्वाद चखने को मिलेगा। पर्यटक वोटिंग, फिशिंग व वन क्षेत्र के भ्रमण का भी लुत्फ उठा सकेंगे। इन सभी गतिविधियों का संचालन गांव के ही प्रशिक्षित युवक करेंगे। पर्यटकों की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए पर्यटन विकास विभाग द्वारा होम स्टे की वेबसाइट भी विकसित की गई है। जिससे पर्यटक ऑनलाइन होम स्टे में अपना आरक्षण करा सकेंगे। वेबसाइट में सभी आवश्यक जानकारी तथा मिलने वाली सुविधाओं का ब्यौरा रहेगा।

 बुंदेली राइडर्स ग्रुप पर्यटन को कर रहा प्रमोट


ग्रामीण होम स्टे पर्यटन को बढ़ावा देने वाले युवा राइडर्स। 

 बुंदेली राइडर्स ग्रुप द्वारा भी अनूठे अंदाज में ग्रामीण पर्यटन को प्रमोट किया जा रहा है। इस ग्रुप में शामिल युवा बुलेट मोटरसाइकिल में सवार होकर अलग-अलग ग्रामों का भ्रमण कर वहां रुकते हैं। पन्ना में टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बुंदेली राइडर्स ग्रुप सोमवार को पर्यटन गांव मंडला पहुंचा। मंडला से 10 बाइकर्स का यह ग्रुप ग्राम रानीपुर पहुंचा। जहां उन्होंने पारदी वॉक क्षेत्र का भ्रमण कर पारदी समुदाय द्वारा तैयार किए गए देसी भोजन का आनंद लिया। रानीपुर गांव में पारदी समुदाय के लोगों द्वारा पारदी वॉक का आयोजन किया जाता है, जो पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ है। अपने निराले अंदाज में पारदी यहां के खूबसूरत सेहा व जंगल का भ्रमण पर्यटकों को कराते हैं और वन्यजीवों व पक्षियों की आवाज निकालकर उनका भरपूर मनोरंजन भी करते हैं।

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Monday, December 21, 2020

खुशखबरी : बाघ ही नहीं तेंदुआ स्टेट भी बना मध्यप्रदेश

  •  कर्नाटक और महाराष्ट्र को पछाड़कर मध्यप्रदेश बना नंबर वन 
  •  गणना रिपोर्ट के बाद अब मध्यप्रदेश में पर्यटन को लगेंगे पंख 

।। अरुण सिंह ।।

प्रदेश के लिए नए वर्ष के पहले ही एक बड़ी खुशखबरी मिली है। अब मध्य प्रदेश सिर्फ टाइगर स्टेट ही नहीं अपितु लेपर्ड स्टेट ऑफ इंडिया भी बन गया है। जंगल के राजा बाघ के साथ-साथ जंगल के राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुओं की संख्या भी पूरे देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में पाई गई है। तेंदुओं की सोमवार को जारी हुई गणना रिपोर्ट में कर्नाटक और महाराष्ट्र को पछाड़कर मध्यप्रदेश नंबर वन राज्य बन गया है। इस महत्वपूर्ण और खुशी देने वाली जानकारी को एमपीटीएफएस (मध्य प्रदेश टाइगर फाउंडेशन सोसाइटी, इंडिया) ने अपनी साईट पर साझा किया है। अपने साइट पर यह खुशखबरी साझा करते हुए एमपीटीएफ़एस ने कहा कि हमें गर्व है कि मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट आफ इंडिया के साथ अब लेपर्ड स्टेट ऑफ इंडिया भी बन गया है। भारत में तेंदुओं की अधिकारिक संख्या के अनुसार मध्य प्रदेश में 3421 तेंदुओं का अनुमान लगाया गया है, जो देश में सर्वाधिक है। इस तरह से मध्यप्रदेश बाघ स्टेट के साथ-साथ लेपर्ड स्टेट होने का भी गौरव हासिल कर लिया है, जो प्रदेशवासियों के लिए गर्व की बात है।

उल्लेखनीय है कि टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने के बाद मध्य प्रदेश तेंदुओं की संख्या में भी पहले नंबर पर आ गया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सोमवार को देश में तेंदुए की गणना के आंकड़े जारी किये हैं। देश में अब सबसे ज्यादा 3,421 तेंदुए मध्यप्रदेश में हैं। मध्य प्रदेश को यह तमगा कर्नाटक और महाराष्ट्र को पछाड़कर मिला है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सोमवार को 2018 में तेंदुए की स्थिति रिपोर्ट जारी की। इसके मुताबिक, मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 3,421, कर्नाटक में 1783 और महाराष्ट्र में 1690 तेंदुए पाए गए हैं। जावड़ेकर ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में टाइगर, शेर और तेंदुए की संख्या बढऩा वन्यजीव और जैव विविधता की गवाही है। जावड़ेकर ने कहा कि भारत में अब 12,852 तेंदुए हैं। इनकी तादाद में रिकॉर्ड 60त्न से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 2014 में वन्य जीवों की गणना की गई थी। 2014 में मध्य प्रदेश में 1817 तेंदुए मिले थे। 




एमपी में तेंदुए की आबादी में पूरे 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि, देश में तेंदुए की आबादी में औसत बढ़ोतरी 60 प्रतिशत से ऊपर है। मध्य प्रदेश में 2000 तक 3600 से ज्यादा तेंदुए थे। 2014 की गणना में मध्य प्रदेश में 1817 तेंदुए पाए गए थे। कर्नाटक दूसरे नंबर पर था। वहां 1129 तेंदुए मिले थे। मालुम हो कि मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में जहाँ बाघों की संख्या आधा सैकड़ा के पार है वहीँ जंगल के राजकुमार तेंदुओं की भी अच्छी खासी तादाद है। टाइगर रिज़र्व के अलावा जिले के उत्तर व दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में भी तेंदुओं की मौजूदगी पाई गई है। जाहिर है मध्यप्रदेश को तेंदुआ स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना जिले की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ज्ञातब्य हो कि देशभर में दिसंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच बाघों की गिनती कराई गई थी। इसी दौरान तेंदुए भी गिने गये। केंद्र सरकार ने बाघों के आंकड़े सार्वजनिक कर दिये थे, लेकिन दूसरे कई मांसाहारी और शाकाहारी जंगली जानवरों के आंकड़े घोषित नहीं किये हैं। माना जा रहा है कि तेंदुओं के साथ-साथ भालुओं की संख्या भी बढ़ी है। 

शिवराज बोले- हमारी कोशिशों का नतीजा

टाइगर के बाद तेंदुआ स्टेट का दर्जा मिलने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा- वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए हमारी सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम हमें मिल रहे हैं। हर्ष का विषय है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा तेंदुए हमारे प्रदेश में हैं। इनकी संख्या 3,421 है। मैं इस अनूठी उपलब्धि के लिए मध्यप्रदेश वन विभाग और वन्य जीव संरक्षण से जुड़े सभी लोगों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

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Friday, December 18, 2020

पन्ना के सबसे उम्रदराज बाघ टी-3 का निकाला गया रेडियो कॉलर

  •  अत्यधिक कसावट के कारण बाघ के गले में हो चुके थे कई घाव
  •  18 वर्षीय बाघ टी-3 को कहा जाता है फादर ऑफ द पन्ना टाइगर रिजर्व 
  •  पेंच टाइगर रिजर्व से आया था पन्ना को आबाद करने वाला यह बाघ 

बाघ टी-3 को बेहोश कर उसका रेडियो कॉलर निकालकर घाव का उपचार करते चिकित्सक व टीम। 

।। अरुण सिंह ।।

 पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाले सबसे उम्रदराज बाघ टी-3 को बेहोश कर आज उसके गले से रेडियो कॉलर सफलतापूर्वक निकाला गया है। बाघ के गले में रेडियो कॉलर अत्यधिक टाइट हो गया था, जिससे गले में तीन-चार घाव भी हो गए थे। गले में हो चुके इन जख्मों के कारण यह बुजुर्ग बाघ पिछले कई दिनों से परेशान व पीड़ा में था। कैमरा ट्रैप के जरिये मिले छायाचित्र से पार्क प्रबंधन को जैसे ही इस बात की जानकारी हुई तो उसका रेडियो कॉलर निकालने का निर्णय लिया गया। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि शुक्रवार 18 दिसंबर को परिक्षेत्र चंद्रनगर कोर के बीट भुसौर में बाघ टी-3 को बेहोश किया जाकर उसके गले से रेडियो कॉलर निकाल दिया गया है। श्री शर्मा ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के इस संस्थापक बाघ को पूर्व में 14 नवंबर 2017 को रेडियो कॉलर पहनाया गया था। आप ने बताया कि रेडियो कॉलर टाइट हो जाने के कारण उसके गले में तीन-चार घाव हो गए थे, जिसका मौके पर ही सूक्ष्म शल्यक्रिया (सर्जरी) करके उपचार किया गया। क्षेत्र संचालक ने बताया कि बाघ टी-3 का रेडियो कॉलर उतारने व घावों का उपचार करने के उपरांत उसे स्वच्छंद विचरण हेतु जंगल में छोड़ दिया गया है। यह पूरी कार्यवाही क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व के नेतृत्व में वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता के तकनीकी मार्गदर्शन में संपन्न हुई। इस मौके पर उप संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व जरांडे ईश्वर राम हरि, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक डॉ के. रमेश, सहायक संचालक मंडला, परिक्षेत्र अधिकारी चंद्रनगर व हिनौता तथा वन कर्मी उपस्थित रहे। गौरतलब है कि बाघ टी-3 को पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत 6 नवंबर 2009 को पेंच टाइगर रिजर्व सिवनी से लाया गया था। मौजूदा समय इस संस्थापक बाघ की उम्र लगभग 18 वर्ष है।

बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था बेहोश करके रेडियो कॉलर निकालना 

बाघ टी-3 की अधिक उम्र होने के कारण उसे ट्रैंक्युलाइज करके रेडियो कॉलर निकालना और गले में हो चुके घावों की सर्जरी कर उपचार करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसे निर्विघ्न सम्पन्न करने में सफलता मिली है। अब तक 68 बाघों को ट्रैंक्युलाइज कर चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि यह पहला मौका है जब उन्होंने 18 वर्ष की उम्र वाले किसी बाघ को ट्रैंक्युलाइज किया है। अधिक आयु हो जाने के कारण इस उम्रदराज़ बाघ के केनाइन (दांत) घिस चुके हैं। अधिक उम्र होने व दांत घिस जाने के बावजूद यह बाघ पूर्णरूपेण स्वस्थ्य है तथा इसका वजन लगभग 250 किग्रा है। जाहिर है कि पन्ना को आबाद करने वाले भारी भरकम डील डौल के मालिक इस संस्थापक बाघ का आकर्षण आज भी कायम है। पन्ना टाइगर रिज़र्व के भ्रमण में आने वाले पर्यटक इस बाघ की एक झलक पाने को लालायित रहते हैं। 

  आपसी जंग में एक वर्ष पूर्व घायल हो गया था टी-3

 

बाघ पुनर्स्थापना  योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व का सबसे बुजुर्ग बाघ टी-3 आपसी जंग में विगत एक वर्ष पूर्व जुलाई 2019 में घायल हो गया था। मालुम हो कि अत्यधिक उम्रदराज हो जाने के कारण यह बाघ ज्यादातर कोर क्षेत्र के बाहर ही विचरण करता है। आपसी जंग के दौरान बाघ टी-3 बलैया सेहा के आस-पास वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाये था, जहां पन्ना में ही जन्मे नर बाघ पी-213(31) से इसका आमना-सामना हो गया। इलाके को लेकर इन दोनों के बीच हुई लड़ाई में युवा बाघ पी-213(31) ने टी-3 को बुरी तरह जख्मी कर दिया था। घायल होने पर यह बाघ बलैया सेहा वाला इलाका छोड़कर रमपुरा के जंगल में पहुँच गया था। मालुम हो कि बीते 10 वर्षों में इस बाघ ने पन्ना में एक नया इतिहास रचते हुये बाघ विहीन पन्ना टाईगर रिजर्व को आबाद कर यहां पर बाघों की नई दुनिया बसाई है। पन्ना टाईगर रिजर्व में  मौजूदा समय जितने बाघ हैं उनमें अधिकांश  टी-3 की ही संतान हैं। यही वजह है कि इस बुजुर्ग बाघ को फादर ऑफ दि पन्ना टाईगर रिजर्व भी कहा जाता है। खुले जंगल में आमतौर पर बाघ की औसत उम्र अधिकतम 12 से 14 वर्ष होती है, लेकिन पन्ना का यह बाघ 18 वर्ष का हो चुका है और पूर्ण स्वस्थ्य भी है। खुले जंगल में चुनौतियों के बीच स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुये इतने उम्रदराज बाघ को देखना किसी अजूबा से कम नहीं है। इस बाघ के दांत घिस गये हैं तथा यह अब ज्यादातर कोर क्षेत्र से बाहर पेरीफेरी में रह रहा है। अधिक उम्र हो जाने की वजह से टी-3 वन्यजीवों का शिकार कर पाने में अब ज्यादा सक्षम नहीं है, यही वजह है कि वह कोर क्षेत्र से बाहर पेरीफेरी में रहकर मवेशियों का शिकार करके अपना जीवन यापन बूढ़े हो चुके राजा की तरह शांति के साथ कर रहा है। 

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Thursday, December 17, 2020

कलेक्टर जब पहुंचे नगरपालिका तो वहां पसरा था सन्नाटा

  •  कार्यालय में खाली पड़ी थीं कुर्सियां, कर्मचारी मिले नदारत 
  • शासकीय कार्यालयों की कार्यप्रणाली में नहीं आ रहा सुधार 

कलेक्टर द्वारा आकस्मिक निरीक्षण के दौरान नगर पालिका कार्यालय पन्ना का नजारा। 

अरुण सिंह,पन्ना। नगर पालिका परिषद पन्ना के प्रशासक व जिले के कलेक्टर संजय कुमार मिश्र आज अचानक निरीक्षण करने जब नगर पालिका कार्यालय पहुंचे तो वहां कर्मचारियों की जगह ख़ाली पड़ी कुर्सियां मिलीं। कार्यालय टाइम में भी वहां सन्नाटा था और कर्मचारी नदारत थे। कोरोना संकट के इस दौर में आम जनता को भले ही मुसीबतों से जूझना पड़ रहा है. लेकिन अधिकांश सरकारी अधिकारीयों व कर्मचारियों के लिए यह आपदा वरदान साबित हुआ है। वेतन और सरकारी सुख सुविधाओं के लिए हमेशा सजग रहने वाले अधिकारी और कर्मचारी अपने दायित्यों के निर्वहन में उतने ही उदासीन और लापरवाह हैं। कोरोना संकट ने तो रही सही कसर और पूरी कर दी है। कार्यालय से अमूमन नदारत रहने वाले अधिकारी और कर्मचारी इस आपदा को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए इसे अवसर में तब्दील कर दिया है और इसका भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं। यहाँ यह बता देना जरुरी है कि अपवाद स्वरुप कुछ लोग निश्चित रूप से इस समय भी अपने दायित्यों का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करने में पीछे नहीं हैं। लेकिन इनकी संख्या बहुत ही कम है। 

सरकारी कार्यालयों की कार्य संस्कृति बीते 8 - 9 माह में कुछ इस तरह उलट पलट गई है कि आम जनता छोटे - छोटे काम के लिए भटकती रहती है। हर कार्यालय में कोरोना संक्रमण के सम्बन्ध में दिशा निर्देश वाली जानकारी व हिदायतें जरूर दीवारों पर चस्पा हैं, जिसे पढ़कर आम जन हरहाजा अन्दर जाने का साहस नहीं कर पाता। इसके बावजूद यदि कोई चला गया तो न साहब मिलते हैं और न ही जवाबदार कर्मचारी, जाहिर है उसे बैरंग वापस लौटना पड़ता है। जिला मुख्यालय में कुछ कार्यालय ऐसे भी हैं जहाँ चहल - पहल दिन ढलने के बाद बढ़ती है, जबकि दिन में यहाँ सन्नाटा पसरा रहता है। ऐसा क्यों होता है यह भी विचारणीय है। जिले के कलेक्टर संजय कुमार मिश्र शासकीय कार्यालयों के कामकाज की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए प्रयासरत हैं, निश्चित ही यह स्वागत योग्य और जरुरी कदम है, जिसे अभियान की तरह लिया जाना चाहिये। 

उल्लेखनीय है कि आज नगरपालिका कार्यालय खुलने के साथ कलेक्टर श्री मिश्रा जब कार्यालय का आकस्मिक निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां का नजारा देख दंग रह गये। कार्यालय में उस समय सन्नाटा पसरा हुआ था, कुर्सियां खाली थीं और ज्यादातर कर्मचारी कार्यालय से नदारत थे।मौजूदा समय कलेक्टर नगर पालिका पन्ना के प्रशासक भी हैं, जाहिर है कार्यालय में कर्मचारियों की नगण्य उपस्थिति उन्हें नागवार गुजरी। इस पर उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए सभी कर्मचारियों को स्पष्टीकरण दिए जाने के निर्देश दिये हैं। नगरपालिका तो महज एक नमूना है, कमोबेश यही स्थिति अधिकांश कार्यालयों की है। अधिकृत रूप से दी गई जानकारी के मुताबिक इसके पूर्व कलेक्टर श्री मिश्र द्वारा शिक्षा विभाग, आजीविका मिशन, कलेक्ट्रेट के विभिन्न शाखाओं का निरीक्षण किया गया था। निरीक्षण के दौरान जो भी अधिकारी/कर्मचारी अनुपस्थित पाये गये उनसे स्पष्टीकरण लेते हुए हिदायत दी गयी थी कि समय पर कार्यालय में उपस्थित होकर दायित्वों का निर्वहन करें। जिससे आमजनता को किसी तरह की असुविधा का सामना न करना पडे। भविष्य में कोई भी अधिकारी/कर्मचारी कार्यालयीन समय में अनुपस्थित पाया जाएगा तो उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी। आश्चर्य की बात यह है कि कलेक्टर की कड़ी हिदायत के बावजूद अधिकारी व कर्मचारी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहे। नगर पालिका पन्ना का कार्यालय इसका जीता जागता प्रमाण है। 

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Tuesday, December 15, 2020

बड़ी संख्या में आखिर क्यों मर रहीं हैं मधुमक्खियां ?

  •  तेजी से मधुमक्खियों की संख्या घटना खतरनाक संकेत
  •  अनाज, फल व सब्जी के उत्पादन में पड़ेगा विपरीत असर

फूल का रसपान करती हुई मधुमक्खियां।  (फोटो इंटरनेट से साभार) 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। फूलों के आसपास मंडराने वाली मधुमक्खियां तेजी से घट रही हैं। पन्ना शहर में पिछले कुछ दिनों से बड़ी संख्या में मधुमक्खियां घर की छतों व सड़कों पर मृत पड़ी नजर आ रही हैं। इतनी बड़ी संख्या में मधुमक्खियां आखिर क्यों मर रहीं हैं, इसकी वजह क्या है ? इस अहम सवाल पर हम विचार करें इसके पूर्व यह जान लें कि मधुमक्खियों के न रहने पर इंसानों की जिन्दगी पर क्या असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना है कि अगर मधुमक्खियां नहीं रहीं तो इस दुनिया पर इंसान भी नहीं बचेंगे। परागण क्रिया में मधुमक्खियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनके न होने से अनाज, फल व सब्जियों के  उत्पादन में कमी आयेगी। यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण न होगा कि मधुमक्खियों के बिना यह दुनिया बिना भोजन वाली दुनिया बनकर रह जायेगी।

उल्लेखनीय है कि आपकी थाली में जो भी खाना परोसा जाता है, वो मधुमक्खियों की ही देन है। मधुमक्खियां कृषि के अस्तित्व के लिए जो सबसे बड़ा काम करती हैं वह परागण है। पूरी दुनिया में खाने की आपूर्ति का एक तिहाई भाग मधुमक्खियों द्वारा परागित होता है। सीधे शब्दों में कहें तो मधुमक्खियां पौधों और फसलों को जीवित रखती हैं। मधुमक्खियों के बिना, मनुष्यों के पास खाने के लिए बहुत कुछ नहीं बचेगा। मधुमक्खियों के बिना अधिकांश फसलों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। चूँकि मधुमक्खियां हमारे अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण हैं इसलिए हमें उनकी रक्षा और संरक्षण के लिए हर संभव उपाय करना चाहिए। जिस तेजी के साथ मधुमक्खियां कम हो रही हैं और मर रही हैं, उससे साफ पता चलता है शहरी वातावरण और आबोहवा उनके अनुकूल नहीं है। मधुमक्खियों के गायब होने को लेकर काफी बहस चलती आ रही है। इस समस्या पर हुए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि फसलों में अधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग मधुमक्खियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। मधुमक्खियां हमें जहरीले तत्व और कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर भी आगाह करती रही हैं। अब यह समझा जाता है कि मधुमक्खी कालोनियों के ख़त्म होने के पीछे नियोनिक कीटनाशक जिम्मेवार हैं। नियोनिक एक ऐसा जहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया है कि ये कीटाणुओं के तंत्रिका कोष पर हमला करता है। संक्षेप में कीटनाशक पर्यावरण के लिए भयानक हैं और वे उन जीवों को भी मार रहे हैं जो दुनिया और मनुष्यों की मदद करते हैं।

हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन में पाया गया कि ये कीटनाशक सीधे कॉलोनी कोलेप्स डिसऑर्डर (सीसीडी) नामक एक घटना में योगदान करते हैं। सीसीडी अनिवार्य रूप से वह सिस्टम है जिसके द्वारा हनी बी अपने पित्ती या छत्ते को छोड़ देते हैं। जब मधुमक्खियां नेओनिकोटिनोइड जैसे कीटनाशकों के संपर्क में आती हैं तो वे एक तरह से पागल हो जाती हैं और उन्हें घर वापस आने का पता नहीं होता। यह लगभग वैसा ही है जैसे इंसानों में अल्जाइमर होता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां कीटनाशक संभावित रूप से मधुमक्खियों को मार रहे हैं ऐसे कई और फैक्टर हैं जो ऐसा कर रहे हैं। यह एक जटिल समस्या है जिसकी दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक अभी भी जांच कर रहे हैं। मधुमक्खियों को कई तरह से खतरा है लेकिन मुख्य रूप से मानव प्रथाओं के प्रभाव और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के कारण ऐसा हो रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो इंसान मधुमक्खियों के लिए भयानक होते जा रहे हैं। कीटनाशक, पर्यावरणीय गिरावट और प्रदूषण, सभी मधुमक्खी की मौतों की खतरनाक दर में योगदान कर रहे हैं।

मधुमक्खी प्राकृतिक संतुलन बनाने के लिये आवश्यक - कलेक्टर

 

पन्ना जिले में उद्यानिकी विभाग द्वारा गत दिवस एक दिवसीय मधुमक्खी पालन कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र द्वारा किसानों को मधुमक्खी पालन के लिये प्रेरित किया गया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए मधुमक्खियां बहुत जरुरी हैं। इसी तारतम्य में दमोह जिले से मास्टर ट्रेनर के रूप में आये  हरीशंकर विश्वकर्मा द्वारा कृषकों को मधुमक्खी पालन का प्रषिक्षण दिया गया, साथ ही मधु मक्खी पालन से होने वाले लाभों के बारे में बताया गया। जैविक तकनीकी से खेती करने पर जोर देते हुये कहा गया कि जैविक रूप से मधुमक्खी पालन कर कृषक कम समय में अधिक आमदनी कमा सकता हैै। सहायक संचालक उद्यान महेन्द्र मोहन भट्ट द्वारा बताया गया कि मधुमक्खी पालन करके किसान किस तरह अपना स्वयं का लधु उद्योग स्थापित कर लाभ कमा कर आमदनी को दुगना कर सकते है। प्रशिक्षण में रासायनिक उर्वरकों तथा पेस्टीसाइडके अंधाधुंध उपयोग के प्रति किसानों को आगाह किया गया और बताया गया कि पेस्टीसाइड के प्रभाव से मधुमक्खियों की मौतें हो रही हैं। इसलिए पर्यावरण एवं मधुमक्खियों की सुरक्षा के लिए किसान भाई जैविक खेती अपनायें। 

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Monday, December 14, 2020

बाघिन को लगाया गया जीपीएस सैटलाइट कॉलर

  •  भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की देखरेख में होगा अध्ययन 
  •  केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के अंतर्गत बन रहा है लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान

पन्ना टाइगर रिज़र्व की युवा बाघिन पी-213 (63) को जीपीएस सैटलाइट कॉलर पहनाती टीम। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में रविवार 13 दिसम्बर को बफर क्षेत्र में रहने वाली एक युवा बाघिन को जीपीएस सैटलाइट कॉलर लगाया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञ इस बाघिन के विचरण क्षेत्र व गतिविधियों का अध्ययन करेंगे। यह अध्ययन केन - बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के अंतर्गत लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान बनाने के लिए हो रहा है। उपसंचालक पन्ना टाइगर रिजर्व जरांडे ईश्वर राम हरि ने बताया कि क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा की मौजूदगी में 2 वर्ष 2 माह की आयु वाली युवा बाघिन पी-213 (63) को अमानगंज बफर में कॉलर किया गया है। 

 उल्लेखनीय है कि बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता के चलते बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व ने दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। पालतू बाघिन को जंगली बनाने के सफल प्रयोग सहित यहां पर हुए अनेकानेक अभिनव प्रयोगों के कारण भी पन्ना टाइगर रिजर्व हमेशा चर्चा में रहा है। यहां पाए जाने वाले गिद्धों के विचरण व रहवास का अध्ययन करने के लिए विभिन्न प्रजाति के 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग करने का कार्य शुरू किया गया है। देश में अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है जहां गिद्धों पर इस तरह से गहन अध्ययन हो रहा है। रेडियो कॉलर लगाकर बाघों की सतत निगरानी का कार्य पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू होने के साथ ही किया जा रहा था, लेकिन पहली मर्तबा किसी बाघिन को ऑटोड्रॉप  जीपीएस सेटलाइट कॉलर  लगाया गया है। इसकी खासियत यह है कि विशेषज्ञ देश के किसी भी हिस्से में रहकर इस बाघिन के विचरण व गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे। 

भारत सरकार से 14 बाघों को रेडियो कॉलर करने की मिली अनुमति

क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने जारी प्रेस नोट में बताया कि परिक्षेत्र अमानगंज बफर के बीट तारा में वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता द्वारा युवा बाघिन पी-213 (63) को बेहोशकर सफलता पूर्वक कॉलर किया गया है। आपने बताया पन्ना टाइगर रिज़र्व के अन्तर्गत केन - बेतवा लिंक परियोजना के तहत भारत सरकार द्वारा पन्ना लैण्ड स्केप के प्रबंधन आयोजना हेतु 14 बाघों को रेडियो कॉलर करने की अनुमति प्रदान की गई है। पन्ना टाइगर रिज़र्व द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से बाघिन को कॉलर किया गया है, जिससे मानव बाघ द्वन्द, बाघों के बफर क्षेत्र में विचरण, कॉरीडोर में विचरण आदि के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध होगी। जो भविष्य में बाघों के प्रबंधन में काम आयेगी। कॉलर लगने के बाद अब यह बाघिन पन्ना लैंडस्केप में जहां कहीं भी विचरण करेगी उसकी जानकारी मिलती रहेगी। इस जीपीएस सेटेलाइट कॉलर की एक विशेषता यह भी है कि जब चाहे तब सेटेलाइट के द्वारा इसे निकाला जा सकता है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि बाघिन पूर्णरूपेण स्वस्थ और 116 किलोग्राम वजन की है। ऑटोड्रॉप कॉलर पहनाने की पूरी प्रक्रिया 30 - 35 मिनट में संपन्न हो गई, फल स्वरुप बाघिन को स्वच्छंद रूप से विचरण के लिए छोड़ दिया गया है।

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अनजाने में मिली धान की एक अनूठी किस्म

  •  इस अंजाने धान में निकलते हैं चावल के दो दाने
  •  कौतूहल का विषय बनी हुई है धान की यह किस्म     

      

दाहिया जी के खेत में मिली धान की वह किस्म जिससे चावल के दो दाने निकलते हैं। 

धान की पुरानी लुप्तप्राय हो चुकी किस्मों को बड़े ही जतन के साथ संजोने और सहेजने वाले कृषक बाबूलाल दाहिया जी जिन्हे उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। उनके खेत में अनजाने ही धान की एक ऐसी अनूठी किस्म मिली है, जिसके अन्दर चावल के एक नहीं बल्कि दो दाने निकलते हैं। धान की यह किस्म इन दिनों किसानों सहित कृषि विशेषज्ञों के बीच कौतूहल का विषय बनी हुई है। इस अनूठे किस्म के धान की खोज कैसे हुई इसके बारे में दाहिया जी ने सोसल मीडिया में एक पोस्ट डाली है, जिसे जस की तस दिया जा रहा है। ताकि अनजाने में ही मिली धान की इस किस्म से आप भी परचित हो सकें।     

चित्र में दिख रही यह ऐसी धान  है जिस के दाने को छीलने पर एक दाने में ही दो चावल निकलते है। आज मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड़ भोपाल की बैठक में जब हमने जबलपुर विश्व विद्यालय के विशेषज्ञ डा, संजय वैसम्पायन जी से उसके बारे में पूछा तो उनने अनभिज्ञता जताई और कहा कि ऐसी धान के बारे में हम पहली बार सुन रहे हैं।

किन्तु दो चावल वाली धान एक सच्चाई है। और यह अनजाने ही अस्तित्व में आजाने वाली धान है। हुआ यह था कि हमारा पोता अनुपम अपनी एक टीम के साथ हमारे खेत मे लगी दो सौ प्रकारों की धानो के गुण धर्मो का अध्ययन कर रहा था। तो उसने देखा कि 140 दिन में पकने वाली लेट किस्म की एक धान का दाना अन्य के मुकाबले काफी मोटा है। उसने जब उसे छील कर उसका चावल  देखा तो पाया कि उसमें एक ही धान में दो चावल हैं। उसमें एक छोटा है और दूसरे का आकार कुछ बड़ा सा। पर यह आश्चर्य चकित करने वाली धान हमारे 200 धानो में कैसे आई? यह जानकारी में नही है। दर असल हुआ यह था कि जब 2017 में हम लोगों की 6 सदस्सीय टीम मध्यप्रदेश के 40 जिलो की बीज बचाओ कृषि बचाओ यात्रा की थी तो हमें अनेक अनाज सब्जियों के बीज के साथ - साथ धान की भी अनेक किस्मे मिली थीं। बालाघाट, छिदवाड़ा, मण्डला, सीधी, शहडोल, रीवा, सतना आदि जिलों में तो हमे धान के कई कई किस्मो के ऐसे बीज मिले थे जहां किसानों ने उन धानो के नाम भी बताए थे। किन्तु जो जिले धान बाहुल नही थे वहां के किसानों ने अगर एक दो धान की किस्म दी भी तो उनका नाम भी उनने धान ही बताया था। कोई अलग से नाम नहीं था। इसलिए हमने ऐसी किस्मो को अपनी सुविधा के लिए नाम के स्थान पर अंजान नाम रख दिया था। कहना न होगा कि इसी अंजान वाली धानो में एक धान यह दो चावल वाली भी है जो अब कौतूहल का केंद्र बनी हुई है।

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Saturday, December 12, 2020

प्रकृति के संकेतों को अनदेखा करना अब होगा खतरनाक

  •  संसाधनों को नष्ट कर दौलत जमा करने की वृत्ति विनाशकारी साबित 
  •  नग्न आंखों से न दिखाई देने वाले एक सूक्ष्म जीव ने हमें दिखाया आईना 



।। अरुण सिंह ।।

नग्न आंखों से न दिखाई देने वाला एक सूक्ष्म जीव भी हमारे पूरे आर्थिक साम्राज्य और कथित महाशक्तियों के गरूर और अहंकार को तहस-नहस कर सकता है, यह बीते कुछ महीनों में कोविड-19 कोरोना वायरस ने साबित कर दिखाया है। वर्ष 2020 इस वैश्विक महामारी के चलते मची उथल-पुथल के लिए जाना जायेगा। इस महामारी ने हमें सिखाया है कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रकृति को नष्ट कर दौलत जमा करने वाला विकास का मॉडल पूरी मनुष्यता के लिए विनाशकारी साबित होगा। खुशहाली का रास्ता प्रकृति से लड़कर नहीं अपितु प्रकृति से प्रेम करके ही हासिल किया जा सकता है। अभी तक जिंदगी जीने का हमारा जो तौर तरीका रहा है, वह सह- अस्तित्व की भावना के विपरीत है। कोरोना वायरस के रूप में प्रकृति का हमारे लिए महज एक यह संकेत है कि अभी भी जाग जाओ और इस सुंदर ग्रह पृथ्वी के साथ-साथ खुद के विनाश का कारण न बनो। 

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस इंसान के लालच और धरती से बुरे व्यवहार की वजह से फैला है। कई रिसर्च कोरोना वायरस और पर्यावरण विनाश के बीच संबंध का समर्थन करते हैं। मालूम हो कि वन्य प्राणियों में कई तरह के वायरस प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। जंगल की अनियंत्रित और अधाधुंध कटाई के चलते उनका पर्यावास नष्ट होता है, परिणाम स्वरूप उनके इंसानों के संपर्क में आने का खतरा बढ़ जाता है। वर्ष 2017 में नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में छपे रिसर्च पेपर के मुताबिक जानवरों से फैलने वाली बीमारियों का जोखिम उष्णकटिबंधीय वनों में सबसे ज्यादा है। जहां पेड़ कटाई, डैम निर्माण और सड़क बनाने के काम हो रहे हैं। इस तरह की गतिविधियों से बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। क्योंकि इनसे परिस्थितिकी तंत्र में छेड़छाड़ होती है और इंसान व मवेशियों के साथ वन्यजीवों का संपर्क बढ़ता है। वन्य प्राणियों की जो प्रजातियां आमतौर पर इंसानों से दूर रहती हैं वे भी संपर्क में आने लगती हैं। इससे रोगजनक विषाणुओं को फैलने का मौका मिल जाता है। प्रकृति की इस चेतावनी और संकेत से सबक लेकर यदि हम वन्यजीवों और उनके आवास के अधिकारों का सम्मान नहीं करते तो कोविड-19 जैसी अनेकानेक बीमारियों का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।

लॉकडाउन के दौरान वाहनों की आवाजाही थमने पर निर्भय होकर सड़क पार करता चीतलों का झुण्ड। 

यह संकट इस बात का संकेत है कि हम अपनी जीवन दृष्टि पर आमूलचूल बदलाव लायें और प्रकृति को फिर से खुशहाल व समृद्ध करने की दिशा में कदम उठायें। हम बीमार हैं क्योंकि हमारी प्रकृति बीमार है, हमारा स्वास्थ्य प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का परिणाम है। वायरस हमारे रास्ते को सही करने का संकेत दे रहा है, यह हमें बता रहा है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा। लॉकडाउन के दौरान सभी ने यह देखा और महसूस किया है कि मानवीय दखलंदाजी कम होने तथा कथित विकास का पहिया थमने के साथ ही प्रकृति कुछ ही दिनों में किस तरह खिल उठी थी। प्रदूषण कम हो गया था, चिडय़िां झुण्ड में चहचहाने लगी थीं और सुनसान समुद्र तटों पर डॉल्फिन मछलियां अठखेलियां करती दिखाई देने लगी थीं जो कोलाहल और मनुष्यों के डर से किनारे पर नहीं आती थीं। दुनिया भर के महानगरों व आबादी वाले इलाकों में जहां लॉकडाउन के पूर्व हर समय वाहनों की रेलमपेल व भीड़ रहती थी, लॉकडाउन का सन्नाटा होने पर वन्य प्राणी जंगल से निकलकर शहरों की सड़कों पर सैर करते नजर आने लगे थे। सड़कों पर निर्भय होकर इन्हें विचरण करते देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह जायजा ले रहे हैं कि उनके पूर्वज यहां पर कहां रहते थे।

 जाहिर है कि किसी समय यहां जंगल हुआ करते रहे होंगे, जिन्हें काटकर हमने कंक्रीट की सड़कों और बस्तियों में तब्दील कर दिया। यहां के जंगल में निवास करने वाले वन्य प्राणियों को हमने खदेड़ कर उन्हें सीमित क्षेत्रों में रहने के लिए न सिर्फ मजबूर किया अपितु वहां भी उन्हें चैन से रहने नहीं दे रहे। हमारी लालची और धन संग्रह की वृत्ति वनों को नष्ट करने तथा वन्य प्राणियों का शिकार करने के लिए प्रेरित करती है। जिससे प्राकृतिक संतुलन खतरे में पड़ गया है। यहां यह गौरतलब है कि इस धरती में सिर्फ मनुष्य ही नहीं रहते और भी प्राणी हैं, जिन्हें शुद्ध आबोहवा और सुरक्षित आश्रय चाहिए। लेकिन हमने पूरी प्रकृति को अपने कब्जे में ले लिया है और अन्य सभी जानवरों पर हावी हो गये हैं। हम यह भूल गये हैं कि हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि नग्न आंखों से न दिखाई देने वाले अत्यंत छोटे सूक्ष्म जीवों द्वारा भी मिटा दी जा सकती है।

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Thursday, December 10, 2020

पन्ना शहर का सुनियोजित विकास हमारी जिम्मेदारी : मंत्री

  •  महज नाम के लिए न हो स्मार्ट सिटी, नगर में दिखना चाहिए कार्य
  •  खनिज मंत्री ने नगर में चार निर्माण कार्यों का किया भूमिपूजन 


इन्द्रपुरी कॉलोनी स्थित मुक्तिधाम में भूमिपूजन उपरांत सम्बोधित करते खनिज मंत्री। 

अरुण सिंह,पन्ना। मंदिरों के शहर पन्ना को साफ सुथरा और आकर्षक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पन्ना शहर का सुनियोजित विकास हो, यह हमारी जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी का निर्वहन हर हाल में किया जायेगा, क्योंकि यहां की जनता ने हमें इसी मंशा से चुना है ताकि पन्ना का विकास हो। यह बात प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने गुरुवार को शहर के इंद्रपुरी कॉलोनी स्थित मुक्तिधाम में अधोसंरचना विकास कार्य के भूमि पूजन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने स्मार्ट सिटी योजना के तहत चल रहे कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि कार्य गुणवत्ता पूर्ण व समय-सीमा में पूरे हों। मंत्री श्री सिंह ने कहा कि पन्ना महज नाम के लिए स्मार्ट सिटी न हो यहां उसके अनुरूप काम दिखना भी चाहिए।



 खनिज मंत्री ने कहा कि शहर के सभी मुक्तिधामों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना तथा वहां का विकास हमारी प्राथमिकता है। यही वह स्थान होता है जहां आकर जीवन की वास्तविकता का बोध होता है। यह स्थल बुनियादी सुविधाओं से युक्त तथा यहां की आबोहवा और वातावरण ऐसा होना चाहिए कि लोग कुछ समय यहां शांतिपूर्वक बैठकर जीवन की सच्चाई से रूबरू हो सकें। मंत्री श्री सिंह ने कहा कि एक दिन सभी को यहां आना है, इसीलिए इस स्थल को धाम कहा जाता है। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद कलेक्टर व नगर पालिका के प्रशासक संजय कुमार मिश्रा की ओर मुखातिब होकर कहा कि नई परिषद बनने से पहले मुक्तिधाम के कार्य पूरे हो जाएं इस दिशा में हर संभव प्रयास किए जाएं। मंत्री श्री सिंह द्वारा आज वार्ड क्रमांक 11 आगरा मोहल्ला के मुक्ति धाम में 34.70 लाख रूपये की लागत से पेवर ब्लॉक लगाने का कार्य, बाउण्ड्रीबाल निर्माण कार्य, वेटिंग ऐरिया शेड निर्माण कार्य एवं चैकीदार क्वाटर निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया। इसके उपरांत आरटीओ आफिस के बगल में बीडी कालोनी के पास मुक्तिधाम की बाउण्ड्रीबाल लागत 13.32 लाख, इन्द्रपुरी कालोनी मुक्तिधाम में इन्टरलॉक पेवर ब्लॉक, आरसीसी वर्निंग शेड एवं बेटिंग एरिया शेड लागत 26.04 लाख तथा इन्द्रपुरी कालोनी के वार्ड क्र. 3 के पार्क की बाउण्ड्रीबाल पेवर ब्लॉक एवं नाली निर्माण कार्य लागत 7.60 लाख रूपये के कार्यो का शिलान्यास किया गया।

 विकास कार्यों के संबंध में मंत्री को सौंपा गया आवेदन

 नगर की इकलौती सुव्यवस्थित नगर सुधार न्यास कॉलोनी में जन सुविधा की दृष्टि से आवश्यक कार्यों की ओर खनिज मंत्री का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कॉलोनी वासियों ने इस मौके पर एक आवेदन भी सौंपा। आवेदन में मुख्य मार्ग से छात्रावास एवं मुक्तिधाम तक 5 मीटर चौड़ी सीसी रोड का निर्माण तथा जल निकासी हेतु दोनों तरफ नाली निर्माण कराने का अनुरोध किया गया है। इसके अलावा सामुदायिक भवन का निर्माण, आरक्षित भूमि पर पार्क का निर्माण, शॉपिंग कांप्लेक्स का निर्माण, छात्रावास के सामने मार्ग पर सीसी रोड एवं नाली निर्माण, कॉलोनी में साफ-सफाई तथा कचरा उठाने की समुचित व्यवस्था तथा खपत के अनुसार ट्रांसफार्मर की स्थापना व यहां स्थित एकमात्र मंदिर के विकास की मांग रखी गई। इन सभी मांगों को मंत्री श्री सिंह ने जरूरी बताया और इन्हें पूरा करने के निर्देश अधिकारियों को दिये।

समयसीमा में पूर्ण होंगे विकास कार्य - कलेक्टर

इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि नगर में नागरिक सुविधाओं एवं नगर को आकर्षक बनाने के लिए जिन कार्यो का शिलान्यास किया गया है उन सभी कार्यो को निर्धारित समयसीमा में पूर्ण कर लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि नगर का विकास पर्यटन को दृष्टिगत रखते हुए किया जा रहा है। मंदिरों के सौन्दर्यीकरण का कार्य एवं स्मार्ट सिटी योजना के अन्तर्गत अन्य विकास कार्य किये जा रहे हैं। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पहाडकोठी पर डायमंड म्यूजियम का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। पुराने पन्ना में पेयजल की समस्या के संबंध में कलेक्टर श्री मिश्र द्वारा बताया गया कि जल जीवन मिशन के अन्तर्गत आगामी आने वाले समय में पाइप लाइन डालकर प्रत्येक घर को पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। मंत्री श्री सिंह द्वारा भूमिपूजन करने तथा जनसुविधाओं के कार्यों को प्राथमिकता के साथ पूरा कराने की उनकी द्रढ़ इच्छा शक्ति को देख नगरवासियों ने प्रशन्नता व्यक्त की। 

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Tuesday, December 8, 2020

पन्ना में एक रेड हेडेड वल्चर की सफलता पूर्वक हुई रेडियो टैगिंग

  • गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों के अध्ययन हेतु देश में पहली बार पन्ना टाइगर रिजर्व में हो रहा यह अभिनव प्रयोग 
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से विभिन्न प्रजाति के 25 गिद्धों की होनी है रेडियो टैगिंग

गिद्ध को पकड़ने के बाद उसके शरीर में डिवाइस फिट करते हुए विशेषज्ञ। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से एक रेड हेडेड वल्चर की सफलता पूर्वक रेडियो टैगिंग की गई है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए आज बताया कि योजना के तहत अध्ययन हेतु विभिन्न प्रजाति के 25 गिद्धों का रेडियो टैगिंग किया जाना है। जिसके तारतम्य में गत 6 दिसम्बर को वन परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में एक रेड हेडेड वल्चर का जी.पी.एस. टैग किया गया। इस प्रजाति का गिद्ध पन्ना टाइगर रिज़र्व में पाया जाता है। टैगिंग के उपरान्त गिद्ध को जब खुले आकाश में छोड़ा गया तो वह पलक झपकते ही ऊँची उड़ान पर निकल गया।

 

रेडियो टैगिंग के उपरांत गिद्ध को छोड़े जाने का द्रश्य। 

क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि गिद्धों के बारे में कहा जाता है कि ये बहुत लंबी-लंबी दूरियां तय करते हैं। गिद्ध एक देश से दूसरे देश की दूरियां भी तय करते हैं। रेडियो टैगिंग के कार्य से गिद्धों के रहवास, प्रवास के मार्ग एवं पन्ना लैण्डस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी, जिससे भविष्य में उनके प्रबंधन में मदद मिलेगी। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की सात प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार प्रजातियां पन्ना बाघ अभयारण्य की निवासी हैं जब कि शेष तीन प्रजातियां प्रवासी हैं। गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य जीव प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं। इस अध्ययन के तहत  25 गिद्धों को टैग करने की योजना है, कोशिश की जा रही है कि सभी प्रजातियों को टैग किया जा सके। जी.पी.एस. टैग से विभिन्न प्रजाति के गिद्ध  कैसे रहते हैं, कैसे प्रवास करते हैं तथा रास्ते की भी जानकारी सब प्राप्त होगी। जो गिद्धों के प्रबंधन व उनके संरक्षण के लिए लाभकारी साबित होगा।

 

गिद्धों को कैप्चर करने के लिए निर्मित किया गया विशेष पिंजरा। 

गिद्धों की कैप्चरिंग के लिए डब्ल्यूआईआई द्वारा दक्षिण अफ्रीका और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस), भारत के परामर्श से जो विधि विकसित की गई है, उसके तहत घास के मैदान में 15 मीटर * 5 मीटर * 3 मीटर आकार का पिंजरा बनाया गया है। तक़रीबन कमरे के आकार वाले इस पिंजरे के भीतर ताजे मांस के टुकड़े डालते हैं, जिन्हे खाने के लिए गिद्ध पिंजरे के भीतर आ तो जाते हैं, लेकिन बाहर नहीं निकल पाते। पिंजरे में कैद हो चुके गिद्ध को पकड़कर रेडियो टैगिंग करने के उपरांत उसे पुन: खुले आकाश में उड़ान भरने के लिए छोड़ दिया जाता है। गिद्ध के शरीर में फिट किये गये छोटे उपकरण से उसके रहवास, प्रवास सहित हर गतिविधि की जानकारी मिलती रहती है।   

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Monday, December 7, 2020

बाघ पी-111 का रेडियो कॉलर टाइट होने से गले में हुआ घाव

  •  बेहोश करके गले से निकाला गया रेडियो कॉलर 
  •  पुनर्स्थापना योजना के तहत जन्मा यह पहला बाघ 


बाघ पी-111 को बेहोश कर उसका निरीक्षण करते वन्य प्राणी चिकित्सक। 

अरुण सिंह,पन्ना।
मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत जन्मे पहले बाघ पी-111 के गले में रेडियो कॉलर टाइट होने के कारण जख्म हो गये हैं। कैमरा ट्रैप से गत दिनों इस बाघ की फोटो मिलने पर पार्क प्रबंधन को जब इसकी जानकारी हुई तो बाघ के गले से रेडियो कॉलर निकालकर उसका उपचार करने की प्रक्रिया शुरू की गई। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा के मार्गदर्शन में आज सोमवार को वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता द्वारा बाघ पी-111 को ट्रेंकुलाइज कर उसके गले से सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर निकाला गया।

 क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि गत सप्ताह है कैमरा ट्रैप से बाघ की फोटो प्राप्त हुई थी। जिससे पता चला कि बाघ पी-111 के गले में रेडियो कॉलर टाइट हो गया है। इस पर तत्काल कार्यवाही करते हुए आज पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट रमपुरा के कक्ष क्रमांक 1368 में इस नर बाघ को बेहोश कर रेडियो कॉलर निकाला गया। श्री शर्मा ने बताया कि रेडियो कॉलर टाइट होने के कारण बाघ के गले में छोटा घाव था, जिसका उपचार किया गया। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि रेडियो कॉलर निकालने के बाद बाघ को होश में लाकर उसे स्वच्छंद विचरण के लिए छोड़ दिया गया है। आपने बताया कि घाव ठीक होने तक यह बाघ सतत निगरानी में रहेगा। इसके लिए हाथी दल को जरूरी दिशा-निर्देश के साथ मॉनिटर करने के लिए लगाया गया है।

बाघिन टी-1 की प्रथम संतान है यह बाघ

 बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से 4 मार्च 2009 को पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 के पहले लीटर की यह बाघ प्रथम संतान है। पहली संस्थापक बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को चार नन्हे शावकों को जन्म दिया था, उन्ही शावकों में से यह पहला शावक है जो अब 10 वर्ष 7 माह का हो चुका है। इसी पहले बाघ का जन्म दिवस 16 अप्रैल को प्रतिवर्ष बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बाघ पुनर्स्थापना को मिली कामयाबी की खुशी में बाघ के जन्मदिन पर उत्सव मनाने की अनूठी परंपरा तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति ने शुरू की थी, जो अनवरत रूप से जारी है। दुनिया में शायद पन्ना टाइगर रिजर्व ही है जहां किसी बाघ का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

 पन्ना का डोमिनेंट मेल है पी-111

 साढे 10 वर्ष की आयु के हो चुके बाघ पी-111 की हुकूमत आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में चलती है। इस बाघ का आकार व वजन अन्य बाघों की तुलना में अधिक है तथा ताकत के मामले में भी इसका कोई मुकाबला नहीं है। यही वजह है कि पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े क्षेत्र में इसका आधिपत्य बना हुआ है।  इसके आधिपत्य वाले वन क्षेत्र में तीन से चार बाघिनें रहती हैं, इसीलिए इस बाघ को पन्ना टाइगर रिजर्व का डोमिनेंट मेल भी कहते हैं।

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Sunday, December 6, 2020

घोटालों के लिए चर्चित पन्ना जिले ने फिर किया नाम रोशन !

  •  पीएम आवास घोटाले में अध्यक्ष, सीएमओ, उपयंत्री समेत 7 के खिलाफ मामला दर्ज 
  • पन्ना जिले की नगर परिषद पवई का है यह हैरतअंगेज मामला, जाँच में हुआ खुलासा  


नगर परिषद पवई जहाँ प्रधानमंत्री आवास योजना में हुआ है फर्जीवाड़ा। 

अरुण सिंह, पन्ना। घोटालों, फर्जीवाड़ा और शासकीय योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिए चर्चित  मध्य प्रदेश के पन्ना जिले ने फर्जीवाड़े के एक हैरतअंगेज मामले में फिर अपना नाम रोशन किया है। यहाँ जनप्रतिनिधियों, अधिकारीयों व ठेकेदारों के गठजोड़ ने मिलकर ऐसा कारनामा किया है कि दूसरे जिलों के बड़े भ्रष्टाचारी भी हैरत में हैं। विकास और जनसुविधाओं के मामले में यह जिला क्यों फिसड्डी बना हुआ है, इस फर्जीवाड़े को देख आसानी से समझा जा सकता है। मालुम हो कि जिले की नगर परिषद पवई में प्रधानमंत्री आवास योजना में हुए घोटाले पर थाना पुलिस ने सात आरोपियों के खिलाफ नामजद आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया है। आवास योजना के पात्र हितग्राहियों की स्वीकृत सूची में छेड़छाड़ करते हुए अपात्रों के नाम जोड़कर उनके बैंक खातों में राशि जारी करने के फर्जीवाड़े में पुलिस ने नगर पंचायत अध्यक्ष पवई किरण बागरी, अध्यक्ष पति बृजपाल बागरी, तत्कालीन सीएमओ विजय रैकवार, उपयंत्री विक्रम बागरी समेत सात लोगों के विरुद्ध जालसाजी, गबन और भ्रष्टाचार की धाराओं के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करते हुए मामले को विवेचना में लिया है। इस प्रकरण में अब तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

उल्लेखनीय है कि नगर परिषद पवई में प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़े पैमाने पर अनियमिततायें होने की शिकायतें मिलने पर कलेक्टर पन्ना ने विगत 2 माह पूर्व जांच हेतु चार सदस्सीय समिति गठित की थी। समिति ने जांच उपरान्त प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा करते हुए उल्लेख किया है कि वर्ष 2018-19 में प्रधानमंत्री आवास योजना के 774 हितग्राहियों की कलेक्टर पन्ना द्वारा स्वीकृत सूची में शामिल 139 पात्र हितग्राहियों के नाम हटाकर इतने ही अपात्रों के नाम जोड़े गये हैं। कूटरचना कर दस्तावेजों में हेराफेरी करने के पश्चात अपात्र हितग्राहियों के खातों में आवास की राशि दो-दो लाख रुपए डाल दिये गये। आवास योजना में हुए इस घपले के लिए जांच कमिटी ने तत्कालीन नगर परिषद अध्यक्ष किरण बागरी, उनके पति बृजपाल बागरी, तत्कालीन सीएमओ विजय रैकवार, उपयंत्री विक्रम बागरी समेत सात लोगों को दोषी ठहराया है।

 थाना प्रभारी पवई सुदामा प्रसाद शुक्ला ने बताया कि नगर परिषद पवई में आवास योजना की स्वीकृत सूची में फेरबदल कर घोटाला करने के मामले में तत्कालीन नगर पंचायत अध्यक्ष पवई किरण बागरी, अध्यक्ष पति बृजपाल बागरी उर्फ़ भोलू, तत्कालीन सीएमओ विजय रैकवार, उपयंत्री विक्रम बागरी, अस्थाई कर्मचारी सच्चिदानंद पटेल, बलराम पटेल, नीलेश विश्वकर्मा के विरुद्ध धारा 420, 467, 468, 471, 34 ताहि एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत प्रकरण पंजीबद्ध कर मामले को जांच में लिया गया है।

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Saturday, December 5, 2020

धान उपार्जन में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी : कलेक्टर

  •  उपार्जन केन्द्र बडागांव एवं गुखौर का कलेक्टर ने किया निरिक्षण 
  • धान लेकर केंद्र में पहुंचे किसानों को रोके जाने पर जताई नाराजगी 

धान उपार्जन केन्द्र बडागांव का आकस्मिक निरीक्षण करते कलेक्टर संजय कुमार मिश्र। 

अरुण सिंह,पन्ना। धान उपार्जन में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह बात कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने उपार्जन केन्द्र बडागांव का आकस्मिक निरीक्षण करने के दौरान कही। इस केन्द्र के धान का उपार्जन जवाहर विपणन सहकारी समिति द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने अब तक की गयी धान की खरीदी, किसानों को भेजे गए एसएमएस एवं एसएमएस प्राप्त होने के उपरांत कितने किसान खरीदी केन्द्र पर नहीं जाए इसकी जानकारी लेने के साथ उन्होंने खरीदी गयी धान की बोरियों का मौके पर तौल कराकर वजन सत्यापित किया। केन्द्र में उपस्थित किसानों से चर्चा कर धान उपार्जन में किसी प्रकार की परेशानी न होने की जानकारी ली गयी। बगैर एसएमएस के आए हुए किसानों को रोकना तथा धान रखवा लेने तथा एसएमएस प्राप्त होने के बाद धान लाए हुए किसानों को रोकने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए निर्देश दिए कि जो भी किसान वैधानिक रूप से धान केन्द्र पर ले आए हैं उनकी खरीदारी आज ही पूर्ण कराई जाए। किसानों को उपार्जन केन्द्रों पर किसी भी तरह की कठिनाई नही होनी चाहिए। उनके लिए छायावान, बैठक व्यवस्था, पेयजल आदि की उपलब्धता सुनिश्चित की जाये।

गुखौर की चौपाल में ग्रामीणों से हुए रूबरू 


ग्राम गुखौर में आयोजित चौपाल में ग्रामीणों से रूबरू चर्चा कर समस्याओं की ली जानकारी। 

धान उपार्जन केन्द्र निरीक्षण के उपरांत कलेक्टर श्री मिश्र ने ग्राम गुखौर में आयोजित चौपाल में भाग लिया। चैपाल में उपस्थित लोगों से रूबरू होकर उनकी समस्याएं जानी। अधिकतर लोगों ने गरीबी रेखा के राशन कार्ड बनाए जाने की मांग की। इस संबंध में उन्होंने हल्का पटवारी को निर्देश दिए कि इन आवेदकों के आवेदन प्राप्त कर गरीबी रेखा का राशन कार्ड बनवाने की कार्यवाही की जाए। किसानों को पीएम किसान की राशि, राहत राशि, प्रत्येक पटवारी सप्ताह में दो दिवस सोमवार एवं गुरूवार को अपने मुख्यालय पर रहकर ग्रामीणों की समस्याओं का निराकरण करें। ग्रामीणों द्वारा बटवारा एवं सीमांकन न किए जाने की शिकायतें की गयी। इस पर कलेक्टर श्री मिश्र ने नाराजगी जाहिर करते हुए पटवारी एवं अन्य कर्मचारियों की वेतन रोकने के निर्देश दिए। कलेक्टर श्री मिश्र ने आंगनवाडी कार्यकर्ताओं से कुपोषित एवं अतिकुपोषित बच्चों के संबंध में जानकारी ली। अतिकुपोषित बच्चों को पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराने के निर्देश दिए। वही आशा कार्यकर्ता को निर्देश दिए कि लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के संबंध में निरंतर प्रेरित करते रहें। पेयजल जल योजना, सडक निर्माण कार्य बंद, गौशाला राजापुर में चारागाह की भूमि पर अतिक्रमण, हायर सेकेण्डरी स्कूल गुखौर में जनभागीदारी से अतिरिक्त कक्ष, विद्युत कनेक्शन आदि से संबंधित शिकायतों का निराकरण किए जाने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए गए।

स्ट्रीट बेण्डर योजना की दी जानकारी 

कलेक्टर श्री मिश्र द्वारा शासन की स्ट्रीट बेण्डर योजना के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि रोजगार के इच्छुक व्यक्ति इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इस योजना के तहत शासन द्वारा 10 हजार रूपये की राशि बैंक के माध्यम से दिलाई जाती है। इस राशि पर कोई ब्याज नही लिया जाता। यदि हितग्राही द्वारा निर्धारित समयसीमा पर किश्त जमा कर एक वर्ष में पूर्ण राशि जमा करा दी जाती है तो उसे 20 हजार रूपये की राशि बगैर ब्याज के उपलब्ध कराई जाती है। इस राशि के जमा होने के उपरांत शासन द्वारा 50 हजार रूपये की राशि उपलब्ध कराई जाती है। इस योजना के तहत कोई भी बेरोजगार सीधे बैंक से ऋण लेकर अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है।

गन्दगी रोकने शौचालय का करें उपयोग 

चैपाल में प्रधानमंत्री आवास न मिलने की शिकायत की गयी। इस पर मौके पर गांव के जितने लोगों के आवास स्वीकृत थे उनकी सूची का वाचन कराया गया। मौके पर सचिव द्वारा बताया गया कि हितग्राहियों की दूसरी सूची आवास स्वीकृत होकर प्राप्त होने वाली है। कलेक्टर श्री मिश्र ने कहा कि सभी हितग्राही के आवास गुणवत्तायुक्त बनाए जाएं। प्रत्येक में शौचालय हो। वहीं ग्रामीणजनों से अपेक्षा करते हुए कहा कि शौचालय के बनने के बाद प्रत्येक व्यक्ति का शौचालय का उपयोग करना चाहिए। जिससे गांव में गंदगी न फैले। यदि गांव में गंदगी नहीं फैलेगी तो गांव के लोग बीमार नहीं होंगे। उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि इस जिले में कोरोना वायरस का संक्रमण कम है मगर जब तक कोरोना की कोई दवाई अथवा बैक्सीन नही आ जाती तब तक हम सभी को आपस में 6 फिट की दूरी बनाए रखने के साथ मास्क लगाना चाहिए। इसके अलावा थोडी-थोडी देर मेें हांथों को साबुन से धोते रहें। जिससे इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके।

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अवैध कटाई व अतिक्रमण से मैदान में तब्दील हो रहे जंगल

  •  बेशकीमती वन भूमि पर कब्जा जमाने की फिराक में रहते हैं भू-माफिया 
  •  दक्षिण वन मंडल में सलेहा रेंज के अंतर्गत अतिक्रमण हेतु हो रही कटाई 

सलेहा रेंज अंतर्गत वन भूमि में अतिक्रमण करने की मंशा से पेड़ काटते लोग।  

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में वन भूमि पर बड़े पैमाने पर हो रहे अतिक्रमण के चलते जंगल धीरे-धीरे मैदान में तब्दील होते जा रहे हैं। सुरक्षा और संरक्षण में कमी तथा वन अमले की उदासीनता और लापरवाही के कारण जहां भूमाफिया बेशकीमती वन भूमि पर कब्जा जमाने की फिराक में रहते हैं, वहीं अवैध हीरा व पत्थर की खदानों तथा अनियंत्रित अवैध कटाई से भी जंगल उजड़ रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव वन्य प्राणियों के जीवन पर पड़ रहा है। वन्यजीवों की कई प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडराने लगा है।

जिले के दक्षिण वन मंडल अंतर्गत वन परिक्षेत्र सलेहा के ग्राम मुड़िया के जंगल में कुछ स्थानीय दबंगों द्वारा हरे भरे वृक्षों को काटकर वन भूमि पर कब्जा किये जाने का मामला प्रकाश में आया है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह सिलसिला विगत 1 माह से जारी है, जहां लगभग 20 से 25 एकड़ जंगल की जमीन में कब्जा करने की नीयत से भारी भरकम हरे-भरे बृक्षों को उजाड़ा जा रहा है। ऐसा नहीं कि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा कार्यवाही नहीं की गई, पूर्व में इस वन भूमि में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कब्जा कर जंगल की कटाई की जा रही थी, जिसके खिलाफ वन परिक्षेत्र अधिकारी, बीट गार्ड एवं वन रक्षकों द्वारा कार्रवाई करते हुये वन भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराया गया था, जिससे उक्त व्यक्ति जंगल की कटाई और कब्जा छोड़ने को मजबूर हो गया था, परंतु कुछ दिनों बाद कुछ अन्य व्यक्तियों द्वारा ग्राम मुड़िया के जंगल कि उक्त भूमि में कब्जे की नियत से पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है। बताया जाता है कि  स्थानीय दबंग वनों की कटाई करवा कर जमीन पर कब्जे की कोशिश कर रहे हैं। वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को राजनीतिक पहुंच रखने वाले कुछ  लोगों का संरक्षण प्राप्त होने की वजह से वन विभाग के कर्मचारी भी अतिक्रामकों का सामना करने से डरते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक जंगल में हो रही अवैध कटाई की सूचना मिलने पर वन परिक्षेत्र अधिकारी सलेहा वन अमले के साथ कार्यवाही हेतु मौके पर पहुंचे, परंतु इसकी पूर्व सूचना अवैध कटाई करने वालों को मिलने पर वह मौके से फरार हो गये। इससे यह आशंका भी जताई जा रही है कि मैदानी वन अमले की किसी न किसी रूप में माफियाओं से सांठ - गांठ है। वन परिक्षेत्र अधिकारी के अनुसार वनों की कटाई या कब्जा की कोशिस करने वालों को बख्सा नहीं जायेगा, ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाई की जायेगी।

उल्लेखनीय है कि देश में वन भूमि पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण मध्यप्रदेश में हो रहा है। वन विभाग के संरक्षण शाखा की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रतिवर्ष साढे 700 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर खेती और आवास बनाने के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है। रिपोर्ट में यह बात भी स्वीकार की गई है कि वन भूमि से अतिक्रमण हटाने में मात्र 20 फ़ीसदी ही सफलता मिल पाती है इसकी मुख्य वजह वोट बैंक की राजनीति मानी जा रही है। रिपोर्ट में पिछले 3 साल के अतिक्रमण आंकड़ों का हवाला देकर कहा गया है कि 13209 हेक्टेयर में अतिक्रमण हुआ जबकि मात्र 10 39 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराने में वन महकमा सफल हो पाया। प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है इसे हटाने में प्रतिवर्ष करीब 50 सुरक्षाकर्मी घायल होते हैं। वन भूमि में अतिक्रमण की गंभीर होती जा रही इस समस्या के स्थाई निदान हेतु कारगर पहल जरुरी है। 

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Thursday, December 3, 2020

मोबाइल बजने पर वरिष्ठ अधिकारी पर हुआ जुर्माना

  • कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्र ने जारी किया फरमान 
  • बैठक के दौरान मोबाइल बजने पर होगी 500 रू.की वसूली  

कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बैठक के दौरान यदि किसी अधिकारी का मोबाइल घनघनाया तो उसकी खैर नहीं। मोबाइल बजने पर न सिर्फ उसे फटकार पड़ेगी अपितु उसे 500 रूपये का जुर्माना भी भरना पड़ेगा। कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने इस संबंध बकायदे आज फरमान जारी किया है। बैठक के दौरान कार्यपालन यंत्री का मोबाइल बजने पर उन्हें 5 सौ रुपये का जुर्माना ठोंका गया है।

कलेक्टर ने बैठकों के दौरान मोबाइल चलाने वाले अधिकारियों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए निर्देश दिए हैं कि सभी अधिकारी बैठकों के दौरान मोबाइल बंद रखें। मोबाइल चालू रखने वाले अधिकारी से 500 रूपये का जुर्माना वसूल किया जाएगा। मालुम हो कि जिला मुख्यालय पन्ना स्थित संयुक्त कलेक्ट्रेट भवन में समयावधि पत्रों की समीक्षा बैठक के दौरान कार्यपालन यंत्री का मोबाइल बज उठा था। बैठक में मोबाइल चालू रखने पर इस वरिष्ठ अधिकारी से 500 रूपये की राशि वसूली गई है। कलेक्टर श्री मिश्र ने कहा कि बैठकों व कार्यशालाओं के दौरान मोबाइल चालू रखने से एकाग्रता भंग होती है। जिससे बैठक में लिए गए निर्णय एवं दिए गए दिशानिर्देशों को आत्मसात करने में स्वयं के साथ दूसरों को भी कठिनाई होती है। उन्होंने कहा कि हम सभी को कुछ समय के लिए तकनीकी से दूर रहना चाहिए। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, वहीं कामकाज करने की दक्षता बनी रहती है। 

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