- आखिर इंसान प्रकृति के संकेतों और चेतावनियों को क्यों कर रहा अनदेखा ?
- जंगल उजाड़ कर दौलत जमा करने वाले विकास मॉडल पर पुनर्विचार जरूरी
जिन कारणों के चलते मौजूदा संकट उपजा, उसको बयां करती यह तस्वीर। |
।। अरुण सिंह ।।
क्या सचमुच हमने पृथ्वी में रहने की पात्रता खो दी है ? क्या इस खूबसूरत और जीवंत ग्रह पृथ्वी से जीवन के विदा होने का समय आ गया है ? जीवन को पूरी तरह से नष्ट करने की दिशा में क्या सचमुच में हम तेजी के साथ अग्रसर नहीं हैं ? इस तरह के न जाने कितने सवाल जेहन में उभरते हैं और दूर-दूर तक कहीं भी इन सवालों के जवाब ढूंढे नहीं मिल रहे। चारों तरफ जिस तरह का परिदृश्य नजर आ रहा है तथा प्रकृति से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि मनुष्य जाने-अनजाने न सिर्फ आत्मघात करने पर आमादा है अपितु समूची पृथ्वी से जीवन के तिरोहित हो जाने का कारण भी बन रहा है। गुजर चुके साल 2020 में जो कुछ देखने को मिला है और जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय का नहीं है।
इंसान के कथित विकास मॉडल पर अपना सिकंजा कसती प्रकृति, यह तस्वीर भी एक चेतावनी। |
यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि 5 वर्ष पूर्व वर्ष 2015 में 195 देशों सहित यूरोपीय संघ के देशों ने पेरिस में इस धरती के इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। यह पेरिस समझौता इस धरती के जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इसका लक्ष्य पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस नीचे रखना था। मालूम हो कि जागतिक ऊष्मा में होने वाली यह वृद्धि संपूर्ण जीवन को समूल नष्ट करने की क्षमता रखती है। जलवायु परिवर्तन की उत्पन्न इस गंभीर चुनौती को लेकर हुए इस समझौते में अमेरिका की एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। अमेरिका ने यह वचन दिया था कि वर्ष 2025 तक वहां पैदा होने वाले प्रदूषण में 26 से 28 प्रतिशत की कटौती कर देगा। लेकिन वर्ष 2019 में ही राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया। ट्रंप के अनुसार बढ़ती जागतिक ऊष्मा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण संयुक्त राज्य अमेरिका का विकास है। अमेरिका के इस फैसले मात्र ने पृथ्वी पर एक सुरक्षित जीवन के प्रयास को गहरा आघात पहुंचाया है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन न सिर्फ तापमान में वृद्धि और मौसमी पैटर्न में बदलाव कर रहा है बल्कि यह हमारी हवा, पानी और भोजन को भी प्रभावित करता है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हम एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं।
पेरिस समझौते से मुकरने का अमेरिका ने जैसे ही ऐलान किया कि उसके साथ ही प्रकृति ने फिर कोरोना वायरस के रूप में तथाकथित विकासवादी इंसान को चेताने के लिए एक मारक संदेश भेजा, ताकि इंसान अपनी गलतियों से सबक लेकर प्रकृति को जीतने का मुगालता छोड़कर उसका सम्मान करना सीख ले। लेकिन हमने प्रकृति की इस चेतावनी को भी गंभीरता से नहीं लिया और कोरोना को हराने वैक्सीन की खोज में जुटे रहे। लेकिन इस बीच दुनिया में इस वायरस की चपेट में 8.16 करोड़ लोग आ चुके हैं और 17.81 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका, भारत और ब्राजील में कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले आये हैं। वैक्सीन का उपयोग कर हम इस महामारी से निपट पाते, इसके पूर्व ही कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है। यह नया स्ट्रेन कोरोना का नया रूप है, जिसे वैज्ञानिकों ने ज्यादा खतरनाक बताया है। चिंता की बात यह है कि कोरोना वायरस के इस नये स्ट्रेन ने भारत में भी दस्तक दे दी है। फिलहाल इस महामारी का अंत कब होगा, इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता।
निश्चित ही यह मनुष्य जाति के लिए एक चेतावनी है कि प्रकृति के जलवायु मंडल और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में हम जीका, एड्स, सॉर्स और इबोला जैसे कई वायरस देख चुके हैं। लेकिन हमने उनसे कोई सबक नहीं लिया। अभी तक आये सभी वायरस वन्य प्राणियों से आये हैं, जिनके प्राकृतिक निवास स्थलों का विनाश हमने किया है। इस तरह की गतिविधियों से प्राकृतिक विपत्तियों का खतरा बढ़ जाता है। यह वायरस जंगली जानवरों से पालतू जानवरों और फिर मनुष्यों में फैलते हैं। वन्य प्राणी जब जंगल में अपने अनुकूल पर्यावास में स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं तो प्राकृतिक संतुलन के कारण उनकी संख्या जहां नियंत्रित रहती है, वहीं वे रोगमुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। लेकिन वनों का विनाश होने से उनका पर्यावास भी नष्ट होता है जिससे वह मानव आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अनुकूल पर्यावास न मिलने से उनमें बीमारियां पनपती हैं जिसकी चपेट में इंसान भी आ जाते हैं। इसलिए मौजूदा हालातों से सबक लेते हुए हमें संसाधनों को नष्ट कर दौलत जमा करने वाले विकास के मॉडल पर दोबारा सोचने की जरूरत है।
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