Saturday, October 31, 2020

विषखोपड़ा के काटने से नहीं, भय से होती है मौत

  •  छिपकली प्रजाति के इस जीव में नहीं होता है कोई विष 
  •  अंधविश्वास और अज्ञानतावश हम बन गये हैं इनके दुश्मन

विषखोपड़ा (मॉनिटर लिजर्ड) की यह तस्वीर इंटरनेट से साभार। 


। अरुण सिंह 

पन्ना। जीव जंतुओं की निराली दुनिया कितनी रहस्य पूर्ण और अनजानी है, इसका अंदाजा लगा पाना भी कठिन है। अज्ञानता के चलते हम अनेकों जीव जंतुओं के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर उनके प्रति दुश्मनी का भाव रखते हुए उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। घर की दीवारों पर नजर आने वाली छिपकली हो या फिर इसी का बड़ा रूप विषखोपड़ा अथवा गोह, आमतौर पर हम इनको अत्यधिक जहरीला मानते हैं। जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है, इन सरीसृपों में जहर होता ही नहीं है। लेकिन हमारा अंधविश्वास और इन जंतुओं के प्रति पूर्वाग्रह सच्चाई पर भारी पड़ता है।

आज के इस वैज्ञानिक युग में जब जीव जंतुओं के बारे में शोध पर जानकारी उपलब्ध है, उस समय भी हम पुरानी धारणाओं के अनुरूप ही व्यवहार करते हैं। विष खोपड़ा के बारे में यह आम धारणा है कि उसका काटा पानी भी नहीं मांग पाता, मौत निश्चित होती है। हमारी इसी अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण उपजे भय से लोगों की मौत होती है न कि उसके जहरीले होने के कारण। क्योंकि विषखोपड़ा की खोपड़ी में जहर होता ही नहीं है। 

अंधविश्वास और पुरानी मान्यताओं का शिकार हुए विष खोपड़ा जिसे वैज्ञानिक भाषा में मॉनिटर लिजर्ड कहा जाता है उसके बारे में पर्यावरण व प्रकृति प्रेमी कबीर संजय ने बेहद ज्ञानवर्धक व रोचक जानकारी अपनी फेसबुक वॉल पर साझा की है। इस निर्दोष और शांतिप्रिय जीव के बारे में वे बताते हैं कि विषखोपड़ा एक प्रकार की बड़ी छिपकली है। जिसे विषखोपड़ा, गोहेरा, गोयरा, घ्योरा, गोह, बिचपड़ी आदि नामों से जाना जाता है। विशेषज्ञ इसे मानीटर लिजर्ड कहते हैं। इस प्रकार की छिपकलियों की यूं तो 70 के लगभग प्रजातियां दुनिया भर में पाई जाती है लेकिन हमारे देश में इनकी चार प्रजातियां मिलती हैं। ये हैं बंगाल मानीटर लिजर्ड, येलो मानीटर लिजर्ड, वाटर मानीटर लिजर्ड और डिजर्ट मानीटर लिजर्ड। इनमें से बंगाल मानीटर लिजर्ड सबसे ज्यादा दिखता है। 

आमतौर पर लोग विषखोपड़ा या गोह को बेहद जहरीला मानते हैं। लेकिन, इस प्राणी के पास बिलकुल भी जहर नहीं है। यह सरीसृप है। यानी ठंडे रक्त वाला। इसलिए इसे धूप सेंकने की जरूरत पड़ती है। इसके मुंह में विषदंत नहीं होते हैं और न ही विष की थैली। यह अपने शिकार को चबाकर नहीं बल्कि निगलकर खाता है। मनुष्यों के बीच घिर जाने पर भी इसकी कोशिश किसी तरह से निकल भागने की होती है। लेकिन, कई बार बहुत ज्यादा छेड़छाड़ करने पर यह काट भी सकती है। हालांकि, उसकी यह बाइट जहरीली नहीं है। पर उससे बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकते हैं। ऐसे जीवों के साथ कभी भी छेड़छाड़ नहीं करें। वे कहीं दिखें तो उन्हें निकलने का सुरक्षित रास्ता दें, ताकि वे अपने पर्यावास में जा सकें। अगर कभी जरूरत पड़े भी तो विशेषज्ञों की राय लें। खुद उन्हें पकडऩे की कोशिश करना ठीक नहीं।

हमारी अज्ञानता, अंधविश्वास और लालच के चलते भारत में पाई जाने वाली मानीटर लिजर्ड की चारों प्रजातियां खतरे में हैं। इनकी खाल का व्यापार किया जाता है। इनके खून और मांस का इस्तेमाल कामोत्तेजक दवाओं को बनाने में किया जाता है। नर विषखोपड़ा के जननांगों का कारोबार सबसे ज्यादा प्रमुख है। इस प्रकार का अंधविश्वास है कि इसके जननांगों को सुखाकर चांदी के डिब्बे में रखने से घर में लक्ष्मी आती है। यह अंधविश्वास लाखों मानीटर लिजर्ड की जान हर साल लेता है। 

इससे जुड़ा हुआ सबसे ज्यादा खौफनाक पहलू यह है कि जननांग निकालते समय गोह को जिंदा होना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि सोची-समझी साजिश के तहत गोह या विषखोपड़ा को जहरीला बताया जाता है। ताकि, उनका आसानी से शिकार किया जाए और आम जनता उनसे घृणा करती रहे। तमाम लोगों के पास विषखोपड़ा के काटने के किस्से हैं और वे बिना ज्यादा छानबीन किए इन कहानियों को बेहद प्रामाणिक तरीके से सुनाते हैं। इनमें बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं।

स्तनपायी जीव और सरीसृपों में बहुत अंतर है। सरीसृप अंडे से पैदा होते हैं। उनके शरीर पर बाल नहीं होते हैं। वे ठंडे खून वाले होते हैं। उनके कान अंदर होते हैं। दुनिया के बारे में जानने समझने के लिए सांप जैसे सरीसृप अपनी जीभ को बार-बार बाहर निकालते रहते हैं। मानीटर लिजर्ड भी अपनी जीभ को बार-बार बाहर निकालकर दुनिया का अंदाजा लेती है। इसके चलते भी लोग उसे घृणा करते हैं और जहरीला समझते हैं। कहीं वो दिखे तो उसे मार देते हैं। 

माना जाता है कि इन तमाम बातों के चलते हर साल पांच लाख से ज्यादा गोह को मार दिया जाता है। जबकि, ये प्राणी खेतों से हजारों कीड़े-मकोड़े और जीवों को खाकर खेती किसानी में मदद करते हैं। वे मददगार प्राणी हैं, हमारे दुश्मन नहीं हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि हम उनके दुश्मन हैं...विषखोपड़ा की खोपड़ी में जहर नहीं है। जहर इंसान की खोपड़ी में ज्यादा है। 

बाघ की भांति गोह भी करता है इलाके का निर्धारण, होता है संघर्ष 

 


जंगल में अपने साम्राज्य (टेरीटोरी) का निर्धारण करने के लिए सिर्फ बाघों के बीच ही संघर्ष नहीं होता. जंगल के राजा की तर्ज पर अन्य दूसरे वन्य जीव भी अपना इलाका बनाते हैं और इसके लिए उनके बीच भीषण लड़ाई भी होती है। सरीसृप वर्ग के वन्य जीव गोह में भी बाघ की तरह अपनी टेरीटोरी बनाने तथा अधिक से अधिक मादाओं को अपने नियंत्रण में रखने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

उल्लेखनीय है कि प्रकृति की गोद में हर वन्य प्रांणी के रहने तथा जीवन जीने का तरीका अनूठा और विचित्र होता है। छिपकली प्रजाति के वन्य जीव गोह जिसे मानीटर लिजार्ड भी कहते हैं, उसकी जीवन शैली बाघ की प्रकृति से मिलती जुलती प्रतीत होती है। लगभग ढाई से तीन फिट लम्बा तमाम खूबियों वाला यह विचित्र वन्य जीव बारिश के मौसम में ज्यादा नजर आता है। नर गोह बरसात प्रारंभ होते ही मैटिंग के लिए मादा गोहों की ओर आकर्षित होता है. इस दौरान नर गोह की टेरीटोरी में रहने वाली मादा गोहों के पास दूसरे नर गोह के आने पर दोनों नरों के बीच अस्तित्व कायम रखने के लिए भीषण संघर्ष होता है। शक्तिशाली नर गोह जो संघर्ष में जीत हासिल करता है, टेरीटोरी में उसी की हुकूमत चलती है तथा वही इस टेरीटोरी की मादाओं से मैटिंग करता है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक रहे  एम.पी. ताम्रकार ने बताया कि गोह के पंजे अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं तथा पेड़ या दीवाल में चिपक जाने पर इसे निकालना मुश्किल होता है। इस मांसाहारी वन्य जीव की जीभ काफी लम्बी और सांप की तरह दो भागों में बंटी होती है। राजाशाही जमाने में गोह का उपयोग ऊंचे स्थानों व किलों आदि में चढऩे के लिए सैनिक भी करते थे। श्री ताम्रकार ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गोह प्रचुर संख्या में हैं तथा यहाँ  इनके बीच होने वाले संघर्ष के दुर्लभ नजारे यदा - कदा दिखाई दे जाते हैं। नर गोहों के बीच टेरीटोरी के लिए हुए संघर्ष का बेहद दुर्लभ नजारा  भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के रिसर्चर रवि परमार ने कुछ वर्ष पूर्व अपने कैमरे में कैद किया था , जिसमें गोहों की जीवन शैली व प्रकृति की झलक मिलती है।

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Friday, October 30, 2020

पन्ना नेचर कैंप के पूरे हुए सफलतम 10 वर्ष

  •  स्कूली छात्र-छात्राओं का पसंदीदा कार्यक्रम रहा है यह 
  • अब तक 234 नेचर कैंपों का हो चुका है आयोजन 
  • कोविड-19 के चलते इसके स्वरूप में किया जा रहा बदलाव 
  • 1 नवंबर से ऑनलाइन वर्चुअल रूप में होगा आयोजित

उत्तम कुमार शर्मा, क्षेत्र संचालक।  

अरुण सिंह,पन्ना। वन व वन्य प्राणियों तथा विविध प्रजाति के रंग-बिरंगे पक्षियों के बारे में अभिरुचि पैदा करने तथा जागरूकता लाने के उद्देश्य से 10 वर्ष पूर्व पन्ना टाइगर रिजर्व में नेचर कैंप आयोजित करने का सिलसिला शुरू हुआ था। यह अभिनव प्रयोग स्कूली छात्र - छात्राओं के बीच बेहद लोकप्रिय रहा, नतीजतन सफलता पूर्वक 10 वर्षों से अनवरत जारी है। लेकिन इस वर्ष कोविड-19 कोरोना संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए नेचर कैंप के स्वरूप में आमूलचूल बदलाव किया जा रहा है। यह अनूठा कार्यक्रम कोरोना संकट के समय भी जारी रहे इसके लिए तकनीक का सहारा लेकर इसे ऑनलाइन वर्चुअल रूप में आयोजित किया जायेगा। जिसमें स्कूली बच्चे पूर्व की तरह भाग ले सकेंगे।

 उल्लेखनीय है कि स्कूली बच्चों को प्रकृति की पाठशाला में ले जाकर उन्हें प्रकृति के विभिन्न रूपों से परिचित कराने के लिए पन्ना नेचर कैंप की शुरुआत वर्ष 2010 में तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति द्वारा की गई थी। इस कार्यक्रम को स्कूली बच्चों ने अत्यधिक पसंद किया, नतीजतन नेचर कैंप के आयोजन का सिलसिला अनवरत जारी रहा। पन्ना टाइगर रिजर्व एवं विश्व प्रकृति निधि भारत के संयुक्त तत्वाधान में अब तक यहां 234 नेचर कैंप आयोजित हो चुके हैं। जिसमें 7266 प्रतिभागियों ने भाग लेकर जंगल की निराली दुनिया को निकट से देखने और समझने का प्रयास किया है। नेचर कैंप में भाग ले चुके स्कूली बच्चे प्रकृति, पर्यावरण व वन्य जीव संरक्षण के लिए गांव-गांव जागरूकता फैला रहे हैं। यह नन्हे प्रकृति प्रेमी अपने घर परिवार व परिचितों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व की जानकारी देकर उन्हें भी जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। पन्ना नेचर कैंप के आयोजन की यह सबसे बड़ी कामयाबी है।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि पन्ना नेचर कैंप की बच्चों में लोकप्रियता को देखते हुए कोविड-19 के बावजूद इसे जारी रखा जायेगा। आपने बताया कि प्रतिभागी बच्चे कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहें इस बात को दृष्टिगत रखते हुए फिलहाल नेचर कैंप के स्वरूप में बदलाव कर उसे वर्चुअल रूप में आयोजित किया जायेगा। जिसका शुभारंभ मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर 1 नवंबर को प्रात: 10:30 बजे किया जायेगा। उन्होंने बताया कि 01 नवंबर को प्रात: 10.30 बजे से 11.30 बजे कार्यक्रम का शुभारंभ, प्रात: 11.30 बजे से दोपहर 01 बजे तक प्रथम सत्र, 08 नवंबर को प्रात: 10.30 बजे से दोपहर 01.30 बजे तक दूसरा सत्र, 22 नवंबर को प्रात: 10.30 बजे से दोपहर 01.30 बजे तक तृतीय सत्र तथा 29 नवंबर को प्रात: 10.30 बजे से दोपहर 01.30 बजे तक चतुर्थ सत्र चलाया जायेगा। श्री शर्मा ने बताया कि नेचर कैंप में रुचि रखने वाले स्कूली बच्चे व अन्य प्रतिभागी ऑनलाइन आवेदन करके अपना पंजीयन करा सकेंगे। आवेदन फार्म पन्ना टाइगर रिजर्व की वेबसाइट में उपलब्ध है।

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Thursday, October 29, 2020

पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

  •   यूनेस्को ने 12वें बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में पन्ना को किया चिन्हित 
  •  बाघों की धरती पन्ना का इस अनूठी उपलब्धि से बढ़ा गौरव व सम्मान 

पन्ना टाईगर रिज़र्व के जंगल का मनमोहक द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद से विश्व प्रसिद्ध हुए पन्ना को यूनेस्को ने 12वें बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में चिन्हित किया है। पन्ना की नैसर्गिक खूबियों को अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज में स्थापित कर गौरव बढ़ाने वाली यह घोषणा बुधवार को की गई थी। यूनेस्को वर्ल्ड नेटवर्क आफ बायोस्फीयर रिजर्व में भारत के पन्ना को जोड़े जाने की खबर से प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमी आल्हादित हैं। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को कामयाब बनाकर दुनिया को बाघ संरक्षण का पाठ सिखाने वाले सेवानिवृत्त वन अधिकारी आर श्रीनिवास मूर्ति ने इस अनूठी उपलब्धि पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए पन्ना वासियों को बधाई दी है।

 उल्लेखनीय है कि विंध्य पर्वत श्रंखला में स्थित पन्ना के खूबसूरत जंगल और वादियां किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। यहां की भौगोलिक संरचना, जैव विविधता व प्राकृतिक सौंदर्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। इस अनमोल प्राकृतिक धरोहर को पन्ना के लोगों ने विपरीत परिस्थितियों और आर्थिक पिछड़ेपन के बावजूद भी काफी हद तक सहेज व संभालकर रखा है। यही धरोहर अब पन्ना को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाकर यहां के रहवासियों का न सिर्फ गौरव बढ़ाया है अपितु इससे पन्ना के विकास व समृद्धि का एक नया आयाम खुलेगा। प्रकृति, पर्यावरण और वन्य जीव का संरक्षण कर दुनिया को नई राह दिखाने वाले पन्ना में खुशहाली के फूल खिलेंगे, यूनेस्को की घोषणा इस बात का संकेत है। मालूम हो कि पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व दो जिलों पन्ना एवं छतरपुर को कवर करता है। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर खजुराहो के मंदिर भी पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व की जद में आते हैं। कल की  घोषणा के बाद से पन्ना और छतरपुर जिले का यह पूरा इलाका महत्वपूर्ण व विश्व धरोहर बन गया है। बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र में पर्यावरण, वन्य प्राणी संरक्षण व जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में होने वाले कार्यों को लेकर यूनेस्को से आर्थिक मदद मिलेगी और पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित हो सकेगी। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय है। इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र की इस विशेष संस्था का गठन 16 नवंबर 1945 को हुआ था। यूनेस्को के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश व दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसका मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है। यूनेस्को वैश्विक धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है। यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश की कई ऐतिहासिक महत्व वाली प्राचीन इमारतें और पार्क शामिल हैं। भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है।

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पन्ना की उथली खदान से मजदूर को मिला बेशकीमती हीरा

  • बिलखुरा निवासी बलबीर के घर में जश्न का माहौल 
  • बलबीर ने हीरा कार्यालय में पहुंचकर जमा किया हीरा 

 खदान से प्राप्त हीरे को लिये बलबीर साथ में उसकी पत्नी व भाई।

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्न गर्भा धरती ने आज फिर एक गरीब मजदूर को रंक से राजा बना दिया है। ग्राम बिलखुरा निवासी बलवीर सिंह यादव को पटी उथली खदान क्षेत्र से जेम क्वालिटी वाला 7.2 कैरेट वजन का हीरा मिला है। इस हीरे की अनुमानित कीमत 30 से 35 लाख रुपए बताई जा रही है। खदान में हीरा मिलने की खबर के बाद से बलवीर के घर में जश्न और खुशी का माहौल है। हीरा धारक बलवीर सिंह यादव ने अपनी पत्नी व भाई के साथ कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय आकर वहां विधिवत हीरा जमा कर दिया है।

 उल्लेखनीय है कि पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग पर सड़क के किनारे स्थित बिलखुरा ग्राम के निवासी बलवीर सिंह यादव की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। लॉकडाउन के चलते विगत कुछ महीनों से वह अत्यधिक परेशान था। आर्थिक परेशानियों के बीच ही एक माह पूर्व हीरा खदान लगाने का विचार उसके मन में आया और उसने हीरा कार्यालय से बकायदा पट्टा बनवा कर खदान खोदना शुरू कर दिया। पूरे एक माह तक बलवीर अपने तीन छोटे भाइयों के साथ मिलकर अथक श्रम किया, परिणाम स्वरुप मेहनत का फल उसे आज बेशकीमती हीरे के रूप में मिला है। हीरा कार्यालय पन्ना के पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि जमा हुए हीरे का वजन 7.2 कैरेट है जो उज्जवल किस्म का है। हीरे की कीमत पूछे जाने पर हीरा पारखी ने कहा कि इसकी अनुमानित कीमत अभी नहीं बताई जा सकती। आपने बताया कि आगामी दिनों में होने वाली नीलामी में इस हीरे को रखा जाएगा। नीलामी में हीरा बिकने पर रॉयल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा मालिक को प्रदान की जायेगी।


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Wednesday, October 28, 2020

पन्ना में शीघ्र प्रारंभ होगा डायमण्ड पार्क का कार्य - कलेक्टर

  •  डायमण्ड पार्क के सामने स्थापित होगा पन्ना व्यू-प्वाइंट
  • डायमण्ड पार्क की स्थापना से मिलेगा पर्यटन को बढ़ावा 



अरुण सिंह,पन्ना। बेशकीमती हीरों के लिये प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में शीघ्र ही डायमंड पार्क की स्थापना का कार्य शुरू होगा। उक्ताशय की जानकारी कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्र ने आज दी। डायमण्ड पार्क एवं पन्ना व्यू-प्वाइंट की स्थापना के संबंध में आयोजित बैठक में कलेक्टर श्री मिश्र ने लोक निर्माण विभाग एवं नगरपालिका को निर्देश दिये हैं कि इसी सप्ताह कार्य प्रारंभ कराया जाये। पन्ना में डायमण्ड पार्क की स्थापना से पर्यटन को जहाँ बढ़ावा मिलेगा वहीँ रोजगार के भी नये अवसरों का सृजन होगा। बाहर से आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को डायमण्ड पार्क में हीरे के संबंध में हर तरह की जानकारी आसानी से प्राप्त हो सकेगी।

उल्लेखनीय है कि हीरा की खदानों के लिये अपनी एक अलग पहचान रखने वाले पन्ना शहर में डायमंड पार्क की स्थापना हेतु विगत डेढ़ - दो दशक से हीरा कारोबारी व नगर के लोग मांग करते आ रहे हैं। इस दिशा में पहल और प्रयास भी हुये, लेकिन डायमंड पार्क मूर्त रूप नहीं ले सका। लम्बी प्रतीक्षा के बाद पन्ना में डायमंड पार्क बनने का मार्ग प्रशस्त होने से पन्ना जिले के लोगों में जहां भारी प्रशन्नता है, वहीँ हीरा व्यवसाई भी खासा उत्साहित हैं। कलेक्टर की अध्यक्षता में आयोजित हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि पार्क के अन्दर हीरे के साथ हीरा उत्खनन एवं तरासने की पूरी प्रक्रिया तथा हीरे का इतिहास एवं महत्व से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाये। इसके साथ ही हीरे से संबंधित फिल्म तैयार कर प्रदर्शित करने की व्यवस्था की जाये। पार्क में प्रवेश एवं निकास के लिए अलग-अलग द्वार स्थापित किये जायेंगे तथा परिसर में वाहन पार्किंग की भी समुचित व्यवस्था रहेगी। डायमण्ड पार्क के सामने पन्ना  व्यू-प्वाइंट की स्थापना भी होगी, ताकि यहां आने वाले पर्यटक दोनों को एक साथ देख सकें। कलेक्टर ने कहा कि पर्यटकों के आने से पन्ना नगर में व्यवसाय को बढावा मिलेगा, जिससे यहां लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। सम्पन्न हुई बैठक में अपर कलेक्टर  जे.पी. धुर्वे, एसडीएम पन्ना शेर सिंह मीणा, कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग  ए.बी. साहू, परियोजना अधिकारी जिला शहरी विकास अभिकरण  अरूण पटैरिया, मुख्य नगरपालिका अधिकारी यशवंत वर्मा, प्रबंधक हीरा उत्खनन परियोजना पन्ना के साथ संबंधित अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित रहे।

सर्वश्रेष्ठ है पन्ना के हीरों की गुणवत्ता 

रत्नगर्भा पन्ना की धरती से निकलने वाले हीरों की गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। जेम क्वालिटी वाले यहां के हीरे जहां बेशकीमती होते हैं वहीँ हीरा के शौखीन लोगों की भी यह तमन्ना रहती है कि उन्हें पन्ना की खदान का हीरा मिल जाये। मालुम हो कि पन्ना में अत्याधुनिक तकनीक से संचालित होने वाली जहां एनएमडीसी हीरा खदान है वहीँ सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोगों द्वारा उथली खदानें भी चलाई जाती हैं। इन खदानों से प्रति वर्ष अरबों रुपये के हीरे निकलते हैं। डायमंड पार्क की स्थापना होने से पन्ना में हीरों से जुड़े व्यवसाय को जहां पंख लगेंगे वहीँ हीरों की चोरी छिपे बिक्री व स्मगलिंग पर भी रोक लगेगी।    

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Tuesday, October 27, 2020

पन्ना में डेढ़ वर्ष की अर्धवयस्क बाघिन कई दिनों से घायल

  •  अंदरूनी चोट के चलते लंगड़ा कर चल रही
  •  जुड़ी नाले के पास पर्यटकों ने बनाया वीडियो



अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की एक अर्ध वयस्क बाघिन अंदरूनी चोट के कारण पिछले कई दिनों से लंगड़ाते हुए चल रही है। लगभग डेढ़ वर्ष की यह बाघिन कैसे व कब चोटिल हुई इसकी जानकारी नहीं है। दशहरे के दिन सोमवार को पर्यटकों ने जुड़ी नाले के पास इस जख्मी बाघिन की तस्वीर लेने के साथ-साथ वीडियो भी बनाया है। जिसमें बाघिन स्पष्ट रूप से लंगड़ा कर चलते हुए नजर आ रही है। यह अर्ध वयस्क बाघिन अभी अपनी मां पी-151 के साथ ही रहती है।

 

लंगड़ाकर रास्ता पार करते हुये पन्ना की बाघिन पी-151(11)   


उल्लेखनीय है कि 26 अक्टूबर सोमवार को पार्क भ्रमण कर रहे पर्यटकों का एक दल जब मंडला गेट से तकरीबन 4 किलोमीटर दूर जुड़ी नाले के पास से गुजर रहा था, उसी समय यह बाघिन रास्ता पार करते नजर आई। अचानक सामने बाघिन को देखकर पर्यटक रोमांचित हो उठे। तभी उनका ध्यान बाघिन के पिछले पैर की तरफ गया, जिसे वह आहिस्ते से रखकर झुकते हुए चल रही थी। बाघिन को इस तरह से चलते देख पर्यटकों को आशंका हुई और उन्होंने गौर से देखा तो पता चला कि उसके पैर में चोट है, जिसके कारण वह लंगड़ा रही है। उन्होंने बाघिन की तस्वीर ली और वीडियो भी बनाया ताकि इसके चोटिल होने की जानकारी पार्क प्रबंधन को दी जा सके।

 इस जख्मी बाघिन के संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मामला प्रबंधन की जानकारी में है। जख्मी बाघिन को निगरानी में लेकर विगत 15 दिनों से इलाज भी किया जा रहा है। डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि पहले की तुलना में स्थिति अब काफी बेहतर है। बाघिन को चोट कब व कैसे लगी इस बाबत पूछे जाने पर आपने बताया कि चोट कैसे व कब लगी यह अज्ञात है लेकिन चोट अंदरूनी है। चूंकि इसकी उम्र 17 माह के लगभग है तथा वह मां के साथ ही रहती है इसलिए उसे ट्रेंकुलाइज नहीं किया गया। डॉट के माध्यम से इंजेक्शन दिया गया है, जिससे अब वह हाथियों को देखते ही भागने लगती है। आपने बताया कि बाघिन की निरंतर निगरानी की जा रही है। यदि जरूरी हुआ तो फिर ट्रेंकुलाइज करके स्थिति का जायजा लेकर उपचार किया जायेगा।



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Friday, October 23, 2020

प्रदेश के 40 फीसदी जंगल पर निजी कंपनियों का होगा कब्ज़ा ?

  •  बिगड़े वनों को सुधारने के नाम पर प्रदेश सरकार ने लिया निर्णय 
  • जंगल पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों की जिंदगी होगी प्रभावित 


।। अरुण सिंह ।।

सदियों से जंगल के बीच प्राकृतिक जीवन जीने वाले आदिवासियों की जिंदगी में खलल पैदा करने की तैयारी की जा रही है। बिगड़े वनों को सुधारने तथा अतिक्रमण की समस्या से निजात पाने के नाम पर प्रदेश सरकार ने अजीबोगरीब फैसला लेकर मध्यप्रदेश की 37,420 वर्ग किमी. वन भूमि निजी कंपनियों को सौंपने जा रही है। सरकार के इस निर्णय से व्यापार करने वाली निजी कंपनियों को निश्चित ही फायदा होगा लेकिन जंगल और वनोपज पर पूरी तरह से निर्भर रहने वाले आदिवासियों की आजीविका कैसे चलेगी? यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है, जिसका फिलहाल कोई जवाब नहीं है।    

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश का 40 फीसदी जंगल प्रदेश सरकार ने बिगड़े वन क्षेत्र को दोबारा से घने जंगल में तब्दील करने के लिए निजी कंपनियों से हाथ मिलाने का निर्णय लिया है। हर समय आदिवासियों के कल्याण व उनके हितों की रक्षा करने का माला जपने वाली सरकार जंगल को अपना सब कुछ समझने वाले आदिवासियों को जड़ से उखाड़कर उन्हें जंगलों से ही बेदखल करने की योजना बना रही है। इस योजना से बिगड़े वनों और पर्यावरण का कितना सुधार होगा यह तो भविष्य बतायेगा लेकिन इतना तय है कि निजी कंपनियां अपने हितों से समझौता करने वाली नहीं हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य अधिक से अधिक लाभ कमाना होता है, जाहिर है कि वे यहाँ भी जनकल्याण की भावना से नहीं बल्कि व्यापार करके लाभ कमाने के लिये आयेंगी। मालूम हो कि मध्यप्रदेश में  जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की परिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने के नाम पर राज्य के कुल 94,689 लाख हैक्टेयर वन क्षेत्र में से 37,420 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को निजी कंपनियों को देने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में मध्यप्रदेश के सतपुड़ा भवन स्थित मुख्य प्रधान वन संरक्षक द्वारा अधिसूचना जारी की गई है। 


पन्ना जिले कल्दा पठार के आदिवासियों का जीवन वनोपज पर निर्भर। 

ध्यान रहे कि इस प्रकार के बिगड़े जंगलों को सुधारने के लिए राज्य भर के जंगलों में स्थित गांवों में बकायदा वन ग्राम समितियां बनी हुई हैं और इसके लिए वन विभाग के पास बजट का भी प्रावधान है। इस संबंध में  वन विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि जहां आदिवासी रहते हैं तो उनके निस्तार की जमीन या उनके घर के आसपास तो हर हाल में जंगल नहीं होगा। आखिर आप अपने घर के आसपास तो जंगल या पेड़ों को साफ करेंगे और मवेशियों के लिए चारागाह भी बनायेंगे। अब सरकार इसे ही बिगड़े हुए जंगल बताकर अधिग्रहण करने की तैयारी में है। जबकि राज्य सरकार का तर्क है कि बिगड़े हुए जंगल को ठीक करके यानी जंगलों को सघन बना कर ही जलवायु परिवर्तन और परिस्थितिकीय तंत्र में सुधार संभव है।

जानकारों का यह कहना है कि प्रदेश के कुल 52,739 गांवों में से 22,600 गांव या तो जंगल में बसे हैं या फिर जंगलों की सीमा से सटे हुये हैं। मध्यप्रदेश के जंगल का एक बड़ा हिस्सा आरक्षित वन है और दूसरा बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, सेंचुरी आदि के रूप में जाना जाता है। शेष क्षेत्र को बिगड़े वन या संरक्षित वन कहा जाता है। इस संरक्षित वन में स्थानीय लोगों के अधिकारों का दस्तावेजीकरण किया जाना है, अधिग्रहण नहीं। यह बिगड़े जंगल स्थानीय आदिवासी समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं, जो जंगलों में बसे हैं और जिसका इस्तेमाल आदिवासी समुदाय अपनी निस्तार जरूरतों के लिए करते हैं। सरकार के इस निर्णय से यह सवाल उठ रहे हैं  कि अगर ये 37 लाख हैक्टेयर भूमि उद्योगपतियों के पास होगी तो फिर लोगों के पास कौन सा जंगल होगा? पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून प्रभावी है जो ग्राम सभा को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देता है। क्या पीपीपी मॉडल में सामुदायिक अधिकार प्राप्त ग्राम सभा से सहमति ली गई है? वन अधिकार कानून द्वारा ग्राम सभा को जंगल के संरक्षण, प्रबंधन और उपयोग के लिए जो सामुदायिक अधिकार दिया गया है उसका क्या होगा? प्रदेश में अभी तक व्यावसायिक लोगों की गिद्ध द्रष्टि से जो जंगल बचा हुआ है उसमे स्थानीय निवासियों व आदिवासियों का अहम् रोल है। जंगलों को सुरक्षित, संरक्षित और बचाने की कुंजी इन्ही के पास है। इन्हे बेदखल करके या अनदेखा कर जंगल व पर्यावरण का संरक्षण कठिन है। 

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इंसान जंगल लगा नहीं सकता, तो उजाड़ता क्यों है ?

  • आखिर किस बात की जल्दी है, उजाड़कर हासिल क्या होगा 
  • 12 वर्षीय रिद्धिमा पांडेय पेड़ों को कटने से बचाने लड़ रही लड़ाई 


रिद्धिमा पांडेय की उम्र 12 साल है। वे हरिद्वार में रहती हैं। मेरी उनसे कोई मुलाकात नहीं है। लेकिन, मैं उनके सरोकारों के साथ हूं। वो अपनी भावी जिंदगी की सांसों के लिए लड़ रही हैं। वे हम सब की भावी जिंदगी की सांसों के लिए लड़ रही हैं। जी हां, हरिद्वार की रहने वाली रिद्धिमा थानों के जंगलों में काटे जाने वाले दस हजार से ज्यादा पेड़ों की जिंदगी के लिए लड़ रही हैं। 

रिद्धिमा और उसके जैसे हजारों बच्चे इन पेड़ों की जिंदगी बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। उनकी इस लड़ाई में बहुत सारे युवा, बहुत सारे बुजुर्ग और नौजवान सभी शामिल है। उत्तराखंड सरकार जौलीग्रांट एयरपोर्ट का आकार बढ़ाना चाहती है। इसके लिए उसे 243 एकड़ से ज्यादा का जंगल चाहिए। इस पूरी योजना के लिए दस हजार से ज्यादा पेड़ों की बलि ली जाने वाली है। इसमें सैकड़ों साल पुराने पेड़ हैं। यहां से हाथी गुजरते हैं। हिरन कुलांचे भरते हैं। तेंदुओं का यह आवास है। न जाने कितने पक्षियों ने इन पेड़ों पर घोसले बनाए हुए हैं। इन सभी की बलि दी जाने वाली है। पिछले शुक्रवार को थानों के जंगलों को बचाने के लिए एक बड़ी मुहिम आयोजित की गई। बहुत सारे बच्चों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधे हैं। उनकी रक्षा का वचन दिया है। अब आगे देखिए क्या होता है। वैसे तो हम हाल के तमाम सालों में पेड़ों के जीवन की लड़ाई को हारा जाता हुआ ही देख रहे हैं। ऑरे के जंगलों को रातों-रात कटवा दिया गया। बुलेट ट्रेन के लिए न जाने पेड़ों और पर्यावास की बलि ली जाने वाली है। आइए, जरा ठहरकर हम इस पर सोचें कि आखिर यह सबकुछ क्या इतनी जरूरी है। 

कोई एक सड़क बनती है। सरकार हमें बताती है कि पहले अलानी जगह से फलानी जगह जाने में आठ घंटे लगते थे, अब सिर्फ छह घंटे लगेंगे। यानी दो घंटे बचेंगे। लेकिन, इस दो घंटे को बचाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि ले ली जाती है। उन्हें काट दिया जाता है। जंगल साफ कर दिए जाते हैं। आखिर ये दो घंटे बचाकर हम क्या करेंगे अगर प्रदूषण भरी, खराब हवा में सांस लेने से हमारी जिंदगी के दिन ही कम हो जाने वाले हैं। आखिर किस बात की जल्दी है। आठ घंटे की जगह पर अगर छह घंटे में पहुंच भी गए तो वहां क्या करना है। गप्पे ही तो मारनी है। क्या यह इतना ही जरूरी है कि आप अपने भविष्य की जिंदगी को दांव पर लगाकर अभी के लिए दो घंटे हासिल करना चाहते हैं। क्या इस पर ज्यादा संतुलित दृष्टिकोण नहीं रखा जाना चाहिए।  

इस बात पर हमें गौर से सोचना चाहिए। आखिर किसे इतनी जल्दी है। फिर जल्दी भी आखिर किस कीमत पर।शायद हम एक बात भूलते जा रहे हैं। इंसान जंगल नहीं लगा सकता है। सिर्फ कुदरत ही जंगल पैदा कर सकती है। हम ज्यादा से ज्यादा कुछ पेड़ों को रोप सकते हैं। लेकिन, उसे जंगल बनाने का काम सिर्फ कुदरत करती है। इसलिए जब एक जंगल काटा जाता है तो कुदरत के दिए एक अनमोल तोहफे से हम खुद को महरूम कर लेते हैं। देश भर में नए चिपको आंदोलनों की जरूरत है....

#जंगल कथा 

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Wednesday, October 21, 2020

जहरीली नहीं है घर की दीवारों में नजर आने वाली छिपकली

  •  घर के ईकोसिस्टम में इनकी होती है महत्वपूर्ण और जादुई भूमिका
  • दीवार के ईकोसिस्टम की खाद्य श्रृंखला में छिपकली सबसे ऊपर



प्रकृति, पर्यावरण और वन्य जीवों पर निरंतर लिखने वाले कबीर संजय की लेखन शैली अत्यधिक सहज, सरल व बोधगम्य है। इनके आलेख रोचन व ज्ञानवर्धक जानकारियों से भरपूर होते हैं, जिन्हें लोग बड़े ही चाव से पढ़ते हैं। अभी हाल ही में आपकी नई किताब "चीता : भारतीय जंगलों का गुम शहजादा" प्रकाशित हुई है जो बेहद पसंद की जा रही है। जंगलकथा में आज आपने घर की दीवारों में नजर आने वाली छिपकली के बारे में अत्यधिक रोचक और उपयोगी जानकारी साझा की है। जो जस की तस प्रस्तुत है -

क्या घरों की दीवारों पर चिपकी, इधर-उधर फिरने वाली छिपकलियां जहरीली होती हैं। क्या उनकी त्वचा में जहर होता है। क्या वे काट भी सकती हैं। वे दोस्त हैं या दुश्मन। उनसे कैसे दूर रहा जाए। ये तमाम सवाल हैं जो आमतौर पर छिपकली को लेकर पूछे जाते रहे हैं। लेकिन, सच तो यह है कि छिपकलियां दुश्मन नहीं हैं। वे दोस्त हैं। घर के ईकोसिस्टम में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण और जादुई है। कैसे। आइये जानते हैं...

पिछली पोस्ट स्किंक पर लिखी थी। उस पर लोगों की बेहद उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिली। एक छोटा सा शर्मीला जीव जो किसी भी इंसान को देखते ही सबसे पहले छिपने की कोशिश करता है, उसे लेकर हमारे मनो-मस्तिष्क में तमाम यादें ताजा हैं। उसके तमाम नाम है और उससे जुड़ी मान्यताएं। इन्हीं में से किसी ने यह सवाल भी किया कि छिपकलियां जहरीली होती हैं। उनकी त्वचा में जहर होता है।

आमतौर पर लोग मानते हैं कि छिपकलियां जहरीली होती हैं और उनकी त्वचा में जहर होता है। लेकिन, सच्चाई इससे अलग है। भारत में पाई जाने वाली कोई भी छिपकली जहरीली नहीं है। बल्कि घरेलू छिपकलियां तो पेस्ट कंट्रोल करने में हमारी मदद ही करती हैं। घरों की दीवारों  पर चिपककर दौड़ती-भागती छिपकली घात लगाकर हमला करती है। न जाने कितने मच्छरों का वो सफाया कर देती है। छोटे कॉकरोच को निगल जाती है। दीमकों को चट कर जाती है। चींटियां साफ कर देती है। घर की दीवार का जो ईकोसिस्टम है, वह उस खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर है। वह वही भूमिका अदा करती है जो जंगल में शेर करता है। यानी अपने शिकार की तादाद को काबू में रखना। हां, यह जरूर है कि बहुत सारे अन्य जीवों की तरह ही छिपकलियों के ऊपर भी बहुत सारे बैक्टीरिया पनपते हैं। हो सकता है कि उन बैक्टीरियां की वजह से किसी तरह की फूड प्वाइजनिंग हो जाए। बाकी, वे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती।

दरअसल, रेप्टाइल या सरीसृपों के चेहरे भावहीन होते हैं। उन्हें देखकर यह नहीं पता चलता कि वे खुश हैं या दुखी। इसके चलते ज्यादातर लोग उन्हें लेकर आशंकित रहते हैं। हम स्तनपाई जीवों के शरीर पर बाल होते हैं। सरीसृपों के बाल नहीं होते। हमारे कान बाहर की तरफ होते हैं, उनके कान भी बाहर नहीं होते। हम गर्म खून वाले हैं, वे ठंडे खून वाले हैं। इसके चलते जाड़े के दिनों में उन्हें अपने शरीर को गर्म करने के लिए काफी धूप या गर्मी चाहिए होती है। आपने कई बार जाड़े में बेहद सुस्त पड़ी छिपकली देखी होगी। जो हिल-डुल भी नहीं पाती हो। इन शारीरिक विभिन्नताओं के चलते बहुत सारे लोग सरीसृपों से घृणा करते हैं। उन्हें देखने और छूने से उन्हें अजीब गिनगिनाहट होती है। लेकिन, अगर हम अपने इन मनोभावों पर काबू कर सकें तो ये जीव भी अपना जीवन वैसे ही बिताते हैं जैसे कि अन्य कोई जीव। जरा सोचिए अगर वे जहरीली होती तो क्या सदियों से इंसान उन्हें अपने घरों की छतों और दीवारों से यूं ही चिपककर जीवन बिताने देता। छिपकलियां न तो जहरीली हैं और न ही घृणा की पात्र...

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Monday, October 19, 2020

शिकार के साथ पेड़ में चढ़ रहा था तेंदुआ और पहुंच गया बाघ

  •   जंगल के राजकुमार की पूरी मेहनत पर फिर गया पानी 
  •  शिकार को छीनकर बाघ ने स्वादिस्ट नास्ते का लिया मजा 

तेंदुए से छीनकर शिकार को पेड़ से नीचे गिराने में जुटा बाघ। 

अरुण सिंह,पन्ना। जंगल की दुनिया कितनी निराली और रोमांच से भरी होती है, यह जंगल में जाकर ही देखा वह अनुभव किया जा सकता है। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में इन दिनों पर्यटक जंगल के अद्भुत रोमांचक नजारों का दीदार कर भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं। सोमवार 19 अक्टूबर को सुबह पर्यटकों को एक ऐसा दुर्लभ दृश्य देखने को मिला कि वे कुछ क्षण के लिए हतप्रभ और अवाक ही रह गये। इस दृश्य को जिप्सी चला रहे चालक मनोज सेन ने अपने मोबाइल में कैद कर लिया, जो बेहद पसंद किया जा रहा है।

 दरअसल आज सुबह जंगल का राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुआ ने घात लगाकर सांभर के बच्चे का शिकार किया और इत्मीनान से खाने के लिए उसे लेकर वह पीपरटोला से पहले ट्विन नाका के पास कुसुम के पेड़ में चढऩे लगा। सागौन के वृक्षों से घिरे इस पेड़ में तेंदुआ अपने पसंदीदा शिकार को लेकर चढ़ पाता, इसके पहले ही वहां पर अचानक वनराज आ धमके। वनराज की नजर जैसे ही तेंदुआ व उसके शिकार पर पड़ी, उनकी भी नियत पलट गई और शिकार को देख लार टपकने लगी। बिना देरी किये फुर्ती के साथ वनराज पहुंचे और तेंदुआ के शिकार को उछल कर पकड़ लिया। पेड़ के नीचे बाघ को देख तेंदुआ की हालत खराब हो गई और बड़ी मेहनत से हासिल किये गये शिकार को न चाहते हुए भी छोडऩा पड़ा। तेंदुआ अपनी जान बचाकर पेड़ के ऊपर ऊंची डाल पर जा बैठा और लाचारी की दशा में अपना शिकार बाघ को ले जाते देखता रहा। पेड़ के तने में फंसे सांभर के बच्चे को बाघ ने बड़ी मशक्कत के बाद नीचे गिराया और वहीं पास में ही बैठकर नर्म व मुलायम सांभर का नाश्ता किया। यह रोमांचक नजारा सुबह लगभग 9:00 बजे का है, जिसे दो जिप्सियों में सवार 11 पर्यटकों ने देखा और इसका भरपूर आनंद लिया।

पन्ना टाइगर रिज़र्व में दिखे रोमांचक द्रश्य का वीडियो -


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धरती को विषाक्त बनाने की दास्तान है : मानव युग


।। अरुण सिंह ।।

हमारी धरती दिनों दिन इस कदर विषाक्त होती जा रही है कि भविष्य में यहां जीवन कठिन हो जायेगा। हमने अभी तक पृथ्वी से सिर्फ लिया है, उसका भरपूर दोहन किया है उसे वापस कुछ भी नहीं लौटाया, जिससे प्रकृति का संतुलन तहस-नहस हो गया है। प्रकृति और पर्यावरण की बिना परवाह किये हम जंगलों को उजाड़ रहे हैं, नदियों के नैसर्गिक स्वरूप को बिगाड़ कर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब मौसम का क्रम बदलने लगा है और जंगल कटने से ऑक्सीजन की कमी के कारण फेफड़ों की बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। मनुष्य अपनी भौतिक उपलब्धियों से इस कदर बौराया हुआ है कि अपने को वह सर्वोपरि मानने लगा है। वह प्रकृति के शाश्वत नियमों की अनदेखी कर रहा है, जो अत्यधिक खतरनाक और विनाशकारी है।

डाउन टू अर्थ पत्रिका ने हाल ही में एक विशेषांक प्रकाशित किया है, जिसमें एंथ्रोपोसीन यानी मानव युग पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है। इस पत्रिका ने उल्लेख किया है कि मौजूदा समय को हम भले ही कलयुग का नाम दें लेकिन वैज्ञानिक भाषा में इसे मानव युग यानी एंथ्रोपोसीन कहा जा रहा है। लेकिन यह हमारे लिए खुश होने की बात नहीं है। दरअसल यह युग 450 करोड़ साल पुरानी धरती पर हमारे अत्याचारों का परिणाम है। मौजूदा समय धरती पर कोई भी जड़ या चेतन ऐसा नहीं है जिसे हमने नुकसान न पहुंचाया हो। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नये युग की शुरुआत 1950 में हुई थी। ठीक इसी समय पृथ्वी पर "ग्रेट एक्सेलेरेशन" नामक एक घटना हुई। आर्थिक विकास और उसके फल स्वरुप लगातार बढ़ती आबादी ने धरती को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। वर्ष 2007 में क्रूटजेन ने इसे "ग्रेट एक्सेलेरेशन" के नाम से परिभाषित किया। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण, अधा धुंध कटते जंगल, विलुप्त होती प्रजातियां, जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत में छेद इन बदलावों में से प्रमुख हैं। रेडियो न्यूक्लाइडस परमाणु परीक्षणों के अवशेष होते हैं और यह हजारों वर्षों तक वातावरण में बने रह सकते हैं। अत: ये एंथ्रोपोसीन के आगमन को दर्शाने वाले सबसे अहम संकेत हैं।

मानव युग के मौजूदा काल को कुछ विचारशील लोग इलेक्ट्रॉनिक युग के रूप में भी परिभाषित करते हैं। इस संबंध में अमृत साधना अपने एक आलेख में कहती हैं कि इलेक्ट्रॉनिक जाल ने मनुष्य के जीवन को ऑक्टोपस की भांति पूरी तरह से जकड़ लिया है। घर, बाहर, दफ्तर में या बाजार में हर जगह कदम-कदम पर हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आधीन हो गये हैं। कंप्यूटर, उपग्रह, डेटाबेस, टीवी, मोबाइल, टेलीफोन, ईमेल, व्हाट्सएप, फेसबुक - इनके अंतरजाल ने मनुष्य के आम जीवन को घेर लिया है। आज उनके द्वारा उपलब्ध की हुई सुविधाओं से हम इतने सम्मोहित हैं कि उन्ही के पीछे छिपे हुए खतरों के प्रति हम बिलकुल मूर्छित हैं।  अमृत साधना कहती हैं हर युग का अपना "पासवर्ड" होता है जो उस युग का प्रतीक बनता है। आज के युग का पासवर्ड : तनाव है। हर मनुष्य इस तनाव को ढो रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतनी सुविधायें, इतनी संपत्ति, इतनी स्वतंत्रता मनुष्य के पास कभी नहीं थी, जितनी कि इस समय है। लेकिन इसी के साथ इतना तनाव भी उसके जीवन में कभी नहीं रहा, जितना कि आज है। आखिर इसकी वजह क्या है? यदि हम स्वयं का ईमानदारी के साथ बिना किसी पूर्वाग्रह के निरीक्षण करें तो पायेंगे कि इस तनाव के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं। हमने प्रकृति से अपना नाता तोड़ लिया है और अपने को सर्वशक्तिमान समझने की गलतफहमी पाल ली है। जबकि अस्तित्व गत सच्चाई यही है कि पृथ्वी में जो कुछ भी है वह सब एक दूसरे से जुड़ा और परस्पर निर्भर है। किसी भी चीज को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने की कोई भी कोशिश खतरनाक है। पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह हमारे लिए सहोदर के समान है। हमें सह-अस्तित्व का सम्मान करते हुए उन सबके साथ जीने का सलीका सीखना होगा।

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Sunday, October 18, 2020

खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ महारानी ने खोला मोर्चा

  •   भारतीय रक्षा संपदा (सेना) की जमीन पर काबिज होने का लगाया आरोप 
  •   महारानी जीतेश्वरी देवी ने भारत निर्वाचन आयोग के नाम भी लिखा पत्र

पन्ना महारानी जीतेश्वरी देवी आयोजित प्रेसवार्ता में जानकारी देते हुये। 

अरुण सिंह,पन्ना। प्रदेश सरकार के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ पन्ना महारानी जीतेश्वरी देवी ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने 17 अक्टूबर शनिवार को आयोजित प्रेसवार्ता में खनिज मंत्री व पन्ना विधायक के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए चुनाव निरस्त करने की मांग की है। महारानी का आरोप है कि मध्यप्रदेश शासन के खनिज मंत्री पन्ना जिले के ग्राम बकचुर स्थित खसरा क्रमांक सात व नौ की भारतीय रक्षा संपदा (सेना) की जमीन पर अनाधिकृत रूप से काबिज हैं। उन्होंने मामले पर खेद जताते हुए कहा कि लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए जनप्रतिनिधि भारतीय सेना की जमीन पर अनाधिकृत रूप से कब्ज़ा कर अपने निजी हितों को पूरा कर रहे हैं। 

प्रेसवार्ता में उन्होंने पत्रकारों को बताया कि मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने अपने नामांकन में जानबूझकर इस तथ्य को छिपाया है। जबकि यह मामला पन्ना अनुविभागीय न्यायालय में विचाराधीन है। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग के नियमानुसार अगर कोई प्रत्याशी नामांकन पत्र में गलत अथवा भ्रामक जानकारी देता है तो धारा 33-ए के अंतर्गत अपराध की सीमा में आता है। महारानी जीतेश्वरी देवी ने भारत निर्वाचन आयोग के नाम भी पत्र लिखा है। उन्होंने खनिज मंत्री पर रेत ठेकेदार से सांठ गांठ कर नदियों का जमकर शोषण किये जाने का आरोप भी लगाया है। 

मंत्री ने आरोपों को बताया निराधार 

महारानी पन्ना जीतेश्वरी देवी के आरोपों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि जिन जमीनों के विषय में कहा जा रहा है, वह जमीनें हमने दूसरों से खरीदी हैं। अगर यह जमीनें रक्षा संपदा विभाग की होतीं तो उनकी रजिस्ट्री कैसे होती। यह कानूनी विषय है जिस पर किसी के कहने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हमने कहीं कोई अवैध कब्जा नहीं किया है। जानकारी छिपाये जाने के आरोप पर आपने कहा कि मेरे द्धारा कोई तथ्य नहीं छिपाया गया है। मैंने नामांकन पत्र में सभी जानकारी दी है। मेरे ऊपर लगाये गये आरोप निराधार हैं।  

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Saturday, October 17, 2020

पन्ना के जंगल में 40 वर्ष पूर्व मिला था दुर्लभ वन भैंसा

  •   रैपुरा क्षेत्र के रूपझिर गांव के पास दिखा था यह वन्य प्राणी 
  •  पन्ना तक कहां से व कैसे पहुंचा, यह अभी भी है एक बड़ा रहस्य 

विलुप्ति की कगार में पहुँच चुका जंगली भैंसा। 

। अरुण सिंह 

पन्ना। जंगल के राजा बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में 40 वर्ष पूर्व दुर्लभ प्रजाति का जंगली भैंसा देखा गया था। यह वन भैंसा जिले के रैपुरा क्षेत्र अंतर्गत रुपझिर गांव के पास नजर आया था, जिसे गोली मारकर किसी ने घायल कर दिया था। बुरी तरह से जख्मी और लहूलुहान इस वन भैंसा का स्थानीय पशु चिकित्सक द्वारा इलाज भी किया गया था। 

विलुप्त होने की कगार में पहुंच चुके दुर्लभ वन भैंसा के पन्ना में देखे जाने की रिपोर्ट पहली बार 1979 में जनरल ऑफ द वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी आफ इंडिया की पत्रिका चीतल में प्रकाशित हुई थी। वन महकमे के तत्कालीन उप संरक्षक (वन्य जीव) एस.एम. हसन को  पन्ना के जंगल में वन भैंसा की मौजूदगी के बारे में जब पता चला तो वे लंबी दूरी तय करके न सिर्फ यहां पहुंचे थे अपितु उन्होंने इस भारी-भरकम दुर्लभ वन भैंसा की तस्वीर भी खींची थी। वन भैंसा पन्ना में कहां से व कैसे पहुंचा यह अभी भी एक रहस्य है। 

वह वन भैंसा जो 40 वर्ष पूर्व पन्ना के जंगल में मिला था। 

उल्लेखनीय है कि एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी तादाद में पाया जाने वाला जंगली भैंसा अब केवल भारत, नेपाल, बर्मा और थाईलैंड में ही पाया जाता है। मध्य भारत में इसकी मौजूदगी छत्तीसगढ़ में रायपुर संभाग व बस्तर में नाममात्र को है। छत्तीसगढ़ में जंगली भैंसे को राज्य पशु का दर्जा हासिल है, बावजूद इसके यहां पर इनकी संख्या एक दर्जन से भी कम है, यही वजह है कि वन भैंसों की वंश वृद्धि के लिए उन्हें यहां सुरक्षित घेरे में रखकर प्रजनन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 

बताया जाता है कि दो दशक पूर्व जब छत्तीसगढ़ राज्य बना था, उस समय यहां के जंगलों में 60 से अधिक वन भैंसे थे। लेकिन अब उनकी संख्या घटकर 10 के करीब पहुंच गई है। किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि राज्य पशु वन भैंसा छत्तीसगढ़ के जंगलों से इस तरह गायब हो जायेगा। मालूम हो कि बाघ व हांथी जैसे वन्यजीवों की तरह भैंसा भी वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-1 का जानवर है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने वन भैंसा को लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में रखा है। 

विशेषज्ञों ने भी की थी पन्ना में वन भैंसा की पुष्टि 

प्राचीन विन्ध्य पर्वत श्रंखला में स्थित मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल हमेशा से बाघ, तेंदुआ, भालू , सोनकुत्ता, भेडय़िा, चीतल, सांभर, नीलगाय, चौसिंगा सहित विभिन्न प्रजाति के वन्य जीवों का रहवास स्थल रहा है। रंग बिरंगे पक्षियों की यहां तकरीबन 200 से भी अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। जिनमें राष्ट्रीय पक्षी मोर व मध्य प्रदेश का राज्य पक्षी दूधराज शामिल हैं। 

यहां के शुष्क पर्णपाती वन में जंगली भैंसा का मिलना अविश्वसनीय व आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना थी। वन अधिकारी एस.एम. हसन ने पन्ना में वन भैंसा के मिलने का जिक्र करते हुए कहा था कि वर्ष 1979 में गंगऊ अभ्यारण्य के सर्वेक्षण के दौरान इस क्षेत्र में वन भैंसा के होने की जानकारी मिली थी। 

मालुम हो कि इस अभ्यारण्य के एक बड़े हिस्से को वर्ष 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था। पन्ना में मिले वन भैंसे की पुष्टि जूलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के निदेशक साथ ही एशिया और प्रशांत के लिए बीएनएचएस और यूएनईपी कार्यालय के विशेषज्ञों ने भी की थी।

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Wednesday, October 14, 2020

गरीबों के लिए महज सपना बनकर रह गया पक्का मकान

  •  पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत गौरा के आदिवासियों की स्थिति जस की तस 
  •  कच्चे घरों में रहने को मजबूर, अधूरे बने शौचालयों का भी नहीं हो रहा उपयोग

 

पन्ना जनपद के ग्राम पंचायत गौरा का नजारा। 


। अरुण सिंह 

पन्ना। हर किसी का यह सपना और ख्वाहिश होती है कि उसका भी एक सुंदर व साफ-सुथरा आशियाना हो। सरकार की बहुप्रचारित और सबसे ज्यादा चर्चित प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू होने के साथ ही हर गरीब ने पक्के मकान का सपना देखना शुरू कर दिया था। लेकिन योजना का सही ढंग से जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन न होने से गरीबों के लिए पक्का मकान महज सपना बनकर रह गया है। 

झोपड़ीनुमा कच्चे घरों में असुविधाओं के बीच रहने वाले गरीबों, जिन्हें इस योजना का लाभ मिल जाना चाहिए था वे आज भी भटक रहे हैं। जब कि कई ऐसे लोग जो साधन संपन्न हैं वे अपात्र होने पर भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने में सफल हुए हैं। आखिर जिस नेक मंशा और मकसद को ध्यान में रखकर योजनायें बनती हैं, उनका सही ढंग से क्रियान्वयन क्यों नहीं हो पाता ?

 जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत गौरा सड़क मार्ग के किनारे स्थित है। मुख्यालय के नजदीकी आदिवासी बहुल इस गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना की जमीनी हकीकत जानने के लिए बीते रोज जब हम पहुंचे और लोगों को पता चला कि पन्ना से पत्रकार आये हैं, तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। सबकी अपनी - अपनी समस्यायें व तकलीफें थीं और हर कोई अपनी व्यथा सुनाने को उतावला नजर आ रहा था। 

आदिवासी बस्ती का जायजा लेने जब हम गांव में घुसे तो जो नजारा देखने को मिला उससे शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की हकीकत समझने में देर नहीं लगी। ग्रामीणों की हालत तथा उनके घरों को देखकर पता चला कि योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है। गरीबों के नाम पर इसका ज्यादा लाभ बिचौलिये और साधन संपन्न लोग उठा रहे हैं। अपात्रों की बल्ले - बल्ले है और पात्रता रखने के बावजूद गरीब ग्रामवासी सरपंच, सचिव और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, फिर भी उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही। 

ग्रामीणों के बीच खड़ी वृद्ध आदिवासी महिला दुजिया ने हाथ जोड़कर कहा कि पंचायत सचिव पक्का मकान दिलाने के लिए पैसा मांगता है, अब हम कहां से पैसा लायें? इस महिला ने उम्मीद के साथ कहा कि अब आप ही लोग कछु करो तो शायद हमाई भी सुनाई हो जाये, हमें भी पक्का मकान रहबो को मिल जाये।

सिर्फ नाम की है महिला सरपंच, दबंग चला रहा पंचायत 


ग्राम पंचायत गौरा में महिला सरपंच गौरी भाई चौधरी सिर्फ नाम की सरपंच है, सरपंची तो गांव का ही एक दबंग चला रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत सचिव भी गांव यदा-कदा ही आता है। आलम यह है कि आदिवासी मोहल्ला के अधिकांश लोग पंचायत सचिव को पहचानते तक नहीं हैं। गांव के सीताराम आदिवासी, सुखचरन बसोर, मद्धु गोंड़ व सुंदरलाल ने बताया कि तीन माह पहले 130 लोगों के नाम प्रधानमंत्री आवास के लिए जोड़े गये थे लेकिन एक भी आवास नहीं बना। ग्रामीणों ने बताया कि आदिवासी मोहल्ले में अभी तक सिर्फ 7 आवास बने हैं जो चार-पांच वर्ष पुराने हैं। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि आवास के लिए 10 से 20 हजार रुपये की मांग की जाती है। पैसा न दे पाने के कारण पात्रता के बावजूद हमें योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा।

कच्चे घरों में जहरीले कीड़ों का बना रहता है डर 

आदिवासी मोहल्ले के छोटे-छोटे कच्चे घरों में एक साथ कई लोग रहते हैं, जिससे तमाम तरह की कठिनाइयां होती हैं। बारिश के मौसम में चारों तरफ घास फूस उग आने से हर समय जहरीले कीड़ों का डर बना रहता है। अघनिया आदिवासी व लछिया आदिवासी ने कहा कि हुजूर हम बहुत गरीब हैं। हमाओ नाम भी लिख लें, हमाये पास घर नहीं है। शौचालयों के बारे में पूछे जाने पर ग्रामवासियों ने बताया कि कुछ घरों में आधे अधूरे शौचालय बने थे लेकिन वे उपयोग करने लायक नहीं हैं। शौच के लिए गांव के लोग बाहर खेत व मैदान में जाते हैं। सुंदरलाल का कहना है कि हम कई वर्षों से प्रधानमंत्री आवास बनने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पक्के मकान में रहने की इच्छा जीते जी पूरी नहीं हो पायेगी।

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Tuesday, October 13, 2020

आओ, अपना वजूद बचाने धरा में डालें हरियाली के बीज

  •   प्रकृति के साथ खिलवाड़ और अत्याचार जीवन के लिए घातक
  •   पृथ्वी को मानव की नहीं बल्कि मानव के लिए पृथ्वी जरूरी


।। अरुण सिंह ।।

यह पृथ्वी हमारे सौरमंडल का सबसे ज्यादा जीवंत और सुंदर ग्रह है। यह खूबसूरत है क्योंकि पृथ्वी में न जाने कितने प्रकार की वनस्पतियां, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और पक्षी हैं। यह पृथ्वी इन सब का घर है, इसमें मानव भी शामिल है। लेकिन इस जीवंत और हरे-भरे ग्रह को मानव ने इतने गहरे जख्म दिये हैं कि प्रकृति का पूरा संतुलन ही डांवाडोल हो गया है। हमने अपनी महत्वाकांक्षा और निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु बड़ी बेरहमी के साथ धरती की हरियाली को उजाड़ा है। जिससे न जाने कितने जीव जंतु बेघर होकर विलुप्त हो चुके हैं। हमारी नासमझी पूर्ण बर्ताव का खामियाजा अब हमें ही भोगना पड़ रहा है।

 अब यह निहायत जरूरी हो गया है कि हम समझदारी दिखायें और प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ बंद करें। यह पृथ्वी जितनी हमारी है उतनी ही पेड़-पौधों, वनस्पतियों, जीव-जंतु और पक्षियों की भी है। हमें सह- अस्तित्व की अहमियत को समझना होगा, क्योंकि गहरे में सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी की भी कमी पूरे प्राकृतिक चक्र व संतुलन को प्रभावित करती है। अभी तक हम जिस सोच और समझ के साथ जिए हैं वह रास्ता विनाश की ओर जाता प्रतीत होता है। लेकिन हम विनाश की आ रही आहट को अनसुना कर रहे हैं और अपने को श्रेष्ठ साबित करने तर्क भी गढ़ लेते हैं। मनुष्य द्वारा बनाई गई कोई चीज जब नष्ट की जाती है तो उसे बर्बरता कहा जाता है, लेकिन हम प्रकृति द्वारा सृजित किसी चीज को जब नष्ट करते हैं तो हम इसे प्रगति और विकास कहते हैं। इस तरह के दोहरे मापदंड प्रकृति, पर्यावरण व समूची पृथ्वी के अस्तित्व के लिए घातक है। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम पृथ्वी का सम्मान करते हुए सह-अस्तित्व की भावना को मजबूती प्रदान करें तथा प्रकृति और पर्यावरण के साथ अत्याचार पर रोक लगाते हुए प्रकृति का श्रंगार करें।

पन्ना टाइगर रिज़र्व के जंगल का विहंगम द्रश्य। 

 गौरतलब है कि पर्यावरण और वन प्राणियों के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने वाले भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी आर श्रीनिवास मूर्ति इन दिनों बीज संग्रहण का अभियान चला रहे हैं। उनकी सोच है कि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ पौधों व फलों के बीजों का यदि आम जन संग्रह करें और इन बीजों को खाली उपयुक्त जगह पर गडा दें तो वीरान सी दिखने वाली धारा फिर हरी-भरी नजर आने लगेगी। उदाहरण के लिए श्रीमूर्ति ने बताया कि यह सीताफल का सीजन है, हम इस अवसर का पूरा उपयोग करते हुए इसके बीजों का संग्रह करें उन्हें बर्बाद न होने दें। इसी तरह हर मौसम के फलों और बीजों के बीज संग्रहित कर हम प्रकृति, पर्यावरण व जैव विविधता को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। श्री मूर्ति के इस अनूठे अभियान व सोच ने मुझे भी प्रभावित किया है। क्योंकि मेरा भी ऐसा मानना है कि दुर्लभ और विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी वनस्पतियों के संरक्षण व स्थानीय प्रजातियों का अस्तित्व बचाने के लिए जनता की भागीदारी जरूरी है। जनभागीदारी से ही संरक्षण और संवर्धन का कार्य संभव है।

बीजों का समय पर संग्रह कर उन्हें उपयुक्त जगह पर यदि डाल दिया जाये तो उसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिलते हैं। इस तरह का चमत्कार पन्ना शहर में बाईपास मार्ग पर देखा जा सकता है। यहां घाटीनुमा सड़क के किनारे-किनारे पिचिंग में किसी पर्यावरण प्रेमी ने वर्षों पूर्व नीम के बीज बिखेर दिये थे। जिन बीजों को पत्थरों के बीच जगह मिल गई और वे मिट्टी के संपर्क में आ गये उनके अंकुर फूट आये। अब तो वे बड़े पौधों की शक्ल में आ गये हैं, इस मार्ग पर तकरीबन ढाई - तीन सौ मीटर तक सड़क किनारे नीम के सैकड़ों पेड़ लहलहा रहे हैं। यह इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि हम सब मिलकर यदि इस तरह की पहल करें तो बिना किसी लागत व अधिक श्रम के हम पर्यावरण को बेहतर बनाने के साथ-साथ उपयोगी वनस्पतियों व पेड़ पौधों का भी संरक्षण कर सकते हैं। तो आइए देर किस बात की, हम आज से ही बीजों का संग्रह करें और अपने स्वयं के वजूद को बनाये रखने के लिए धरती में हरियाली के बीज बोयें।

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Monday, October 12, 2020

जंगली सूअर का मांस पका कर खा रहे दो शिकारी गिरफ्तार

  •  शिकार के इस मामले में अन्य चार आरोपी फरार 
  •  टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगी जरधोवा कोठी की घटना 

जंगली सुअर का पका मांस खाते पकड़े गये दो आरोपी साथ में वन अमला। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे इलाकों में शिकारियों की सक्रियता अभी भी बनी हुई है। वन अमले ने पन्ना कोर क्षेत्र से लगी पुरानी जरधोवा कोठी में जंगली सूअर का मांस पका कर खा रहे दो शिकारियों को गिरफ्तार किया है। मामले में चार अन्य आरोपी वन अमले के मौके पर पहुंचने से पहले ही दावत उड़ा कर जा चुके थे, जो अब फरार हैं। पकड़े गए दो आरोपियों को आज न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया है। फरार हो चुके चार आरोपियों की तलाश की जा रही है।

 वन परिक्षेत्राधिकारी पन्ना कोर लालबाबू तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि पन्ना कोर से लगी पुरानी कोठी जो राजस्व में स्थित है, वह विगत लंबे समय से लावारिस हालत में वीरान पड़ी है। इस वीरान कोठी में अवैध गतिविधियों की सूचना मिलने पर क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व उत्तम कुमार शर्मा व जरांडे ईश्वर रामहरि के निर्देशन पर वन अमले द्वारा जरधोवा कोठी की घेराबंदी की गई। फलस्वरूप वहां पर जंगली सुअर का मांस खाते हुए घनश्याम सिंह राजगोंड व मेहरबान सिंह को रंगे हाथ दबोच लिया गया। मौके पर उनके पास से जंगली सुअर को काटने में उपयोग की गई कुल्हाड़ी, वर्तन, मांस व हड्डियां मिली हैं। इनसे पूछताछ करने पर उन्होंने बताया कि चार अन्य लोग सुअर का मांस खाकर पहले ही जा चुके हैं। जाहिर है कि पकड़े गये दोनों आरोपी बनाने और खिलाने वाले लोग हैं। मुख्य आरोपी अभी पकड़ से दूर हैं। इस कार्यवाही में वन क्षेत्राधिकारी गंगऊ सेंचुरी आर.ए. श्रीवास्तव, लालबाबू तिवारी पन्ना कोर, मूरतध्वज पटेल परिक्षेत्र सहायक अकोला, रामबहोरी वनपाल, बृजमोहन वनरक्षक, वैदेही शरण मिश्रा बीट गार्ड तथा लक्ष्मी वाहन चालक की सराहनीय भूमिका रही।

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आखिर हम देश के असली नायकों को क्यों करते हैं नज़रअंदाज़ ?

  •  श्रीधर जैसे अनेक ध्रुव तारे आज देश को आलोकित कर रहे हैं पर इन तारों की चमक समाज को चौंधियाती नहीं


जोहो कारपोरेशन(Zoho Corporation ) के चेयरमैन, श्रीधर वेम्बू । 

उनका अगला लक्ष्य, प्राइवेट जेट खरीदना होना चाहिए था। वैसे भी, किसी की कुल सम्पत्ति अगर 18 हज़ार करोड़ रूपए की हो, तो 300 करोड़ रूपए के प्राइवेट जेट विमान खरीदने पर ऑडिटर भी एतराज नहीं करेगा । और जब पैसा अथाह हो  तो फिर मुश्किल ही क्या है ? यूँ भी, लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती हैं, तो ऐसे फैसले किसी को खर्चीले नहीं लगते। शायद इसलिए एक खरबपति के लिए जेट विमान  ख़रीदना ऐसा ही है जैसे किसी मैनेजर के लिए मारुती कार खरीदना। लेकिन जोहो कारपोरेशन(Zoho Corporation ) के चेयरमैन, श्रीधर वेम्बू पर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी मेहरबान थीं। इसलिए उनके इरादे औरों से बिलकुल अलग थे। 

प्राइवेट जेट खरीदना तो दूर, उन्होंने अपनी कम्पनी बोर्ड के निदेशकों से कहा कि  वे अब कैलिफ़ोर्निया(अमेरिका) से जोहो कारपोरेशन का मुख्यालय कहीं और ले जाना चाहते हैं। श्रीधर के इस विचार से कम्पनी के अधिकारी हतप्रभ थे.. क्यूंकि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए कैलिफ़ोर्निया के बे-एरिया से मुफीद जगह दुनिया में और कोई है ही नहीं। गूगल, एप्पल , फेसबुक, ट्विटर या सिस्को, सब के सब इसी इलाके में रचे बसे, फले फूले। पर श्रीधर तो और भी बड़ा अप्रत्याशित फैसला लेने जा रहे थे। वे कैलिफ़ोर्निया से शिफ्ट होकर सीएटल या हूस्टन नहीं जा रहे थे।वे अमेरिका से लगभग 13000 किलोमीटर दूर चेन्नई वापस आना चाहते थे। 

उन्होंने बोर्ड मीटिंग में कहा कि अगर डैल, सिस्को, एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट अपने दफ्तर और रिसर्च सेंटर भारत में स्थापित कर सकते हैं तो जोहो कारपोरेशन को स्वदेश लौटने  पर परहेज़ क्यों है ? श्रीधर के तर्क और प्रश्नो के आगे बोर्ड में मौन छा गया। फैसला हो चुका था। आई आई टी मद्रास के इंजीनियर श्रीधर वापस मद्रास जाने का संकल्प ले चुके थे।उन्होंने  कम्पनी के नए मुख्यालय को तमिल नाडु के एक गाँव(जिला टेंकसी) में स्थापित करने के लिए 4 एकड़ जमीन पहले से खरीद ली थी।और एलान के मुताबिक, अक्टूबर 2019 , यानि ठीक एक साल पहले श्रीधर ने टेंकसी जिले के मथलामपराई गाँव में जोहो कारपोरेशन का ग्लोबल हेडक्वार्टर शुरू कर दिया। यही नहीं, 2.5 बिलियन डॉलर के जोहो कारपोरेशन ने पिछले ही वर्ष सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कारोबार में 3,410 करोड़ रूपए का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त करके टेक जगत में बहुतों को चौंका भी दिया।  

स्वदेश क्यों लौटना चाहते थे श्रीधर ? 




श्रीधर, अमेरिका की किसी एजेंसी या बैंक या स्टॉक एक्सचेंज के दबाव के कारण स्वदेश नहीं लौटे। उनपर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी नहीं था। वे कोई नया व्यवसाय भी नहीं शुरू कर रहे थे। वे किसी नकारात्मक कारण से नहीं, एक सकारात्मक विचार लेकर वतन लौटे। उन्होंने कई वर्ष पहले संकल्प लिया था कि अगर जोहो ने बिज़नेस में कामयाबी पायी तो वे प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा स्वदेश में निवेश करेंगे। कम्पनी के मुनाफे को वे गाँव के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने पर भी खर्च करेंगे। इसी इरादे से उन्होंने सबसे पहले मथलामपराई गाँव में बच्चों के लिए निशुल्क आधुनिक स्कूल खोले।कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के जानकार श्रीधर गाँव में ही जोहो विश्वविद्यालय भी बना रहे हैं जहाँ भविष्य के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार होंगे। फोर्ब्स मैगज़ीन में दिए एक इंटरव्यू में श्रीधर बताते हैं कि  टेक्नोलॉजी को अगर ग्रामीण इलाकों से जोड़ा जाए तो गाँव से पलायन रोका जासकता है । " गाँव में प्रतिभा है, काम करने की इच्छा है...अगर आधुनिक शिक्षा से हम बच्चों को जोड़े तो एक बड़ा टैलेंट पूल हमे गाँव में ही मिल जायेगा। इसीलिए मैं भी बच्चों की क्लास में जाता हूँ , उन्हें पढ़ाता भी हूँ।  मेरी कोशिश गाँव को सैटेलाइट से जोड़ने की है। हम न सिर्फ दूरियां मिटा रहे हैं, न सिर्फ पिछड़ापन दूर कर  रहे हैं , बल्कि शहर से बेहतर डिलीवरी गाँव से देने जा रहे है....प्रोडक्ट चाहे सॉफ्टवेयर ही क्यों न हो , " श्रीधर बताते हैं।

तस्वीरें ज़ाहिर करती हैं कि श्रीधर बेहद सहज और सादगी पसंद इंसान हैं।  वे लुंगी और बुशर्ट  में ही अक्सर आपको दिखेंगे। गाँव और तहसील में आने जाने के लिए वे साईकिल पर ही चल निकलते हैं।उनकी बातचीत से, हाव भाव से,  ये आभास नहीं होता कि  श्रीधर एक खरबपति सॉफ्टवेयर उद्योगपति हैं जिन्होंने 9  हज़ार से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है जिसमे अधिकाँश इंजीनियर है। उनकी कम्पनी के ऑपरेशन अमेरिका से लेकर जापान और सिंगापुर तक फैले हैं जहाँ 9,300 टेक कर्मियों को रोजगार मिला है। श्रीधर का कहना है कि आने वाले वर्षों में वे करीब 8 हज़ार टेक रोजगार भारत के  गाँवों में उपलब्ध कराएंगे और ग्लोबल सर्विस को देश के नॉन-अर्बन इलाकों में शिफ़्ट करेंगे। शिक्षा के साथ गाँवों में वे आधुनिक अस्पताल, सीवर सिस्टम, पेयजल, सिंचाई, बाजार और स्किल सेंटर स्थापित कर रहे हैं।    

एक सवाल अब आपसे 

क्या कारण है कि देश में श्रीधर जैसे हीरों की परख जनता नहीं कर पाती ? क्या कारण है कि हम असली नायकों को नज़रअंदाज़ करके छद्म नायकों को पूजते हैं ? श्रीधर चाहते तो आज कैलिफ़ोर्निया में निजी जेट विमान पर उड़ रहे होते, सेवन स्टार लक्ज़री विला में रहते, अपनी कमाई को विदेश में ही निवेश करते जाते ... आखिर उन्हें स्वदेश लौटने की ज़रुरत ही क्या थी? फिर भी उनके त्याग का देश संज्ञान नहीं लेता ? क्या कीचड़ उछाल और घृणा-द्वेष  से रंगे इस देश में अब श्रीधर जैसे लोग अप्रासंगिक हो रहे है ? या हम लोग इतने निकृष्ट और निर्लज होते जा रहे हैं  कि नर में नारायण की जगह नालायक ढूंढने लगे हैं ? 

श्रीधर जैसे अनेक ध्रुव तारे आज देश को आलोकित कर रहे हैं पर इन तारों की चमक, समाज को चौंधियाती नहीं है। उनके कर्म, न्यूज़ चैनल की सुर्खियां को रौशन नहीं करते हैं। और जिन्हे सुबह शाम,  रौशन किया जा रहा है वे अँधेरे के सिवा आपको  कुछ दे नहीं सकते। मेरा आग्रह आपसे है, अगर बच्चों का भविष्य बदलना है तो कुछ देर के लिए न्यूज़ चैनल बंद कीजिये और  अपने आस पास अपने गाँव देश में श्रीधर ढूंढिये।

(दीपक शर्मा जी की फेसबुक वॉल से साभार)

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आपदा काल में संकट मोचक बने समाजसेवियों का हुआ सम्मान

  •  उन सभी लोगों के प्रति भी सम्मान प्रगट किया गया जिन्होंने आपदा के समय सेवा को अपना धर्म समझा



अरुण सिंह,पन्ना। आपदा के समय गरीबों, असहायों और मजदूरों की यथासंभव मदद करने वाले समाजसेवियों की नेक पहल व प्रयासों को प्रेरणादायी मानते हुये रविवार को आयोजित एक गरिमामय कार्यक्रम में उनका सम्मान किया गया। सर्किट हाउस पन्ना में आयोजित यह अनूठा कार्यक्रम जमीनी स्तर पर सक्रिय रहने वाले पत्रकार संजय सिंह की पहल व प्रयासों से हुआ, जिसकी भूरि -  भूरि सराहना हो रही है। इस कार्यक्रम के माध्यम से कोरोना संक्रमण के उस दौर में जब भय और अफरा - तफरी का माहौल था, ऐसे समय मानव सेवा के मूल मंत्र को अपनाकर जरूरतमंदों तक मदद पहुँचाने वाले लोगों को सम्मानित कर समाज को यह सन्देश देने का प्रयास किया गया है कि सेवा भावना सबसे महत्वपूर्ण और जरुरी मानवीय गुण है। कार्यक्रम की विशेष बात यह रही कि संकट मोचक बनने वाले समाजसेवियों का सम्मान पत्रकारों के हांथों कराया गया।        

कार्यक्रम में सम्मानित होने वाले समाजसेवियों में मुख्य रूप से प्राणनाथ मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधक राज किशन शर्मा, प्राणनाथ मंदिर के पुजारी देवकरण त्रिपाठी, नर सेवा नारायण सेवा संस्था के संस्थापक रामऔतार बबलू पाठक, समाजसेवी मनोज केसरवानी, समाजसेवी शिवजीत सिंह भैया राजा, सांई मंदिर ट्रस्ट के संचालक नरेंद्र कुमार गन्नू गुप्ता, मनीष शर्मा एवं कमल लालवानी को सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए कोरोना संकटकाल में जरूरतमंदों की निस्वार्थ मदद को देखते हुए शॉल, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है। सम्मानित करने वाली संस्था भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा के जिलाध्यक्ष व्ही.एस. यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि प्राणनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा समय-समय पर जिले में देश विदेश के नामचीन चिकित्सकों का कैम्प लगवाकर गंभीर रोगों का निशुल्क उपचार करवाया जाता है, और कोरोना संकटकाल में भी जरूरतमंदों को भोजन की व्यवस्था की जाती रही है। नरेन्द्र कुमार गन्नू गुप्ता साईं मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से वृद्ध, दिव्यांग एवं असहाय लोगों को भोजन की व्यवस्था करते हैं एवं कोरोना संकट काल में जरूरतमदों को राशन किट पहुंचाते रहे हैं। रामऔतार बबलू पाठक द्वारा नरसेवा नारायण सेवा संस्था के माध्यम से जरूरतमंदों की मदद एवं जिला अस्पताल में मरीजों के परिजनों को 05 रुपए में भरपेट भोजन की व्यवस्था करते हुए समय-समय पर जनसेवा के सराहनीय कार्य करते हैं। इसी प्रकार, मनोज केसरवानी द्वारा पेयजल व्यवस्था विहीन बस्तियों में स्वयं के टैंकरों से निःशुल्क पानी और कोरोना संकट में प्रवासी श्रमिकों को भोजन व जरूरत मंदों को राशन किट पहुंचाते रहे हैं। शिजीत सिंह भैया संकट के समय प्रवासी श्रमिकों के लिए भोजन और नास्ते की व्यवस्था एवं जरूरतमंदों की मदद करते रहे हैं। मनीष शर्मा द्वारा प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को दूध, चाय, ब्रेड, बिस्कुट एवं अन्य सामग्री की व्यवस्था करना, कमल लालवानी द्वारा जरूरतमंदों को भोजन के पैकेट, राशन किट एवं भूखे-प्यासे पशुओं को भोजन और पानी की व्यवस्था जैसे नेक कार्य के किये गये हैं। जिसे देखते हुए संगठन द्वारा सम्मानित किया गया है। कार्यक्रम के दौरान पत्रकार मनीष मिश्रा ने कोरोना के भयावह दौर में उल्लेखनीय कार्य करने वाले कुछ और समाजसेवियों व संस्थाओं का जिक्र कर यह मंशा जाहिर किया कि किसी न किसी रूप में इनका भी सम्मान होना चाहिये। मालुम हो कि कोरोना के समय जब लॉकडाउन था, जरुरत का सामान भी नहीं मिल पा रहा था उस समय न जाने कितने लोगों ने अपनी परवाह न करते हुये मानव होने का फर्ज निभाया था। कुछ लोग तो ऐसे भी रहे जो चुपचाप बिना किसी शोर शराबे के स्वान्तः सुखाय जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाते रहे हैं। ऐसे सभी लोगों के कार्यों को आदर व सम्मान देने की नेक मंशा से ही यह कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमे प्रतीकात्मक रूप से कुछ समाजसेवियों का सम्मान कर उन सभी लोगों के प्रति भी सम्मान प्रगट किया गया जिन्होंने आपदा के समय सेवा को अपना धर्म समझा।  

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Saturday, October 10, 2020

वन बैरियर के पास पकड़ी गई सागौन से लदी पिकअप

  •   वाहन में तिरपाल से छुपा कर रखी गई थीं सागौन की 21 बोगियां 
  •  विश्रामगंज वन परिक्षेत्र में नहीं थम रहा जंगल की अवैध कटाई 
  •  जंगल में हर तरफ नजर आते हैं सागौन के ताजे कटे ठूंठ

अवैध सागौन की बोगियों से लदी पिकअप तथा मौके पर मौजूद वन अमला। 

अरुण सिंह,पन्ना।  मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में शातिर शिकारियों के साथ-साथ लकड़ी तस्करों की भी सक्रियता बढ़ी है। जिसके चलते यहां के समृद्ध और हरे-भरे जंगलों को सुनियोजित तरीके से उजाड़ने का काम चल रहा है। हालात यह हैं कि जिले का कोई भी वन क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां अवैध कटाई और उत्खनन न हो रहा हो। ताजा मामला उत्तर वन मंडल पन्ना के विश्रामगंज वन परिक्षेत्र का है। यहां वन बैरियर माझा के पास शनिवार 10 अक्टूबर को सुबह थाना कोतवाली पन्ना पुलिस ने अवैध सागौन से लदी एक पिकअप पकड़ी है। इस पिकअप वाहन में सागौन की 21 बोगियों को तिरपाल में छुपा कर रखा गया था। पुलिस जैसे ही वहां पहुंची वाहन में सवार लोग सागौन से लदी पिकअप को छोड़कर फरार हो गये।9 जानकारी मिलते ही वन परिक्षेत्र अधिकारी अजय बाजपेई सहित वन अमला भी मौके पर पहुंच गया। वन अमले द्वारा मामले की पड़ताल की जा रही है।

 

उल्लेखनीय है कि उत्तर वन मंडल पन्ना का विश्राम गंज वन परिक्षेत्र सागौन की अवैध कटाई तथा अवैध हीरा खदानों के संचालन को लेकर हमेशा चर्चा में रहता है। तकरीबन 16000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस वन परिक्षेत्र में कुछ वर्षों पूर्व तक बेहतरीन किस्म का सागौन हर तरफ नजर आता था, जिसे वन माफियाओं और लकड़ी तस्करों ने तहस-नहस कर दिया है। वर्ष 2016 में इसी वन परिक्षेत्र के बीट माझा व कौवा सेहा में हजारों की संख्या में सागौन के वृक्ष काटे गये थे। जंगल की सुरक्षा में तैनात रहने वाला अमला अवैध कटाई को रोकने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि वन माफियाओं व लकड़ी तस्करों में वन अमले का तनिक भी खौफ नहीं है। तभी तो अवैध सागौन से लदे वाहन सुगमता पूर्वक वन बैरियर से होकर निकल जाते हैं। इससे वन अमले पर सांठगांठ के आरोप भी लगते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक सागौन की बोगियों से लदी पिकअप वाहन क्रमांक एमपी 21जी 1976 वन विभाग के माझा बैरियर से होकर ही निकलने वाली थी। लेकिन अचानक वहां पुलिस पहुंच गई और संदिग्ध वाहन नजर आने पर जब उसे रोका तो वाहन में सवार लोग फरार हो गये। पिकअप की तिरपाल हटाने पर उसमें सागौन की मोटी 21 बोगियां लदी हुई थीं, साथ में लकड़ी काटने वाले दो आरा भी रखे हुए थे।

मामले की जानकारी देते हुए वन परिक्षेत्र अधिकारी विश्रामगंज अजय बाजपेई ने बताया कि जप्त हुआ पिकअप वाहन शाहनगर क्षेत्र का है। वाहन मालिक का पता चल गया है। आरोपियों की भी पड़ताल जारी है, जिन्हें शीघ्र ही पकड़ लिया जायेगा। आपने बताया कि पिकअप वाहन में 21 नग सागौन की बोगियां पाई गई हैं,जिनकी अनुमानित कीमत डेढ़ लाख रुपए से अधिक है। वन परिक्षेत्र के किस इलाके में इन सागौन के वृक्षों को काटा गया है, यह पूछे जाने पर रेंजर श्री बाजपेई ने बताया कि अभी इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। आरोपियों के पकड़े जाने पर इस बात का खुलासा हो सकेगा कि यह वृक्ष कहां से काटे गये हैं। मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ने से कई बाघ बफर व टेरिटोरियल के जंगल में विचरण कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में लकड़ी तस्करों की इस तरह से जंगल में सक्रियता बाघों की सुरक्षा को लेकर भी एक बड़ा खतरा है। इस खतरे की ओर भी जिम्मेदार वन अधिकारियों को समय रहते ध्यान देना चाहिये।

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Friday, October 9, 2020

श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु खुलेंगे अब मंदिरों के द्वार

  •  कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी ने जारी किये धार्मिक स्थलों के लिए निर्देश


पन्ना। मंदिरों के शहर पन्ना में श्रद्धालु कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुये मंदिरों में जाकर पूजा - पाठ व दर्शन कर सकेंगे।  कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी संजय कुमार मिश्र द्वारा समय-समय पर भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश गृह मंत्रालय द्वारा कोविड-19 के तहत जारी निर्देशों के परिपेक्ष्य में कोरोना संक्रमण महामारी की गंभीरता को देखते हुए लोक स्वास्थ्य की दृष्टि से कोरोना संकट रोकथाम के लिए पन्ना जिले की सम्पूर्ण राजस्व सीमा के अन्तर्गत दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिले में धार्मिक स्थलों के लिए निर्देश जारी किये गये हैं। 

जारी हुए निर्देशों के मुताबिक प्रत्येक धार्मिक स्थल को आमजनों के लिए खोला जायेगा। धार्मिक स्थल पर आने वाले लोगोें को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाते हुए मास्क का अनिवार्य रूप से उपयोग कराकर दर्शन या प्रार्थना करवाई जा सकेगी। प्रवेश करने वाले एवं सेवा कार्य करने वालों के लिए चेहरे पर मास्क लगाना अनिवार्य होगा। गर्भगृह में प्रवेश सभी बडे धार्मिक स्थलों में प्रतिबंध रहेगा। दो गज की दूरी के साथ दर्शन किए जा सकेंगे। धार्मिक स्थलों में चलने वाले अन्न क्षेत्र प्रारंभ किए जा सकेंगे। किन्तु श्रद्धालुओं को दो गज की दूरी पर बैठाया जाना अनिवार्य रहेगा। धर्म स्थल प्रबंधन समिति को कोरोना गाइड लाइन का पालन करना सुनिश्चित रहेगा। धार्मिक स्थलों के प्रवेश द्वार पर सेनेटाइजर की व्यवस्था की जिम्मेदारी धार्मिक स्थल प्रबंधन समिति की होगी। 

पन्ना स्थित रात्रीकालीन चौपाटी के लिए निर्देश जारी किये गये हैं कि खाद्य सामग्री को टेकअवेध्टेक होम की अनुमति प्रदान की गयी है। यह दुकानदार रात्रिकालीन मुख्य बाजार बंद होने के उपरांत पूर्व समय अनुसार अपनी खानपान की दुकान प्रारंभ कर टेकअवे के सिद्धांत पर पार्सल लोगों को दे सकेंगे। मौके पर खाने की अनुमति नही रहेगी। जिम्मेदारी संबंधित दुकानदार की होगी। समस्त दुकानदार स्वयं मास्क पहनेंगे तथा ग्राहकों के उपयोग के लिए सेनेटाइजर तथा सोशल डिस्टेंसिंग, दो गज की दूरी पर ढेरे बनाएंगे। ऐसा न करने पर संबंधित दुकानदार के विरूद्ध नियमानुसार अर्थदण्ड एवं अन्य दाण्डिक कार्यवाही की जाएगी। 

यह आदेश पन्ना जिले की सम्पूर्ण राजस्व सीमा के अन्तर्गत जनसामान्य के जानमाल की सुरक्षा तथा भविष्य में लोक शांति भंग होने के संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए जारी किया गया है। यह आदेश तत्काल प्रभाव से आगामी आदेश तक लागू रहेगा। आदेश का उल्लंघनध्चूक करने पर दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 आपदा प्रंबधन अधिनियम की धारा 51-60 के तहत कार्यवाही की जायेगी। 

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हमने अंगुलिमाल तो पैदा किये पर बुद्ध कहाँ से लायेंगे ?


बेहद खतरनाक और हिंसा से भरे हत्यारे अंगुलिमाल की कहानी सभी ने सुनी होगी। यह कहानी लगभग ढाई हजार वर्ष पुरानी बुद्ध के समय की है। इतना लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी ऐसा प्रतीत होता है कि हम अंगुलिमाल की हिंसक वृत्ति से मुक्त नहीं हो पाये हैं। भगवान बुद्ध की प्रेम, करुणा और ध्यान की शिक्षा को हमने आत्मसात नहीं किया। यही वजह है कि आर्थिक विकास की दृष्टि से हम भले ही प्रगति कर ली हो लेकिन आत्मिक विकास की दृष्टि से हम आज भी वहीं  खड़े  नजर आ रहे हैं, जहां ढाई हजार वर्ष पूर्व अंगुलिमाल था। लेकिन अंगुलिमाल सौभाग्यशाली था कि उसे बुद्ध मिल गये और उसका आमूलचूल रूपांतरण हो गया। हिंसक शक्ति प्रेम और करुणा में परिवर्तित हो गई। पर हमारा यह दुर्भाग्य है कि गांव, कस्बों और शहरों तक हर कहीं अंगुलिमाल नजर आते हैं लेकिन बुद्ध नहीं। अब इन अंगुलिमालों का  रूपांतरण कैसे हो, कौन करें ?


ढाई हजार वर्ष पूर्व जो अंगुलिमाल था, वह घने जंगल में रहता था और जो कोई भी उस रास्ते से गुजरता वह उसका सिर काट कर उसके उंगलियों की माला अपने गले में पहन लेता था। लेकिन आज के अंगुलिमाल गांव, कस्बों और शहरों में रह रहे हैं और फरसा तथा कटी गर्दन लेकर सड़क पर चहल-कदमी करते नजर आते हैं। ताजी घटना उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में आने वाले बांदा जिले की है। इस जिले के बबेरू कस्बे में शुक्रवार 9 अक्टूबर 20 की सुबह एक युवक ने अंगुलिमाल के चरित्र को जीवंत करते हुए अपनी ही पत्नी का फरसे से गला काट दिया। इतना ही नहीं वह कटे गले को एक हाथ से उठाकर और दूसरे हाथ में फरसा लेकर घर से पुलिस थाने की ओर चल पड़ा। दिनदहाड़े सुबह-सवेरे जिसने भी यह दिल दहला देने वाला दृश्य देखा, उसके रोंगटे खड़े हो गये। बबेरू थाना कोतवाली के निरीक्षक जयश्याम शुक्ला का कहना है घटना सुबह 7:30 बजे की है। हत्या के आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया गया है। श्री शुक्ला के मुताबिक आरोपी ने पत्नी की हत्या अवैध संबंधों के शक में की है। 

अब यहां सवाल फिर उठता है कि अवैध संबंध के लिए क्या सिर्फ स्त्री ही दोषी है, पुरुष का इसमें कोई रोल नहीं होता। क्या अकेली स्त्री किसी पुरुष से संबंध बना सकती है ? तो फिर स्त्री की ही गर्दन क्यों कटती है ? अवैध संबंधों और दुष्कर्म के कितने मामले रोज प्रकाश में आते हैं, उनमें क्या होता है। स्त्री को ही जलालत झेलनी पड़ती है, उसकी इज्जत, प्रतिष्ठा और सम्मान सब कुछ तहस-नहस हो जाता है। जबकि पुरुष को अपने कृत्यों का पछतावा तक नहीं होता, वह अपने बचाव में कोई न कोई तर्क गढ़ लेता है और पूरा दोस स्त्री पर ही मढ़ने का प्रयास करता है। क्या हमारे समाज में स्त्री को जैसा प्रीतिकर लगे वैसा जीने का हक नहीं है, क्या वह आज भी पुरुषों की गुलाम है ? तो फिर हमें बड़ी-बड़ी और ऊंची शास्त्रीय बातें नहीं करना चाहिये। हमें यह स्वीकारना चाहिये की प्रेम, करुणा और बराबरी की शिक्षा हमारे लिए नहीं, हम तो अंगुलिमाल के पोषक हैं बुद्ध के नहीं।

@अरुण सिंह(पत्रकार), पन्ना   

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Wednesday, October 7, 2020

वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह का समापन, पुरष्कृत हुये प्रतिभागी


पन्ना। वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते इस वर्ष शासन के निर्देशानुसार वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह का आयोजन सीमित रूप से किया गया है। इस वर्ष वन्यप्राणी सप्ताह के दौरान कबिता पाठ प्रतियोगिता, बाघ सखा दीवार चित्रकला प्रतियोगिता एवं मिट्टी का जादू मूर्ति कला प्रतियोगिता परिक्षेत्र स्तर पर आयोजित की जानी थी। परिक्षेत्र स्तर पर बाल सखा चित्रकला प्रतियोगिता एवं मूर्ति कला प्रतियोगिता आयोजित की गई। परिक्षेत्रों ने बाल सखा चित्रकला प्रतियोगिता एवं मूर्तिकला प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। प्रतियोगिता में भाग लेने वाले विजेता प्रतिभागी टीम को पुरस्कार वितरण एवं समापन समारोह का कार्यक्रम कार्यालय क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व  में 7 अक्टूबर गुरुवार को आयोजित किया गया। कार्यक्रम  बालागुरु के. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत पन्ना के मुख्य आतिथ्य एवं श्रीमती मीना मिश्रा वन मण्डलाधिकारी दक्षिण पन्ना वन मण्डल की अध्यक्षता एवं उप संचालक जरांडे ईश्वर रामहरि की  उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।  बाघसखा चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान परिक्षेत्र पन्ना कोर की टीम को, द्वितीय स्थान पार्क कार्यालय की टीम एवं तृतीय स्थान मढ़िया दौ एवं मड़ला को संयुक्त रूप से प्रदाय किया गया। इसी प्रकार मिट्टी का जादू मूर्ति कला प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार किशनगढ़ बफर, द्वितीय किशनगढ़ कोर एवं तृतीय किशनगढ़ बफर को प्रदाय किया गया। बाघ सखा चित्रकला प्रतियोगिता एवं मिट्टी का जादू मूर्तिकला प्रतियोगिता में विजेता छात्रों के नाम निम्नानुसार हैं। 

बाघ सखा दीवार चित्रकला प्रतियोगिता में  सोम त्रिपाठी, बीए फाइनल, महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय, कु. सिफा खातून, बीए फाइनल,  शासकीय छत्रसाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पन्ना, शिवा त्रिपाठी, कक्षा 12 मदुरालवि पन्ना, कु. अरुणिमा तिवारी, बीए द्वितीय वर्ष, डॉ0 हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, कु. आस्था तिवारी, बीएससी तृतीय वर्ष, डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, राज चौदा, कक्षा 11वीं, राजू रैकवार, कक्षा 10वीं, कु. गुड़िया खरे कक्षा 03, सरस्वती शिशु मंदिर मड़ला,  संतोष पाल, कक्षा 9वीं, शासकीय हासे स्कूल मड़ला, अनुज पाल, कक्षा 9वीं, शासकीय हासे स्कूल मड़ला, अमर पाल कक्षा 10वीं, शासकीय हासे स्कूल मड़ला ने क्रमशः प्रथम, द्वतीय एवं तृतीय स्थान अर्जित किया। इसी तरह मिट्टी का जादू, मूर्ति कला प्रतियोगिता में  भूपेन्द्र यादव, ग्रामीण ग्राम कदवारा, महेन्द्र सिंह, ग्रामीण ग्राम कदवारा, छोटू पाल, ग्रामीण ग्राम कदवारा, राजेन्द्र सौर, कक्षा-4, शास. माध्यमिक शाला, नौगुवां, लक्ष्मी सौर, कक्षा-6, शास. माध्यमिक शाला, नौगुवां, देवांष मिश्रा कक्षा-2, शास . माध्यमिक शाला, नौगुवां, कु. तुलसी अहिरवार, कक्षा 10वीं, शाउमवि किशनगढ़, ओम प्रकाश अहिरवार, ग्रामीण, ग्राम नगदा विजेता घोषित हुये। कार्यक्रम के अन्त में वन एवं वन्यप्राणी सुरक्षा के लिए शपथ दिलाई गई तथा श्रीमती प्रतिभा शुक्ला, सहायक संचालक मड़ला द्वारा आभार व्यक्त किया गया। तदुपरान्त कार्यक्रम का समापन किया गया। 

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अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाले वन योद्धाओं को सलाम !

  •  वन योद्धाओं पर केंद्रित टेली फिल्म द फ्रंटलाइन वॉरियर ऑफ पन्ना की धूम 
  •  प्रकृति व वन्य जीव प्रेमी टेलीफिल्म देखकर दे रहे उत्साहजनक प्रतिक्रियायें





अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की हरी-भरी वादियों, खूबसूरत घने जंगलों और पहाड़ों के बीच से प्रवाहित होने वाली जीवनदायिनी केन नदी की छटा निराली है। प्रकृति प्रदत्त यहां के अलौकिक व अनिवर्चनीय सौंदर्य को निहारकर सैलानी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहां के जंगल आदिकाल से वन्य प्राणियों विशेषकर बाघों की शरण स्थली रही है। यही वजह है कि विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से अलंकृत इस इलाके को रत्नगर्भा के साथ-साथ बाघों की धरती के नाम से भी जाना जाता रहा है। जैव विविधता से परिपूर्ण पन्ना जिले के विशाल वन क्षेत्र को तमाम तरह की चुनौतियों, व्यवधानों और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद काफी हद तक पन्ना जिलावासियों ने सहेज कर रखा है। इस कार्य में उन वन योद्धाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है, जिन्होंने कठिन चुनौतियों का मुकाबला करते हुए न सिर्फ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया अपितु इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए अपने जीवन को भी दांव पर लगाने में पीछे नहीं रहे।

 विषम परिस्थितियों के बीच रहकर अनगिनत चुनौतियों का सामना करते हुए जंगल तथा वहां विचरण करने वाले वन्यजीवों की सुरक्षा करने वाले इन्हीं कर्तव्यनिष्ठ वन योद्धाओं पर केंद्रित एक टेली फिल्म "वन योद्धा - द फ्रंटलाइन वॉरियर आफ पन्ना" का निर्माण प्रकृति और वन्य जीव प्रेमी अभिनव पांडेय व सुशील ने किया है। यह छोटी सी फिल्म जंगल की निराली दुनिया को जहां बड़ी खूबसूरती के साथ प्रकट करती है, वहीं वन योद्धाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों से भी रूबरू कराती है। निश्चित ही प्रकृति प्रेमी युवाओं की यह अभिनव पहल सराहनीय है। इस फिल्म को बीते दो माह में ही राष्ट्रीय पहचान मिली है तथा लोग इसे बेहद पसंद कर रहे हैं। इस फिल्म को देखकर सैकड़ों लोगों ने अपनी उत्साहजनक प्रतिक्रियायें भी दी हैं और वन्य प्राणियों की सुरक्षा करने वाले वन योद्धाओं को सलूट किया है। इस टेलीफिल्म की गुणवत्ता तो उच्च क्वालिटी की है ही लेकिन इसमें वन योद्धाओं के बारे में जो शब्द दिये गये हैं वह हकीकत को बयां करते हैं।


पन्ना टाइगर रिज़र्व के जंगल की निगरानी करते फ्रंटलाइन वनयोद्धा। 

तकरीबन 6रू30 मिनट की इस फिल्म की शुरुआत वन योद्धाओं की कठिन जिंदगी और पन्ना टाइगर रिजर्व के दिलकश नजारों को दिखाते हुए होती है। फिल्मांकन के बीच में ही कर्णप्रिय आवाज सुनाई देती है कि हिंदुस्तानी जंगलों की बात ही निराली है, दुनिया की 7 फीसदी जैवविविधता सिर्फ हमारी है। पर सवाल है कि इतने जंगलों को पालेगा कौन? मवेशी घुस आएंगे जंगलों में तो संभालेगा कौन? फिल्म में इन सवालों का जवाब कुछ इस तरह दिया जाता है। यह वही हैं जिन्हें जानवरों की जान खुद से ज्यादा प्यारी है, इनकी जंग हमेशा से जारी है। कभी मौसम बेमिजाज है तो कभी सामने जिद्दी शिकारी है। बचाते हमें जानवरों से और जानवरों को हमसे। नहीं यह भगवान तो नहीं लेकिन एक अकेले खुद के साथ परिवार दांव पर लगाना आसान तो नहीं। चलिए आप बताइए जंगल में जिंदगी बिताएंगे? रहेंगे तेंदुओं के सामने, आप दूसरों को बचाएंगे? एक वन रक्षक कहलाकर अपना सब कुछ लुटायेंगे? 24 घंटे की नौकरी और सिर्फ चलते जाना है, कितने संघर्षों के बाद भी इनसे अनजान जमाना है। आओ मिलकर कदम उठायें, अब इनकी पहचान हमें बनाना है।

 काबिले गौर है की पन्ना टाइगर रिजर्व का मैदानी अमला निसंदेह सर्वश्रेष्ठ है। यह वही वन अमला है जिसने अथक श्रम और निष्ठा से काम करते हुए पन्ना को शून्य से इस मुकाम तक पहुंचाया कि पन्ना में जन्मे बाघ केन से लेकर सोन तक विचरण कर रहे हैं। दिक्कत और परेशानी तब शुरू होती है जब आला अधिकारियों के बीच निहित स्वार्थ और अहं को लेकर टकराव होता है जिसके चलते टीम वर्क की भावना को क्षति पहुंचती है। बीते कुछ महीनों के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में जो कुछ हुआ वह ऐसे ही टकराव व टीम वर्क की भावना के तिरोहित हो जाने का नतीजा है। इससे सीख लेने की आवश्यकता है ताकि फिर इन गलतियों की पुनरावृत्ति न हो। जनसमर्थन से बाघ संरक्षण का नारा धरातल में नजर आये, इस दिशा में ठोस और कारगर पहल की जरूरत है। क्योंकि बिना जनसमर्थन के वन व वन्य प्राणियों की सुरक्षा संभव नहीं है।  यदि हम इस दिशा में आगे कामयाब रहे तो यह अनमोल धरोहर जिसका हमने बहुत कुछ खोकर संरक्षण किया है, वह हमें सूद और व्याज के साथ खुशहाली लौटायेगा। इतना ही नहीं आने वाली पीढ़ियां भी हमारे इस अनूठे योगदान के लिए अनुग्रहित रहेंगी।

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